षड्यंत्र का खुलासा : समरावता गाँव में आधी रात में पुलिस ने पुलिस को मारा सजा नरेश मीणा को क्यों 

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 11 दिसंबर 2024 | जयपुर :  राजस्थान के उपचुनाव में ‘थप्पड़ कांड’ के नरेश मीणा के कारण सियासत में काफी हलचल रही। इधर, नरेश मीणा कब जेल से छूटेंगे? यह पहेली अब तक नहीं सुलझ पाई है। घटना के 26 दिन बीते जाने के बाद भी नरेश मीणा अभी भी टोंक जेल में बंद है।

षड्यंत्र का खुलासा : समरावता गाँव में आधी रात में पुलिस ने पुलिस को मारा सजा नरेश मीणा को क्यों 

समरावता गाँव में आधी रात में पुलिस ने पुलिस को मारा सजा नरेश मीणा को क्यों

जनहित के मुद्दे उठाना हर एक राजनेता का प्राथमिक दायित्व है। नरेश मीणा ने भी वही किया। जब कोई भी इस जनहित के मुद्दे पर अपनी जुबान नहीं खोल रहा था तो नरेश मीणा समरावता गाँव के लोगों को न्याय दिलाने के लिए आगे आये। प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया। शांतिपूर्ण आन्दोलन किया।

पर स्थानीय राजनीति, नरेश मीणा के बढ़ते राजनीतिक कद, और पार्टी लाइन की वजहों से जुबान पर पाबंदी लगे राजनेताओं ने पुलिस-प्रशासन की सहायता से इसे अलग ही मोड़ दे दिया। इस घटना को मनुवादी मीडिया ने मीणा समाज के प्रति अपनी चिपरिचित वैमनस्यता के चलते अलग ही मोड़ दे दिया।

समरावता गाँव में हुए शांतिपूर्ण आंदोलन के बाद स्थानीय पुलिस ने जो असंवैधानिक कार्य किया। उसे, गाँव के ही एक सीसीटीवी फुटेज ने कैद कर लिया। स्थानीय प्रशासन की अमानवीय साजिश के तहत समरावता गाँव के शांति पूर्ण जन आंदोलन में साधा-वर्दी में पुलिसकर्मी भीड़ में शामिल कर दिये।

पुलिस का यह नया प्रयोग नहीं था पर इस नये प्रयोग में नवीनतम प्रयोग यह किया कि सबसे पहले वर्दीधारी पुलिस ने भीड़ पर लाठी चार्ज किया और उसमें भी साधावर्दी (सिविल ड्रेस) में तैनात पुलिस वालों को टारगेट किया गया ताकि नरेश मीणा को फँसाया जा सके। 

यही फाँस नरेश मीणा की ज़मानत नहीं होने दे रही है और इसका तोड़ नरेश मीणा के वकील नहीं निकाल पा रहे हैं। वकीलों ने इस संजीदा प्रकरण को अनुभव की पाठशाला में तब्दील कर दिया है।

यह मामला इतना बढ़ा कि घटना की रात समरावता गांव में पुलिस और नरेश के समर्थकों के बीच जमकर संघर्ष हुआ। आगजनी की घटनाएं हुई, हवाई फायरिंग और आसू गैस के गोले छोड़े गए। अगले दिन भारी पुलिस बल ने नरेश को गिरफ्तार कर लिया।

मूकनायक मीडिया के पास ऐसे अनेक पुलिस कर्मियों की फुटेज उपलब्ध है जिन्होंने शांतिपूर्ण आंदोलन को हिंसक बनाया और सिविल ड्रेस में तैनात पुलिस कर्मियों को वर्दी धारी पुलिस ने मारा पीटा। 

नरेश 14 नवंबर से टोंक जेल में बंद है। उसके साथ कल 63 समर्थक भी जेल में बंद थे। इनमें चार नाबालिग बच्चों को फिलहाल जमानत दे दी गई है। इधर, शनिवार को उनियारा एसीजीएम कोर्ट ने नरेश की जमानत याचिका खारिज कर दी। 

घटना के 26 दिन बाद भी नरेश को नहीं मिली जमानत

प्रदेश में 13 नवंबर को उपचुनाव हुए। इस दौरान देवली उनियारा विधानसभा क्षेत्र के समरावता गांव में जमकर बवाल हुआ। ग्रामीणों के बहिष्कार के बाद भी जबरन वोट डलवाने के मामले में गुस्साएं निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने एरिया मजिस्ट्रेट अमित चौधरी को थप्पड़ जड़ दिया।

