मूकनायक मीडिया : युवा-मन की बुलंद आवाज़

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 06 जुलाई 2024 | जयपुर : बाबासाहब डॉ अंबेडकर एक पत्रकार के रूप में बहिष्कृत समाज की मुक्ति के साथ नए राष्ट्र के निर्माण लिए कार्य करते रहे, जिसकी परिकल्पना और शुरुआत ‘मूकनायक’ के प्रकाशन द्वारा दलितों की सदियों की खामोशी को तोड़ने के लिए की। वर्ष 2020 ‘मूकनायक’ समाचार-पत्र का शताब्दी वर्ष है। अब से ठीक सौ वर्ष पहले 31 जनवरी, 1920 को  ‘मूकनायक’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ था। डॉ अंबेडकर के बहुआयामी व्यक्तित्व को  पत्रकार के रूप में याद करते हुए ‘मूकनायक’ के प्रकाशन की 100 वीं वर्षगांठ के मौके पर हम इसका डिजीटल संस्करण आप सबके समक्ष ला रहे हैं । 

मूकनायक मीडिया : युवा-मन की बुलंद आवाज़

बाबासाहब डॉ अंबेडकर की पत्रकारिता का काल 1920 से 1956 तक विस्तारित है जिसमें उन्होंने ‘मूकनायक-1920’, ‘बहिष्कृत भारत-1927’,  ‘जनता- 1930’, तथा प्रबुद्ध भारत-1956  में प्रकाशित किए। अमेरिका में अध्ययन कर 21 अगस्त 1917 को डॉ  अंबेडकर के बम्बई वापस आने के बाद उनका यह प्रथम सामाजिक प्रयास था, जिसका उद्देश्य समाज के शोषितों, उत्पीड़ितों और वंचितों को जगाना था, विशेषकर बहिष्कृत अछूतों को। हर वक्त उनकी चिंता का विषय आदिवासियों की पीड़ा और  अस्पृश्यों का अपमान और इससे मुक्ति बनी रही।

इस डिजिटल प्लेटफार्म पर हम डॉ अंबेडकर के पत्रकार व्यक्तित्व पर विशेष श्रृंखला के तहत उन लेखों का प्रकाशन करेंगे, जो उनकी पत्रकारिता पर केंद्रित हैं। साथ ही,  जो उनके पत्रकारिता के मानदंडों, मूल्यों और उसकी वैचारिकी से रू-ब-रू करायेंगे। इसकी शुरुआत हम तत्काल कर रहे हैं। मूकनायक (पाक्षिक)  डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ने समाज के दर्द और विद्रोह को व्यक्त करने के लिए शुरू किया गया था।

इस के संपादक पांडुरंग नंदराम भटकर, एक शिक्षित महार युवा थे। क्योंकि अंबेडकर कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में काम कर रहे थे, इसलिए वे संपादक के रूप में खुलकर काम नहीं कर सके।  ‘मनोगत’ शीर्षक वाले पहले अंक में पहला लेख खुद डॉ अंबेडकर ने लिखा था। छत्रपति राजर्षि शाहू महाराज ने मूक नायक को 2,500 रुपये की आर्थिक मदद दी थी।

बाबासाहब डॉ अंबेडकर ने कहा था कि ‘किसी भी आंदोलन के सफल होने के लिए, उस आंदोलन का अखबार बनना होगा। एक आंदोलन बिना अखबार टूटे हुए पंखों वाली पार्टी की तरह होता है।’ ‘मूकनायक’ ने उस अछूतों के बीच जागरूकता पैदा की और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया। उसका मुख्य उद्देश्य दलितों,  गरीबों और शोषित लोगों की शिकायतों को सरकार और अन्य लोगों तक पहुँचाना था।  इसके लिए,  बाबासाहब अंबेडकर ने अपने लेखों में, बहिष्कृत अछूत समुदाय के साथ हो रहे अन्याय पर प्रकाश डाला और उस समुदाय के उत्थान के लिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को कुछ उपाय सुझाए।

बाबासाहब ने हमेशा महसूस किया कि अछूतों को अपने उद्धार या विकास के लिए राजनीतिक-शक्ति और शैक्षिक-ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता है। उस दौर में, मूकनायक का उद्देश्य जागरूकता पैदा करने के साथ-साथ  अछूतों का सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों के साथ-साथ राजनीतिक क्षेत्र में भी मजबूत स्थान स्थापित करना था और अब भी यही रहेगा।

