
मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 10 अप्रैल 2025 | जयपुर (अलवर से साहिल खान मेवाती सामाजिक कार्यकर्त्ता की रिपोर्ट) : नौगांव थाना क्षेत्र के तेलिया बास रघुनाथगढ़ मेवात क्षेत्र (राजस्थान) राज्य की एक माह की बच्ची का हत्या मामला राजस्थान विधानसभा के साथ-साथ भारत संसद में भी गूंजा। घटना 2 मार्च 2025 सुबह 6:00 बजे मासूम बच्ची अलिस्बा के पिता इमरान जाति मेव के घर बिना महिला कॉस्टबेल पुलिस कर्मी दबिश या रेड देती हैं, इस दौरान पुलिस कर्मियों के पैर तले कुचली एक माह की बच्ची अलिस्बा की हत्या हो जाती हैं।
मेवात आजादी की लड़ाई में इसका नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज था। मेवात के डेढ़ हजार से अधिक लोग प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में देश की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। 168 साल पहले मेवात के रूपडाका गांव में ‘जलियांवाला बाग’ जैसा नरसंहार हुआ था। अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की आवाज बुलंद करने की वजह से 19 नवंबर 1857 को इस गांव के 425 जांबाजों का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था। इस गांव की मीनार और शहीदों के नाम वाला बोर्ड मेवाती वीरों के अदम्य साहस की कहानी कह रहे हैं। हालांकि एक ही गांव में एक दिन में हुए इतने बड़े कत्लेआम को स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में तवज्जो नहीं मिली।
1871 का “आपराधिक जनजाति अधिनियम” (Criminal Tribes Act) ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा पारित एक विवादास्पद कानून था। इसके तहत कुछ जनजातियों और समुदायों को जन्म से ही अपराधी घोषित कर दिया गया था। इससे उन्हें कई तरह की पाबंदियों और निगरानी का सामना करना पड़ा।
‘मेवात में अब भी जारी है ‘द क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1872′ जैसी कार्यवाही’
इसके बाद मासूम बच्ची की मौत पर परिजन व समाज के जिम्मेदार लोग एसपी आवास के बाहर धरना देते है ओर साथ ही महिला पुलिसकर्मी की गैर मौजदूगी पर सवाल करते है। धरने के दौरान पांच पुलिसकर्मी लाइन हाजिर ओर इनमें से दो के खिलाफ मामला दर्ज होता हैं।

इसके अगले दिन राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष नेता टीकाराम जूली मासूम बच्ची के मामले को राजस्थान विधानसभा सदन में उठाते हुए कहते है कि क्या मासूम बच्ची की जान वापस ले आओगे? क्या उसको हक नहीं था, जिंदा रहने का क्या पुलिस का? यही काम रह गया लेकिन जो सबसे छोटा कर्मचारी है उस पर गाज गिरेगी!
मैं कहना चाहूंगा गृह राज्य मंत्री महोदय वह एसएचओ व डीएसपी उनकी जिम्मेदारी नहीं अपने कार्य क्षेत्र पर यह कार्यवाही जब हुई वह लोग एसपी के घर के बाहर बैठ गए जब आपको चेतना आई की हमें कार्यवाही करनी चाहिए।
मेवात क्षेत्र का रियासतकाल का ऐतिहासिक गांव कोलानी पाटन जिसे आज भी इसी नाम से जाना जाता हैं, लेकिन वर्तमान समय में सरकारी दस्तावेज में तेलिया बास रघुनाथगढ़ (नौगांवा थाना)के नाम से जाना जाता हैं। इसी गांव की मासूम बच्ची अलिस्बा है ओर इसी गांव में मासूम बच्ची अलिस्बा बैनर तले धरना प्रदर्शन चलता हे #justiceforalisba अलिस्बा को न्याय कब आदि नारे तकती के साथ।
“लूट-खसोट और अत्याचार को जड़ से खत्म करूंगा” किरोड़ी लाल मीणा
