मीणा शौर्य गाथाएँ पुस्तक ‘मीणाओं के गौरवशाली अतीत का प्रामाणिक स्मारक’

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 14 जुलाई 2024 | जयपुर : मूर्धन्य आदिवासी लेखक हरिराम मीणा द्वारा लिखित ‘मीणा शौर्य गाथाएँ’ पुस्तक ‘मीणाओं के गौरवशाली अतीत का स्मारक’ है जो हाल ही में प्रकाशित हुई है। हरिराम जी आदिवासी समुदाय पर अधिकृत लेखक है। फ़ादर हेनरी हेरास सहित एक दर्जन से अधिक प्राचीन इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं ने मीणाओं को सिंधु सभ्यता के मौलिक वारिस माना है, जिसे यह पुस्तक पूर्णत: प्रमाणित करती है। 

मीणा शौर्य गाथाएँ पुस्तक ‘मीणाओं के गौरवशाली अतीत का प्रामाणिक स्मारक’

कृति की महत्ता इतनी है कि प्रथम पंक्ति पढ़ी तो अद्योपांत पढ़ना मेरी ही नहीं अपितु हर पाठक की मजबूरी है। यह है हरिराम मीणा कि लेखनी की ताकत । यह केवल मीणा जाति का इतिहास न होकर आपने समसामयिक इतिहास बना दिया है। वाह,सर आपकी कलम को नमन! तथ्यों की प्रमाणिकता के रूप में इतिहास पर लिखना भौतिक विज्ञान से अधिक चुनौतिपूर्ण होता हैं। यह और भी चुनौतिपूर्ण परीक्षण बन जाता हैं जब इससे पूर्व प्रमाणिक पुस्तकें श्रोत कम उपलब्ध हो।

मीणा शौर्य गाथाएँ ‘मीणाओं के गौरवशाली अतीत का प्रामाणिक स्मारक’

प्राचीन काल से मीणा समाज का न केवल राजस्थान बल्कि भारत वर्ष में बहुत ही गौरवशाली इतिहास रहा है देश के विभिन्न हिस्सों मीणा समाज कई जातियों में बटा हुआ है लेकिन यह कैसी विडंबना है कि राजस्थान की पाठ्य पुस्तकों में भी हमारे गौरवशाली इतिहास को समुचित स्थान प्राप्त नही है। बल्कि हर्कुलिश (अपारशक्ति के वीर पुरुष जिन्होंने अनेकानेक महान कार्य किये) मीणा समाज की नकारात्मक छवि प्रस्तुत की गयी है।

राजस्थान में जनसँख्या की दृष्टि से सर्वाधिक आबादी पर मीणा समुदाय की है। इनकी बसावट अरावली पर्वत शृंखला में ठेठ जिला भरतपुर से लेकर अलवर, दौसा, करौली, सवाईमाधोपुर, टोंक, बारां, झालावाड़, कोटा, बूंदी, भीलवाड़ा, चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, पाली, जालोर, सिरोही, जोधपुर एवं शेखावाटी के सभी जिलों सहित जयपुर तक पसरी हुई है। प्राचीन बस्तियां खासकर पर्वत घाटियों एवं तलहटियों में थीं।

कालांतर में कुछ गाँव समतलीय क्षेत्रों तक में फैलते गए। मूलत: राजस्थान से ताल्लुक रखने के बावजूद अन्य प्रान्तों में भी मीणा लोग पाए जाते हैं जिनके यहाँ से विस्थापन, पलायन का अनेक सोपानों में लंबा इतिहास है। आरक्षण की दृष्टि से केवल राजस्थान के मीणा संविधान की सूची में सम्मिलित हैं।

मध्यप्रदेश के विदिशा जिला की सिरोंज तहसील के मीणा लोगों को अनुसूचित जनजाति में लिया गया है। अन्य करीब 23 जिलों में ये अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में हैं। उत्तरप्रदेश के मथुरा, संभल व बदायूं जिलों में मीणा हैं। सभी स्थानों को मिलकर मीणा समुदाय की जनसँख्या करीब 50 लाख है, जिनमें से 40 लाख राजस्थान में है।

