India’s decision to upgrade its relations with Kuwait

MOOKNAYAK MEDIA BUREAU | December 28, 2024 | Delhi: India’s decision to upgrade its relations with Kuwait to a strategic partnership and Prime Minister Narendra Modi’s visit over the weekend to the West Asian country, the first by an Indian premier in more than four decades, were timely signals of its importance in the extended neighbourhood.

India’s decision to upgrade its relations with Kuwait

After all, Kuwait is home to one million Indians, one of the largest concentrations of citizens in the region, and the sixth- largest crude supplier to India. Kuwait is also the current chair of the Gulf Cooperation Council (GCC), with which India is negotiating a free trade deal. As one of India’s primary sources of oil and home to more than nine million Indians, West Asia is central to India’s foreign policy concerns.

India’s decision to upgrade its relations with Kuwait

India’s outreach to West Asian powers has coincided with a shift by those countries from their long-standing proximity to Pakistan because of an understanding of the greater benefits of strategic and economic ties with New Delhi.

This outreach comprises both bilateral deals with key countries such as Saudi Arabia and the United Arab Emirates (UAE), and multilateral engagements such as the India-Middle East-Europe Economic Corridor. New Delhi has managed to build these ties without upsetting any of the major fault lines that shape relations among various countries in West Asia.

Strategic ties between India and Kuwait received a boost from the finalisation of an agreement on defence cooperation, which envisages joint exercises, training, collaboration in the defence industry and supply of military equipment.

Given that the Kuwait Investment Authority has already pumped more than $10 billion into India, the two countries decided to explore new opportunities in areas such as technology, tourism, health care and food security.

They also decided to fast-track negotiations for a bilateral investment treaty. There was also consensus on enhancing cooperation in exploration and production of oil and gas, petrochemical industries, renewable energy, refining, and Kuwait’s participation in India’s strategic petroleum reserve programme.

While India’s relations with Saudi Arabia and the UAE, the main players in West Asia, are better than ever, it is sound policy to develop equally close ties with the other Arab States at a time when a lot of Indian interests are closely tied to developments in the region.

The welfare of Indian expatriates and their remittances are crucial for New Delhi. Futuristic plans for collaboration in energy security and food security will help provide a new direction to the age-old ties between India and Kuwait.

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MOOKNAYAK MEDIA

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सऊदी अरब और कुवैत में इंडिया के लिए कौन बेहतर

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 दिसंबर 2024 | दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) पिछले सप्‍ताह अरब देश कुवैत की यात्रा पर थे। यह करीब 43 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की कुवैत की यात्रा थी। पीएम मोदी ने खाड़ी देश के मामले में आखिर कुवैत को क्‍यों चुना (Who is better for India between Saudi Arabia and Kuwait) और अरब के दूसरे सबसे चर्चित देश यूएई यानी सऊदी अरब से तुलना की जाए तो दोनों देशों में ज्‍यादा अमीर कौन है।

सऊदी अरब और कुवैत में इंडिया के लिए कौन बेहतर

सऊदी अरब और कुवैत में किसके पास ज्‍यादा बड़ा तेल भंडार है और किसकी करेंसी सबसे मजबूत है। वैसे तो भारत के सभी खाड़ी देशों कुवैत, कतर, यूएई और सऊदी अरब के साथ अच्‍छे संबंध हैं। इन देशों में लाखों भारतीय काम भी करते हैं।

सऊदी अरब और कुवैत में इंडिया के लिए कौन बेहतर

इससे पहले पीएम मोदी 2 बार सऊदी अरब का दौरा भी कर चुके हैं। पहली बार साल 2016 में गए थे और फिर 2019 में गए थे। ऐसे में यह सवाल सहज ही उठता है कि आखिर इन दोनों खाड़ी देशों में से ज्‍यादा मतबूत कौन है। दोनों देशों में भारत के लिए रणनीतिक रूप से ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण (ما هو الأفضل للعرب والكويت في الهند) कौन है।

इंडिया के लिए कौन बेहतर

अगर सऊदी अरब (السُّعُودِيَّة) और कुवैत (الْكُوَيْت‎) के भारत के साथ व्‍यापारिक रिश्‍तों को देखा जाए तो रणनीतिक रूप से सऊदी अरब ज्‍यादा करीब है। वित्‍तवर्ष 2022-23 में भारत और सऊदी अरब के बीच कुल द्विपक्षीय कारोबार 52 अरब डॉलर (करीब 4.45 लाख करोड़ रुपये) का रहा है। इसी दौरान अगर कुवैत के साथ व्‍यापार देखा जाए तो महज 13 अरब डॉलर (करीब 1.10 लाख करोड़ रुपये) ही रहा है।

