इनकम टैक्स रेड में बीजेपी नेता के घर 50 किलो गोल्ड 137 करोड़ की अघोषित आय

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 02 दिसंबर 2024 | जयपुर : उदयपुर के ट्रांसपोर्ट कारोबारी टीकम सिंह राव के घर समेत 23 ठिकानों पर 28 नवंबर को शुरू हुई इनकम टैक्स विभाग की रेड 4 दिन चली। अब तक 137 करोड़ रुपए की आय अघोषित मानी गई है। 95 करोड़ रुपए का कोई हिसाब किताब नहीं मिला। 4 करोड़ कैश जब्त किया गया है।

इनकम टैक्स रेड में बीजेपी नेता के घर 50 किलो गोल्ड 137 करोड़ की अघोषित आय

इनकम टैक्स के अधिकारियों ने सोमवार को कहा कि राजस्थान में अब तक एक रेड में इतनी बड़ी मात्रा में गोल्ड पहली बार मिला है। इनकम टैक्स की रेड 1 दिसंबर को खत्म हुई। जब्त किए दस्तावेज की जांच जारी है। अब तक 50 किलो गोल्ड बरामद हुआ, जिसमें से 45 किलो अघोषित था। इसे भी जब्त कर लिया गया है।

इनकम टैक्स के छापे में पहली बार पकड़ा 45KG सोना

यह कार्रवाई उदयपुर के उदयपुर गोल्डन ट्रांस्पोर्ट लॉजिस्टिक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मालिक टीकम सिंह राव और छोटे भाई गोविंद सिंह राव के ठिकानों पर की गई। गोविंद सिंह राव बांसवाड़ा में भाजपा जिलाध्यक्ष रह चुका है, जबकि टीकम सिंह ट्रांसपोर्ट बिजनेस से जुड़ा है। उस पर अवैध ट्रांसपोर्टेशन के आरोप हैं।

उदयपुर में ट्रांसपोर्ट कारोबारी का ऑफिस।
उदयपुर में ट्रांसपोर्ट कारोबारी का ऑफिस

काली कमाई लग्जरी कारों, होटल व प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट की

आयकर अधिकारियों ने बताया- टीकम सिंह ने काली कमाई का अधिकांश हिस्सा लग्जरी कारों, होटल कारोबार और प्रॉपर्टी में निवेश किया है। इसे लेकर दस्तावेज भी मिले हैं। जब्त दस्तावेज की जांच के बाद ब्लैक मनी और अधिक बढ़ सकती है।

उदयपुर में ट्रांसपोर्ट कारोबारी का घर।
उदयपुर में ट्रांसपोर्ट कारोबारी का घर

जब्त सोने की मार्केट वैल्यू 38 करोड़

इनकम टैक्स अधिकारी बोले- हमने एक ही रेड में 45 किलो गोल्ड जब्त किया। इसकी बाजार कीमत करीब 38 करोड़ रुपए है। 28 नवंबर को ट्रांसपोर्ट कंपनी के उदयपुर सहित जयपुर, बांसवाड़ा, मुंबई और अहमदाबाद के दफ्तरों, घर, फार्म हाउस, रिसॉर्ट सहित 23 ठिकानों पर रेड डाली गई थी।

आईटी की टीम चार दिन (28 नवंबर से लेकर 1 दिसंबर) तक उदयपुर समेत कारोबारी के 23 ठिकानों पर रेड कार्रवाई की।
आईटी की टीम चार दिन (28 नवंबर से लेकर 1 दिसंबर) तक उदयपुर समेत कारोबारी के 23 ठिकानों पर रेड कार्रवाई

दूसरे दिन 29 नवंबर को टीकम सिंह के उदयपुर स्थित घर से 25 किलो सोना और 3 करोड़ रुपए मिले थे। 30 नवंबर को 7 बैंक लॉकर खोले गए। इनमें से भी 25 किलो सोना और 2 करोड़ रुपए कैश मिले। इस तरह कुल 50 किलो सोना 5 करोड़ रुपए नकद मिले थे। इसमें 5 किलो सोना और एक करोड़ रुपए घोषित आय में हैं।

