चीन ने कैलाश मानसरोवर का रास्ता रोका बनाया मिसाइल-बेस पर मोदी की चुप्पी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 17 जुलाई 2024 | कैलाश मानसरोवर : 2020 के बाद यह लगातार पांचवां साल है, जब चीन भारतीयों को कैलाश मानसरोवर जाने से रोक रहा है। अभी भारत से कैलाश मानसरोवर जाने के दो रास्ते हैं। फिलहाल इन दोनों रास्तों पर रोक है। सबसे बड़ी बात यह है कि मोदी सरकार इस मसाले पर चुप्पी साधे हुए है। विदेश मंत्री भी चुप हैं। लगता है शिवभक्त हिंदुओं को कैलाश मानसरोवर के दर्शन दूरबीन से करने पड़ेंगे। 

चीन ने कैलाश मानसरोवर का रास्ता रोका बनाया मिसाइल-बेस पर मोदी की चुप्पी

15 जुलाई 2024 को मोदी सरकार 2.1 ने एक RTI के जवाब में कहा है कि पवित्र धार्मिक स्थल पर जाने से रोककर चीन दो अहम समझौते को तोड़ रहा है। इसके अलावा चीन इसी इलाके में एक मिसाइल साइट्स भी बना रहा है। पर मोदी की ऐतिहासिक चुप्पी बरक़रार है! 

चीन ने कैलाश मानसरोवर का रास्ता रोका बनाया मिसाइल-बेस पर मोदी की चुप्पी

भारत से गलवान और पैंगोंग झील इलाके में मुंह की खाने के बाद भी चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। चीनी एयरफोर्स भारत से सटे समूचे बॉर्डर पर हवाई किलेबंदी को मजबूत कर रही है।

वहीं, ताजा सैटेलाइट तस्वीरों से खुलासा हुआ है कि चीन कैलास मानसरोवर के पास जमीन से हवा में मार करने वाली (SAM Missile) मिसाइलों को तैनात किया है। माना जा रहा है कि भारतीय वायुसेना में राफेल लड़ाकू विमानों के शामिल होने के बाद से डरा चीन अपनी हवाई सीमा को सुरक्षित बनाने में जुट गया है।

मानसरोवर के पास बनाया मिसाइल साइट

ओपन सोर्स इंटेलिजेंस detresfa की सैटलाइट तस्वीरों के अनुसार, चीन कैलास मानसरोवर के इलाके में न केवल अपनी सैन्य तैनाती को बढ़ाया है। बल्कि, वह मानसरोवर के पास एक मिसाइल साइट का निर्माण भी कर रहा है।

इस इलाके में 100 किमी की GEOINT स्कैनिंग से पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की ऐक्टिविटी का पता चला है। Epoch Times के अनुसार, चीन की बॉर्डर इलाके में मिसाइल साइट बनाने की चाल उसकी आक्रमक रवैये से बिलकुल मेल खाता है। चीन नहीं चाहता कि सीमा पर शांति हो। ताजा सैटेलाइट तस्वीरों से सीमा पर तनाव और बढ़ने की उम्मीद है।

सवाल 1: कैलाश मानसरोवर कहां है?

जवाब: कैलाश मानसरोवर का ज्यादातर एरिया तिब्बत में है। वही तिब्बत, जिस पर चीन अपना अधिकार बताता है। कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है। इस इलाके में ल्हा चू और झोंग चू नाम की दो जगहों के बीच एक पहाड़ है। यहीं पर इस पहाड़ के दो जुड़े हुए शिखर हैं। इसमें से उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है।

इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग जैसा है। उत्तराखंड के लिपुलेख से यह जगह सिर्फ 65 किलोमीटर दूर है। फिलहाल कैलाश मानसरोवर का बड़ा इलाका चीन के कब्जे में है। इसलिए यहां जाने के लिए चीन की अनुमति चाहिए होती है।

सवाल 2: कैलाश मानसरोवर का क्या महत्व है और इसको लेकर अभी विवाद क्यों शुरू हुआ है?