‘मूकनायक’ पत्र में विभिन्न विचार, करंट अफेयर्स, चयनित पत्रों के अंश, बहुजन-कल्याण, समाचार, वैज्ञानिक-दृष्टिकोण की पुनर्स्थापना, इत्यादि शामिल थे। किन्तु. आर्थिक-संकट की वजह से मूकनायक अप्रैल 1923 में बंद हो गया। मीडिया और अख़बार के अतिरिक्त कोई और जगह नहीं है जो हम बहुजनों के साथ हो रहे अन्याय-अत्याचार  का समाधान सुझाए और साथ-ही-साथ उनके भविष्य के उत्थान और उसके पथ के वास्तविक स्वरूप पर चर्चा करे।

लेकिन इंडिया में मीडिया और समाचार पत्रों के चरित्र को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि उनमें से अधिकांश जाति- विशेष के हित में हैं। न केवल वे अन्य जातियों के हितों की परवाह नहीं करते हैं, बल्कि कभी-कभी उन्हें नुकसान भी पहुँचाते हैं। ऐसे पत्रकारों के लिए हमारी चेतावनी है कि यदि किसी एक जाति को नीचा दिखाया जाता है, तो उसके अपमान का क्लिक दूसरी जाति में बैठे बिना नहीं होगा।

समाज एक नाव है, जिस तरह आग के गोले से यात्री जानबूझकर दूसरों को चोट पहुँचाता है, या अपने विनाशकारी स्वभाव के कारण, अगर वह किसी एक नाव में छेद करता है, तो उसे पहले या बाद में सभी नावों के साथ जलसमाधि लेनी होगी। उसी तरह, एक प्रजाति को नुकसान पहुँचाने से, इसमें कोई संदेह नहीं है कि अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान पहुँचाने वाली प्रजाति को भी नुकसान होगा। इसीलिए दूसरों को हानि पहुँचाकर अपना भला करने की मूर्खता का गुण नहीं सीखना चाहिए।

बाबासाहब डॉ अंबेडकर के संरक्षण में प्रकाशित मूकनायक के पहले अंक का पाठ इस प्रकार था – “हिंदू समाज एक मीनार है और एक जाति एक मंजिल है। लेकिन याद रखने वाली बात यह है कि इस मीनार की कोई सीढ़ी नहीं है और इसलिए एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक जाने का कोई रास्ता नहीं है। जो जहाँ पैदा होते हैं, उन्हें उसी मंजिल पर मरना होता है । निचली मंजिल का व्यक्ति, चाहे वह कितना भी योग्य क्यों न हो, ऊपरी मंजिल पर और ऊपरी मंजिल पर मौजूद व्यक्ति तक उसकी पहुँच नहीं है, चाहे वह कितना भी अयोग्य क्यों न हो, उसे निचली मंजिल पर जाने का कोई भी उपाय नहीं है।  

क्योंकि लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा! गोदी मीडिया के इस दौर में पत्रकारिता को राजनीति और कारपोरेट दबावों से मुक्त रखने के लिए ‘मूकनायक-मीडिया’ के साथ जुड़ने का प्रयास कीजिएगा, वेबसाइट-लिंक पर आपका एक-एक क्लिक और सब्सक्राइब (subscribe) मिशन को समृद्ध से समृद्धतम बनाएगा क्योंकि यह बाबासाहब के अधूरे-सपनों को मंजिल तक पहुँचाने का एक मात्र रास्ता है । ‘मूकनायक : डॉ  अंबेडकर की बुलंद आवाज’ का दस्तावेज बनेगा, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।  

इस उद्देश्य की महती  पूर्ति में हम सबका मिलजुल कर छोटा ही सही पर महत्वपूर्ण कदम है। ‘मूकनायक-मीडिया’ विश्वविद्यालयों के पूर्व प्रोफेसरों, वरिष्ठ  पत्रकारों की बाबासाहब के मिशन; दबे-कुचले वर्गों के उत्थान के अपने अभियान को आगे बढ़ाने की अपनी कोशिश है क्योंकि जब मुख्यधारा का मीडिया देख-सुन ना सके, गोद में खेल रहा हो, लोभ-लालच में हो या भयातुर हो, तब संपूर्ण सत्यता के लिए ‘मूकनायक’ आपका नायक बनेगा, आपकी आवाज बनेगा, और बहुजन-न्याय का टूटा-भटका  सिलसिला फिर से शुरू होगा। ताकि, आप लें सकें सही  फ़ैसला क्योंकि महात्मा बुद्ध ने कहा है  “सत्य को सत्य के रूप में और असत्य को असत्य के रूप में जानो !