राजस्थान व हरियाणा के मेवात अंचल में रहने वाले मेव मुसलमानों का अधिकांश मीणों से ही धर्मान्तरित हुआ है। अजमेर अंचल के मेर व रावत भी असल में मीणा ही हैं। मीणा लोगों के भौगोलिक विस्तार का गहरा संबंध उनके विस्थापन व पलायन से है। ज्ञात प्राचीनता की दृष्टि से वर्तमान अफगानिस्तान व पाकिस्तान और भारत के पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, राजस्थान व गुजरात तक यह जनजाति फैली हुई थी।

इस सारे भूभाग में सिंधु सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। उस सभ्यता के विनाश के पश्चात् इस जनजाति बचे हुए लोगों का पहला और बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। नदी-घाटी सभ्यता की जीवनशैली के अभ्यस्त ये लोग अपने उस मूल अंचल से विस्थापित होकर अरावली पर्वत-शृंखलाओं की शरण में आये, जहाँ मुख्य रूप से ढूंढ, बाणगंगा, पार्वती, गंभीरी, कालीसिंध, मोरेल, चम्बल, बनास, माही, सोम, जाखम नदियाँ बहती हैं।

यह वर्तमान राजस्थान का मीणा बाहुल्य इलाका है जिसमें जयपुर सहित पूर्वी राजस्थान के अलवर, भरतपुर, दौसा, धोलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, टोंक जिला, हाड़ौती अंचल के कोटा, झालावाड़, बारां, बूंदी, आगे चलकर भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, सिरोही, पाली और फिर अजमेर होते हुए शेखावाटी का अंचल शामिल है। इस सम्पूर्ण क्षेत्र में अरावली पर्वत-माला और उससे उद्गमित नदियाँ फैली हुई हैं।

भारत में महाजनपद काल में मीणा जनजाति का पुन: संगठित उत्थान होकर पूर्वी राजस्थान के बड़े हिस्सा को समेटता हुआ मत्स्य गणराज्य स्थापित होता है। मौर्य एवं गुप्त वंशीय साम्राज्यों के अवतरण के साथ मत्स्य महाजनपद विखंडित हो जाता है। इसी कालखंड में यवनों के आक्रमण हुए। सिकंदर महान की मृत्यु के पश्चात् उसके सेनापति सेल्यूकस निकेटर ने उत्तर भारत के अधिकांश भागों पर अधिकार कर लिया।

यूनानियों के आक्रमणों से भयभीत होकर योद्धेय, शिवि, अर्जुनायन व मालव जातियों ने राजस्थान में शरण लेना आरंभ कर दिया। इसी दौर में हूणों के आक्रमण हुए. भारत पर एकछत्र साम्राज्यों का युग समाप्त हो गया। इस राजनैतिक वातावरण में संभवत: मीणा समुदाय के स्थानीय मुखियाओं के नेतृत्व में लघु शासन प्रणालियों का दौर आता है। उदाहरणार्थ आज के जयपुर जिला में पृथक पृथक मीणा राज्य थे।

अलवर क्षेत्र में अन्गारी, क्यारा व नरेठ जैसे छोटे राज्य थे। बूंदी गजेटियर, कर्नल टॉड और जयपुर-अलवर के इतिहास ग्रंथों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक मत्स्य जनपद के पतन के पश्चात् इस सम्पूर्ण क्षेत्र में बाहरी आक्रांताओं के तांडव और राजनैतिक उथल-पुथल के बावज़ूद यत्र-तत्र मीणा समुदाय की शासन व्यवस्थाएं अस्तित्व में रही थीं। तत्कालीन मीणा राज्यों में रणथंभोर व बूंदी का भौगोलिक क्षेत्रफल ज़रूर बड़ा था। यह राजनैतिक परिदृश्य विशेषकर ग्यारहवीं-बारहवीं सदियों तक चलता है।