जवाब: हिंदू धर्म में ये मान्यता है कि भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। यही वजह है कि हिंदुओं के लिए ये बेहद पवित्र जगह है। जैन धर्म में ये मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ ने यहीं से मोक्ष की प्राप्ति की थी। 2020 से पहले हर साल करीब 50 हजार हिंदू यहां भारत और नेपाल के रास्ते धार्मिक यात्रा पर जाते हैं।

2020 से चीन, भारतीयों को कैलाश मानसरोवर की यात्रा की इजाजत नहीं दे रहा है। इसी महीने भारत सरकार ने एक RTI के जवाब में कहा है कि कैलाश मानसरोवर जाने से रोककर चीन 2013 और 2014 में हुए दो प्रमुख समझौते तोड़ रहा है।

न्यूज 18 के मुताबिक मोदी सरकार ने कहा है कि चीन अपने मनमुताबिक एकतरफा फैसला लेकर इन समझौतों को नहीं तोड़ सकता है। अगर चीन को भारत के साथ किए इस समझौते में कोई बदलाव करना है तो वह भारत सरकार के साथ सहमति से ही ऐसा कर सकता है।

सवाल 3: कैलाश मानसरोवर जाने के लिए भारत और चीन के बीच हुए किन दो समझौतों को चीन तोड़ रहा है?

जवाब: कैलाश मानसरोवर जाने के लिए भारत और चीन के बीच दो प्रमुख समझौते हुए हैं…

पहला समझौता: 20 मई 2013 को भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रा मार्ग से होकर कैलाश मानसरोवर जाने के लिए ये समझौता हुआ। उस समय के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच यह समझौता हुआ था। इससे यात्रा के लिए लिपुलेख दर्रा मार्ग खुल गया।

दूसरा समझौता: 18 सितंबर 2014 को नाथूला के जरिए कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते को लेकर भारत और चीन में ये समझौता हुआ था। विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री वांग यी के साथ ये समझौता किया था।

दोनों समझौते की भाषा लगभग एक समान है। ये समझौते दोनों देशों के विदेश मंत्री के पेपर पर हस्ताक्षर के दिन से लागू हैं। हर 5 साल के बाद ऑटोमेटिक तरीके से इसकी समय सीमा बढ़ाने की बात समझौते में लिखी है।

ऐसा तब तक होगा, जब तक कि कोई भी पक्ष समझौते को तोड़ने के अपने इरादे के बारे में समाप्ति की तारीख से छह महीने पहले लिखित रूप में दूसरे देश को नोटिस न दे।

इस समझौते में ये भी कहा गया है कि दोनों पक्ष जरूरत के हिसाब से आम सहमति से प्रोटोकॉल में बदलाव भी कर सकते हैं। भारत सरकार का कहना है कि चीन ने 6 महीने पहले बताए बिना ही भारतीयों लोगों के कैलाश मानसरोवर जाने पर रोक लगा दी है। यह एकतरफा फैसला है, जो गलत है।

सवाल 4: क्या नेपाल से होकर भारतीय कैलाश मानसरोवर जा सकते हैं और इसके लिए चीन का वीजा जरूरी है?

जवाब: किसी भी रास्ते से कैलाश मानसरोवर जाने के लिए भारतीयों के पास चीन का वीजा होना जरूरी है। भारत से कैलाश मानसरोवर जाने के दो रास्ते हैं, जबकि कुछ लोग नेपाल के रास्ते भी यहां जाते हैं।

नेपाल के अखबार काठमांडू पोस्ट का दावा है कि पिछले साल नेपाल से होकर कैलाश मानसरोवर जाने वाले 50 हजार यात्रियों को चीन ने इजाजत नहीं दी। इनमें नेपाल और भारत दोनों देशों के लोग शामिल हैं। भारतीयों के लिए नियम कड़े कर दिए हैं। ये नियम इतना ज्यादा कड़े हैं कि भारतीयों के लिए नेपाल से होकर भी कैलाश मानसरोवर जाना मुश्किल हो गया है।

मई 2023 में एसोसिएशन ऑफ कैलाश टूर ऑपरेटर्स नेपाल (AKTON) ने नेपाल में चीनी राजदूत चेन सोंग को पत्र लिखकर कैलाश यात्रा पर जाने वाले यात्रियों के लिए नियम में बदलाव की मांग की थी। उन्होंने अपने पत्र में कहा कि इस कड़े नियम की वजह से उनके परिवार की आमदनी न के बराबर हो गई है।