शब्द “सऊदी” तत्व के रूप में-Suʻūdīyah देश है, जो एक प्रकार का विशेषण एक nisba रूप में जाना जाता है, के नाम से अरबी से ली गई है सऊदी शाही परिवार, अल सउद (آل سعود) की राजवंशीय नाम से गठित। शामिल होने कि देश शाही परिवार का निजी अधिकार है दृश्य व्यक्त करता है।

कौन देता है ज्‍यादा तेल

अब बात करते हैं कच्‍चा तेल खरीदने की तो सऊदी अरब इस मामले में भी 20 साबित होता है। सऊदी अरब भारत को तेल सप्‍लाई करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है, जबकि कुवैत इस मामले में 6वें नंबर पर आता है। करीब 26 लाख भारतीय सऊदी अरब में काम करते हैं, जबकि कुवैत में 10 लाख भारतीय हैं। सऊदी अरब इसलिए भी हमारे लिए ज्‍यादा जरूरी है कि यहां हर साल लाखों भारतीय मुसलमान हज करने के लिए जाते हैं।

किसी जीडीपी सबसे मजबूत

अर्थव्‍यवस्‍था के लिहाज से भी सऊदी अरब काफी मजबूत है। सऊदी अरब की जीडीपी मिडिल ईस्‍ट में सबसे बड़ी है, जो करीब 1.11 ट्रिलियन डॉलर की है। यहां 3.60 करोड़ लोगों की जनसंख्‍या है। कुवैत की जनसंख्‍या महज 45 लाख की है और जीडीपी का आकार भी 173 अरब डॉलर तक सिमटा हुआ है।

कौन ज्‍यादा अमीर देश

अब तक आंकड़े साफ बता रहे हैं कि कुवैत के मुकाबले सऊदी अरब कहीं ज्‍यादा अमीर देश है, लेकिन अगर पब्लिक वेल्‍थ की बात करें तो इस मामले में 800 अरब डॉलर के साथ कुवैत आगे है, जबकि सऊदी अरब के पास 776 अरब डॉलर का पब्लिक इनवेस्‍टमेंट फंड है।

कुवैत की प्रति व्‍यक्ति आय भी 37 हजार डॉलर है, जो सऊदी अरब की 30,800 डॉलर ही है। हालांकि, सऊदी अरब में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल भंडार है जो करीब 267 अरब बैरल का है, जबकि कुवैत में 6वां सबसे बड़ा तेल भंडार है, जो 102 अरब बैरल है।

किसी करेंसी मजबूत

अगर सऊदी अरब और कुवैत की करेंसी की बात की जाए तो इस मामले में कुवैत कहीं आगे ठहरता है। सऊदी अरब की करेंसी रियाल भारतीय रुपये के हिसाब से एक रियाल में 22.74 रुपये आते हैं। कुवैत और भारतीय करेंसी की तुलना करें तो यह करीब 10 गुना ज्‍यादा मजबूत है। एक कुवैती दिनार में 277.14 भारतीय रुपये होंगे।

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रुपया 33 पैसा गिरकर 85.59 के निचले स्तर पर आया

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 दिसंबर 2024 | मुंबई : रुपए में आज यानी शुक्रवार (27 दिसंबर) को डॉलर के मुकाबले बड़ी गिरावट देखने को मिली। दिनभर के कारोबार के बाद ये 33 पैसा गिरकर अपने सबसे निचले स्तर 85.59 के पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान तो इसमें 55 पैसे की गिरावट रही थी। गुरुवार (26 दिसंबर) को डॉलर के मुकाबले यह 85.26 रुपए के स्तर पर बंद हुआ था।

रुपया 33 पैसा गिरकर 85.59 के निचले स्तर पर आया 

इस साल किसी एक दिन में रुपए में यह सबसे बड़ी गिरावट है। इससे पहले लोकसभा चुनाव के नतीजे के दिन यानी 4 जून को रुपया 44 पैसा गिरकर 83.50 पर आ गया था। जून को रुपया 83.06 के स्तर पर बंद हुआ था। डॉलर में मजबूती और आयातकों की महीने के अंत में डॉलर की मांग के दबाव में गुरुवार को लगातार तीसरे दिन भी रुपया कमजोर होता रहा।