इस समुदाय के प्रमुख राज्यों में खोहगंग का चांदा राजवंश, मांच का सीहरा राजवंश, गैटोर तथा झोटवाड़ा के नाढला राजवंश, आमेर का सूसावत राजवंश, नायला का राव बखो देवड़वाल राजवंश, नहाण (लवाण) का गोमलाडू राजवंश, रणथम्भौर का टाटू राजवंश, बूंदी का ऊसारा राजवंश, माथासुला ओर नरेठ (नहड़ा, थानागाज़ी-प्रतापगढ़) का ब्याड्वाल राजवंश, झांकड़ी-अंगारी (थानागाजी) का सौगन मीना राजवंश थे। इनके दुर्ग, परकोटा, महल, बावड़ी आदि के ऐतिहासिक अवशेष यहाँ वहाँ आज भी मिलते हैं।

ग्यारहवीं-बारहवीं सदियों में बाहर से आये हुए राजपूतों ने मीणा राजाओं को एक के बाद एक विजित किया। जयपुर अंचल के कच्छवाहा राजाओं के साथ हुए संधि-समझौतों के बाद मीणा मुखिया एवं सरदार आमेर और बाद में जयपुर रियासत में हिस्सेदारी निभाते हैं। उन्हें नगर एवं राजकोष की सुरक्षा का दायित्व सौंपा जाता है। जब मुगलों ने दक्षिण विजय का अभियान चला तो जयपुर के राजा के साथ गयी सेना में बड़ी संख्या मीणा लड़ाकुओं की थी। उनके वंशज आज भी महाराष्ट्र के कई इलाकों में ‘परदेसी राजपूतों’ के नाम से जाने जाते हैं।

यह मीणा लोगों का एक किस्म का इच्छित विस्थापन था। इसके बाद अकाल, भुखमरी, महामारी का दौर आया जब रोजी-रोटी की तलाश में मीणों का राजस्थान से उत्तरप्रदेश, दिल्ली, मध्यप्रदेश की तरफ भारी तादात में पलायन हुआ। सन 1783 अर्थात सम्वत 1840 के अकाल को चालीसा का अकाल कहते हैं। सन 1812-13 और 1868-69 में भी अकाल पड़ा। सबसे भीषण दुर्भिक्ष छप्पन्या के नाम से जाना जाता है जो सम्वत 1956 में आरंभ हुआ और तीन साल अर्थात सन 1899 से लेकर 1902 तक जिसने भयंकर तबाही मचाये रखी।

यूँ तो महामारियों का दौर यदा-कदा आता ही रहा है किंतु वर्ष 1915-26 की ग्यारह साला अवधि में महामारियों का विकट प्रकोप रहा। जब लोगों का पलायन अन्य इलाकों में हुआ। विस्थापन-पलायन की इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के फलस्वरूप जो भौगोलिक विस्तार हुआ। उसे आज दिल्ली हित उत्तरप्रदेश के मेरठ-बुलंदशहर, मध्यप्रदेश के इंदोर-उज्जैन, महाराष्ट्र के औरंगाबाद जैसे इलाकों में मीणा जनजाति के लोगों की बड़ी संख्या देखी जा सकती है। ऐसी जनजाति के गौरवशाली अतीत को हमारे इतिहासकारों ने नज़रंदाज़ किया है। लोक में इस आदिम समुदाय की शौर्य गाथाएँ आज भी प्रचलित हैं।

मीणा इतिहास की पहली पुस्तक झूँथालाल नांढला के प्रयासों से रावत सारस्वत द्वारा रचित सन 1968 में प्रकाशित हुई। रावत सारस्वत के मतानुसार ‘जहाँ जहाँ विभिन्न नामधारी मीणा वंशों के लोग बसे हुए हैं वहाँ वहाँ उन्होंने अपनी स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए निरंतर संघर्ष किया है। शिवाजी और प्रताप द्वारा अपनाए गए पहाड़ी युद्धों के तौर तरीकों के जन्मदाता, प्राचीन मत्स्यों के यशस्वी उत्तराधिकारी मीणों के गौरवपूर्ण आख्यानों को यदि भारतीय इतिहासकार संभल कर रखन एक प्रयत्न करते तो देश के इतिहास की श्रीवृद्धि होतो, इसमें संदेह नहीं है।

