राहुल गाँधी के लिए चुनौती कैसे दूर करेंगे राज्यों में लीडरशिप का टोटा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 17 जुलाई 2024 | जयपुर : राहुल गांधी ने 1 जुलाई को संसद में बतौर नेता प्रतिपक्ष अपनी पहली स्पीच में कहा, ‘मैं गुजरात जाता रहता हूंऔर आपको गुजरात में हराएंगे इस बार। आप लिखकर ले लो। आपको INDIA गठबंधन हराने जा रहा है।’ तो सभी को हैरानी हुई। गुजरात में 29 साल से कांग्रेस की सरकार नहीं बनी, लगातार 26 साल से राज्य में BJP की सरकार है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटें मिलने के बाद से राहुल गांधी कॉन्फिडेंट दिख रहे हैं।

राहुल गाँधी के लिए चुनौती कैसे दूर करेंगे राज्यों में लीडरशिप का टोटा

लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भले कांग्रेस को कॉन्फिडेंस दिया हो, लेकिन राज्यों में पार्टी की स्थिति अब भी अच्छी नहीं है। अधिकांश सीनियर लीडर या तो बीजेपी के स्लीपर सेल के रूप में कार्य कर रहे हैं या फिर रिटायरमेंट की तरफ बढ़ रहे हैं।

राहुल गाँधी के लिए चुनौती

कभी कांग्रेस का गढ़ रहे मध्यप्रदेश में पूर्व CM कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत अपने बेटों को ही नहीं जिता पाये और वे बुरी तरह  चुनाव हार गये। हरियाणा में पार्टी गुटबाजी में फंस गई है। UP, बिहार, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में पार्टी के पास चुनाव जिताने वाले चेहरे नहीं हैं।

13 जुलाई को 7 राज्यों की 13 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आए। कांग्रेस 9 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। पार्टी ने हिमाचल और उत्तराखंड में दो-दो सीटें जीतीं।

फिलहाल राज्यों में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियाँ हैं, इनमें से कुछ प्रमुख चुनौतियाँ ये हैं;

  1. पार्टी के पास कोई लीडरशिप नहीं है।
  2. पुरानी लीडरशिप कमजोर होती दिख रही है।
  3. जहां सीनियर लीडर ज्यादा हैं, वहां गुटबाजी है और सीनियर नेता बीजेपी के स्लीपर के रूप में काम रहे हैं। 
  4. कांग्रेस ऐसे नेताओं को ना उगल पा रही या ना ही निगल पा रही है।
  5. एससी एसटी ओबीसी का वोट बैंक फिर से कांग्रेस की तरफ मुड़ा है पर उनके नेताओं को संगठन में जगह नहीं मिल रही है।
  6. कांग्रेस संगठन में ज्यादातर राज्यों में और केंद्रीय स्तर पर सेकंड-थर्ड लाइन लीडरशिप का अभाव है?
  7. कांग्रेस फिर से तभी चुनाव जीत सकती है, जब वह जनता को ये भरोसा दिला पाए कि उनके लिए यही पार्टी बेहतर है। इसके लिए कांग्रेस को नए लोगों को पार्टी से जोड़ना भी एक चुनौती ही है।
  8. कांग्रेस को छिटके वोट बैंक को फिर से अपने पाले में लाना होगा। सेकुलर सवर्ण, दलित, आदिवासी, पिछड़ा और अल्पसंख्यक कभी कांग्रेस का बेस वोटर हुआ करते थे जो अब अलग-अलग पार्टियों के साथ जा चुके हैं। कांग्रेस पुराना वोट बैंक फिर साथ ला पाती है तो उत्तर से पूर्वोत्तर तक उसके अधिक सीटों पर जीत की उम्मीदें मजबूत उम्मीदें मजबूत हो सकती हैं।

राज्यों में कांग्रेस कहां कमजोर है, संगठन मजबूत करने की उसकी स्ट्रैटजी क्या है, दैनिक भास्कर ने इस पर पार्टी लीडर्स, सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एनालिस्ट से बात की।

गहलोत रिटायरमेंट के मूड में नहीं, पायलट-डोटासरा विकल्प बने

अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अब भी सियासी तल्खी है। लोकसभा चुनाव में पार्टी 0 से 8 सीटों पर पहुंची है, लेकिन इस जीत पर प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और सचिन पायलट दावा कर रहे हैं।