छोटा भाई बांसवाड़ा भाजपा जिलाध्यक्ष रह चुका

टीकम सिंह के छोटे भाई गोविंद सिंह राव के आवास पर भी सर्च कार्रवाई चली। गोविंद सिंह बांसवाड़ा में कंपनी का कामकाज संभालता है। इनकम टैक्स को इस कार्रवाई में कार्रवाई में 137 करोड़ से ज्यादा की अघोषित संपत्ति का खुलासा हुआ है। जब्त दस्तावेजों की जांच के बाद इसमें इजाफा हो सकता है।

उदयपुर में कारोबारी के ऑफिस में दस्तावेज की जांच करती टीम।
उदयपुर में कारोबारी के ऑफिस में दस्तावेज की जांच करती टीम

योग गुरु बाबा रामदेव के साथ तस्वीर

टीकम सिंह सामाजिक कार्यों में भी एक्टिव रहता है। हालांकि सोशल मीडिया पर उसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है। फेसबुक पर राव राजपूत समाज की एक पोस्ट में टीकम सिंह की तस्वीर शेयर की गई है। तस्वीर 24 अप्रैल 2018 की है। इसमें उदयपुर में गोशाला के लिए शेल्टर बनाने के लिए टीकम सिंह राव ने पत्नी के साथ शिलापूजन किया था। इस दौरान योग गुरु बाबा रामदेव भी मौजूद थे।

उदयपुर में 2018 में हुए एक कार्यक्रम में योग गुरु बाबा रामदेव के साथ ट्रांसपोर्ट कारोबारी टीकम सिंह राव और उनकी फैमिली।

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उदयपुर में 2018 में हुए एक कार्यक्रम में योग गुरु बाबा रामदेव के साथ ट्रांसपोर्ट कारोबारी टीकम सिंह राव और उनकी फैमिली।

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‘अरावली प्रदेश का निर्माण’ पूर्वी राजस्थान के सर्वांगीण विकास का समाधान

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 29 मार्च 2025 | जयपुर : सबसे बड़े भू-भाग वाला प्रदेश- राजस्थान का क्षेत्रफल 3.42 लाख वर्ग किलोमीटर है जहां 6.85 करोड़ जनसंख्या निवास करती है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत का आठवां बड़ा राज्य है व भू-भाग की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य। सात संभाग, 33 जिले, 41353 ग्राम, उत्तर से दक्षिण की लंबाई 826 वर्ग किमी व पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 869 वर्ग किमी है।

‘अरावली प्रदेश का निर्माण’ पूर्वी राजस्थान के सर्वांगीण विकास का समाधान

भारत के अलग अलग भागों में नए राज्यों के निर्माण की मांग उठ रही है जिनमें अरावली प्रदेश सबसे प्रबल है। राष्ट्रीय एकता व अखण्डता, सामरिक, आर्थिक, राजनैतिक, कृषि, उद्योग इत्यादि की विपुल संभावनाओं के मद्देनजर अरावली प्रदेश निर्माण की दावेदारी सबसे प्रबल है। भारत का सबसे बड़ा भूभाग राजस्थान जो दुनियां के 110 देशों से भी क्षेत्रफल में बड़ा है जिसको बीचों बीच से अरावली पर्वतश्रेणी ने दो भागों में विभाजित किया है जिसका उत्तरी पश्चिमी रेगिस्तानी थार का अरावली स्थल ही अरावली प्रदेश के नाम से जाना जाता है।