जिन मुसलमान आक्रमणकारियों और बादशाहों के सामने राजस्थान और अन्यान्य प्रदेशों के राव-राजा घुटने टेकते गए उन्हीं विजय के मद में दुर्दांत बने यवन शासकों को मीणों ने एक दो बार नहीं, सैकड़ों बार और शताब्दियों तक नाकों चने चबाये हैं। ऐसी बहादुर कौम को, जिनकी संघ-शक्ति की दुंदभी कभी समूचे देश में गूँजती थी। किस प्रकार राज्य प्रणाली के हिमायतियों ने धीरे धीरे नाचीज़ बना दिया। यह सारी कथा बड़े दर्द से भरी हुई है और जिसे जानने के लिए साधारण पाठक के सामने कोई क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत नहीं हो पाया है।’

इस पुस्तक में मीणा आदिम समुदाय के गौरव की इन्हीं गाथाओं को प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास किया गया है।

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किताबों से प्रेम करने वाले डॉ अंबेडकर ने मनुस्मृति को क्यों जलाया

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 23 दिसंबर 2024 | जयपुर : डॉ. अंबेडकर  मनुस्मृति को ब्राह्मणवाद की मूल संहिता मानते थे। यह किताब द्विजों को जन्मजात श्रेष्ठ और पिछडों, दलित एवं महिलाओं को जन्म के आधार पर निकृष्ट घोषित करती है। पिछड़े-दलितों एवं महिलाओं का एक मात्र कर्तव्य द्विजों और मर्दों का सेवा करना बताती है।

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ऐसी क्या वजहें रही होंगी जो आज से लगभग 92 साल पहले आज ही के दिन 25 दिसम्बर 1927 को बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर को पहली बार मनुस्मृति का प्रतीकात्मक रूप से दहन करना पड़ा? उस दौर में भारतीय समाज में जो कानून चल रहा था वह मनुस्मृति के विचारों पर आधारित था।

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यह एक ब्राह्मणवादी, पुरुष सत्तात्मक, भेदभाव वाला कानून था, जिसमें इंसान को जाति और वर्ग के आधार पर बांटा गया था। आइए जानते हैं जिन व्यवस्थाओं के प्रति बाबासाहेब आंबेडकर को विरोध दर्ज करना पड़ा, उसके पीछे क्या कारण रहे होंगे?

हजारों वर्षों से देश जातिवाद का दंश झेल रहा है जो आज के इस आधुनिक दौर में और भी विकराल रूप लेता दिखाई पड़ रहा है। महिलाओं के अधिकारों की बात हो या वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर माने जाने वाले शूद्र की, ऊंची जातियों को इसमें अपना स्वामित्व ही क्यूं नजर आता रहा? क्यूं आज के इस वैश्विक दौर मे हमारा देश और पिछड़ता चला जा रहा है?

जहां मॉब लिंचिंग के बहाने जाति विशेष को निशाना बनाया जा रहा है। क्या यह सब अचानक ही हो रहा है या इसके पीछे कुछ मंशाएं काम कर रही हैं? या हम इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि मनुष्य-मनुष्य न होकर सिर्फ जाति रूपी कार्ड दिखाई देने लगा है जो सिर्फ वोट के समय खेला जाता है।

मनुस्‍मृति को बाबासाहेब ने क्यों जलाया ?

  • नीच वर्ण का जो मनुष्य अपने से ऊँचे वर्ण के मनुष्य की वृत्ति को लोभवश ग्रहण कर जीविका – यापन करे तो राजा उसकी सब सम्पत्ति छीनकर उसे तत्काल निष्कासित कर दे।10/95-98

  • ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कर्म कहा गया है । इसके अतिरक्त वह शूद्र जो कुछ करता है , उसका कर्म निष्फल होता है।10/123-124

  • शूद्र धन संचय करने में समर्थ होता हुआ भी शूद्र धन का संग्रह न करें क्योंकि धन पाकर शूद्र ब्राह्मण को ही सताता है। 10/129-130

  • जिस देश का राजा शूद्र अर्थात पिछड़े वर्ग का हो, उस देश में ब्राह्मण निवास न करें क्योंकि शूद्रों को राजा बनने का अधिकार नहीं है। 4/61-62