मई, 2024 में 73 साल के हुए अशोक गहलोत रिटायरमेंट के मूड में नहीं हैं। इसलिए राजस्थान कांग्रेस में बड़े बदलाव के आसार कम हैं। 2023 में गहलोत ने साफ कर दिया था कि उनका रिटायरमेंट का प्लान नहीं है। गहलोत अब भी उसी स्टैंड पर कायम हैं।

सूत्र बताते हैं कि गहलोत की रणनीति है कि अगर उन्हें चौथी बार लीड करने का मौका नहीं दिया जाता है, तो उनकी जगह सचिन पायलट को भी मौका न मिले। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी पायलट के लिए चुनौती हैं। डोटासरा सियासी तौर पर प्रभावी जाट समुदाय से आते हैं।

पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा कहते हैं, ‘राजस्थान में कांग्रेस की पूरी राजनीति गहलोत और पायलट के बीच ही थी। अब गोविंद सिंह डोटासरा ने जगह बना ली है। कांग्रेस में साफ नजर आता है कि इनमें से कोई भी नेता बड़ी भूमिका में आ सकता है।’ साथ ही मुरारी लाल मीणा आदिवासी समुदाय के नेतृत्व के लिए तैयार है, उन्हीं बड़ी जिम्मेदारी कि दरकार है।

वहीं, कांग्रेस लीडर और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली कहते हैं, ‘हमें युवा जोश के साथ अनुभव भी चाहिए। हमारे उदयपुर डिक्लेरेशन में क्लियर है कि 50% युवाओं को मौका देंगे और बाकी सीनियर रहेंगे। सीनियर नेताओं के अनुभव के बिना पार्टी नहीं चल सकती।’

महाराष्ट्र: लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सब ठीक नहीं

महाराष्ट्र में नाना पटोले पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की परफॉर्मेंस सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में ही सुधरी है। 2014 में कांग्रेस ने यहां 2 सीटें जीती थीं, 2019 में एक सीट जीती और 2024 में 13 सीटें जीतकर नंबर वन पार्टी बन गई। फिर भी पार्टी की हालत बहुत अच्छी नहीं है।

सीनियर जर्नलिस्ट संदीप सोनवलकर बताते हैं, ‘कांग्रेस में अंदरखाने बहुत बिखराव है। पार्टी की फ्रंटलाइन लीडरशिप खत्म हो चुकी है। पुराने नेताओं में सिर्फ पृथ्वीराज चव्हाण बचे हैं, जो 2014 से साइड लाइन हैं। नाना पटोले सिर्फ विदर्भ के नेता हैं, पूरे महाराष्ट्र में वे अपने दम पर चुनाव नहीं जिता सकते। पार्टी के अंदर ही उनकी नहीं चल रही है।’

संदीप कहते हैं, ‘अभी विधान परिषद चुनाव में पार्टी के 7 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। नाना पटोले BJP से आए हैं, यही वजह है कि आज भी पार्टी के कई नेता उन्हें अपना नहीं पाए हैं।” अशोक चव्हाण और दूसरे बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने के पीछे भी नाना पटोले का ही हाथ माना जाता है। विधानसभा चुनाव से पहले हाईकमान इस ओर ध्यान नहीं देता है तो कांग्रेस में और फूट दिख सकती है।’

हरियाणा: राज्य में जीत के चांस, लेकिन गुटबाजी सबसे बड़ा चैलेंज

हरियाणा में इसी साल विधानसभा चुनाव हैं। कांग्रेस ने राज्य की जिम्मेदारी पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा को दे रखी है। हुड्डा विधायक दल के नेता हैं और प्रदेश अध्यक्ष उदयभान उनके करीबी माने जाते हैं। हरियाणा में दूसरा खेमा पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा सांसद कुमारी शैलजा का है। रणदीप सिंह सुरजेवाला भी शैलजा खेमे के नेता माने जाते हैं।

2019 विधानसभा चुनाव के दौरान कुमारी शैलजा प्रदेश अध्यक्ष थीं। तब हुड्डा से उनकी अदावत की वजह से पार्टी बंटी नजर आती थी। 2022 से कांग्रेस ने एक बार फिर हुड्डा पर भरोसा जताया। उनके नेतृत्व में पार्टी ने लोकसभा चुनाव में 5 सीटें जीती हैं। विधानसभा चुनाव भी पार्टी उनके ही नेतृत्व में लड़ने वाली है।

सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा ने चुनाव से पहले शहरी क्षेत्र में पदयात्रा निकालने का ऐलान किया है। इसके तुरंत बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को आगे करके रथ यात्रा का कार्यक्रम फाइनल कर दिया।

एक्सपर्ट्स मानते हैं कि हरियाणा में संगठन स्तर पर लिए जाने वाले फैसलों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ही चल रही है। कुमारी शैलजा खुलेआम इसका विरोध करती रही हैं। राज्य में जाट और दलित के पॉलिटिकल एडजस्टमेंट की परेशानियां हैं, उन्हें पार्टी हाईकमान को दूर करना पड़ेगा। हरियाणा में कांग्रेस के पास चुनाव जीतने और सत्ता में वापस आने का बड़ा मौका है। अगर हरियाणा में कांग्रेस जीत जाती है, तो इससे केंद्र की राजनीति पर असर पड़ेगा।

मध्य प्रदेश: सीनियर नेताओं के साथ युवाओं को मिलेगी जिम्मेदारी

मध्यप्रदेश में कांग्रेस पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारी है। लोकसभा चुनाव के बाद हुई मीटिंग में पार्टी ने तय किया है कि सीनियर लीडर्स के साथ युवाओं को बड़ी जिम्मेदारी दी जाए।

प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह, प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट्स से बात की। उन्होंने सीनियर लीडर्स की गुटबाजी को हार की वजह बताया।

बैठक में शामिल रहे एक नेता बताते हैं कि मीटिंग में सबसे ज्यादा फोकस इसी पर रहा कि कैसे युवाओं को आगे लाया जाए। पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस ने अलग-अलग टीमों में युवाओं को सहप्रभारी बनाकर उन्हें आगे बढ़ाने के संकेत दे दिए हैं।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के उपाध्यक्ष जेपी धनोपिया कहते हैं, ‘भंवर जितेंद्र सिंह, जीतू पटवारी, उमंग सिंघार और सभी सीनियर लीडर्स ने विधायकों से वन-टु-वन बात की है। अब नए लोगों को मौका मिलेगा, पुराने लोगों को भी जोड़ा जाएगा।’

छत्तीसगढ़: सीनियर नेता हटेंगे, नए लोगों को पद देने की तैयारी

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बड़े लेवल पर संगठन में बदलाव करने की तैयारी में है। पार्टी में कई सीनियर लीडर रिटायरमेंट की उम्र में आ चुके हैं। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट पुराने नेताओं की जगह नए चेहरों पर जोर दे रहे हैं। जिला अध्यक्ष सहित सभी पद युवा या नए चेहरों को देने का प्लान है।

अगले दो महीने में प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को हटाने की भी चर्चा है। दो नए कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि नए चेहरों और युवाओं को आगे करने पर सीनियर नेताओं का साथ नहीं मिल रहा है। कलह के डर से पार्टी कोई फैसला नहीं ले पा रही है। इसके अलावा 70 साल से ज्यादा उम्र के ज्यादातर नेताओं ने बेटों को राजनीति में लॉन्च कर दिया है।

झारखंड: चुनाव से पहले पार्टी में कलह, प्रदेश अध्यक्ष बदलने की मांग

झारखंड में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव हैं। यहां कांग्रेस के कई नेता मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर को बदलने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में जून में हुई मीटिंग में भी ये मांग उठी।

सूत्र बताते हैं कि राज्य के सीनियर नेताओं ने हाईकमान के सामने कहा कि मौजूदा अध्यक्ष ने संगठन के लिए कोई खास काम नहीं किया। उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए लोकसभा चुनाव के रिजल्ट का सहारा लिया।

रिजल्ट के मुताबिक, कांग्रेस 13 विधानसभा सीटों पर आगे रही। झारखंड मुक्ति मोर्चा को 16 और BJP को 52 सीटों पर बढ़त मिली। इस लिहाज से देखें, तो विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार तय है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में दो सीटें जीती हैं।

चुनावी राज्यों में काम शुरू, UP-गुजरात में कैडर तैयार करने पर फोकस

2024 में महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में चुनाव हैं। कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने यहां काम शुरू कर दिया है। हालांकि, कांग्रेस और राहुल गांधी के रणनीतिकार UP और गुजरात में संगठन मजबूत करने पर काम कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी 6 जुलाई को गुजरात गए थे। वहां वे जेल में बंद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के परिवार से मिले।

गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं। BJP ने 99 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। तब राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। UP में भी जातिगत जनगणना और संविधान के मुद्दे पर कांग्रेस को फायदा मिला है। एक्सपर्ट मान रहे हैं कि प्रदेश में सहयोगी पार्टी सपा को दलित और OBC वोट मिले, उसकी वजह भी कांग्रेस और राहुल गांधी हैं।

बिहार, ओडिशा, आंध्रप्रदेश में लीडरशिप का संकट
UP के अलावा बिहार, ओडिशा, आंध्रप्रदेश में भी कांग्रेस के पास लीडरशिप की कमी है। राहुल गांधी ने UPA सरकार में UP के जिन नेताओं को मंत्री बनाया था, वे पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। इनमें जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह बड़े नाम हैं।

बिहार में भी पार्टी बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है। इस बार लोकसभा चुनाव में उसे सिर्फ 3 सीटें मिली हैं। सांसदों के मामले में वो बड़ी पार्टियों में 5वें नंबर पर है। आंध्रप्रदेश में पूर्व CM जगन रेड्डी की बहन शर्मिला को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन इसका फायदा नहीं हुआ।

पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। ऐसी ही कोशिश ओडिशा में भी चल रही है। यहां 24 साल से कांग्रेस की सरकार नहीं है। उसका संगठन भी नहीं है। जम्मू-कश्मीर, UP, बिहार, ओडिशा और आंध्रप्रदेश में न तो फर्स्ट लाइन की लीडरशिप है और न सेकेंड लाइन है। वहां समीकरण के हिसाब से, सहयोगियों के हिसाब से जीत-हार होती रहती है।

हाईकमान तैयार कर रहा नई लीडरशिप

सूत्रों के मुताबिक, कमलनाथ के नेतृत्व में पार्टी मध्य प्रदेश में चुनाव हारी, तभी दिल्ली से नई लीडरशिप बनाने का आदेश हुआ। इसके बाद जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष और उमंग सिंघार को विधायक दल का नेता बनाया गया। ये राहुल गांधी का आदेश था कि सेकेंड लीडरशिप को तुरंत मौका देना चाहिए।

ऐसे ही राजस्थान में गोविंद सिंह डोटासरा को कंटीन्यू किया गया और टीकाराम जूली को विधायक दल का नेता बनाया गया। मुरारी लाल मीणा आदिवासी समुदाय के मजबूत स्तम्भ है। जहां-जहां पार्टी हार रही है, वहां-वहां राहुल गांधी अपने हिसाब से लीडरशिप डेवलप कर रहे हैं।

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लैंड फॉर जॉब केस में लालू परिवार समेत सभी 9 आरोपियों को जमानत

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 07 अक्टूबर 2024 |  दिल्ली – पटना :  लैंड फॉर जॉब केस में लालू परिवार समेत सभी 9 आरोपियों को जमानत मिल गई है। दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट से सभी को 1-1 लाख के निजी मुचलके पर बेल मिली। कोर्ट ने सभी को पासपोर्ट सरेंडर करने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई 25 अक्टूबर को होगी।

लैंड फॉर जॉब केस में लालू परिवार समेत सभी 9 आरोपियों को जमानत

इस मामले में आज लालू परिवार की दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में पेशी हुई। सुनवाई के लिए कोर्ट में RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, तेजप्रताप और मीसा भारती पहुंचे थे। पहली बार इस मामले में कोर्ट की तरफ से लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को समन किया गया था।

लैंड फॉर जॉब केस में लालू परिवार समेत सभी 9 आरोपियों को जमानत

तेजस्वी यादव ने कहा, ‘ये लोग बार-बार राजनीतिक साजिश करते रहते हैं। केंद्र सरकार एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। इस केस में कोई दम नहीं है। हम लोगों की जीत तय है। वहीं, सांसद मीसा भारती ने कहा, ‘हमें कोर्ट पर पूरा विश्वास है। आज जो फैसला आया है, हम उसके लिए न्यायालय का धन्यवाद करते हैं।’