यह भी पढ़ें : भारत के लिए सबसे ज्यादा गोल करने वाले 10 हॉकी खिलाड़ी

इस मामले में नरेश सहित 63 लोगों की गिरफ्तारी हुई। इनमें से चार नाबालिग बच्चों की जमानत हो चुकी है, लेकिन नरेश सहित अन्य लोगों को अभी तक जमानत नहीं मिल पाई है। हालांकि नरेश मीणा ने शनिवार को उनियारा एसीजेएम कोर्ट में अपनी जमानत की याचिका दायर की, लेकिन कोर्ट ने नरेश की जमानत याचिका को खारिज कर दिया।

अब नरेश जमानत के लिए जिला सेशन में करेंगे अपील

थप्पड़ कांड और हिंसा के मामले में नरेश सहित 59 लोग अभी भी टोंक जेल में बंद है। इधर, नरेश को शनिवार को अपनी जमानत को लेकर बड़ा झटका लगा, जहां उनकी जमानत को कोर्ट ने खारिज कर दिया। इधर, अब चर्चा है कि नरेश अपनी जमानत के लिए टोंक जिला सेशन न्यायालय में अपील कर सकते हैं।

नरेश को लंबे समय तक रखने की फिराक में टोंक पुलिस?

समरावता गांव में एरिया मजिस्ट्रेट को थप्पड़ मारने और हिंसा के मामले को लेकर टोंक पुलिस ने नरेश के खिलाफ काफी स्ट्रांग केस बनाया है। इसको लेकर माना जा रहा है कि टोंक पुलिस लंबे समय तक नरेश को जेल में ही रखने का प्रयास कर रही है।

इसको लेकर बीते दिनों अजमेर रेंज के आईजी ओम प्रकाश ने भी संकेत दिये थे। ऐसे में लोगों के बीच चर्चा का विषय है कि आखिर नरेश को कब तक जमानत मिलेगी? बता दें कि नरेश पर टोंक से पहले 23 मामले दर्ज है।

पुलिस सू़त्रों की माने तो पुलिस इन मामलों में भी कार्रवाई करने की तैयारी में है। बता दें कि नरेश मीणा के खिलाफ टोंक पुलिस ने पांच गंभीर धाराओं के तहत मामले दर्ज किए हैं। इसके चलते टोंक पुलिस नरेश को हर एक मामले में कोर्ट में पेश कर, उनकी न्यायिक हिरासत को बढ़ाने का प्रयास कर रही है।

नरेश के समर्थकों ने 17 से सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी

इधर, 14 नवंबर से नरेश टोंक जेल में बंद है। उनकी जमानत याचिका खारिज होने के बाद नरेश के समर्थक भड़क गए। इस दौरान रविवार को सवाई माधोपुर में समर्थकों की बैठक हुई, जहां चौथ का बरवाड़ा स्थित मीणा धर्मशाला के पास सर्व समाज की महापंचायत हुई।

इसको लेकर अब लोगों में चर्चा है कि आखिर नरेश को कब तक जमानत मिलेगी? नेतृत्व में नरेश के समर्थकों ने हुंकार भरी है। चेतावनी दी है कि यदि 15 दिसंबर तक नरेश की रिहाई नहीं हुई, तो 17 से प्रदेश के युवा सड़कों पर उतरेंगे। वहीं सवाई माधोपुर में कांग्रेस नेता प्रहलाद गुंजल ने अपनी राजनीतिक रोटियां सेकी। और यह दौर आगे भी जारी रह सकता है!

 कांग्रेस नेता एंव पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल ने साफ-साफ कह दिया कि यदि नरेश मीणा के साथ इंसाफ नहीं हुआ, तो जल्द ही राजस्थान में बड़ा आंदोलन किया जायेगा। उन्होंने कहा कि जनता की मांग है कि 15 तारीख तक नरेश मीणा और उनके साथियों को इंसाफ दिया जाये नहीं तो 17 तारीख से राजस्थान की सड़कों पर युवा वर्ग उतरने को मजबूर हो जायेगा। पर सबसे बड़ी बात यह है कि गुंजल राजनीतिक रोटियाँ सेक रहे हैं।

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

 

MOOKNAYAK MEDIA

At times, though, “MOOKNAYAK MEDIA’s” immense reputation gets in the way of its own themes and aims. Looking back over the last 15 years, it’s intriguing to chart how dialogue around the portal has evolved and expanded. “MOOKNAYAK MEDIA” transformed from a niche Online News Portal that most of the people are watching worldwide, it to a symbol of Dalit Adivasi OBCs Minority & Women Rights and became a symbol of fighting for downtrodden people. Most importantly, with the establishment of online web portal like Mooknayak Media, the caste-ridden nature of political discourses and public sphere became more conspicuous and explicit.