‘अरावली प्रदेश का निर्माण’ पूर्वी राजस्थान के सर्वांगीण विकास का समाधान

विश्वनाथ सुमनकेंद की सैद्धांतिक सहमति के बाद तेलंगाना ऐसा मुद्दा बन गया है, जिसके बल पर राजनीतिक दल काफी लंबे समय तक सियासी मैदान में दौड़ लगा सकते हैं। तेलंगाना के मुद्दे ने उन राजनीतिक दलों और गुटों को दोबारा जिंदा कर दिया है, जो छोटे राज्य बनाने के हिमायती हैं और जिनकी राजनीति हाल तक उनके असर वाले इलाकों में ही धूल फांक रही थी। आंध्र के बंटवारे के साथ यूपी को तीन हिस्सों में तोड़ने, महाराष्ट्र में विदर्भ, पश्चिम बंगाल में गोरखा लैंड और असम में बोडो लैंड बनाने की आवाज भी तेज हो गई। पृथक गोरखा लैंड के मुद्दे पर केंद्र सरकार, गोरखा जन मुक्ति मोर्चा और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच त्रिपक्षीय वार्ता शुरू हो चुकी है। पर इन सबके साथ, यह बहस भी गरमा गई है कि विकास के लिए छोटे राज्यों का निर्माण होना जरूरी है या यह मसला किसी वर्ग, नस्ल या क्षेत्र विशेष के लोगों को संतुष्ट करने का आसान जरिया भर है।

आजादी के बाद रजवाड़ों के भारतीय गणराज्य में विलय के साथ नए राज्यों के गठन का आधार तैयार होने लगा था। 1953 में स्टेट ऑफ आंध्र वह पहला राज्य बना, जिसे भाषा के आधार पर मद्रास स्टेट से अलग किया गया। इसके बाद दिसंबर 1953 में पंडित नेहरू ने जस्टिस फजल अली की अध्यक्षता में पहले राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया। एक नवंबर 1956 में फजल अली आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 लागू हो गया और भाषा के आधार पर देश में 14 राज्य और सात केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए। मध्य प्रांत के शहर नागपुर और हैदराबाद के मराठवाड़ा को बॉम्बे स्टेट में इसलिए शामिल किया गया, क्योंकि वहां मराठी बोलने वाले अधिक थे। इसके बाद लगातार कई राज्यों का भूगोल बदलता रहा और नए तर्कों व मानकों के आधार पर नए राज्य बनते गए। त्रिपुरा को असम से भाषा के आधार पर अलग किया गया तो मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड का गठन नस्ल के आधार पर किया गया।

सन 2000 में उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ के बंटवारे के आधार भी विकास नहीं बल्कि परोक्ष रूप से नस्ल और भाषा ही बनी। आज भारत में 28 राज्य और 6 केंद्रशासित प्रदेश हैं।नया राज्य बनाने से पहले उन राज्यों की स्थिति का जायजा लिया जाना चाहिए, जो बड़े-बड़े दावों के आधार पर बनाए गए थे। यह आकलन का विषय है कि मूल प्रदेश से अलग होने के बाद क्या उन राज्यों में क्रांतिकारी बदलाव आए? निर्माण के दशकों बाद भी पूर्वोत्तर के राज्य विकास की बाट जोह रहे हैं। मणिपुर और नगालैंड में अलगाववादियों को नियंत्रित करना सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। आज इन राज्यों की सरकारें पांच साल पूरा कर लेती हैं, तो उसे अचीवमेंट माना जाता है।आंकड़ों के आधार पर यह दावा किया जा सकता है कि यूपी से अलग होने के बाद उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो गई।

 बिहार में प्रति व्यक्ति आय 10,570 रुपये ही है जबकि झारखंड में यह आंकड़ा 20,177 रुपये तक पहुंच गया है। छत्तीसगढ़ में प्रति व्यक्ति आय 29,000 है, जबकि मध्य प्रदेश में औसत आय 18,051 रुपये ही है। आंकड़े जो चाहे कहें, मगर इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस कागजी समृद्धि के पीछे राज्य के विकास की जगह बंटवारे के बाद जनसंख्या में आई औसत कमी का योगदान अधिक है। इन राज्यों की जमीनी हालात में कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ है। इन राज्यों की सरकारों ने न तो सिस्टम में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है और ऐसी योजनाएं बनाई हैं, जिनसे प्रदेश की जनता की स्थिति में सुधार हुआ हो। आज भी छत्तीसगढ़ और झारखंड में नक्सली हमले जारी हैं। वहां के निवासियों को उन दिक्कतों से निजात नहीं मिली है, जो 2000 से पहले वहां थीं।