पत्रकारिता के मर्म और धर्म के इस स्वरूप को लेकर हमारी सोच के रास्ते में सिर्फ जरूरी संसाधनों की अनुपलब्धता ही बाधा हो सकती है।  आप स्वेच्छा से नीचे दी गयी कोई भी धनराशि जो आप चुनना चाहें, उस पर क्लिक करें। यह पूरी तरह स्वैच्छिक है। आप द्वारा दी गयी राशि आपकी ओर से स्वैच्छिक सहयोग  (Voluntary Contribution) होगा, जैसे-जैसे हमारे संसाधन बढ़ेंगे,  हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने की कोशिश करेंगे, और बिरसा- अंबेडकर-फूले के मिशन को कामयाबी की पराकाष्ठाओं तक ले जाने में सफल होंगे।

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जय बिरसा, जय भीम, जय फूले…

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  • MOOKNAYAK MEDIA

    At times, though, “MOOKNAYAK MEDIA’s” immense reputation gets in the way of its own themes and aims. Looking back over the last 15 years, it’s intriguing to chart how dialogue around the portal has evolved and expanded. “MOOKNAYAK MEDIA” transformed from a niche Online News Portal that most of the people are watching worldwide, it to a symbol of Dalit Adivasi OBCs Minority & Women Rights and became a symbol of fighting for downtrodden people. Most importantly, with the establishment of online web portal like Mooknayak Media, the caste-ridden nature of political discourses and public sphere became more conspicuous and explicit.

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    अमृतलाल मीणा बिहार की ब्यूरोक्रेसी के बॉस, उनका बेटा सफल उद्यमी

    मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 05 सितंबर 2024 | जयपुर : सीनियर आईएएस अमृतलाल मीना बिहार के मुख्य सचिव बनने से पहले दिल्ली में कोयला मंत्रालय में सचिव के पद पर थे। मूकनायक मीडिया ब्यूरो टीम उनकी संघर्ष से सफलता तक की कहानी जानने उनके गांव पहुंची।

    अमृतलाल मीणा बिहार की ब्यूरोक्रेसी के बॉस, उनका बेटा सफल उद्यमी

    राजस्थान के करौली जिले के सपोटरा का डाबरा गांव। इसी गांव के साधारण किसान परिवार में जन्मे अमृतलाल मीना। पढ़ने का बहुत शौक था, लेकिन परिवार आर्थिक रूप से मजबूत नहीं था। घर में बिजली तक नहीं थी। ऐसे में अमृतलाल रातभर दीये की रोशनी में पढ़ाई करते।

    अमृतलाल मीणा बिहार की ब्यूरोक्रेसी के बॉस

    बस का सवा रुपए का किराया बचाने के लिए घर से 20 किलोमीटर दूर स्कूल पैदल ही निकल जाते। हर तरह के संघर्ष का सामना किया, क्योंकि जिंदगी में खास मुकाम हासिल करने का सपना देखा था। पहले IAS बने और अब बिहार के मुख्य सचिव।

    पढ़िए पूरी रिपोर्ट…

    पुराना मकान, जहां अमृतलाल पले-बढ़े। अब परिवार ने दूसरा मकान बना लिया
    पुराना मकान, जहां अमृतलाल पले-बढ़े। अब परिवार ने दूसरा मकान बना लिया

    बचपन में चेचक हुआ तो मां कपड़े में लपेटकर ले जाती

    मां जगनी देवी बताती हैं कि 15 अगस्त को अमृतलाल का जन्म हुआ। परिवार खेत में बने पुराने मकान में रहता था। बोलीं- बेटा पढ़ने में शुरू से ही तेज था। अकेले स्कूल जाता और आता। किसी से कोई मतलब नहीं रखता। एक बार चेचक होने पर बहुत कमजोर हो गया था। उसके दोनों छोटे भाई भी बीमार थे। उन्हें कपड़ों और अखबार में लपेटकर डाॅक्टर को दिखाने ले जाती थी।

    वो देर रात तक पढ़ता रहता था। मैं बोलती थी- सो जा, बहुत रात हो गई। पता नहीं कब सोता था? सुबह जल्दी उठकर भी पढ़ता था। तीनाें भाइयों को भी पढ़ाता था। अमृत ने बहुत मेहनत की है।

    कभी स्कूल से या गांव से शिकायत नहीं मिली। बाबा क्षेत्रपाल की कृपा रही। अभी जन्माष्टमी पर बाबा के दर्शन करने के लिए आया था। दिल्ली में रहे या फिर पटना, गांव में बाबा के दर्शन करने जरूर आता है।

    सिद्धांतवादी और नियमों पर चलने वाले इंसान

    अमृतलाल के छोटे भाई शरद लाल ने बताया कि भाईसाहब को खाना बनाना भी नहीं आता था। गांव से एक दूध वाला गंगापुर सिटी जाता था, दूध बेचने। मां उसके हाथ ही रोटी और छाछ भेज देती थी। भाईसाहब सुबह-शाम वही खाना खाते थे। खाना खाने के बाद शाम को भी वहीं खाना खाते थे। उन्होंने काफी संघर्ष किया था। पिता खेती करते थे।

    मैं सीकर के लक्ष्मणगढ़ में पढ़ता था। एक वहां से बिना बताए अचानक जयपुर आ गया। तब वे पता नहीं कहां से अचानक आ गए थे। आते ही दो थप्पड़ मार दिए। बोले- मुझे बिना बताए हॉस्टल से कैसे आ गए हो?