Related Posts | संबद्ध पोट्स

मध्यप्रदेश 27% OBC आरक्षण का रास्ता साफ, एमपी हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 87:13 फॉर्मूला रद्द

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 जनवरी 2025 | जयपुर :  हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत व न्यायमूर्ति विवेक जैन की युगलपीठ ने यूथ फॉर इक्वलिटी की वह याचिका मंगवार को निरस्त कर दी, पूर्व में जिसकी सुनवाई करते हुए 87 : 13 का फार्मूला तैयार किया गया था।

मध्यप्रदेश 27% OBC आरक्षण का रास्ता साफ, एमपी हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 87:13 फॉर्मूला रद्द

मध्य प्रदेशमें ओबीसी आरक्षण पर बड़ा अपडेट आया है। एमपी हाईकोर्ट ने मंगलवार (28 जनवरी) को मामले में सुनवाई करते हुए 87:13 का फार्मूला रद्द कर दिया। कोर्ट के इस फैसले से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)के लिए 27 फीसदी आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है। 

मध्यप्रदेश 27% OBC आरक्षण का रास्ता साफ, एमपी हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 87:13 फॉर्मूला रद्द

दरअसल, मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षाण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी किया था, लेकिन कुछ लोगों इसे नियम विरुद्ध बताते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी। सरकार ने कोर्ट विवाद का हवाला देकर सरकारी विभागों में होने वाली नियुक्तियों में ओबीसी के 13 फीसदी पद होल्ड करने लगी। 

यूथ फार इक्वलिटी की याचिका खारिज

यूथ फार इक्वलिटी ने ओबीसी आरक्षण को संविधान के प्रविधानों का उल्लंघन बताते हुए कोर्ट में याचिका दायर की थी। कहा,  यह समानता के अधिकार को प्रभावित करता है। हाईकोर्ट ने उनके इस तर्क को खारिज कर याचिका निरस्त कर दी। 

क्या कहते हैं कानून विशेषज्ञ? 

  • सीनियर अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने बताया कि सरकार ने 4 अगस्त, 2023 को महाधिवक्ता के अभिमत पर सभी भर्तियों में 87 : 13 का फार्मूला लागू किया था। हाईकोर्ट ने उस याचिका को ही निरस्त कर दिया है, जिस आधार पर  87 : 13 का यह फार्मूला लागू किया या था। 
  • याचिका निरस्त होने के बाद न सिर्फ सरकार को आरक्षण के तहत काम करने में स्पष्टता मिलेगी। बल्कि भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता आएगी। 
  • सरकारी नौकरियों में होल्ड 13 फीसदी पदों पर भी नियुक्तियों का रास्ता साफ हो गया। अब विभिन्न विभागों के होल्ड पदों पर भी नियुक्तियां की जाएंगी।  

87 : 13 का फार्मूले के कारण शेष पदों पर लंबित थी भर्तियां

वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि महाधिवक्ता के अभिमत के कारण चार अगस्त, 2023 को हाई कोर्ट ने समस्त भर्तियों में 87 : 13 का फार्मूला लागू किया था। हाईकोर्ट का यह आदेश राज्य में आरक्षण से संबंधित विवाद को समाप्त करने और भर्ती प्रक्रिया को सुचारु रुप से शुरु करने के लिए एक अहम कदम है।

इससे सरकार को आरक्षण नीति के तहत काम करने की स्पष्टता मिलेगी और भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही प्रदेश में रुकी हुई सभी भर्तियों को अनहोल्ड करने का रास्ता साफ हो गया है।

सरकार अब ओबीसी आरक्षण के तहत 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करते हुए भर्तियों को तेजी से आगे बढ़ा सकती है। इससे ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को बड़ा लाभ मिलेगा, जो लंबे समय से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे।

27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी गई थी

यूथ फार इक्वलिटी द्वारा दायर याचिका में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह आरक्षण संविधान के प्रविधानों का उल्लंघन करता है और समानता के अधिकार को प्रभावित करता है। हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए याचिका को अस्वीकार कर दिया।

हाई कोर्ट ने मंगलवार के आदेश में चार अगस्त, 2023 के आदेश को रद्द कर दिया और स्पष्ट किया कि ओबीसी आरक्षण को लेकर कोई बाधा नहीं है। कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य में रुकी हुई सभी भर्तियों को फिर से शुरु करने का रास्ता साफ हो गया है। इस फैसले से उन लाखों उम्मीदवारों को राहत मिलेगी, जिनकी भर्तियां कोर्ट के आदेश के चलते होल्ड पर थीं।