वहां आज भी लोग स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क बिजली, पानी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। चाहे पंजाब से अलग हुआ हरियाणा हो या उत्तराखंड, ये राज्य आर्थिक मदद के लिए हमेशा दिल्ली की ओर टकटकी लगाए रखते हैं। इन सबके बीच इन प्रदेशों में लालबत्ती लगी गाड़ियों और नए सरकारी दफ्तरों की तादाद में खासा इजाफा हुआ। संसाधनों की बंदरबांट पहले की तरह जारी है, बस, बांटने वालों के चेहरे बदल गए हैं। सचाई यह है कि नए राज्यों की मांग के पीछे दिए जाने वाले ज्यादातर तर्कों का स्वरूप नकारात्मक है। मसलन, हरित प्रदेश की मांग इसलिए की जा रही है कि भारी राजस्व जुटाने के बाद भी वेस्टर्न यूपी को बुंदेलखंड और पूर्वांचल की समस्याओं का साझा बोझ उठाना पड़ रहा है। गोरखा लैंड में बसने वाले बंगाली नहीं होंगे। विदर्भ और तेलंगाना को उपेक्षित रहने का मलाल है। इन तर्कों के साथ चल रहे आंदोलनों ने वैमनस्य की स्थिति पैदा कर दी है। एक हकीकत यह भी है कि इन राज्यों में पृथक राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संगठनों के पास विकास के लिए स्वीकार्य रोडमैप नहीं है।

सवाल है कि क्या गोरखा लैंड चाय और पर्यटन के सहारे अपने खर्चे जुटा लेगा। महाराष्ट्र से अलग होने के बाद विदर्भ के किसानों की स्थिति सुधर जाएगी? बुंदेलखंड और पूर्वांचल का पेट कैसे भरेगा? अगर इन नए प्रदेशों को गठन कर भी दिया जाए, तो वहां विकास का खाका खींचने में ही कई दशक गुजर जाएंगे। इसलिए झारखंड, उत्तराखंड और नॉर्थ ईस्ट से सबक लेने की जरूरत है। अगर इन राज्यों में डिवेलपमेंट की सही प्लानिंग की गई होती और बंटवारे का मकसद सियासी लाभ लेना नहीं होता तो इन नए नवेले राज्यों की सूरत कुछ और होती। राज्य छोटे हों या बड़े, यदि शासन करने वालों की नीति और नीयत साफ हो तो राज्य का आकार मायने नहीं रखता। अमेरिका में 50 राज्य हैं जबकि उसकी आबादी भारत से कम है। सही गवर्नेंस के लिए वहां भी एक नए राज्य की गठन की तैयारी चल रही है, बिना शोर-शराबे के। वहां किसी राजनीतिक दल को अनशन और आंदोलन करने की जरूरत नहीं पड़ी। वहां की पॉलिटिकल पार्टियों में इसके लिए क्रेडिट लेने मारामारी भी नहीं है। भारत में भी छोटे राज्य बनाने में कोई हर्ज नहीं, बशर्ते राज्यों का गठन विकास के लिए हो, न कि किसी जाति या और राजनीतिक गुट को खुश करने के लिए।

क्यों जरुरी है राजस्थान का “मरु और अरावली प्रदेश” में विभाजन

मरुप्रदेश के 20 जिलों में देश का 27 प्रतिशत तेल, सबसे महंगी गैस, खनिज पदार्थ, कोयला, यूरेनियम, सिलिका आदि का एकाधिकार है। एशिया का सबसे बड़ा सोलर हब और पवन चक्कियों से बिजली प्रोडक्शन यहाँ हो रहा है। गौरतलब है कि एक तरफ जहां राजस्थान में प्रति व्यक्ति तो ज्यादा है, लेकिन पश्चिम राजस्थान के जिलों में रहने वालों का एवरेज निकाला जाये तो उनकी आय काफी कम है। राजस्थान की भौगोलिक और सांस्कृतिक इकाईयों में असमानता, आर्थिक विकास और राजनैतिक विमूढ़ता का सबसे ज्यादा नुकसान इस इलाके को उठाना पड़ा है।

