जयपाल सिंह मुंडा को भारतरत्न दें केंद्र सरकार – प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 06 जुलाई 2024 | जयपुर : मूर्धन्य शिक्षाविद् प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा ने महामहिम राष्ट्रपति और केंद्र सरकार से माँग कि है कि भारतरत्न के हकदार हैं देश के लिए गोल्ड जीतने वाले जयपाल सिंह मुंडा।

महान, दूरदर्शी और  विद्वान नेता, सामाजिक न्याय के आरंभिक पक्षधरों में से एक, संविधान सभा के सदस्य और हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा का योगदान भारत की जनजातियों के लिए वही है, जो बाबा साहब अंबेडकर का अनुसूचित जातियों के लिए है।

भारतरत्न के हकदार हैं देश के लिए गोल्ड जीतने वाले जयपाल सिंह मुंडा

आदिवासियों के लिहाज़ से कई मायनों में जयपाल सिंह मुंडा के योगदान उनसे ज्यादा भी कहा जा सकता है। 1928 के एमस्टर्डम ओलंपिक खेलों में भारत को पहली बार हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा ही थे। जिन्होंने ने संविधान सभा में ताल थोक कर कहा था ‘मुझे गर्व है, मैं जंगली हूँ।’

ध्यातव्य हो कि उनके व्यक्तित्व और योगदान खिलाड़ी के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी उतना ही महान है। उनकी शैक्षणिक विद्वता का एक प्रमाण यह भी है कि उन्होंने जिस साल भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया, उसी साल उन्होंने आईसीएस की परीक्षा भी पास करके दिखाई, वह परीक्षा जिसे कविगुरु रवींद्रनथ ठाकुर के बड़े भाई सत्येंद्रनाथ ठाकुर,  सुभाषचंद्र बोस और खुद जयपाल सिंह मुंडा ही पास कर पाये थे।

आदिवासी परिवार में 3 जनवरी, 1903 को राँची जिले के खुंटी सब डिवीज़न में तपकरा गाँव में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और उसी दौरान हॉकी की अपनी प्रतिभा दिखाकर लोगों को चमत्कृत करना आरंभ कर दिया था।

इसी कारण उन्हें भारतीय हॉकी टीम की ओलंपिक में कप्तानी सौंपी गयी थी। बाद में, अंग्रेज उन्हें भारत में धार्मिक प्रचार  के काम में लगाना चाहते थे, लेकिन जयपाल सिंह ने आदिवासियों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया।

मरांग गोमके  यानी  ग्रेट लीडर के नाम से लोकप्रिय हुए जयपाल सिंह मुंडा ने 1938-39 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन करके आदिवासियों के शोषण के विरुद्ध राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ने का निश्चय किया। मध्य-पूर्वी भारत में आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए उन्होंने अलग आदिवासी राज्य बनाने की माँग की।

उनके प्रस्तावित राज्य में वर्तमान झारखंड, उड़ीसा का उत्तरी भाग, छत्तीसगढ़ और बंगाल के कुछ हिस्से शामिल थे। उनकी माँग पूरी नहीं हुई, जिसका नतीजा यह हुआ कि इन इलाकों में शोषण के खिलाफ नक्सलवाद जैसी समस्याएँ पैदा हुईं, जो आज तक देश के लिए परेशानी बनी हुई है।

जयपाल सिंह मुंडा आदिवासियों के लिए सबसे बड़े पैरोकार बनकर उभरे। संविधान सभा के लिए जब वे बिहार प्रांत से निर्वाचित हुए तो उन्होंने आदिवासियों की भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए उल्लेखनीय  प्रयास किये जिनका जिक्र आज भी बड़े सम्मान और चाव से किया जाता है।

अगस्त 1947 में जब अल्पसंख्यकों और वंचितों के अधिकारों पर पहली रिपोर्ट प्रकाशित हुई तो उसमें केवल दलितों के लिए ही विशेष प्रावधान किये गये थे।  दलित और आदिवासी अधिकारों के लिए जयपाल सिंह मुंडा और डॉ अंबेडकर ने एक स्वर में आवाज बुलंद की थी। ऐसे में जयपाल सिंह मुंडा ने कड़े तेवर दिखाये और संविधान सभा में ज़ोरदार भाषण दिया।