    वे सिद्धांतवादी हैं और नियमों पर चलते हैं। शरदलाल मीना पीडब्ल्यूडी में एक्सईएन हैं। एक भाई भरतलाल एफसीआई (पंजाब) में मैनेजर हैं। सबसे छोटे भाई रामअवतार पावर ग्रिड (दौसा) में डीजीएम हैं।

    MNIT से इंजीनियरिंग की, पहले प्रयास में बने IAS

    उनका MNIT में इंजीनियरिंग के लिए एडमिशन हो गया था। 1982 से लेकर 1988 तक जयपुर रहे। कुछ समय तक वहीं पर पढ़ाया। इसके बाद कोटा इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाने लगे।

    इसी दौरान IAS और IES का एग्जाम दिया। पहली बार में ही दोनों में पास हो गए। घरवालों ने बताया कि सेल्फ स्टडी की बदौलत ये सफलता हासिल की। कहीं से कोचिंग नहीं की। IES में उन्हें रेलवे विभाग मिला था। उन्होंने सिविल सर्विस को सिलेक्ट कर लिया था। तब से अब तक उनका सफर लगातार जारी है।

    बेटा सुमित करीब 100 करोड़ वार्षिक टर्नओवर की B2B कंपनी के मालिक 

     अमृतलाल का बेटा सुमित एमबीए है। एमबीए करने के बाद  उन्होंने अपनी खुद की B2B कंपनी रजिस्टर्ड की है। पिछले साल उनकी कंपनी का टर्न ओवर 45 करोड़ से अधिक था जो कि अब 100 के करीब पहुँच चुका है। उनकी कंपनी में करीब 60-70 कर्मचारी हैं। उनकी बहू प्रीति डॉक्टर हैं। बेटी आकांशा ने भी एमबीबीएस किया है। लखनऊ एम्स से पीजी कर रही हैं। पत्नी बर्फी देवी गृहणी हैं।

    अपने परिवार के साथ अमृतलाल मीना।
    परिवार के साथ अमृतलाल मीना

    ऐसा रहा SDM से मुख्य सचिव तक का सफर

    • अमृतलाल मीना 1989 बैच के IAS हैं। उन्हें बिहार कैडर मिला था। 1991 में एसडीएम के रूप में पहली पोस्टिंग बेगूसराय में हुई थी। 1993 में एडीएम बने।
    • 1994 में बतौर कलेक्टर पहली पोस्टिंग सीतामढ़ी में हुई। वे 2004 तक सीवान, आरा, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, नालंदा, गया सहित 7 जिलों में कलेक्टर रहे थे।
    • 2005 में बिहार के वैशाली से सांसद रघुवंश प्रसाद केंद्रीय मंत्री बने। उन्हें ग्रामीण विकास मंत्रालय दिया गया था। अमृतलाल मीना को उनका पीएस नियुक्त किया।
    • 2009 तक वे केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय में ही रहे थे। 2009 में ही उन्हें फूड प्रोसेसिंग में जाॅइंट सेक्रेटरी लगाया गया। जिसके मंत्री शरद पंवार थे।
    • मई 2012 में अमृतलाल वापस बिहार चले गए। उन्हें कृषि मंत्रालय में प्रिंसिपल सेक्रेटरी लगाया गया। दिसंबर 2013 में अर्बन डेवलपमेंट में प्रिंसिपल सेक्रेटरी लगाया।
    • 2015 में पीडब्ल्यूडी में प्रिंसिपल सेक्रेटरी और 2017 से लेकर 2021 तक पीडब्ल्यू और पंचायतराज में अतिरिक्त मुख्य सचिव लगाया गया।
    • नवंबर 2021 में एडिशनल सेक्रेटरी कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज में लगाया गया। मई 2022 में कोल इंडिया में सचिव लगाया। 30 अगस्त 2024 में उन्हें बिहार भेजा गया।
    • 31 अगस्त की रात को मुख्य सचिव बनाने का नोटिफिकेशन जारी हुआ।
    सीएम नीतीश कुमार के साथ अमृतलाल मीना।
    सीएम नीतीश कुमार के साथ अमृतलाल मीना