राजस्थान के इस 40.11% भूभाग के निवासियों के साथ विकास की प्रक्रिया में कभी न्याय नहीं हो पाया। अरावली प्रदेश मुक्ति मोर्चा के संयोजक प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा का कहना है कि देश का विकास छोटे राज्यों से ही हो सकता है। राज्य जब तक बड़े राज्य रहे हैं, तब तक विकास से महरूम रहे हैं। झारखंड, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड बेहतरीन उदहारण है, क्योंकि बिहार, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में रहते हुए विकास की डगर वहां तक नहीं पहुँच पायी थी। मगर जैसे ही अलग राज्य बने तो विकास की राह में ये राज्य अपने मूल राज्यों से आगे निकल गये।

अलग अरावली प्रदेश की तार्किक माँग

अलग अरावली प्रदेश की माँग करने का तर्क है कि पूर्वी राजस्थान का ये क्षेत्र राज्य के अन्य हिस्सों के मुकाबले शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग और आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है। इन जिलों से अरबों रुपयों की रॉयल्टी सरकार कमा रही है, लेकिन इन जिलों में पीने का पानी, रोजगार, बेहतर स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा, स्पोर्ट्स और सैनिक स्कूल, खेतों को नहरों का पानी जैसी समस्यायों से आम जनता जूझ रही है।

इसका प्रमुख कारण भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति अलग है। इस हिस्से की जलवायु, कृषि, उद्योग और जनसंख्या का वितरण भी अलग है। यदि यह भू-भाग नए राज्य के रूप में सामने आयेगा तो इस क्षेत्र के विकास में तेजी आयेगी। “अरावली में बग़ावत” शीर्षक पुस्तक के लेखक प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा ने लिखा है कि अरावली भू-भाग का सम्पूर्ण विकास तभी होगा जब अरावली प्रदेश अलग राज्य बनेगा। अरावली के संसाधनों की लूट रुकेगी।

प्रोफ़ेसर मीणा कहते हैं, ”आज़ादी से पहले जहां अरावली का इलाक़ा विकास की दौड़ में शामिल था। वहीं आज़ादी के बाद सभी पार्टियों की सरकारों और चतुर-चालाक मारवाड़ी व्यवसाइयों ने इसके प्रति बेरुख़ी दिखायी। जबकि प्राकृतिक संसाधनों प्रचुरता से ये एरिया ख़ूब मालामाल है। खनिज के हिसाब से देखें तो इस क्षेत्र में कोयला, जिप्सम, क्ले और मार्बल निकल रहा है। वहीं, जोधपुर जैसे शहर में पीने का पानी अरावली क्षेत्र से ट्रेन से भर-भर कर ले जाकर वहाँ के लोगों की प्यास बुझायी जाती थी। बीसलपुर बाँध का पानी पाली, अजमेर और जोधपुर के गाँवों तक पहुँचाया जा रहा है और अब जैसी ही बाड़मेर में तेल और गैस के भंडार मिले हैं, वैसे ही मरू प्रदेश की माँग जोर-शोर से उठायी जा रही है। जबकि राजस्थान के मुख्यमंत्रियों और उनकी सरकारों ने अरावली भू-भाग (पूर्वी राजस्थान) से रेवेन्यू तो भरपूर लिया है, लेकिन विकास को हमेशा अनदेखा किया है।