  • राजा प्रातःकाल उठकर तीनों वेदों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करें और उनके कहने के अनुसार कार्य करें। 7/37-38

  • जिस राजा के यहां शूद्र न्यायाधीश होता है उस राजा का देश कीचड़ में धँसी हुई गाय की भांति दुःख पाता है। 8/22-23

  • ब्राह्मण की सम्पत्ति राजा द्वारा कभी भी नही ली जानी चाहिए, यह एक निश्चित नियम है, मर्यादा है, लेकिन अन्य जाति के व्यक्तियों की सम्पत्ति उनके उत्तराधिकारियों के न रहने पर राजा ले सकता है। 9/189-190

  • यदि शूद्र तिरस्कार पूर्वक उनके नाम और वर्ण का उच्चारण करता है, जैसे वह यह कहे देवदत्त तू नीच ब्राह्मण है, तब दस अंगुल लम्बी लोहे की छड़ उसके मुख में कील दी जाए। 8/271-272

  • यदि शूद्र गर्व से ब्राह्मण पर थूक दे, उसके ऊपर पेशाब कर दे तब उसके होठों को और लिंग को और अगर उसकी ओर अपान वायु निकाले तब उसकी गुदा को कटवा दे।  8/281-282

  • यदि कोई शूद्र ब्राह्मण के विरुद्ध हाथ या लाठी उठाए, तब उसका हाथ कटवा दिया जाए और अगर शूद्र गुस्से में ब्राह्मण को लात से मारे, तब उसका पैर कटवा दिया जाए। 8/279-280

  • इस पृथ्वी पर ब्राह्मण–वध के समान दूसरा कोई बड़ा पाप नहीं है। अतः राजा ब्राह्मण के वध का विचार मन में भी लाए। 8/381

  • शूद्र यदि अहंकारवश ब्राह्मणों को धर्मोपदेश करे तो उस शूद्र के मुँह और कान में राजा गर्म तेल डलवा दें। 8/271-272

  • शूद्र को भोजन के लिए झूठा अन्न, पहनने को पुराने वस्त्र, बिछाने के लिए धान का पुआल और फ़टे पुराने वस्त्र देना चाहिए ।10/125-126

  • बिल्ली, नेवला, नीलकण्ठ, मेंढक, कुत्ता, गोह, उल्लू, कौआ किसी एक की हिंसा का प्रायश्चित शूद्र की हत्या के प्रायश्चित के बराबर है अर्थात शूद्र की हत्या कुत्ता बिल्ली की हत्या के समान है। 11/131-132

  • यदि कोई शूद्र किसी द्विज को गाली देता है तब उसकी जीभ काट देनी चाहिए, क्योंकि वह ब्रह्मा के निम्नतम अंग से पैदा हुआ है।

  • निम्न कुल में पैदा कोई भी व्यक्ति यदि अपने से श्रेष्ठ वर्ण के व्यक्ति के साथ मारपीट करे और उसे क्षति पहुंचाए, तब उसका क्षति के अनुपात में अंग कटवा दिया जाए।

  • ब्रह्मा ने शूद्रों के लिए एक मात्र कर्म निश्चित किया है, वह है – गुणगान करते हुए ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करना।

  • शूद्र यदि ब्राह्मण के साथ एक आसन पर बैठे, तब राजा उसकी पीठ को तपाए गए लोहे से दगवा कर अपने राज्य से निष्कासित कर दे।

  • राजा बड़ी-बड़ी दक्षिणाओं वाले अनेक यज्ञ करें और धर्म के लिए ब्राह्मणों को स्त्री, गृह शय्या, वाहन आदि भोग साधक पदार्थ तथा धन दे।

  • जान बूझकर क्रोध से यदि शूद्र ब्राह्मण को एक तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक कुत्ते-बिल्ली आदि पाप श्रेणियों में जन्म लेता है।

  • ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी है।

  • शूद्र लोग बस्ती के बीच में मकान नहीं बना सकते। गांव या नगर के समीप किसी वृक्ष के नीचे अथवा श्मशान पहाड़ या उपवन के पास बसकर अपने कर्मों द्वारा जीविका चलावें।