    करियर के 2 चैलेंजिंग मामले

    • 22 दलितों की हत्या : अमृतलाल 1996 में नालंदा में कलेक्टर थे। उसी दौरान भोजपुर जिले के एक गांव मथानी टोला में 22 दलित लोगों की हत्या कर दी थी। राज्य सरकार ने उन्हें वहां से भोजपुर पोस्ट किया था। वहां जाने के बाद स्थिति को संभाला। दो साल तक वहां पर रहे थे। इस दौरान वहां कोई भी बड़ी वारदात नहीं हुई।
    • बच्चे का अपहरण और दंगे : अमृतलाल गया में कलेक्टर थे। उसी दौरान मुजफ्फपुर में एक बच्चे का अपहरण हो गया था। घटना के विरोध में दंगे हो गए। लोगों ने पुलिस थाने से लेकर सरकारी संपतियों में आग लगा दी थी। अमृतलाल का तत्काल गया से मुजफ्फपुर तबादला कर सिचुएशन कंट्रोल करने के लिए भेजा गया। अमृतलाल ने वहां पहुंच कर लोगों को समझायाा। दंगों पर कंट्रोल किया।

    15 साल पहले पिता का एक्सीडेंट हुआ ताे टूट गए

    शरद लाल ने बताया कि करीब 15 साल पहले पिता अमरलाल मीना बाइक से जा रहे थे। सामने से आ रही स्कूल बस ने टक्कर मार दी। सिर में चाेट लगी थी। पहले गंगापुर सिटी लेकर गए। वहां से उन्हें जयपुर रेफर कर दिया गया।

    करीब 22 दिन आईसीयू में एडमिट रहे। भाईसाहब छुट्‌टी लेकर जयपुर में ही पिता की सेवा में लगे रहे थे। एक बार पिताजी रिकवर भी हो गए थे। बाद में तबीयत ज्यादा खराब हो गई। पिताजी की मृत्यु होने पर भाईसाहब काफी टूट गए थे।

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    RAS का एग्जाम छोड़ पहुंची KBC की हॉट सीट पर नरेशी मीणा

    मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 24 अगस्त 2024 | सवाई माधोपुर : जब आप हॉट सीट पर बैठे हो तो 100 परसेंट श्योर कुछ नहीं लगता, यह भी यकीन नहीं होता कि आप अमिताभ बच्चन के सामने बैठे हो। सामने बिग-बी बैठे हो तो आप वैसे ही फ्रीज हो जाते हैं। यह कहना है कौन बनेगा करोड़पति में 50 लाख जीतने वाली सवाई माधोपुर की नरेशी मीणा का। अपने कोचिंग टीचर से इंस्पायर्ड होकर और नरेशी ने कौन बनेगा करोड़पति का सफर तय किया।

    गेम शो की शूटिंग के लिए नरेशी ने जुलाई में हुई RAS की मुख्य परीक्षा भी छोड़ दी थी। सवाई माधोपुर के एंडा गांव की बेटी नरेशी मीणा (27) ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित हैं। अमिताभ बच्चन ने गेम शो के दौरान नरेशी का इलाज करवाने की भी बात कही।

    RAS का एग्जाम छोड़ पहुंची KBC की हॉट सीट पर नरेशी मीणा

    “कौन कहता है आसमान में छेद नहीं होता, जरा पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो” ऐसा ही कारनामा सवाई माधोपुर जिले के एक छोटे से एंडा गांव की बेटी नरेशी मीणा ने कर दिखाया है। दरअसल, नरेशी महानायक अमिताभ बच्चन के शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में हॉट सीट पर पहुंची

    RAS का एग्जाम छोड़ पहुंची KBC की हॉट सीट पर नरेशी मीणा

    नरेशी ने 1 करोड़ के सवाल पर पर गेम छोड़ दिया था। सवाई माधोपुर के एंडा गांव की बेटी नरेशी मीणा की इस कामयाबी से पूरा गांव बेहद खुश है। नरेशी ने बताया कि जब वो गेम शो से लौटीं तो पूरे गांव ने उनका स्वागत किया।

    ‘केबीसी 16’ के लिए छोड़ा आरएएस का एग्जाम

    इससे पहले नरेशी मीणा ने मूकनायक मीडिया ब्यूरो को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने ‘कौन बनेगा करोड़पति 16’ में शामिल होने के लिए आरएएस का एग्जाम छोड़ दिया। नरेशी मीणा ने बताया, ‘मैंने आरएएस मेन का एग्जाम मिस कर दिया।