87-13 फॉर्मूले को हाईकोर्ट ने किया रद्द

अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ने बताया कि याचिका के आदेश 4 अगस्त 2023 के अधीन 87-13 फॉर्मूला निर्धारित किया गया था। जिसे आज उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। उन्होंने बताया कि जिन नियुक्तियों को 13 प्रतिशत के दायरे में लेकर होल्ड कर दिया गया था। उन सभी पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरु की जाएगी।

दरअसल, 4 अगस्त 2023 में हाईकोर्ट के द्वारा एक अंतरिम आदेश के तहत राज्य सरकार को 87%-13% का फॉर्मूला लागू करने का निर्देश दिया गया था। इस आदेश के बाद से प्रदेश में सभी भर्तियां ठप्प कर दी गई थी।

यह भी पढ़ें : ‘अमेरिका फर्स्ट’ पॉलिसी ट्रम्प ने दुनियाभर में विदेशी मदद पर लगायी रोक

सरकार के द्वारा यह फॉर्मूला महाधिवक्ता के अभिमत के आधार पर तैयार किया था। जिसके तहत 87 प्रतिश अनारक्षित और 13 प्रतिशत सीटें ओबीसी के लिए रखी गई थी। जिसके चलते 27 फीसदी आरक्षण मांगने वाले उम्मीदवारों में भारी आक्रोश देखा गया था।

रुकी हुई भर्तियों का रास्ता होगा साफ

हाईकोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश में रुकी हुई भर्तियों को अनहोल्ड करने का रास्ता साफ हो गया है। सरकार के द्वारा 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण लागू करके भर्तियां बढ़ा सकती हैं। जिससे ओबीसी वर्ग से आने वाले लोगों को बड़ा फायदा मिल सकता है।

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग कीजिए 

पद्म पुरस्कारों में पीएम मोदी का झूठ उजागर, मोदी ने संविधान बदलवाने वाले अपने चाणक्य को दिया पद्मभूषण

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 जनवरी 2025 | जयपुर : प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) ने अपने अध्यक्ष बिबेक देबरॉय के हाल के उस विचार लेख से खुद को अलग कर लिया है, जिसमें उन्होंने एक अखबार में भारत के लिए नए संविधान की मांग की थी। देबरॉय ने अपने लेख में लिखा था, ‘हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देना होगा

पद्म पुरस्कारों में पीएम मोदी का झूठ उजागर, मोदी ने संविधान बदलवाने वाले अपने चाणक्य को दिया पद्मभूषण

नये संविधान की माँग करने वाले बिबेक देबरॉय से पहले पल्ला झाड़ने वाले पीएम ने सोशल मीडिया पर स्पष्टीकरण देते हुए लिखा, “डॉ बिबेक देबरॉय का हालिया लेख उनकी व्यक्तिगत राय थी। वो किसी भी तरह से ईएएसी-पीएम या भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाता।” ईएएसी-पीएम भारत सरकार, खासकर प्रधानमंत्री को आर्थिक मुद्दों पर सलाह देने के लिए गठित की गई बॉडी है।

पद्म पुरस्कारों में पीएम मोदी का झूठ उजागर, मोदी ने संविधान बदलवाने वाले अपने चाणक्य को दिया पद्मभूषण

जबकि पद्म पुरस्कार 2025 में उन्हीं देबरॉय को पद्म भूषण देकर प्रधानमंत्री ने साबित कर दिया कि अगर लोकसभा चुनाव में 400 सीटें आ जाती तो वे संविधान बदल देते! 

लेख में ऐसा क्या लिखा गया है?

द वायर के अनुसार 15 अगस्त को देबरॉय ने आर्थिक अख़बार मिंट में ” देयर इज़ ए केस फॉर वी द पीपल टू इंब्रेस अ न्यू कॉस्टिट्यूशन ” शीर्षक वालालेख लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा था, “अब हमारे पास वह संविधान नहीं है जो हमें 1950 में विरासत में मिला था। इसमें संशोधन किए जाते हैं और हर बार वो बेहतरी के लिए नहीं होते, हालांकि 1973 से हमें बताया गया है कि इसकी ‘बुनियादी संरचना’ को बदला नहीं जा सकता है।”

“भले ही संसद के माध्यम से लोकतंत्र कुछ भी चाहता हो। जहाँ तक मैं इसे समझता हूं, 1973 का निर्णय मौजूदा संविधान में संशोधन पर लागू होता है, अगर नया संविधान होगा तो ये नियम उस पर लागू नहीं होगा।”