राजस्थान के बजट में सकल राजस्व और आमदनी

राजस्थान के बजट में सकल राजस्व और आमदनी का 70% हिस्सा अरावली प्रदेश से आता है और उसको 80% से भी अधिक पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तान में खर्च किया जाता रहा है। इसके समर्थन में आंकड़े गवाह हैं, जो बताते हैं कि कैसे जोधपुर को शिक्षा की नगरी बनाया गया। एक-आध को छोड़कर सारे-के-सारे केंद्रीय शिक्षण संस्थानों (20 से अधिक) को जोधपुर ले जाया गया। अरावली के दक्षिणी छोर से लेकर उत्तरी छोर तक 500 किलोमीटर में एक भी केंद्रीय संस्थान नहीं है। एक तरफ, नर्मदा का पानी रेगिस्तान को हरा-भरा कर रहा है और वहीं दूसरी तरफ, अरावली प्रदेश (भू-भाग) एक-एक बूँद पानी के लिए तरस रहा है।

अरावली प्रदेश के भोले-भाले लोग तो यह भी नहीं जानते कि कैसे मंडरायल (करौली) में लगने वाली सीमेंट फेक्ट्री को जैतपुर (पाली) ले जाया गया जबकि मंडरायल में सब कुछ फाइनल हो चुका था। सवाई माधोपुर सीमेंट फेक्ट्री को कैसे बंद किया गया।” जब वर्ष 2000-01 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 03 राज्य नए बनाये तो उस समय के पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत जी ने भी पत्र लिख कर कहा था कि पूरे राजस्थान का विकास व देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए राज्य के दो भाग किये जाये। इसके बाद भी समय समय पर अनेको क्षेत्रीय नेताओ ने इस माँग का समर्थन किया लेकिन पार्टियों की गुलामी के चलते मुखर विरोध नहीं कर सके।

चहुँओर चमकेगी उन्नति, जब बनेगा अरावली प्रदेश

अरावली पर्वत माला भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है, जिसकी गिनती विश्व की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में भी होती है। यह भूवैज्ञानिक दृष्टि से अरबों वर्षों पुरानी है और भारतीय उपमहाद्वीप के भूगोल और इतिहास का अभिन्न हिस्सा है। राजस्थान इस पर्वतमाला का मुख्य केंद्र है। अरावली यहाँ के परिदृश्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे राज्य के पश्चिमी और पूर्वी भागों को विभाजित करने वाली प्राकृतिक दीवार भी कहा जाता है। पूर्वी राजस्थान; अरावली के पूर्व में स्थित यह क्षेत्र अपेक्षाकृत उपजाऊ है और यहाँ मैदानी भाग पाये जाते हैं। पश्चिमी राजस्थान; अरावली के पश्चिम में थार मरुस्थल स्थित है, जो राज्य के लगभग 60% क्षेत्र को कवर करता है। पूर्वी राजस्थान में कृषि के लिए उपयुक्त भूमि है, जहाँ रबी और खरीफ दोनों फसलें उगाई जाती हैं। पश्चिमी राजस्थान का अधिकांश भाग मरुस्थलीय या अर्द्धमरुस्थलीय है।

अरावली पर्वत श्रृंखला की कुल लंबाई गुजरात से दिल्ली तक 692 किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 550 किलोमीटर राजस्थान में स्थित है। अरावली पर्वत श्रृंखला का लगभग 80% विस्तार राजस्थान में 22 जिलों में पूर्ण रूप से ओर कुछ जिलों में थोड़ा सा हिस्सा फैला हुआ है। अरावली प्रदेश के 22 जिलों में जयपुर, दौसा, करौली, धौलपुर, भरतपुर, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी, झालावाड़, बारां, अलवर, टोंक, भीलवाड़ा, सीकर, झुंझुनूं , चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, राजसमंद, उदयपुर, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर शामिल होंगे।

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दिल्ली हाईकोर्ट जस्टिस वर्मा के घर जलते नोटों का अनकट वीडियो

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 मार्च 2025 | जयपुर : दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले के बाहर रविवार को सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों को 500-500 रुपए के अधजले नोट मिले। सफाईकर्मियों ने बताया कि 4-5 दिन पहले भी हमें ऐसे नोट मिले थे। ये नोट सफाई के दौरान सड़क पर पत्तों में पड़े हुए थे।