    20 और 21 जुलाई को मेरा आरएएस मेन एग्जाम था। मेरा जयपुर में सेंटर आया था। वो एग्जाम 2 दिन होते हैं, क्योंकि लिखना होता है, 4 पेपर होते हैं। तो मुझे लगा कि एक दिन पहले जाना पड़ता है, फिर आने-जाने में 3-4 दिन लग जाते। तो मैंने सोचा कि इस बार केबीसी को देते हैं अपना पूरा टाइम। तो मैंने अपना आरएएस का मेन एग्जाम छोड़ दिया।’

    सवाई माधोपुर के एंडा गांव की बेटी नरेशी मीणा की इस कामयाबी से पूरा गांव बेहद खुश है। नरेशी ने बताया कि जब वो गेम शो से लौटीं तो पूरे गांव ने उनका स्वागत किया।

    15वें सवाल तक पहुंचने वाली पहली कंटेस्टेंट

    इसके बाद प्रोमो में अमिताभ बच्चन कहते हैं, ‘आपने ये ठान लिया है कि ये धनराशि यहां से जीतकर जाऊंगी, तो इसका इलाज हो सकता है।’ बिग बी खुलासा करते हैं कि नरेशी मीणा शो के इस सीजन की पहली कंटेस्टेंट बन गई हैं, जो 15वें सवाल तक पहुंची हैं। अमिताभ बच्चन कहते हैं, ‘इस सीजन में पहली बार 15वां सवाल, 1 करोड़ रुपये, ये रहा’। वैसे नरेशी मीणा ‘केबीसी 16’ की पहली करोड़पति बनने से रह गयीं।

    इसी दौरान गंगापुर सिटी के योगेश ने कौन बनेगा करोड़पति में 25 लाख रुपए जीते। जिसकी खबर नरेशी ने पढ़ी और इसके बाद नरेशी केबीसी का सीरियल अपने ताऊजी के घर जाकर देखने लगी। उनका इंटरेस्ट जनरल नॉलेज में काफी बढ़ गया। वह विभिन्न साइटों से और समाचार पत्रों के माध्यम से अपना जनरल नॉलेज बढ़ाने लगी।

    जिंदगी जीने का हौसला

    इसके चलते नरेशी ने आरएएस का एग्जाम छोड़ दिया और ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की हॉट सीट पर अमिताभ बच्चन से उनका सामना हुआ। नरेशी के पिता राजमल मीणा ने भी शूट के दौरान अमिताभ बच्चन से बातचीत की, जिसे उन्होंने काफी यादगार बताया। साल 2020 में वह महिला अधिकारिता विभाग में सुपरवाइजर के पद पर नियुक्त हुई।

    इसी के साथ ही उन्होंने अपनी पढ़ाई को आगे जारी रखा। इस दौरान वह RAS के एग्जाम में पास हुई। लेकिन RAS और कौन बनेगा करोड़पति की डेट आसपास थी। जिसके चलते नरेशी ने RAS का एग्जाम छोड़ दिया और कौन बनेगा करोड़पति की हॉट सीट पर जा पहुंची। जहां महानायक अमिताभ बच्चन से उनका सामना हुआ। 

    नरेशी के पिता राजमल मीणा ने भी शूट के दौरान अमिताभ बच्चन से बातचीत की, जिसे उन्होंने काफी यादगार बताया।

    सब इंस्पेक्टर के मेडिकल में ब्रेन ट्यूमर का चला पता

    नरेशी ने बताया कि साल 2018 में उनकी जिंदगी में एक बेहद टर्निंग पॉइंट आया। वह SI का एग्जाम पास कर चुकी थी। इसके बाद मेडिकल होना था। मेडिकल के दौरान उन्हें पता चला कि उन्हें ब्रेन ट़्यूमर है। इस कारण वो लंबे समय तक डिप्रेशन में रहीं। नरेशी ने बताया कि वह यह सोचकर खूब रोती थी कि यह बीमारी उनके ही क्यों हुई। उनकी मां छोटी देवी, पिता राजमल और दोनों बड़े भाई शिवराम (31), लक्ष्मीकांत (28) ने उन्हें संभाला।

    इतना ही नहीं आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद परिवार ने उनका अच्छे प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवाया। मां ने नरेशी के इलाज के लिए अपने गहने तक बेच दिए। इस दौरान नरेशी ने सोचा कि नेगेटिविटी से परेशानी कम नहीं होती, बल्कि बढ़ती ही है। इसके बाद नरेशी पूरी सकारात्मकता के साथ उबरने की कोशिश में जुट गई। 3 भाई-बहन में नरेशी सबसे छोटी है। उनके दोनों बड़े भाई हमेशा हर मौके पर अपनी बहन को पूरा सपोर्ट करते हैं।