संविधान सभा की गर्म और तीखी हो चुकी बहस के बीच अचानक ‘संविधान सभा में आदिवासियों के प्रतिनिधि के रूप में जयपाल मुंडा उठ खड़े होते हैं । काफी संजीदगी लेकिन बुलंद आवाज में कहते हैं कि ‘सिंधु-लोक मेरी विरासत है।  मैं भूला दिये गये उन हजारों अज्ञात योद्धाओं की ओर से बोल रहा हूँ जो आजादी की लड़ाई में आगे रहे ।

लेकिन उनकी कोई पहचान नहीं है । देश के इन्हीं मूल निवासियों को बहस में कई महाशयों (मावलंकर आदि) ने पिछड़ी  जनजाति, आदिम जनजाति, जंगली, अपराधी कहा है ।  जयपाल सिंह ने अपने ‘आदिम लोगों’ की शिकायतों को स्वर देने में कोई कोताही नहीं बरती।

महाशय, मैं बताना चाहता हूँ कि ‘आपकी  भाषा में मैं जंगली हूँ, और मुझे जंगली होने पर गर्व है । उनका कहना था कि ‘उनके लोगों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है … उनका निरादार हो रहा है और पिछले 6000 सालों से उनकी उपेक्षा की जा रही है।’ कब और कैसे यह सब शुरू हुआ?

आदिवासी लोगों के अपमान और उनकी उपेक्षा के लिए जिम्मेदार ये लोग कौन हैं? उन्होंने कहा ‘आज़ादी की इस लड़ाई में हम सबसे आगे थे, हमने अंग्रेजों से लोहा लेने का साहस देश को दिया है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली जनक्रांति कहे जाने वाले संथाल विद्रोह के नायक सिद्धू-कान्हो और उनके परिजनों के लिए उनकी लड़ाई अन्याय ही नियति बनी।’

आप तो बाहर से आये हुए लोग हैं, दिकु हैं, जो देश के संसाधनों को कब्जाने की जुगत में हैं।  तिलका माँझी, सिदो-कान्हू, बिरसा मुंडा से लेकर देश की आजादी तक लड़ाई लड़ी, पर उनको मिला क्या ? तिरस्कारपूर्ण जीवन! शोषण-अत्याचार और ऊपर से आपकी बदनीयती, अब सबको एक साथ चलना चाहिए।

पिछले छह हजार साल से अगर इस देश में किसी का शोषण हुआ है तो वे आदिवासी ही हैं।  उन्हें मैदानों से खदेड़कर जंगलों में धकेल दिया गया और हर तरह से प्रताड़ित किया गया, लेकिन अब जब भारत अपने इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है तो हमें अवसरों की समानता मिलनी चाहिए।”

जयपाल सिंह के सशक्त हस्तक्षेप के बाद संविधान सभा को आदिवासियों के बारे में सोचने पर मजबूर होना पड़ा। इसका नतीजा यह निकला कि 400 आदिवासी समूहों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया। उस समय इनकी आबादी करीब 7 फीसदी आँकी गयी थी। इस लिहाज से उनके लिए लोकसभा-विधानसभाओं में उनके लिए 7.5% आरक्षण और सामाजिक-आर्थिक न्याय पाने के लिए  नौकरियों  में प्रतिनिधित्व  सुनिश्चित किया गया।

यह समीचीन है कि राजनीतिक आरक्षण की समय-सीमा 10 वर्ष राखी गयी किंतु, नौकरियों में कोई भी समय-सीमा नहीं रखी गयी थी । दुर्भाग्यवश, कुछ संकीर्णतावादी मानसिकताओं ने प्रतिनिधित्व को आरक्षण में तब्दील करने की कोशिशें जोर-शोर से हो रही हैं।  किंतु, प्रतिनिधित्व का सवाल तब तक जारी रहेगा जब तक जाति-व्यवस्था जारी रहेगी क्योंकि जातीय-सोच की वजहों से प्रतिनिधित्व का सवाल उपजा है। वस्तुत: आरक्षण और प्रतिनिधित्व में फर्क है, आरक्षण वह है जो हजारों वर्षों मंदिरों में लिया जा रहा है। आरक्षण वह है जो न्यायपालिका में पीढ़ी-दर-पीढ़ी लिया जा रहा है।

इसके बाद आदिवासी हितों की रक्षा के लिए जयपाल सिंह मुंडा ने 1952 में झारखंड पार्टी का गठन किया। 1952 में झारखंड पार्टी को काफी सफलता मिली थी। उसके 3 सांसद और 23 विधायक जीते थे। स्वयं जयपाल सिंह लगातार चार बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुँचे थे। बाद में, झारखंड के नाम पर बनी तमाम पार्टियाँ उन्हीं के विचारों से प्रेरित हुईं।  