कोर्ट में पेशी के लिए लालू प्रसाद यादव अपनी बेटी मीसा और रोहिणी के साथ रविवार को पटना से दिल्ली पहुंचे थे। तेजप्रताप पहले से ही दिल्ली में मौजूद थे। तेजस्वी दुबई से रविवार देर रात तक दिल्ली पहुंचे थे। लालू यादव कोर्ट में पेशी के लिए व्हील चेयर पर पहुंचे।

दिल्ली रवाना होने से पहले लालू बोले थे- मोदी की हार तय

एअर इंडिया के विमान से दिल्‍ली रवाना होने से पहले पटना एयरपोर्ट पर लालू प्रसाद ने कहा, ‘जम्‍मू-कश्‍मीर और हरियाणा चुनाव में नरेंद्र मोदी की हार तय है।’ वहीं, सांसद मीसा भारती ने कहा, ‘हरियाणा और जम्मू कश्मीर में इंडिया गठबंधन की सरकार बनने जा रही है।’

इस पर बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा, ‘लालू यादव जी भ्रष्टाचार के प्रतीक हैं। उनको ये सब क्या पता। वो जेल से डरने का काम करें। उन्होंने जो पाप किया है, वह न्यायालय तय करेगा।’

कोर्ट ने कहा था- तेजप्रताप की संलिप्तता से इनकार नहीं

प्रवर्तन निदेशालय (ED) की सप्लीमेंट्री चार्जशीट को स्वीकार करने के बाद 18 दिन पहले कोर्ट ने लालू परिवार समेत इस मामले में शामिल अखिलेश्वर सिंह और उनकी पत्नी किरण देवी को भी समन भेजा था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था, ‘तेजप्रताप यादव की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता। वह एके इंफोसिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक भी थे।’

ED ने 6 अगस्त को 11 आरोपियों के खिलाफ सप्लीमेंट्री आरोप पत्र दायर किया था। इनमें से 4 की मौत हो चुकी है। इसमें लल्लन चौधरी, हजारी राय, धर्मेंद्र कुमार, अखिलेश्वर सिंह, रविंदर कुमार, स्व. लाल बाबू राय, सोनमतिया देवी, स्व. किशुन देव राय और संजय राय शामिल हैं। लल्लन चौधरी की पत्नी ने पति की मृत्यु से जुड़ी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी कोर्ट में पेश किया है। कोर्ट ने मृत्यु प्रमाण पत्र दाखिल करने का आदेश दिया था।

कौन हैं किरण देवी

कोर्ट ने किरण देवी को समन जारी किया है। वह पटना की रहने वाली हैं। किरण देवी ने नवंबर 2007 में सिर्फ 3.70 लाख रुपए में अपनी 80,905 वर्ग फीट जमीन लालू यादव की बेटी मीसा भारती को बेच दी थी। इसके बाद 2008 में सेंट्रल रेलवे मुंबई में किरण देवी के बेटे अभिषेक कुमार को नौकरी मिल गई।

ED का दावा फुस्स – लालू हैं लैंड फॉर जॉब स्कैम के मास्टरमाइंड

ED ने दावा किया था कि लैंड फॉर जॉब मामले में मुख्य साजिशकर्ता पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद ही हैं। ED ने यह दावा 26 सितंबर को दायर अपनी सप्लीमेंट्री चार्जशीट में किया। चार्जशीट में एजेंसी ने बताया कि तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद और उनके परिवार ने रेलवे में नौकरी देने के नाम पर लोगों से रिश्वत के तौर पर जमीन के टुकड़े लिए थे। आरोप है कि अपराध से अर्जित जमीन पर लालू प्रसाद यादव के परिवार का कब्जा है।

यही नहीं लालू प्रसाद ने घोटाले की साजिश इस तरह रची कि अपराध से अर्जित जमीन पर कंट्रोल तो उनके परिवार का हो, लेकिन जमीन सीधे इनसे और परिवार से लिंक ना हो पाए। प्रोसीड ऑफ क्राइम यानी अपराध से अर्जित आय को खपाने के लिए कई इकाइयां (शेल कंपनियां) खोली गईं और उनके नाम पर जमीन दर्ज कराई गई। राउज एवेन्यू कोर्ट ने हाल ही में इस मामले में लालू प्रसाद, तेजस्वी और तेजप्रताप को समन जारी किया था।