‘विऑन न्यूज वेबसाइट’ के मुताबिक भारतीय तीर्थयात्रियों को कैलाश मानसरोवर भेजने वाली नेपाली कंपनियों को 60,000 डॉलर यानी 8 मिलियन नेपाली रुपए चीन सरकार के पास एडवांस में जमा करने होते हैं। चीन ने ये नियम 2020 के बाद बाद बनाए हैं।

चीन कब्जे वाले तिब्बत पर्यटन ब्यूरो ने भारतीयों के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा पैकेज की कीमत एक व्यक्ति के लिए 1800 अमेरिकी डॉलर यानी 1.5 लाख से बढ़ाकर 3000 अमेरिकी डॉलर यानी 2.50 लाख कर दी है। इतना ही नहीं नेपाल में कैलाश मानसरोवर जाने के लिए आवेदन करने वाले लोगों को खुद मौजूद रहना जरूरी है।

उनके बायोमेट्रिक लिए जाते हैं। इस तरह अब नियम इतने कड़े हो गए हैं कि भारतीयों के लिए यहां जाना लगभग असंभव है। जनवरी 2024 में 38 भारतीय नेपाल के नेपालगंज से चार्टर्ड विमान के जरिए ‘कैलाश मानसरोवर दर्शन के लिए गए थे।

सवाल 5: चीन भारतीयों को कैलाश मानसरोवर जाने से क्यों रोक रहा है?

जवाब: ORF के फेलो और विदेश मामलों के जानकार सुशांत सरीन कहते हैं कि पहली बात तो ये है कि चीन ऐसा फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है। कैलाश मानसरोवर का हिस्सा उसके कब्जे में है, ऐसे में वह चाहे तो आपको वहां जाने देगा और नहीं चाहेगा तो नहीं जाने देगा। भले ही इससे किसी की भी धार्मिक भावनाएं आहत हों।

किसी धार्मिक स्थल पर जाने को लेकर कोई इंटरनेशनल कानून नहीं, बल्कि उस देश का कानून लागू होता है। कल को पाकिस्तान चाहे तो करतारपुर कॉरिडोर बंद कर सकता है। इसी तरह सऊदी अरब मक्का मदीना जाने वालों को लेकर कानून बनाता है।

अब दूसरी बात ये है कि अगर चीन भारत के साथ किए 2 समझौते को तोड़कर भारतीयों को कैलाश मानसरोवर जाने से रोक रहा है तो इसका मतलब है कि दोनों देशों के रिश्ते सही नहीं हैं। चीन यह बताने की कोशिश कर रहा है कि भारत अगर ताइवान, साउथ चाइना शी में चीन के खिलाफ जाएगा तो उसे LAC पर ही इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

वहीं, डिफेंस एक्सपर्ट जे.एस. सोढी का कहना है कि 2019 में आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद चीन ने दो आक्रामक फैसले लिए…

  • गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों से झड़प।
  • कैलाश मानसरोवर जाने वाले भारतीय लोगों पर रोक।

सोढ़ी का कहना है कि LAC पर 50 हजार जवानों की तैनाती। कई मौकों पर अलग-अलग जगहों पर सैनिकों में भिड़ंत। 2025 तक पूरे जिंजियांग प्रांत में इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाकर तैयार करने का लक्ष्य और अब कैलाश मानसरोवर जाने से भारतीयों को रोकना। ये सारी बातें इस ओर इशारा कर रही हैं कि भारत और चीन के संबंध काफी बुरे दौर की तरफ बढ़ रहे हैं।

सवाल 6: भारत सरकार ने कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू करने के लिए क्या प्रयास किए हैं?