  • ब्राह्मण को चाहिए कि वह शूद्र का धन बिना किसी संकोच के छीन ले क्योंकि शूद्र का उसका अपना कुछ नहीं है। उसका धन उसके मालिक ब्राह्मण को छीनने योग्य है।

  • राजा वैश्यों और शूद्रों को अपना अपना कार्य करने के लिए बाध्य करने के बारे में सावधान रहें, क्योंकि जब ये लोग अपने कर्तव्य से विचलित हो जाते हैं तब वे इस संसार को अव्यवस्थित कर देते हैं ।

  • शूद्रों का धन कुत्ता और गदहा ही है। मुर्दों से उतरे हुए इनके वस्त्र हैं। शूद्र टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन करें। शूद्र महिलाएं लोहे के ही गहने पहने।

  • यदि यज्ञ अपूर्ण रह जाये तो वैश्य की असमर्थता में शूद्र का धन यज्ञ करने के लिए छीन लेना चाहिए ।

  • दूसरे ग्रामवासी पुरुष जो पतित, चाण्डाल, मूर्ख और धोबी आदि अंत्यवासी हो, उनके साथ द्विज न रहें। लोहार, निषाद, नट, गायक के अतिरिक्त सुनार और शस्त्र बेचने वाले का अन्न वर्जित है।

  • शूद्रों के साथ ब्राह्मण वेदाध्ययन के समय कोई सम्बन्ध नही रखें, चाहे उस पर विपत्ति ही क्यों न आ जाए।

  • स्त्रियों का वेद से कोई सरोकार नही होता। यह शास्त्र द्वारा निश्चित है। अतः जो स्त्रियां वेदाध्ययन करती हैं, वे पापयुक्त हैं और असत्य के समान अपवित्र हैं, यह शाश्वत नियम है।

  • अतिथि के रूप में वैश्य या शूद्र के आने पर ब्राह्मण उस पर दया प्रदर्शित करता हुआ अपने नौकरों के साथ भोज कराए।

  • शूद्रों को बुद्धि नही देनी चाहिए। अर्थात उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं है। शूद्रों को धर्म और व्रत का उपदेश न करें।

  • जिस प्रकार शास्त्र विधि से स्थापित अग्नि और सामान्य अग्नि, दोनों ही श्रेष्ठ देवता हैं , उसी प्रकार ब्राह्मण चाहे वह मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ देवता है।

  • शूद्र की उपस्थिति में वेद पाठ नहीं करनी चाहिए।

  • ब्राह्मण का नाम शुभ और आदर सूचक, क्षत्रिय का नाम वीरता सूचक, वैश्य का नाम सम्पत्ति सूचक और शूद्र का नाम तिरस्कार सूचक हो।

  • दस वर्ष के ब्राह्मण को 90 वर्ष का क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र पिता समान समझ कर उसे प्रणाम करे।

  • किसी प्रयोजन की सिद्धि को ध्यान में रखते हुए दिया जाने वाला उपदेश शूद्र को न दिया जाये। उसे जूठा यानी बचा हुआ भोजन न दे और न यज्ञकर्म से बचा हविष्य प्रदान करे। उसे न तो धार्मिक उपदेश दिया जाये और न ही उससे व्रत रखने की बात की जाये।

  • पुरुषों को अपने जाल में फंसा लेना तो स्त्रियों का स्वभाव ही है! इसलिए समझदार लोग स्त्रियों के साथ होने पर चौकन्ने रहते हैं, क्योंकि पुरुष वर्ग के काम क्रोध के वश में हो जाने की स्वाभाविक दुर्बलता को भड़काकर स्त्रियाँ, मूर्ख  ही नहीं विद्वान पुरुषों तक को विचलित कर देती है! पुरुष को अपनी माता, बहन तथा पुत्री के साथ भी एकांत में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि इन्द्रियों का आकर्षण बहुत तीव्र होता है और विद्वान भी इससे नहीं बच पाते।

  • पुरुषों को अपने घर की सभी महिलाओं को चौबीस घंटे नियन्त्रण में रखाना चाहिए और विषयासक्त स्त्रियों को तो विशेष रूप से वश में रखना चाहिए! बाल्य काल में स्त्रियों की रक्षा पिता करता है! यौवन काल में पति  तथा वृद्धावस्था में पुत्र उसकी रक्षा करता है! इस प्रकार स्त्री कभी भी स्वतंत्रता की अधिकारिणी नहीं है!