ED के मुताबिक, साजिश की जांच के दौरान खुलासा हुआ कि रेलवे में नौकरी के नाम पर रिश्वत के तौर पर जमीन लेना लालू प्रसाद यादव खुद तय कर रहे थे, इसमें उनका साथ उनका परिवार और करीबी अमित कात्याल दे रहे थे। कई जमीन के टुकड़े ऐसे हैं जो कि लालू प्रसाद यादव के परिवार की जमीन के ठीक बराबर में स्थित हैं और जिन्हें कौड़ियों के दाम पर खरीद लिया गया।

कारोबारी भोला यादव के जरिए जमीन की पहचान की

लालू के परिवार और उनसे जुड़ी कंपनियों के नाम पर लगभग 7 जमीन हैं। ये जमीन पटना के महुआ बाग में स्थित हैं। इसमें से 4 जमीन अप्रत्यक्ष रूप से राबड़ी देवी से जुड़ी हुई हैं। ED ने कहा कि लालू का महुआ बाग गांव से पुराना रिश्ता है।

महुआबाग के जुलूमधारी राय, किशुन देव राय, लाल बाबू राय और अन्य ने लालू प्रसाद और राबड़ी देवी को जमीन दी। राबड़ी देवी ने 1990 में महुआ बाग में प्लॉट संख्या 1547 में एक टुकड़ा खरीदा था।

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व्यावसायिक लाभ के लिए लालू ने OSD भोला यादव के जरिए जमीन की पहचान की। जमीन मालिक के परिजन को रेलवे में नौकरी देने के नाम पर सस्ते में जमीन खरीदी। ये जमीन लालू, उनके परिवार, एके इंफोसिस्टम्स, हृदयानंद चौधरी और ललन चौधरी के नाम पर ट्रांसफर की गई हैं।

एके इंफोसिस्टम्स प्रा. लि. ने सभी शेयर राबड़ी-तेजस्वी के नाम ट्रांसफर

चार्जशीट में ED ने कहा कि एके इंफोसिस्टम्स जमीन अधिग्रहण के बाद 13 जून 2014 को राबड़ी देवी को 85% और तेजस्वी यादव को 15% शेयर ट्रांसफर कर दिए। इससे वह मेसर्स एके इंफोसिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के पास मौजूद भूमि के मालिक बन गए। 1.89 करोड़ रुपए की संपत्ति को लालू प्रसाद यादव के परिवार वालों ने 1 लाख रुपए कीमत देकर अपने कब्जे में कर लिया।

जनवरी 2024 में लालू-तेजस्वी से हुई थी पूछताछ

लैंड फॉर जॉब्स मामले में ED की दिल्ली और पटना टीम के अधिकारियों ने लालू और तेजस्वी से 20 जनवरी 2024 में 10 घंटे से ज्यादा पूछताछ की थी। ED सूत्रों के मुताबिक, लालू प्रसाद से 50 से ज्यादा सवाल किए गए थे। उन्होंने ज्यादातर जवाब हां या ना में ही दिया था। पूछताछ के दौरान कई बार लालू झल्ला भी गए थे। वहीं, तेजस्वी से 30 जनवरी को लगभग 10-11 घंटे तक पूछताछ चली थी।

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विवादों में बीजेपी युवा मोर्चा की कार्यकारिणी, 14 महीने बाद घोषित 53 मिनट बाद ही डिलीट

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 22 सितंबर 2024 |  जयपुरप्रदेश बीजेपी युवा मोर्चा (भाजयुमो) की कार्यकारिणी रविवार को करीब 14 महीने बाद घोषित हुई। लेकिन, कार्यकारिणी की घोषणा के 53 मिनट बाद ही उसे वापस ले लिया गया। बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ के निर्देश पर युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अंकित चेची ने अपनी कार्यकारिणी और कार्य समिति के सदस्यों की घोषणा की थी।

विवादों में बीजेपी युवा मोर्चा की कार्यकारिणी, 14 महीने बाद घोषित 53 मिनट बाद ही डिलीट

इसकी सूचना बीजेपी मीडिया प्रकोष्ठ की ओर से शाम 7 बजे जारी की गई। करीब 53 मिनट बाद ही मीडिया प्रकोष्ठ ने सूची को डिलीट करते हुए लिखा कि युवा मोर्चा की सूची त्रुटि पूर्वक जारी हो गई थी, जिसे अपरिहार्य कारणों से रोक दिया गया है। शीघ्र ही नई सूची जारी की जाएगी। दरअसल, लिस्ट जारी होने के बाद से ही इसका विरोध शुरू हो गया था। विवाद बढ़ने पर प्रदेश बीजेपी संगठन ने घोषणा वापस ले ली।