    3 भाई-बहन में नरेशी सबसे छोटी है। उनके दोनों बड़े भाई हमेशा हर मौके पर अपनी बहन को पूरा सपोर्ट करते हैं।

    ताऊजी के घर जाकर देखती थीं केबीसी

    मां-बाप और भाइयों के मोटिवेशन से नरेशी ने अपनी पढ़ाई को जारी रखा और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगी। इसी दौरान वर्ष 2017 में गंगापुर के योगेश ने ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में 25 लाख रुपए जीते। वो काफी चर्चाओं में रहे। इसके बाद योगेश कोचिंग टीचर बन गए। नरेशी ने भी उनसे कोचिंग ली है।

    अपने कोचिंग टीचर से प्रेरित होकर और उनकी उपलब्धि सुनने-पढ़ने के बाद नरेशी का भी रूझान केबीसी की तरफ जाने लगा। खुद के घर में टीवी नहीं होने के कारण नरेशी केबीसी शो अपने ताऊजी के घर जाकर देखने लगी। इसके बाद वे अपनी जनरल नॉलेज को बढ़ाने की कोशिश करती रहीं।

    माता पिता को देगी खूबसूरत तोहफा 

    नरसी का कहना है कि यह उसके जीवन का सबसे यादगार पल था। उसने बेहद कठिन सवालों के जवाब देकर 50 लाख रुपये जीते। इन्हें जीतने के बाद नरसी की जिंदगी पूरी तरह बदल गई है। उसके काम की चर्चा देश, प्रदेश और हर जगह हो रही है। कौन बनेगा करोड़पति में 50 लाख रुपये जीतकर जब नरसी अपने गांव आई तो गांव वालों ने फूल मालाओं और बैंड बाजे के साथ उसका स्वागत किया।

    अपनी जीत पर और जीती गई रासि को लेकर नरसी का कहना है कि वह सवाई माधोपुर में किराए के मकान में रहती है। इसलिए वह इन पैसों से वहां एक मकान खरीदेगी। साथ ही वह अपनी मां के गहने दोबारा बनवाएगी। वह अपने पिता को एक खूबसूरत तोहफा भी देगी।

    पॉलिटिकल साइंस से किया पोस्ट ग्रेजुएशन

    नरेशी ने अपने गांव की ही सरकारी स्कूल से 9वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद कक्षा 10 उन्होंने नजदीकी गांव की श्यामपुरा स्कूल से पास की। 11वीं और 12वीं कक्षा सवाई माधोपुर के सुरभि पब्लिक स्कूल से पास की। साल 2015 में उन्होंने बीए में एडमिशन लिया और साल 2017 में हिस्ट्री, पॉलिटिकल साइंस और हिंदी से अपनी ग्रेजुएशन पूरी की। इसके बाद उन्होंने पॉलिटिकल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन किया।

    मां-बाप के लिए बहुत कुछ करना चाहती हैं नरेशी

    केबीसी के लिए 18-19 जुलाई को सवाई माधोपुर में शूट हुआ था। इसके बाद नरेशी को 26 जुलाई को मुंबई बुलाया गया, जहां वो अपने पिता और बुआ के लड़के के साथ गई थी। करीब एक सप्ताह बाद 2 अगस्त को वापस गांव लौटी। नरेशी का डीजे और बैंडबाजे के साथ जोरदार स्वागत किया गया। नरेशी की मां ने उनसे कहा कि शाबाश बेटा, मेरी बेटी ने मेरा नाम रोशन कर दिया।

    नरेशी बताती है कि 50 लाख रुपए जीतने के बाद अब वह अपनी मां की ज्वेलरी फिर से बनवा पाएंगी। अपने पिता को भी एक खूबसूरत सा तोहफा देंगी। वह सवाई माधोपुर में किराए से रहती हैं तो इन पैसों से सवाई माधोपुर में मकान खरीदने का मन बना रही हैं।

    अमिताभ ने चीलगाड़ी शब्द को डायरी में नोट किया

    अमिताभ बच्चन ने नरेशी के पिता से शूट के दौरान पूछा कि वह मुंबई कैसे आए हैं। जिस पर नरेशी के पिता राजमल ने उन्हें बताया कि वह चीलगाड़ी में बैठकर यहां आए हैं। यह सुनकर अमिताभ ने कहा कि यह चीलगाड़ी क्या होती है, तो उन्होंने बताया कि उनके गांव में प्लेन को ही चीलगाड़ी कहते हैं। जिस पर अमिताभ बच्चन ने इस शब्द को अपनी डायरी में नोट कर लिया। अमिताभ बच्चन ने करीब 4 महीने पहले 16वें सीजन की शूटिंग स्टार्ट की थी। इस दौरान उनकी सेट से कई फोटो भी सामने आई थी।