पूर्वोत्तर के आदिवासियों में फैले असंतोष को उस समय भी जयपाल सिंह मुंडा पहचान रहे थे। नागा आंदोलन के जनक जापू पिजो को भी उन्होंने झारखंड की ही तर्ज पर अलग राज्य की माँग के लिए मनाने की कोशिश की थी, लेकिन पिजो सहमत नहीं हुए। इसी का नतीजा ये रहा कि आज तक नागालैंड उपद्रवग्रस्त इलाका बना हुआ है।

जयपाल सिंह मुंडा के ही कारण आदिवासियों  (उनको इच्छाओं के विरुद्ध जनजातियों)  को  संविधान में कुछ विशिष्ट अधिकार मिल सके, हालाँकि, व्यवहार में उनका शोषण अब भी जारी है। खासकर, भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले राज्यों; छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश और गुजरात में तो इनके सामूहिक खात्मे का अभियान छिड़ा हुआ है। उनके जल, जंगल, जमीन को छिनने की कुत्सित-मानसिकताओं द्वारा  सरदार पटेल तक का इस्तेमाल किया जा रहा है।  

किसी को भी नक्सली बताकर गोली से उड़ा दिये जाने की परंपरा स्थापित हो चुकी है। यह दु:खद स्थिति खत्म करने के लिए एक बार फिर से जयपाल सिंह मुंडा की विचारधारा का अनुसरण किये जाने की जरूरत है। पूरे जीवन आदिवासी हितों के लिए लड़ते-लड़ते 20 मार्च 1970 को जयपाल सिंह मुंडा का निधन हो गया। दुर्भाग्य की बात है कि उसके बाद उन्हें विस्मृत कर दिया गया।

यह अत्यंत दु:ख की बात है कि आज जिनका कोई इतिहास नहीं है, उन्हें इतिहास के पन्नों से खोज- निकालकर नया इतिहास लिखने की कवायद आरंभ हो चुकी है, जबकि आदिवासियों के सबसे बड़े हितैषी  जयपाल सिंह मुंडा को नई पीढ़ी के लोग जानते तक नहीं हैं। उन्हें साजिशन विस्मृत किया जा रहा है।

जब छोटे-छोटे राजनीतिक हितों के लिए लड़ने वाले राजनेताओं और धन के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों  तक को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है, ऐसे में जयपाल सिंह मुंडा जैसे बहुआयामी व्यक्ति के लिए भारत रत्न की माँग तक कहीं सुनाई नहीं देती है। उन्हें भारतरत्न मिलना चाहिए।

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इस तरह न्यूजीलैंड ने अपना पहला खिताब जीत लिया। वहीं, लौरा वोलवार्ड्ट के नेतृत्व वाली टीम को लगातार दूसरी बार फाइनल में हार का सामना करना पड़ा। पिछली बार अपने घरेलू मैदानों में हुए टी 20 विश्व कप के फाइनल में उन्हें ऑस्ट्रेलिया के हाथों 19 रन से हार का सामना करना पड़ा था।

लौरा और तजमीन ने दिलाई शानदार शुरुआत

159 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी दक्षिण अफ्रीका की शुरुआत शानदार हुई। लौरा वोलवार्ड्ट और तजमीन ब्रिट्स के बीच पहले विकेट के लिए 51 रनों की शानदार साझेदारी हुई। यह तीसरा मौका है जब इस टूर्नामेंट के दौरान दोनों बल्लेबाजों के बीच 50 से अधिक रनों की साझेदारी हुई।

यह भी पढ़ें : साक्षी मलिक ने आत्मकथा ‘विटनेस’ में किये कई खुलासे, बचपन में ट्यूशन देने वाले शिक्षक द्वारा यौन शोषण

वहीं, महिला टी20 विश्व कप के इतिहास में दोनों के बीच छठी बार 50+ रनों की साझेदारी हुई। टीम को पहला झटका तजमीन के रूप में पहला झटका लगा जो 17 रन बनाकर लौटीं। वहीं, कप्तान लौरा 33 रन बनाकर आउट हुईं।

ताश के पत्तों की तरह बिखरा दक्षिण अफ्रीका का बल्लेबाजी क्रम

इसके बाद द. अफ्रीका का बल्लेबाजी क्रम ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। इस मुकाबले में लौरा और तजमीन के बाद सिर्फ दो बल्लेबाज दहाई के स्कोर को छू सके। कीवियों के खिलाफ एनेके बॉश ने नौ, मारिजैन कप ने आठ, नादिन डी क्लर्क ने छह, क्लो ट्रायन ने 14, सुने लूस ने आठ, एनेरी डर्कसन ने 10, सिनालो जाफ्ता ने छह, म्लाबा और खाका ने चार-चार रन बनाए।