रुपया 33 पैसा गिरकर 85.59 के निचले स्तर पर आया

बाजार के घंटों के अंत में, डॉलर के मुकाबले रुपया 6 पैसे गिरकर 85.2625 पर आ गया, जबकि पिछले सत्र में यह 85.20 पर था और दिन के दौरान यह 85.2825 के सर्वकालिक निम्नतम स्तर पर पहुंच गया। एक व्यापारी ने कहा कि आयातक बाजार में बहुत सक्रिय थे, हालांकि साल का अंत करीब होने के कारण कारोबार की मात्रा अपेक्षाकृत कम थी।

बीते 6 महीने में यह सबसे बड़ी गिरावट

इस साल डॉलर के मुकाबले रुपया 2.40 रुपए कमजोर हुआ है। 1 जनवरी 2024 को रुपया 83.20 के स्तर पर था, जो साल के अंत यानी आज 85.59 रुपए के स्तर पर आ गया है।

डॉलर में मजबूती और क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों के चलते

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यह गिरावट डॉलर में मजबूती और क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों के चलते आई है। फॉरेन करेंसी ट्रेडर्स ने भारतीय रुपया में आई गिरावट की पीछे की वजह अमेरिकी डॉलर की मजबूत डिमांड और जियो- पॉलिटिकल अनिश्चितताओं की वजह से क्रूड ऑयल के दामों में बढ़ोतरी को बताया है।

दरअसल, बीते सप्ताह अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की ओर से साल 2025 में दो बार ब्याज दरों में कटौती की। इसके बाद डॉलर इंडेक्स को मजबूती मिली है, जो 0.38 प्रतिशत बढ़कर 107.75 पर पहुंच गया।

रुपए में गिरावट से इंपोर्ट करना महंगा होगा

रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इंपोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाते थे। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 85.06 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे फीस से लेकर रहना और खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी।

करेंसी की कीमत कैसे तय होती है?

डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिजर्व होता है, जिससे वह इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन करता है। फॉरेन रिजर्व के घटने और बढ़ने का असर करेंसी की कीमत पर दिखता है।

अगर भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर होगा तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं।

यह ध्यान देने योग्य है कि रुपये का 84 से 85 पर आना दो महीनों में हुआ, जबकि 83 से 84 पर आने में करीब 14 महीने लगे। फिर भी नवंबर में 108.14 से अधिक वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) या मुद्रास्फीति के समायोजन के बाद कई विदेशी मुद्राओं के सापेक्ष इसके मूल्य के संदर्भ में, यह अभी भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर है क्योंकि इसकी जोड़ी मुद्राओं ने रुपये की तुलना में बहुत अधिक नुकसान उठाया है।

अक्टूबर के मध्य में 84 से नीचे गिरने के बाद से, विकास में मंदी, बड़े पैमाने पर विदेशी निकासी (एक महीने में 12 बिलियन डॉलर से अधिक), अमेरिकी राष्ट्रपति-चुनाव डोनाल्ड ट्रम्प की व्यापार नीतियों और एक आक्रामक फेडरल रिजर्व के कारण रुपया धीरे-धीरे गिर रहा है। हालांकि, रिजर्व बैंक के लगातार हस्तक्षेप ने रुपये की गिरावट को नियंत्रित रखा है।

आरबीआई के अनुसार, रुपये की रक्षा के लिए अकेले अक्टूबर में इसने 47 बिलियन डॉलर से अधिक की बिक्री की है। दिसंबर के लिए आरबीआई बुलेटिन के अनुसार, रिजर्व बैंक ने अक्टूबर में स्पॉट फॉरेक्स मार्केट में $9.28 बिलियन की शुद्ध बिक्री की, जबकि सितंबर में $14.58 बिलियन की शुद्ध बिक्री की तुलना में शुद्ध बकाया फॉरवर्ड बिक्री $49.18 बिलियन रही।

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केंद्रीय बैंक ने कहा कि उसने अक्टूबर के दौरान $27.5 बिलियन की खरीद की और $36.78 बिलियन की बिक्री की। इसके विपरीत केंद्रीय बैंक ने सितंबर में स्पॉट मार्केट में $9.64 बिलियन की शुद्ध खरीद की है। यह ध्यान देने योग्य है कि अक्टूबर माह रुपए के लिए सबसे अस्थिर महीना था, जिसकी शुरुआत विदेशी फंडों द्वारा घरेलू इक्विटी में बिकवाली से हुई और फिर डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने से रुपए की तकलीफ और बढ़ गई।

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