जवाब: 26 जून 2017 में आखिरी बार चीन ने ये बयान जारी किया था कि कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर उसकी भारत सरकार के साथ बातचीत हो रही है। चीन ने अपने बयान में कहा कि लिपुलेख के रास्ते यात्री कैलाश पर्वत तक जा सकेंगे, लेकिन फिलहाल सिक्किम के नाथूला से होकर कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते पर रोक लगाई गई है। 1981 में लिपुलेख से होकर मानसरोवर जाने की यात्रा शुरू हुई थी।

नाथूला से होकर कैलाश पर्वत जाने पर पाबंदी दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प की वजह से लगाई गई थी। 2020 के बाद से दोनों देशों के बीच यात्रा शुरू करने को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है।

भारत सरकार ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से 90 किलोमीटर दूर धारचूला में ओल्ड लिपुपास चोटी पर भी एक ऐसी जगह को विकसित किया है, जहां से कैलाश पर्वत की चोटी नजर आती है। इस जगह से कैलाश पर्वत करीब 50 किलोमीटर दूर है।

5 जुलाई को पिथौरागढ़ की जिलाधिकारी रीना जोशी ने बताया है कि 15 सितंबर से लिपुलेख के पास ओल्ड लिपुपास चोटी से कैलाश पर्वत के दर्शन शुरू हो जाएंगे। सीधे कैलाश पर्वत की चोटी यहां से नजर आती है।

इसके अलावा यात्री दूरबीन के जरिए भी यहां से कैलाश पर्वत और कैलाश मानसरोवर के खूबसूरत हिस्से को देख सकेंगे। पूजा-पाठ की व्यवस्था भी यहां की जा रही है। ओल्ड लिपुपास जाने के लिए लिपुलेख तक गाड़ी से और फिर कैलाश पर्वत को देखने के लिए लगभग 800 मीटर पैदल चलना होता है।

सवाल 7: क्या चीन कैलाश मानसरोवर के पास मिसाइल तैनात करने की कोशिश कर रहा है?

जवाब: अगस्त 2020 में ‘दि प्रिंट’ ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि भारतीयों को कैलाश मानसरोवर जाने से रोककर चीन यहां मिसाइल साइट्स बना रहा है। एक सैटेलाइट इमेज में भारतीय सीमा लिपुलेख से 100 किलोमीटर की दूरी पर चीन एक मिसाइल साइट्स बनाता दिख रहा है। रिपोर्ट में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों यानी SAM की तैनाती के लिए ये साइट्स बनाए जाने का दावा किया गया।

चीन ने 7 जगहों पर तैनात कीं SAM मिसाइलें

चीन ने लद्दाख से सटे अपने रुटोग काउंटी, नागरी कुंशा एयरपोर्ट, उत्‍तराखंड सीमा पर मानसरोवर झील, सिक्किम से सटे श‍िगेज एयरपोर्ट और गोरग्‍गर हवाई ठिकाने, अरुणाचल प्रदेश से सटे मैनलिंग और लहूंजे में सतह से हवा में मार करने वाली म‍िसाइलें तैनात की हैं।

इन ठिकानों पर चार से पांच म‍िसाइल लॉन्‍चर तैनात हैं। इसके अलावा उनकी मदद के लिए रेडॉर और जेनेटर भी दिखाई दे रहे हैं। कुछ तस्‍वीरों में नजर आ रहा है कि चीनी मिसाइलें भारत से होने वाले किसी हवाई हमले के खतरे को देखते हुए पूरे अलर्ट मोड में है।

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नगीना सांसद चंद्रशेखर आज़ाद वियना के ऐतिहासिक केंद्र

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उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्यों से समृद्ध शहर है वियना 

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यह यूरोपीय संघ में शहरी सीमा के भीतर जनसंख्या के हिसाब से 7वां सबसे बड़ा शहर है। 20वीं सदी की शुरुआत तक यह दुनिया का सबसे बड़ा जर्मन भाषी शहर था और प्रथम विश्व युद्ध में ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य के विभाजन से पहले शहर में 2 मिलियन निवासी थे। आज यह जर्मन बोलने वालों में बर्लिन के बाद दूसरे स्थान पर है।

वियना संयुक्त राष्ट्र और ओपेक सहित कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मेज़बानी करता है। यह शहर ऑस्ट्रिया के पूर्व में स्थित है और चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और हंगरी की सीमाओं के करीब है। ये क्षेत्र एक यूरोपीय सेंट्रोप सीमा क्षेत्र में एक साथ काम करते हैं। पास के ब्रातिस्लावा के साथ, वियना 3 मिलियन निवासियों के साथ एक महानगरीय क्षेत्र बनाता है। 2001 में, शहर के केंद्र को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल नामित किया गया था।