दिल्ली हाईकोर्ट जस्टिस वर्मा के घर जलते नोटों का अनकट वीडियो

इससे पहले 21 मार्च को जस्टिस वर्मा के बंगले से 15 करोड़ रुपए कैश मिलने की बात सामने आई थी। 14 मार्च को होली के दिन उनके घर में आग लग गई थी। फायर सर्विस की टीम जब उसे बुझाने गई तो स्टोर रूम में उन्हें बोरियों में भरे 500-500 रुपए के अधजले नोट मिले थे।

दिल्ली हाईकोर्ट जस्टिस वर्मा के घर जलते नोटों का अनकट वीडियो

22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली के घर से मिले कैश की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है। इसमें कैश का वीडियो भी है। साथ ही तीन तस्वीरें भी जारी की गई हैं। इसमें 500 रुपए के जले हुए नोटों के बंडल दिखाई दे रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया कि 14 मार्च को जस्टिस के घर आग लगने के बाद फायर ब्रिगेड की टीम वहां पहुंची थी। आग पर काबू पाने के बाद 4-5 अधजली बोरियां मिलीं, उनके अंदर नोट भरे हुए थे। इस पर जस्टिस वर्मा ने कहा कि ये नोट उन्होंने या उनके परिवार के लोगों ने नहीं रखे। स्टोर रूम में कोई भी आ जा सकता है। मुझे फंसाया जा रहा है।

21 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने इंटरनल इन्क्वायरी के बाद सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी थी। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा को ज्यूडिशियल काम देने से मना कर दिया है। अब जस्टिस वर्मा के 6 महीने की कॉल डिटेल्स की जांच की जाएगी।

दिल्ली HC जज के सरकारी बंगले में आग लगी। वहां दमकल कर्मियों को जले हुए 500 रुपए के नोटों से भरी बोरियां मिलीं। - Dainik Bhaskar

दिल्ली HC जज के सरकारी बंगले में आग लगी। वहां दमकल कर्मियों को जले हुए 500 रुपए के नोटों से भरी बोरियां मिलीं। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से 15 करोड़ कैश मिलने का वीडियो जारी किया है। 65 सेकेंड के वीडियो में नोटों से भरी बोरियां दिखाई दे रही हैं।

घटना 14 मार्च की है। बंगले में आग की सूचना पर फायर ब्रिगेड पहुंची थी। वहीं दमकल कर्मचारियों को ये नोट मिले। रकम करीब 15 करोड़ थी। इस मामले में CJI ने 3 मेंबर की जांच कमेटी बना दी है और जस्टिस वर्मा को कोई भी काम न देने को कहा है।

जांच का समय तय नहीं, 3 सदस्यीय कमेटी बनी

CJI खन्ना के आदेश पर बनाई गई तीन सदस्यीय जांच समिति में जस्टिस शील नागू (पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस), जी एस संधावालिया (हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस) और कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं। जांच समिति कितने समय में जांच पूरी करेगी। इसके लिए कोई सीमा तय नहीं की गई है।

उनके मोबाइल फोन की जांच करने के आदेश भी दिए गए हैं। इस मामले में जस्टिस वर्मा ने कहा है कि घटना के समय वे घर में मौजूद नहीं थे और उन्हें फंसाया जा रहा है। अगर जांच कमेटी इस नतीजे पर पहुंचती है कि आरोप सही हैं, तो जस्टिस वर्मा को हटाने की कार्यवाही शुरू करने के लिए CJI संजीव खन्ना ये कदम उठा सकते हैं…

  • CJI संजीव खन्ना जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की सलाह दे सकते हैं।
  • अगर जस्टिस वर्मा CJI की सलाह को नहीं मानते हैं तो वे दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को उन्हें कोई काम न देने का आदेश जारी करेंगे।
  • इसके बाद CJI, राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री को तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट देकर उसके नतीजे बताएंगे। जिसके बाद जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की कार्यवाही शुरू हो सकेगी।

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