    अमिताभ बच्चन ने करीब 4 महीने पहले 16वें सीजन की शूटिंग स्टार्ट की थी। इस दौरान उनकी सेट से कई फोटो भी सामने आई थी।

    अमिताभ बच्चन कराएंगे नरेशी मीणा का ब्रेन ट्यूमर का इलाज

    सवाई माधोपुर के एंडा गांव की नरेशी मीणा ने अमिताभ बच्चन को बताया कि उसे ब्रेन ट्यूमर की बीमारी है। उसने ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन तो कराया था, लेकिन इस ट्यूमर का कुछ हिस्सा अब भी उसके दिमाग में है। यह ट्यूमर उसके दिमाग में ऐसी जगह फंसा है, जिसे निकालना जानलेवा साबित हो सकता है।

    नरेशी ने कहा था कि ब्रेन ट्यूमर का एडवांस इलाज कराने के लिए उन्हें चिकित्सकों की तरफ से प्रोटोन ट्रीटमेंट का सुझाव दिया था, लेकिन यह ट्रीटमेंट काफी महंगा होने की वजह से वह ट्रीटमेंट नहीं करा पाई।

    केबीसी में आने का उसका मुख्य उद्देश्य ब्रेन ट्यूमर के इलाज के लिए रुपए इकट्ठा करना था। लेकिन जब अमिताभ बच्चन ने उनकी कहानी सुनी तो वो भावुक हो गए । और उन्होंने उसके ब्रेन ट्यूमर का इलाज कराने वादा किया, कि वह स्वयं उसका पूरा खर्चा उठाएंगे।

    अब जानते हैं केबीसी में कैसे होती हैं एंट्री

    स्टेप 1- कंटेस्टेंट की तैयारी शो टेलीकास्ट होने से तकरीबन 4 महीने पहले शुरू हो जाती है। पहला प्रोमो लॉन्च होने के बाद, रोजाना रात 9 बजे सोनी चैनल पर अमिताभ बच्चन दर्शकों से एक सवाल पूछते हैं, जिसका जवाब देना होता है। सोनी लिव ऐप पर इसका रजिस्ट्रेशन होता है।

    स्टेप 2- प्रोडक्शन टीम रजिस्टर किए हुए कंटेस्टेंट में से कुछ को चुनती है फिर उन्हें कॉल बैक करती है। कॉल पर उनसे तीन सवाल किए जाते हैं। पहले दो सवाल में 4 विकल्प दिए जाते हैं। हर सवाल के इन 4 विकल्प में से एक सही जवाब देना होता है।

    आखिरी सवाल नंबर-बेस्ड होता है। उदाहरण के तौर पर- भारत को आजादी कब मिली थी? इसका जवाब देने के लिए फोन के कीपैड पर 1947 टाइप करना होता है। तीनों सवालों के सही जवाब देने पर अगले स्टेप के लिए शॉर्टलिस्ट किया जाता है।

    स्टेप 3- तीसरा स्टेप ऑडिशन का होता है। ज्यादातर ऑडिशन मुंबई में ही होते हैं। मुंबई से बाहर से चुने गए कंटेस्टेंट को उनकी उपलब्धता के हिसाब से मुंबई बुलाया जाता है। इसका पूरा खर्चा टीम ही उठाती है।

    इस लेवल पर कंटेस्टेंट के लाइव ऑडिशन होते हैं। तकरीबन 20 सवालों का लाइव जवाब देना होता है – कुछ लिखकर तो कुछ वीडियो राउंड में। कंटेस्टेंट की पर्सनल लाइफ की डिटेल्स, इसी वीडियो में कैप्चर होते हैं।

    स्टेप 4- यदि किसी कंटेस्टेंट ने सभी सवालों का सही जवाब दिया तो टीम उन्हें फिर से मुंबई बुलाती है। शो में शामिल होने की तैयारी शुरू हो जाती है। फास्टेस्ट-फिंगर राउंड से पहले कई बार रिहर्सल होती है। इस रिहर्सल का मकसद बस यही होता है कि कंटेस्टेंट से कोई चूक न हो जाए।

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    स्टेप 5- सबसे कम समय में जवाब देने वाले कंटेस्टेंट को अमिताभ बच्चन खुद हॉट सीट तक लेकर जाते हैं।

    स्टेप 6- हॉट सीट पर सवालों का सही जवाब देकर, कंटेस्टेंट करोड़ों रूपए जीतने का सपना साकार कर सकता है।

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