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‘भारत में हर दिन लाखों-करोड़ों एकलव्य की कहानियां सामने आती हैं’ राहुल गाँधी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 09 सितंबर 2024 | जयपुर – डलास :  लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी अपनी तीन दिवसीय अमेरिका यात्रा के लिए रविवार को टेक्सास के डलास पहुंचे। यहां उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के स्टूडेंट से भारत की राजनीति, इकोनॉमी, भारत जोड़ो यात्रा को लेकर बात की। 

भारत की लोकसभा में विपक्षी नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी अमेरिका की तीन दिवसीय यात्रा पर गए हैं। एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने RSS पर हमला बोला। उन्होंने कहा, ‘RSS का मानना है कि भारत एक विचार है।

‘भारत में हर दिन लाखों-करोड़ों एकलव्य की कहानियां सामने आती हैं’ राहुल गाँधी

राहुल ने लोगों से पूछा कि ‘क्या आपने एकलव्य की कहानी सुनी है?’ फिर उन्होंने कहा, ‘अगर आप समझना चाहते हैं कि भारत में क्या हो रहा है, तो हर दिन लाखों-करोड़ों एकलव्य की कहानियां सामने आती हैं। हुनर​रखने वाले लोगों को दरकिनार किया जा रहा है – उन्हें काम करने या कामयाब होने की अनुमति नहीं दी जा रही है, और यह हर जगह हो रहा है।

‘भारत में हर दिन लाखों-करोड़ों एकलव्य की कहानियां सामने आती हैं’ राहुल गाँधी

हुनर का सम्मान करना और उन्हें आर्थिक और तकनीकी रूप से समर्थन देना ही वह तरीका है जिससे आप भारत की क्षमता को उजागर कर सकते हैं।। आप सिर्फ 1-2 प्रतिशत आबादी को सशक्त बनाकर भारत की शक्ति को उजागर नहीं कर सकते। यह मेरे लिए दिलचस्प नहीं है।’

हमारा मानना है कि भारत बहुत सारे विचारों से मिलकर बना है। हमारा मानना है कि हर किसी को सपने देखने की इजाजत मिले, बिना किसी की परवाह के। बिना उसका धर्म, रंग देखे बिना मौके मिलें। चुनाव में भारत के लाखों लोगों को साफ तौर से पता चला कि प्रधानमंत्री संविधान पर हमला कर रहे थे। मैं जो बाते कर रहा हूं वह संविधान में है। राज्यों का संघ, भाषा का सम्मान, धर्म का सम्मान।’

राहुल गांधी ने कहा- भारत में रोजगार की समस्या है। ऐसा इसलिए क्योंकि हमने प्रोडक्शन पर ध्यान नहीं दिया। भारत में सब कुछ मेड इन चाइना है। चीन ने प्रोडक्शन पर ध्यान दिया है। इसलिए चीन में रोजगार की दिक्कतें नहीं हैं।

भारत में गरीबी को लेकर पूछे गए सवाल पर राहुल गांधी ने कहा- सिर्फ एक-दो लोगों को सारे पोर्ट्स और सारे डिफेंस कॉन्ट्रैक्ट दिए जाते हैं। इसी कारण भारत में मैन्युफैक्चरिंग की स्थिति ठीक नहीं है।

कार्यक्रम में इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने कहा- राहुल गांधी अब पप्पू नहीं है, वे पढ़े-लिखे हैं और किसी भी मुद्दे पर गहरी सोच रखने वाले स्ट्रैटेजिस्ट हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में हुए कार्यक्रम में राहुल गांधी के साथ इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा भी पहुंचे।

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में हुए कार्यक्रम में राहुल गांधी के साथ इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा भी पहुंचे।
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में हुए कार्यक्रम में राहुल गांधी

भारत में शिक्षा और कौशल को लेकर क्या बोले?