इसी धरना प्रदर्शन स्थल पर 17 मार्च 2025 को राजा हसन खां मेवाती के 499 वा शाहादत दिवस कार्यक्रम किया जाता हैं। इसी कार्यक्रम में राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री डॉ.किरोड़ी लाल मीणा शामिल होते है। पीड़ित वर्ग से मिलते है। कैबिनेट मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा ने कहा पुलिस ‘रबर का सांप’ बनाती हैं। लोगों को लूटती है। लूट-खसोट और अत्याचार को जड़ से खत्म करूंगा।
तेलियाबास में पुलिस दबिश के दौरान 20 दिन की मासूम की मौत मामले में तो पुलिस ने मना कर दिया कि वे उस घर में घुसे ही नहीं। पूर्व मंत्री नसरू खान ने मुझे प्रमाण दिये हैं। भरोसा रखे पुलिस के बड़े अधिकारियों से मिलकर जांच करवाऊंगा जिससे दिल्ली से जयपुर तक सच्चाई सामने आये।
मेवात में टाडा, पोटा, युएपीए व एनएसए आदि कानून के अपराधी नहीं है, फिर भी रात को घरों में दबिश दी जाती हैं। वह भी बिना महिला पुलिसकर्मी के अनेकों वारदात रोजाना होती है। साइबर ठगी, एंटी वायरस आदि अपराधी के नाम से होती है। इनमें बहुतायत महिला से बदतमीजी के केस सामने आते हैं।
साइबर ठगी, एंटी वायरस जैसे नाजायज शक के दायरे में सुबह 6 बजे इमरान जाति मेव के घर दबिश दी जाती हैं। कार्यवाही CTA एक्ट की तरह होती है। मासूम बच्ची की हत्या हो जाती हैं। भारत सविधान अनुच्छेद 13 के अनुसार इमरान व उसके परिवार के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया। राजस्थान सरकार ने या जब 1947 में भारत आजाद हुआ तब भारत में ‘द क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ 1924 प्रभावी रूप से कार्य कर रहा था। क्या आज यह मेवात में प्रभावी है।
उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की पहल पर सितम्बर 1949 को अनतसायनम आयंगर की अध्यक्षता में THE CRIMINAL TRIBES ACT ENQUIRY COMMITTEE गठित की गई। इसके पेज 28 पर मेव जाति के बारे में लिखा हुआ है।
इस समिति के आधार पर 31अगस्त 1952 इस काले कानून को समाप्त कर दिया गया ओर इसके स्थान पर 1959 में अदातन अपराध अधिनियम बना कर फिर से 1961 में राज्य सरकारों ने ऐसी जनजातियों की सूची जारी करना शुरू कर दिया।
कौन है मेव
वस्तुत: खुद को एक अलग सामाजिक-सांस्कृतिक जातीय समुदाय के रूप में पहचानते हैं और अपने मुस्लिम धर्म के बावजूद, उत्तर भारत में मीणा जैसे आदिम समुदायों से अपनी वंशावली का पता लगाते हैं। मेव, उत्तर-पश्चिमी भारत का एक मुस्लिम समुदाय है।इन्हें मेवाती भी कहा जाता है।
मेव और मीणा दोनों ही जातियां भारत की प्राचीन जातियों में से एक मानी जाती हैं। कई इतिहासकारों का मानना है कि मेव, मीणा जाति से ही संबंध रखते हैं। भारत पर मध्यकाल तक अधिकाँश विदेशी आक्रमण पश्चिम से हुए और उन्हें रोकने का काम मीणा-मेव जनजाति ने प्राचीन समय से निरन्तर किया जिसके कारण विदेशी आक्रमणकारियों और भारत (सिद्ध देश) के मूलनिवासियों के मध्य मीणा-मेव जनजाति एक सुरक्षा दीवार की तरह उपस्थिति रही।
प्रारम्भिक आर्य आक्रमण के समय भी इस जनजाति ने प्रतिरोध किया जिसका प्रमाण ऋग्वेदिककालीन दस राजा युद्ध में इस जनजाति द्वारा आर्य राजा सुदास के विरुद्ध युद्ध में भाग लेने का वर्णन मिलता है तो विदेशी आर्य ब्राह्मण परसुराम से मत्स्यराज के युद्ध का वर्णन भी ग्रंथों में मिल जाता है।