विवादों में बीजेपी युवा मोर्चा की कार्यकारिणी, 14 महीने बाद घोषित 53 मिनट बाद ही डिलीट

नई सूची जल्द ही जारी होगी। बता दे की अंकित चेची प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद भी लंबे समय से अपनी टीम की घोषणा नहीं कर पा रहे हैं। इससे पहले तत्कालीन बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी के समय भी कई बार युवा मोर्चा की कार्यकारिणी को लेकर चर्चा हुई और लिस्ट में तैयार की गई। लेकिन इस सूची में हर बार किसी न किसी तरह के विवाद के चलते इसे रोका गया। इस बार तो सूची जारी करने के बाद रोका गया है।

बीजेपी युवा मोर्चा की इस लिस्ट को लेकर विवाद हो गया। इसके बाद इसे वापस ले लिया गया।

बीजेपी युवा मोर्चा की इस लिस्ट को लेकर विवाद हो गया। इसके बाद इसे वापस ले लिया गया।

लिस्ट आने के बाद शुरू हुआ विवाद

प्रदेश बीजेपी युवा मोर्चा की कार्यकारिणी की लिस्ट जैसे ही जारी हुई, इसे लेकर विरोध शुरू हो गया। कई युवा नेताओं को जगह नहीं मिलने से उन्होंने इसका विरोध शुरू कर दिया। वहीं जिन्हें जगह मिली, उनका कहना है कि उन्हें उनके कद के अनुरूप पद नहीं दिया गया।

आरोप इस तरह के भी लग रहे हैं कि युवा मोर्चा कार्यकारिणी में कई ऐसे नेताओं को भी शामिल कर लिया गया है, जो कभी मोर्चे और पार्टी में सक्रिय ही नहीं रहे। कार्यकर्ताओं ने प्रदेश प्रभारी और सह प्रभारी तक भी अपना विरोध जता दिया।

लिस्ट जारी होने के बाद बीजेपी मीडिया प्रकोष्ठ ने इसे सभी सोशल मीडिया ग्रुप से डिलीट कर दिया।

लिस्ट जारी होने के बाद बीजेपी मीडिया प्रकोष्ठ ने इसे सभी सोशल मीडिया ग्रुप से डिलीट कर दिया।

उपचुनाव वाले 7 जिलों में से 4 शामिल नहीं

प्रदेश में इस साल विधानसभा की 7 सीटों पर उपचुनाव होना है। लेकिन, युवा मोर्चा की इस कार्यकारिणी में 4 विधानसभा सीटों के जिलों से कोई पदाधिकारी शामिल नहीं किया गया। कार्यकारिणी में दौसा, नागौर, डूंगरपुर और सलूंबर जिले से किसी युवा नेता को जगह नहीं दी गई थी।

वहीं मुख्यमंत्री के गृह जिले भरतपुर से भी केवल एक प्रदेश मंत्री बनाया गया। इसके अलावा कार्यकारिणी में अधिकतर जिलों को प्रतिनिधित्व नहीं मिला। बताया जाता है कि इसी कारण कार्यकारिणी की घोषणा के बाद इसे लेकर विवाद बढ़ गया।

प्रदेशाध्यक्ष बनने के 14 महीने बाद घोषित हुई थी कार्यकारिणी

प्रदेश बीजेपी युवा मोर्चा के अध्यक्ष अंकित चेची के नाम की घोषणा तत्कालीन बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी ने 7 जुलाई 2023 को की थी। उसके बाद प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव सम्पन्न हो गए। लेकिन, युवा मोर्चा की कार्यकारिणी नहीं बन सकी थी।

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ऐसे में इसे लेकर भी सवाल खड़े हो रहे थे। युवा मोर्चा सहित सीपी जोशी ने 7 संगठनों के अध्यक्षों की नियुक्ति की थी। सभी मोर्चों की कार्यकारिणी घोषित हो गई थी। लेकिन, युवा मोर्चा की कार्यकारिणी घोषित नहीं हो पाई थी। पूरे विवाद को लेकर युवा मोर्चा प्रदेशाध्यक्ष अंकित चेची से हमने कई बार संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

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