भारत में शिक्षा और कौशल को लेकर बात करते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि बड़ा मुद्दा कौशल की कमी नहीं बल्कि कुशल व्यक्तियों के लिए सम्मान की कमी है। उन्होंने कहा, ‘भारत में कौशल रखने वाले लोगों के लिए सम्मान नहीं है।’ उन्होंने शिक्षा प्रणाली और व्यवसाय क्षेत्र के बीच अंतर की आलोचना की और व्यावसायिक प्रशिक्षण के जरिए बेहतर एकीकरण की वकालत की।

उन्होंने कहा, ‘हमारी शिक्षा प्रणाली व्यवसाय प्रणाली से नहीं जुड़ती।’ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बारे में बातचीत के दौरान राहुल ने इसकी चुनौतियों और अवसरों दोनों को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, ‘हर बार जब नई तकनीक आती है तो तर्क दिया जाता है कि यह नौकरियां छीन लेगा। यह कुछ नौकरियां खत्म कर सकता है, लेकिन कई नौकरियां पैदा भी करेगा।’

कार्यक्रम में राहुल गांधी से 7 सवाल-जवाब

सवाल: लीडर ऑफ ऑपोजिशन के तौर पर क्या चैलेंज होते हैं?

जवाब: अपोजिशन लोगों की आवाज होता है। विपक्ष को लीडर के तौर सोचना होता है कि कहां और कैसे लोगों की आवाज उठाई जा सकती है। इस दौरान इंडस्ट्री, पर्सनल, फार्मर सब पर्सपेक्टिव से सोचना होता है। अच्छे से सुनकर और समझकर जवाब देना होता है। पार्लियामेंट में स्थिति एक जंग की तरह होती है। वहां जाकर लड़ना होता है। हालांकि, कभी-कभी जंग मजेदार होती है। कभी जंग सीरियस हो जाती है। यह शब्दों की जंग होती है। पार्लियामेंट में अलग-अलग नेता आते हैं। बिजनेसमैन भी आते हैं। अलग-अलग डेलिगेशन आकर मिलता है। सभी पक्षों को सुनना होता है।

राहुल गांधी अपनी की तीन दिवसीय अमेरिका यात्रा

सवाल: आपका लंबा करियर रहा है। राजनीति में रहते हुए इतने सालों में आपने क्या बदलाव देखे हैं?

जवाब: अब मैं इस निष्कर्ष पर पहुंच रहा हूं कि सुनना बोलने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। सुनने का मतलब है खुद को आपकी जगह पर रखना। अगर कोई किसान मुझसे बात करता है, तो मैं खुद को उनके रोजमर्रा के जीवन में शामिल करने की कोशिश करूंगा और समझूंगा कि वे क्या कहना चाह रहे हैं। सुनना बुनियादी बात होती है। इसके बाद किसी मुद्दे को गहराई से समझना होता है। हर एक मुद्दे को नहीं उठाना चाहिए। आपको महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और फिर उसको राजनीति में उठाना चाहिए। जिस मुद्दे को हम नहीं उठाना चाहते हैं, उसे भी अच्छी तरह से समझना चाहिए।

सवाल: भारत जोड़ो यात्रा के दौरान 4 हजार किलोमीटर की यात्रा की। इससे क्या बदलाव हुए?

जवाब: भारत में कम्युनिकेशन के चैनल बंद हो गए थे। लोकसभा में बोलते थे तो वह टेलीविजन पर नहीं चलता था। मीडिया वह नहीं चलाता था जो हम कहते थे। सब कुछ बंद था। लंबे समय तक हमें समझ नहीं आ रहा था कि जनता से कैसे बात करें। फिर हमने सोचा कि मीडिया हमें लोगों तक नहीं ले जा रहा था तो डायरेक्टली चले जाओ। इसलिए हमने यह यात्रा की।

शुरुआत में मुझे घुटनों में दिक्कत हुई। मैंने सोचा यात्रा करने का मैंने यह कैसा फैसला ले लिया, लेकिन कुछ दिनों बाद यह आसान लगने लगा। इस यात्रा ने मेरे राजनीति करने का तरीका बदला। लोगों से बातचीत करने और लोगों को समझने का तरीका बदला। पॉलिटिक्स में मोहब्बत नहीं होती थी। हमने यात्रा करके दिखाया कि पॉलिटिक्स में प्यार और मोहब्बत की बातें हो सकती हैं।

स्टूडेंट के सवाल जवाब से पहले राहुल गांधी से कार्यक्रम के होस्ट ने सवाल किए।
स्टूडेंट के सवाल जवाब से पहले राहुल गांधी से कार्यक्रम के होस्ट के सवाल

सवाल: यात्रा के दौरान सबसे अच्छा मोमेंट क्या था?