मीना जनजाति ने विदेशी आर्यों से ही नहीं बल्कि मुस्लिम आक्रमणकारियों से भी मुकाबला किया। कुछ क्षेत्रों में परास्त होने पर मीणा जनजाति से एक नई जाति मुस्लिम मेव का जन्म होता है। मेव वो मीणा थे जो मुस्लिम आक्रमणकारियों से परास्त हो कर इस्लाम धर्म को ग्रहण कर लेते है लेकिन अपनी मूल संस्कृति को नहीं छोड़ते। दरिया खान और शशिवदनी का विवाह सम्बन्ध इस बात का प्रमाण था की मेव जाति मीनाओं से ही निकली थी और उनमें विवाह सम्बन्ध आम बात थी।
कर्नल टॉड (AAR 1830 VOL- 1) ने मेवों और मेरों को मीना समुदाय का एक भाग माना है। कुछ का मानना है कि वे अरावली पर्वतमाला में रहने वाले मीनाओं के जैसे ही एक आदिम समूह थे। उनमें आंशिक रूप से गुर्जर और जाट समुदायों से जुड़े रहे हैं।
महाभारत के काल का मत्स्य संघ की प्रशासनिक व्यवस्था लौकतान्त्रिक थी जो मौर्यकाल में छिन्न- भिन्न हो गयी और इनके छोटे-छोटे गण ही आटविक (मेवासा ) राज्य बन गये। चन्द्रगुप्त मोर्य के पिता इनमें से ही थे।
समुद्रगुप्त की इलाहाबाद की प्रशस्ति में आटविक (मेवासे) को विजित करने का उल्लेख मिलता है। राजस्थान व गुजरात के आटविक राज्य मीना और भीलों के ही थे। इस प्रकार वर्तमान ढूंढाड़ प्रदेश के मीना राज्य इसी प्रकार के विकसित आटविक राज्य थे।
वर्तमान हनुमानगढ़ के सुनाम कस्बे में मीनाओं के आबाद होने का उल्लेख आया है कि सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने सुनाम व समाना के विद्रोही जाट व मीनाओं के संगठन ‘मण्डल ‘ को नष्ट करके मुखियाओ को दिल्ली ले जाकर मुसलमान बना ( E.H.I, इलियट भाग- 3, पार्ट- 1 पेज 245 ) दिया। इसी पुस्तक में अबोहर में मीनाओं के होने (पे 275 बही)का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि मीना प्राचीनकाल से सरस्वती के अपत्यकाओ में गंगा नगर हनुमानगढ़ एवं अबोहर-फाजिल्का में आबाद थे।
लक्षित जातियों के विरुद्ध जन्म से अपराधी कानून 19वीं सदी की शुरुआत से लेकर 20वीं सदी के मध्य तक लागू किए गए, जिसके तहत 1900 से 1930 के दशक तक पश्चिम और दक्षिण भारत में आपराधिक जातियों की सूची का विस्तार किया गया। सैकड़ों हिंदू समुदायों को आपराधिक जनजाति अधिनियम के अंतर्गत लाया गया। 1931 तक, औपनिवेशिक सरकार ने अकेले मद्रास प्रेसीडेंसी में 237 आपराधिक जातियों और जनजातियों को अधिनियम के अंतर्गत सूचीबद्ध किया।
आपराधिक जनजाति अधिनियम (CTA) जैसा अमानवीय एक्ट आज भी क्यों लागू है
1993 में राजकन्नू नामक एक आदिवासी व्यक्ति को झूठे मामले में फंसाया गया। पुलिस ने उसे प्रताड़ित किया और मार डाला। राजकन्नू की पत्नी ने वकील के. चंद्रू से मदद मांगी। जिन्होंने केस लड़ा और उन्हें न्याय दिलाया। फिल्म “जय भीम” इसी सच्ची घटना पर आधारित है।
दक्षिण भारत की आपराधिक जनजाति अधिनियम (CTA) की घटना राजकन्नु चंदू वकील 1993 में जिस पर जय भीम जैसी फिल्म/वेब सीरीज भी बनी हैं। उसी प्रकार उत्तरी भारत की मासूम बच्ची CTA एक्ट के तहत नौगांवा थाना (मेवात)शिकार हुई। वर्तमान समय में मासूम बच्ची का मामला राजस्थान राज्य तक सीमित नहीं रहता हैं, लोकसभा सदन में गूंजने के बाद राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बन गया।