कीवियों के लिए रोजमेरी मेयर और अमेलिया केर ने तीन-तीन विकेट चटकाए जबकि कार्सन, जोनस और हालीडे को एक-एक सफलता मिली।

खिताबी जीत से न्यूजीलैंड की टीम मालामाल

न्यूजीलैंड के खिलाफ फाइनल में हारने वाली उप विजेता साउथ अफ्रीकी टीम के खाते में कुल 11.56 करोड़ रुपये गए जिसमें दूसरे नंबर पर रहने के लिए 9.83 करोड़ शामिल था। वहीं सेमीफाइनल की दौड़ से बाहर होने वाली भारतीय टीम ने इस विश्व कप में दो मुकाबले जीते थे। इसके लिए उसे 3.74 करोड़ रुपये मिले। 

हरमनप्रीत कौर की कप्तानी वाली भारतीय टीम को इस विश्व कप के पहले ही मैच में न्यूजीलैंड ने बड़े अंतर से हराकर उसके सेमीफाइनल में पहुंचने की उम्मीदों को झटका दिया था।

सेमीफाइनल में हारने वाली 6 बार की चैंपियन ऑस्ट्र्रेलिया को 7.66 करोड़ दिए गए जबकि अंतिम चार में हारने वाली वेस्टइंडीज की टीम को 7.40 करोड़ मिले। पांचवें नंबर पर रहने वाली इंग्लैंड को 4 करोड़ मिले। पाकिस्तान को 3.47 करोड़ दिए गए वहीं बांग्लादेश को 3.47 करोड़ जबकि श्रीलंका को 2.08 करोड़ मिले। उसे वर्ल्ड कप जीतने पर ओवरऑल 21.40 करोड़ रुपये मिले जिसमें 19.67 करोड़ टाइटल जीतने पर दिया गया।

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साक्षी मलिक ने आत्मकथा ‘विटनेस’ में किये कई खुलासे, बचपन में ट्यूशन देने वाले शिक्षक द्वारा यौन शोषण

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 22 अक्टूबर 2024 | जयपुर : साक्षी मलिक ने विटनेस (Witness) नाम की अपनी आत्मकथा में विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया की आलोचना की और कहा कि ट्रायल्स से छूट स्वीकार करने के निर्णय की वजह से विरोध की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा और समर्थकों ने हमारे आंदोलन की ईमानदारी पर सवाल उठाया। इसमें साक्षी मलिक ने लिखा है कि पुनिया और फोगाट के करीबी लोगों पर ‘लालच’ के प्रभाव के कारण प्रोटेस्ट कमजोर पड़ने लगा था।

देश और  दुनिया की जानी-मानी रेसलर साक्षी मलिक की आत्मकथा ‘विटनेस’ लॉन्च हो गई है। इसमें साक्षी मलिक ने अपने बचपन, रेसलिंग में जाने और पहलवानों के सेक्शुअल हैरेसमेंट को लेकर बात की है।

साक्षी ने कहा कि विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया के एशियाई खेलों के ट्रायल्स से छूट लेने से उनके आंदोलन की छवि प्रभावित हुई। उनके फैसले से इंसाफ की लड़ाई स्वार्थ की दिखने लगी। बजरंग और विनेश के करीबियों ने उनके दिमाग में लालच भरा। जिसकी वजह से उनके विरोध प्रदर्शन में भी दरार आने लगी।

साक्षी मलिक ने आत्मकथा ‘विटनेस’ में किये कई खुलासे, बचपन में ट्यूशन देने वाले शिक्षक द्वारा यौन शोषण

हरियाणा की मशहूर पहलवान साक्षी मलिक ने अपनी आत्मकथा ‘विटनेस’ में अपने जीवन के कई पहलुओं पर से पर्दा उठाया है। किताब में उन्होंने अपने बचपन के संघर्षों, रेसलिंग करियर की शुरुआत और खेल जगत में व्याप्त यौन शोषण के मुद्दे पर खुलकर बात की है।

बजरंग और विनेश पर लगाया गंभीर आरोप

साक्षी ने अपनी किताब में विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया पर भी कई गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने दावा किया कि 2023 के एशियाई खेलों के दौरान जब उन्होंने ट्रायल्स से छूट ली थी, तब उनके आंदोलन की छवि धूमिल हुई थी।