जवाब: यात्रा में हजारों लोग थे। वो जो मुझे कह रहे थे उनके ही शब्द मेरे मुंह से निकल रहे थे। ऐसा लग रहा था यात्रा मुझसे बात कर रही है। नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने वाला स्लोगन भी मेरा नहीं। यात्रा के दौरान एक शख्स मेरे पास आया। उसने मुझसे बोला- मैं जानता हूं आप क्या कर रहे हो। मैं जानता हूं आप क्या कर रहे है। मैंने पूछा क्या कर रहा हूं। तो वह बोला- आप नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हो।

ऐसे ही एक महिला मेरे पास आईं। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा। मैंने पूछा क्या हुआ। उन्होंने मुझे मेरा पति मार रहा था। मैं भागकर आई हूं। पुलिस को बताएंगे तो वह और मारेगा। मैंने यात्रा में समझा कि हिंदुस्तान में कई महिलाओं के साथ मारपीट होती है। यात्रा में मुझे लोगों के सेंटिमेंट के बारे में पता चला। मुझे यात्रा में पता चला कि हमारा देश क्या चाहता है और हमारा देश क्या और कैसे महसूस करता है।

भारत में देवता का मतलब सिर्फ भगवान नहीं होता है। देवता का वह शख्स होता है जो अंदर जैसा महसूस करता है वैसा ही बाहर उसके एक्सप्रेशन दिखते हैं। इसे देवता कहा जाता है। ऐसा ही हमारी पॉलिटिक्स में होता है। खुद के मंसूबों को खत्म कर लोगों के बारे में सोचना चाहिए। जैसा जनता महसूस करती है वैसे ही नेता एक्सप्रेशन देता है। खुद के आईडिया खत्म कर लोगों के बारे में सोचना ही देवता होना होता है। भगवान राम, बुद्ध, महात्मा गांधी जैसे लीडर्स ऐसे ही थे। यही हिंदुस्तान के नेता और अमेरिका के नेताओं में भी फर्क है।

सवाल: युवाओं के रोजगार को लेकर आपका क्या कहना है?

जवाब: पूरे विश्व में रोजगार की दिक्कत नहीं है। वेस्ट में रोजगार की दिक्कत है। भारत में भी है, लेकिन चीन में नहीं है। वियतनाम में नहीं है। इसका कारण है। 1950 में अमेरिका प्रोडक्शन का सेंटर माना जाता था। टीवी, कार जैसी चीजें सिर्फ यहीं बनती थीं। इसके बाद प्रोडक्शन चीन में होने लगा।

राहुल गांधी के इस कार्यक्रम में यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में पढ़ने वाले भारतीय मूल के स्टूडेंट शामिल हुए।

राहुल गांधी के इस कार्यक्रम में यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में पढ़ने वाले भारतीय मूल के स्टूडेंट शामिल हुए।

सवाल: AI को लेकर आपका क्या सोचना है। क्या AI का रोजगार पर फर्क पड़ेगा?

जवाब: जब भी नई टेक्नोलॉजी आती है तो ऐसा लगता है कि नौकरियां चले जाएंगी। रेडियो आया तब भी एसी ही चर्चा हुईं। कैलकुलेटर आया तब भी ऐसी चर्चा हुईं। IT सेक्टर के समय भी यही कहा गया, लेकिन नई टेक्नोलॉजी से नौकरियां ट्रांसफॉर्म होती हैं। किसी की नौकरी जाती है तो किसी को नौकरी मिलती है। आज कम्प्यूटर ने कई नौकरियां बनाई हैं।

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सवाल: भारत की पॉपुलेशन को देखते हुए एजुकेशन सिस्टम को कैसा बदला जाए। आपके क्या प्लान हैं?

जवाब: कुछ लोग कहते हैं कि देश में स्किल की समस्या है। मेरे ख्याल से यहां स्किल की नहीं, बल्कि स्किल वालों को जो कम कम इज्जत मिलती है, वह समस्या है। इसके अलावा हमारे देश में एजुकेशन सिस्टम भी बिजनेस सिस्टम से मेल नहीं खाता। स्किल और एजुकेशन में हमारे देश में एक बड़ा गैप है। हमें इसे खत्म करना होगा। देश में कई यूनिवर्सिटी में VC RSS से जुड़े हैं। यह नहीं होना चाहिए।

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