बीते दिनों सीकर लोकसभा सांसद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) अमरा राम ने लोकसभा में मुद्दा उठाते हुए कहा कि देश की सरकार “बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ” का नारा देती हैं पुलिस भक्षक बनकर 2 मार्च सुबह छः बजे नौगांवा के तेलिया बास के इमरान खान घर में रेड डालती हैं। जबकि इमरान और उसके परिवार के किसी व्यक्ति के खिलाफ अब तक कोई मुकदमा दर्ज नहीं है।
पुलिस दरवाजा फांद कर अंदर प्रवेश करती है। इमरान की पत्नी दरवाजा खोलती हैं। पुलिस कि निर्दयता देखिए नवजात बच्ची को बूटों से कुचल दिया जाता हैं। मानवाधिकार के नाम पर रोटियाँ सकने वाले लोग मौन साधे हैं। पुलिस उसकी जांच करती हैं। इससे बड़ी अफसोस जनक और कोई बात नहीं हो सकती हैं। सासंद अमरा राम ने सभापति से घटना की सीबीआई से जांच कराये जाने की मांग की।
1965 लोकूर समिति, बालकृष्ण रेणके (JUNE 30,2008), भीकू रामजी इदाते (DECEMBER 2017) आदि कमिश्नर आयोग रिपोर्ट से आप जान सकते आपराधिक जनजाति अधिनियम (CTA) क्या था। इदाते आयोग (Idate Commission) रिपोर्ट में उत्तराखंड राज्य के मेव (MEO) जो हिंदू उन्हें DENOTIFIED (विमुक्त) कर रखा है, इसका मतलब CTA एक्ट धर्म नहीं जातियों को टारगेट करता है।
इदाते आयोग (Idate Commission), जिसे विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों (DNT, NT, SNT) के लिए राष्ट्रीय आयोग भी कहा जाता है, की रिपोर्ट भारत में इन समुदायों की स्थिति और उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालती है, साथ ही उनके उत्थान के लिए कई सिफारिशें भी करती है।
2023 में मेवात दंगा नूंह (हरियाणा) में होता हैं,जो पूरे देश भर में हिन्दू मुस्लिम धार्मिक दंगे के नाम से प्रसिद्ध होता है। लेकिन हरियाणा सरकार की हरियाणा पुलिस नागरिक सेवा धारा 154 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत लिखती हैं अज्ञात 500/600 युवक मेव मुस्लिम अपराधी।
मासूम बच्ची को लेकर जो राष्ट्रीय मुद्दा बना
अब समझ यह नहीं आता उसी हरियाणा पुलिस ने 249 मोस्ट वांडेट की लिस्ट निकाली। इसमें सोनीपत जिला 42 मोस्ट वांडेट के साथ राज्य टॉप पर व एक मोस्ट वांडेट के साथ नूंह लिस्ट में सबसे नीचे या शांति प्रिय जिला रहा है। हरियाणा सरकार ने नूंह जिले के बारे में मोस्ट वांडेट की जातीय जानकारी नहीं दी। लेकिन, मेवात दंगे में एक जाति विशेष मेव समुदाय को ही टारगेट किया गया।आखिरकार क्यों ?
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वर्तमान समय में मासूम बच्ची को लेकर जो राष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है। उसकी जाति मेव है, जिसकी हत्या CTA एक्ट के तहत कार्यवाही से हुई है। सिविल सर्विस में जितने आईपीएस (IPS) अफसरों का चयन होता हैं। उन्हें क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट’ का विषय पढ़ाया जाता है कि इन इन जातियों के लोगों के साथ आपको किस तरह से काम करना है और अगर मर्डर (हत्या), चोरी डकैती हो जाये तो किन लोगों को बंद करना है।
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उसी के आधार पर बोल सकते CTA एक्ट 1871, 1897, 1911, 1923 और 1924 शायद आज भी प्रभावी है, जो आज भारत सविधान अनुच्छेद 14 ओर 16 (4), अनुच्छेद 38 व अनुच्छेद 32 आदि पर प्रश्न वाचक चिन्ह लगाता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आदिम जनजातीय काबिले, गरीब और वंचित लोग आजाद हुए है या नहीं! और कब तक ऐसी मासूम बच्ची की हत्याएं होती रहेगी?