साक्षी के मुताबिक, उनके इस फैसले से इंसाफ की लड़ाई स्वार्थ की लड़ाई लगने लगी थी। साक्षी ने यह भी कहा कि बजरंग और विनेश के करीबी लोगों ने उनके दिमाग में लालच भरा था, जिसकी वजह से उनके विरोध प्रदर्शन में भी दरार आने लगी थी।

बचपन में हुआ यौन शोषण

साक्षी ने अपनी किताब में यह भी खुलासा किया कि बचपन में ट्यूशन देने वाले शिक्षक ने मुझसे छेड़छाड़ की। मैं इसके बारे में अपने परिवार को नहीं बता सकी क्योंकि मुझे लगा कि यह मेरी गलती थी। मेरे स्कूल के दिनों में ट्यूशन देने वाला टीचर मुझे प्रताड़ित करता।

विनेश के पेरिस ओलिंपिक से बाहर होने पर दिया बयान

विनेश के पेरिस ओलिंपिक से बाहर होने पर साक्षी ने कहा कि यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (UWW) के नियम बहुत सख्त हैं और वजन में थोड़ी सी भी बढ़ोतरी होने पर खिलाड़ी को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि विनेश के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा।

अब सेक्शुअल हैरेसमेंट करने वाला 100 बार सोचेगा

साक्षी मलिक ने कहा कि इतना हमने जरूर कर दिया कि अगर कोई सेक्शुअल हैरेसमेंट करेगा तो 100 बार सोचेगा कि कहीं ये भी जाकर आंदोलन ना कर दे। हमारी लड़ाई बहन बेटियों के लिए थी। इस चीज को खत्म करने के लिए थी जो स्पोर्ट्स में सेक्शुअल हैरेसमेंट होता है।

विनेश और बजरंग कांग्रेस में शामिल

बता दें कि विनेश और बजरंग सितंबर महीने में कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे। विनेश जुलाना विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधायक बन गई हैं, जबकि बजरंग को ऑल इंडिया किसान कांग्रेस का वाइस चेयरमैन बनाया गया है। साक्षी मलिक की आत्मकथा ‘विटनेस’ ने खेल जगत में हलचल मचा दी है और इसने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

मुझे वहां जाकर पता लगा, प्रोटेस्ट करने वाले हैं

पहलवानों के प्रदर्शन को लेकर साक्षी मलिक ने कहा कि प्रोटेस्ट से 3-4 दिन पहले हमारी एक जगह मीटिंग हुई थी। तब मुझे बबीता फोगाट का फोन आया था कि क्या मैं आ रही हूं। मैंने बजरंग को फोन किया तो बजरंग ने कहा कि मैं भी जा रहा हूं, तू भी आ जा। तब हमें पता चला कि हम ऐसे प्रोटेस्ट करने वाले हैं और इसकी परमिशन बबीता फोगाट और तीर्थ राणा ने दिलाई थी। वह चाहते थे कि बृजभूषण हटे और हम में से कोई वहां बैठ जाए। हम लड़कियों को इंसाफ मिलने की बात से खुश थे।

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काबिलेगौर है कि तीनों पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के पूर्व प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था। यह मामला वर्तमान में दिल्ली की एक अदालत में लंबित है, जबकि एड-हॉक कमिटी ने पुनिया और फोगाट को 2023 एशियाई खेलों के ट्रायल से छूट दी, लेकिन साक्षी मलिक ने इस फेवर को लेने से इनकार कर दिया। बाद में साक्षी ने प्रतिस्पर्धा नहीं की, जबकि फोगाट को खेलों से पहले चोट लग गई और पुनिया भी पदक जीतने में विफल रहे।

साक्षी मलिक लिखती हैं, “बजरंग और विनेश के ट्रायल्स से छूट लेने के फैसले से कुछ भी अच्छा नहीं हुआ। उनके फैसले ने हमारे प्रोटेस्ट की छवि को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया। इसने हमें ऐसी स्थिति में डाल दिया जहां कई समर्थकों को लगने लगा कि हम वास्तव में स्वार्थी कारणों से प्रोटेस्ट कर रहे थे।”

विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया ने बाद में सक्रिय राजनीति में कदम रखा। विनेश फोगाट पेरिस ओलंपिक 2024 में फाइनल से ठीक पहले डिस्क्वॉलिफाई हो गई थीं। इसके बाद वे घर लौंटी तो कुछ ही दिन बाद वे हरियाणा विधानसभा चुनाव में लड़ीं और विधायक बन गईं।

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