  • स्त्रियों के चाल-ढाल में ज़रा भी विकार आने पर उसका निराकरण करनी चाहिये! क्योंकि बिना परवाह किये स्वतंत्र छोड़ देने पर स्त्रियाँ दोनों कुलों (पति व पिता ) के लिए दुखदायी सिद्ध हो सकती है! सभी वर्णों के पुरुष इसे अपना परम धर्म समझते है! और दुर्बल से दुर्बल पति भी अपनी स्त्री की यत्नपूर्वक रक्षा करता है!

  • स्त्री का पिता अथवा पिता की सहमति से इसका भाई जिस किसी के साथ उसका विवाह कर दे, जीवन-पर्यन्त वह उसकी सेवा में रत रहे और पति के न रहने पर भी पति की मर्यादा का उल्लंघन कभी न करे।

  • स्त्री का पति दु:शील, कामी तथा सभी गुणों से रहित हो तो भी एक साध्वी स्त्री को उसकी सदा देवता के सामान सेवा व पूजा करनी चाहिए। स्त्री को अपने पति से अलग कोई यज्ञ, व्रत या उपवास नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उन्हें अपने पति की सेवा-सुश्रुषा से ही स्वर्ग प्राप्त हो जाता है।

मनु के इन कानूनों से अनुमान लगाया जा सकता है कि शूद्रों, अतिशूद्रों और महिलाओं पर किस प्रकार और कितने अमानवीय अत्याचार हुए हैं।

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यूको बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन चुनाव, डॉ राजेश कुमार मीणा लगातार तीसरी बार महासचिव, जगदीश प्रकाश बेनिवाल अध्यक्ष बने

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 17 दिसंबर 2024 | जयपुर : यूको बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन राजस्थान का 9वां त्रैवार्षिक सम्मेलन जयपुर स्थित होटल रॉयल ओर्चिड में हुआ। सम्मेलन में पूरे प्रदेश से 500 से अधिक अधिकारियों ने भाग लिया, जिसमें 100 से अधिक महिला ऑफिसर्स भी शामिल थीं।

यूको बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन चुनाव, डॉ राजेश कुमार मीणा लगातार तीसरी बार महासचिव, जगदीश प्रकाश बेनिवाल अध्यक्ष बने

सम्मेलन के समापन पर वर्ष 2024-27 के लिए नई कार्यकारिणी का गठन किया गया। यूको बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन चुनाव में डॉ राजेश कुमार मीणा को लगातार तीसरी बार महासचिव और जगदीश प्रकाश बेनिवाल को अध्यक्ष, मनीष मीणा सचिव एवम् रवि गर्ग को कोषाध्यक्ष सर्वसम्मति से चुना गया।

यूको बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन चुनाव, डॉ राजेश कुमार मीणा लगातार तीसरी बार महासचिव

यूको बैंक के राजस्थान के तीनों जोनों के भी चुनाव हुए हैं जिनकी नई कार्यकारिणी में जयपुर जोन प्रेसिडेंट हरिमोहन मीणा एवम्  उदयभान सैनी सचिव, जोधपुर जोन प्रेसिडेंट पेमा राम एवम् चेतन सोलंकी, अजमेर जोन प्रेसिडेंट आनंद कुमार, एवम् कुलदीप सिंह मीणा सचिव चुना गया। इसके अलावा विभिन्न पदों पर भी प्रतिनिधियों को चुना गया, ताकि संगठन की मजबूती बनी रहे और अधिकारियों की समस्याओं का समाधान हो सके।