लेख में उन्होंने कहा है, “हम जो भी बहस करते हैं, वो ज़्यादातर संविधान से शुरू और ख़त्म होती है। महज़ कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और शुरू से शुरुआत करना चाहिए।”

“ये पूछना चाहिए कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है। हमें ख़ुद को एक नया संविधान देना होगा।” देबरॉय ने एक स्टडी के हवाले से बताया कि लिखित संविधान का जीवनकाल महज़ 17 साल होता है। भारत के वर्तमान संविधान को उन्होंने औपनिवेशिक विरासत बताया है।

क्या वाकई हमारे संविधान को बदलने की कोशिश हो रही है? पद्म पुरस्कारों का अर्थ 

पद्म पुरस्कार, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक हैं। ये पुरस्कार, किसी खास क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वाले भारतीय नागरिकों को दिए जाते हैं। पद्म पुरस्कार तीन श्रेणियों में दिये जाते हैं। पद्म पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक हैं। ये पुरस्कार, विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, समाज सेवा, लोक-कार्य, विज्ञान और इंजीनियरी, व्यापार और उद्योग, चिकित्सा, साहित्य और शिक्षा, खेल-कूद, सिविल सेवा इत्यादि के संबंध में प्रदान किए जाते हैं।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिबेक देबरॉय ने 77वें स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त 2024 को इंडियन एक्सप्रेस में भारतीय संविधान जो लेख लिखा, उसके बाद उन्हें पद्म भूषण सम्मान दिया जाना चाहिए था! अगर उनको यह  देश का सबसे बड़ा दूसरा सम्मान दिया जा रहा है तो इसका सीधे तौर पर यह मतलब नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी देबरॉय के संविधान बदलने की बात से इत्तेफाक रखते हैं?

लोकसभा चुनावों में मोदी ने देश से झूठ क्यों बोला

फिर दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि लोकसभा चुनावों में मोदी ने देश से झूठ क्यों बोला? न्यूज़ क्लिक वेबसाइट ने तब अपनी एक स्टोरी में लिखा था कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने 15 अगस्त को मिंट अख़बार में एक लेख में कहा कि नए संविधान की ज़रूरत है। उन्होंने डॉ. बीआर अंबेडकर के नेतृत्व में लिखे गए मौजूदा संविधान को ‘औपनिवेशिक विरासत’ का हिस्सा भी बताया। क्या ये विचार देबरॉय के अपने हैं या फिर वे मौजूदा सत्ता संरचना में व्याप्त विचारों को व्यक्त कर रहे हैं?

यह भी पढ़ें : संविधान बदलने की माँग करने वाले बिबेक देबरॉय को मरणोपरांत पद्म भूषण, क्रिकेटर आर अश्विन को पद्मश्री

दैनिक जागरण ने राजद के हवाले से अपनी स्टोरी कहा ‘आरजेडी ने कहा है कि आरएसएस और भाजपा बाबा साहब भीमराव अंबेडकर द्वारा बनाए संविधान को बदलने की तैयारी कर रही है। योजना है कि 2024 में फिर सत्ता में आएं और संघ की स्थापना के सौ साल पूरा होने से पहले संविधान बदलकर मनुस्मृति वाली व्यवस्था लागू कर दें। देश की जनता को इनकी साजिश का पता चल चुका है इसलिए भाजपा की सत्ता से विदा तय है।’

द प्रिंट के अनुसार बिबेक देबरॉय ने सुझाव दिया है कि यह एक औपनिवेशिक विरासत है। चूंकि हम अपनी औपनिवेशिक विरासत को त्यागने के लिए उत्साहित हैं, तो क्या हमें एक नए संविधान का विकल्प नहीं चुनना चाहिए? 

वस्तुतः औपनिवेशिक विरासत बताकर भारतीय संविधान को अपमानित करने वाले बिबेक देबरॉय कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। वे प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थे। उनका लेख प्रकाशित होने के बाद कई दिनी तक केंद्र सरकार और भाजपा की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। पर अब देबरॉय को पद्म भूषण पुरस्कार से नवाज़ कर मिडी ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है। 

बिबेक देबरॉय पद्मश्री से सम्‍मानित थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थ‍िक सलाहकार परिषद के चेयरमैन थे।  वे नीति आयोग के सदस्‍य भी रह चुके थे।  उन्‍होंने कई किताबें भी लिखीं और उन्‍होंने महाभारत और पुराणों का सरल अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी किया था।  पिछले साल ‘नए संविधान’ की मांग करके वे विवादों में भी आए थे। 

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग कीजिए 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Color

Secondary Color

Layout Mode