मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 23 जुलाई 2024 | जयपुर : आसपा कांशीराम राजस्थान के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा ने कहा है कि इस बार के बजट में कृषि प्रधान देश में कृषि और किसानों की उपेक्षा से समृद्ध भारत की आशाओं पर तुषारापात हुआ है।
वहीं बजट दिशाहीन है, युवाओं को तनाव से मुक्ति दिलाने और उनके परिजनों की चिताओं को समाप्त करने की दिशा होती तो इस बजट में कृषि और ग्रामोद्योगों के तालमेल से 65 करोड़ बेरोजगारों को आजीविका के अवसर प्रदान करना संभव था ।
‘एमएसपी गारंटी किसानों की आय दोगुनी करने पर भी बजट मौन’ प्रोफ़ेसर मीणा
प्रोफ़ेसर मीणा ने यह भी कहा कि यह स्थिति तो तब है जब पिछले 14 वर्षों से अधिक समय से किसान अपनी कमाई छोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी के कानून की लड़ाई लड़ रहे हैं । दूसरी और किसानों की आय दोगुनी करने के संबंध में भी बजट मौन है ।
उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में सिंचाई सर्वाधिक कारगर उपाय है। उसके संबंध में देशभर में ‘नदी से नदी जोड़ो’ के अंतर्गत 30 राष्ट्रीय महत्व की लिंक परियोजनाओं को प्राथमिकता देना तो दूर उनके लिए बजट में आवंटन तक नहीं है।
इन परियोजनाओं पर अनुमानित खर्च 8.44 लाख करोड़ का माना है जो बजट की कुल राशि का 17.50 प्रतिशत है । 75 वर्षों के अमृत काल के उपरांत भी कृषि योग्य कुल भूमि में से सिंचित क्षेत्र 39.55 प्रतिशत है जिसमें भी कुल सिंचित क्षेत्र में से सरकारी नहरों से होने वाली सिंचाई 22.72 प्रतिशत है ।
‘उपजों के लाभकारी मूल्य दिलाने की चर्चा तक नहीं’ प्रोफ़ेसर मीणा
प्रोफ़ेसर मीणा इस बजट में किसानों पर ध्यान केन्द्रित रखने की बात तो कही गई किंतु बजट में उनकी उपजों के लाभकारी मूल्य दिलाने की चर्चा तक नहीं है, जबकि सरकार निरंतर इसकी घोषणा करती रहती है । इतना ही नहीं तो घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं होने के कारण किसानों को उनकी उपजो के लागत मूल्य भी प्राप्त नहीं होते हैं।
यथा – इस वर्ष सरसों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से 1450 रुपए प्रति क्विंटल तक का घाट उठाकर बेचनी पड़ी, वही मूंग में एक क्विंटल पर 3000 रूपए तक के दाम कम प्राप्त हुए। बाजरा जैसे मोटे अनाज की तो राजस्थान जैसे प्रमुख उत्पादक राज्य में खरीद ही आरंभ नहीं हुई ।
मोटे अनाज दलहन और तिलहन की उपज की भेद भाव पूर्ण खरीद नीति के कारण किसान उन मूल्यों से भी वंचित है, जिन्हें सरकार न्यूनतम मानती है । मूंग, चना और तिलहन’ के कुल में से 75 प्रतिशत उत्पादों को तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की परिधि से बाहर धकेला हुआ है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी किसान की आय को स्थिर नहीं रख सकी – प्रोफ़ेसर मीणा
सर्वाधिक जोखिम भरा क्षेत्र होने से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी किसान की आय को स्थिर नही रख सकी । इस कारण 2016-17 से वर्ष 2020-21 तक पांच वर्षों की अवधि में कंपनियों को प्रति वर्ष औसत लाभ 6 करोड़ 97 लाख 22 हजार रुपए प्राप्त हुए है।
इससे ‘धन किसानों का, तंत्र सरकारों का लाभ कंपनियों का’ के कारण ही यह लोकोक्ति चरितार्थ हुई। जिन किसानों से प्रीमियम वसूला जाता है उनकी फसलों की क्षति होने पर क्लेम प्राप्ति के लिए किसानों की जूतिया टूट जाती है लेकिन उनको क्लेम की राशि प्राप्त नही होती है।
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यह योजना किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रभाव में लाई गई थी लेकिन उसके परिणाम उसके प्रयोजन के विपरीत है। सरकार की नीतियों के इस उदहारण से सरकार की नीयत की जानकारी हो जाती है। भारत सरकार 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का संकल्प दोहरा रही है, जो किसानों की समृद्धि के बिना संभव नहीं है। इसलिए यह बजट समृद्ध भारत की आशाओं पर तुषारापात करने वाला है।
75 वर्षों के अमृत काल के उपरांत भी गरीब को छप्पर बनाने में सक्षम नहीं बनाया – प्रोफ़ेसर मीणा
3 करोड़ मकान बना कर देना तो ‘गरीब को छप्पर’ योजना के अनुसरण में ही चल रहा है । 75 वर्षों के अमृत काल के उपरांत भी गरीब को छप्पर बनाने में सक्षम नहीं बनाया गया बल्कि उसे हाथ पसारने वाला ही रखा गया है । यह बजट की दिशा की खोट है। यदि बजट की दिशा सही होती तो वर्ष 2047 में समृद्ध भारत के लिए ग्राम राज की नीतियों की ओर कदम रखे जाते।