सम्मेलन के दौरान महासचिव डॉ मीणा ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए बताया कि बैंक अधिकारियों का कार्यकाल अनियमित होने से उनका पारिवारिक जीवन प्रभावित हो रहा है। उन्होंने लंबे समय से लंबित पांच दिन का कार्य सप्ताह लागू करने की मांग उठाई और दूरस्थ स्थानांतरण और कार्यक्षेत्र की कठिनाइयों का मुद्दा भी सम्मलेन में रखा।

उन्होंने यह भी कहा कि कार्मिकों के हित में बताते हुए संबोधित किया गया कि आमजनता की सेवा के लिए बैंकिंग अधिकारी दिन-रात सेवा में लगे रहते है। ऐसे बैंक अधिकारी वर्क लाइफ बैलेंस को भी बनाए रखें ताकि समय पर घर जा सके।

बैंक ऑफिसर्स को उनके काम के वनिस्पत बहुत कम तनखा – प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा

प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा, पूर्व सदस्य पूर्व सदस्य, राजस्थान विश्वविद्यालय सिंडिकेट विशिष्ठ अतिथि के रूप सम्मलेन को संबोधित करते हुए कहा कि देश में बैंकिंग व्यवस्था बहुत संकट में है। उन्होंने कहा कि बैंक ऑफिसर्स को उनके काम के वनिस्पत बहुत कम तनखा मिलती है।

बैंक ऑफिसर्स को उनके काम के वनिस्पत बहुत कम तनखा – प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा

प्रोफ़ेसर मीणा ने दु:ख जताते हुए कहा कि बैंक ऑफिसर्स, ऑफिसर्स ना होकर कलर्क बने हुए हैं। बैंकों में स्टाफ की बहुत कमी है और कई सालों से बैंकों में रिक्रूटमेंट नहीं हो रहे हैं। बैंकिंग सेक्टर के लिए पुरानी पेंशन योजना समेत कार्मिकों की समस्याओं का निराकरण किया जाना जरूरी है।

इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुई। एसोसिएशन ऑफ बैंक ऑफिसर्स और यूको बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड संदीप चौबे, मुख्य अतिथि संयुक्त महासचिव आकाश बख्शी, विशाल सखरकर ने अतिथि के रूप में कार्यक्रम का उद्घाटन किया और उन्होंने अधिकारियों को बैंकिंग नियमों का पालन करने तथा साइबर क्राइम से सतर्क रहने का संदेश दिया।

 

प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा, पूर्व सदस्य पूर्व सदस्य, राजस्थान विश्वविद्यालय सिंडिकेट विशिष्ठ अतिथि के रूप सम्मलेन को संबोधित करते हुए

 

त्रि-वार्षिक सम्मेलन जयपुर में होने से प्रदेश के यूको बैंक के ऑफिसर बडी संख्या में पहुंचे
डॉ राजेश कुमार मीणा लगातार तीसरी बार महासचिव

सम्मेलन को पूर्व महासचिव रामपाल कुमावत ने अपने पुराने अनुभवों को साँझा करते हुए संगठन के प्रति समर्पण पर जोर दिया। राजस्थान चेप्टर के अध्यक्ष जेपी बेनिवाल कहा कि बैंकिंग सेवा में क्या क्या परिवर्तिन किया जाए ताकि उपभोक्ताओं को ओर ज्यादा से ज्यादा सुविधा मिल सके।

महेश मीणा मीणा, बैंक ऑफ़ इंडिया ऑफिसर्स एसोसिएशन के महासचिव ने भी संबोधित करते हुए कहा कि सभी बैंक मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार को पुरानी पेंशन लागू करने पर मजबूर किया जायेगा और यदि सरकार लागू नहीं करेगी तो बडा आंदोलन किया जायेगा। बहरी-गूंगी सरकारों को आँखें खोलने के लिए राष्ट्रव्यापी हड़ताल भी की जायेगी।

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यूको बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने भी शिरकत की। कार्यक्रम का शुभारंभ दीपप्रज्जवल और पदाधिकारियों के स्वागत के साथ हुआ। 3 साल बाद त्रि-वार्षिक सम्मेलन जयपुर में होने से प्रदेश के यूको बैंक के ऑफिसर बडी संख्या में पहुंचे।

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