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गलत UPI ID पर पैसे ट्रांसफर हो जायें तो वापसी के लिए क्या करें

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 25 अगस्त 2024 | जयपुर : डिजिटलाइजेशन के इस दौर में पेमेंट करना और फंड ट्रांसफर करना पहले से कहीं ज्यादा सुविधाजनक और आसान हो गया है। डिजिटल ट्रांजैक्शन की दुनिया में UPI (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) एक गेम चेंजर बनकर आया है।

गलत UPI ID पर पैसे ट्रांसफर हो जायें तो वापसी के लिए क्या करें 

भारत में जून, 2024 में UPI के जरिए 1,388 करोड़ ट्रांजैक्शन हुए। इस दौरान कुल 2,007 लाख करोड़ रुपए की राशि ट्रांसफर की गई। ट्रांजैक्शन की संख्या में सालाना आधार पर 49% की बढ़ोतरी हुई है।

डिजिटल पेमेंट ( Digital Payment) के बढ़ते क्रेज के साथ कई बार गलतियां भी हो जाती है। कई बार नंबर डालने में हुई गलती के कारण गलत अकाउंट में पैसा चला जाता है या फिर जल्दीबाजी में गलत कोड स्कैन कर लेते हैं और गलती से पैसा किसी और के अकाउंट में चला जाता है।

यूपीआई ( UPI) के जरिए ऑनलाइन पेमेंट करते वक्त अगर गलती से आपका पेमेंट किसी और अकाउंट में चला जाए तो आपके पास मौका होता है उसे वापस पाने का, लेकिन जानकारी के अभाव में हम ऐसा करने से चूक जाते हैं। आइए हम आपको आज उस प्रोसेस के बारे में बताते हैं, जिसकी मदद से आप गलत अकाउंट में गए अपने पैसे का वापस पा सकते हैं।

गलत UPI ID पर पैसे ट्रांसफर हो जायें तो वापसी के लिए क्या करें

यही वजह है कि बीते कुछ वर्षों में डिजिटल पेमेंट का चलन तेजी से बढ़ा है। अब QR कोड स्कैन कर महज कुछ सेकेंड में पैसों का लेन-देन हो जाता है। UPI ने न सिर्फ डिजिटल पेमेंट करने की सुविधा दी है, बल्कि नकदी की जरूरत को भी लगभग खत्म कर दिया है।

हालांकि, कई बार लोग जल्दबाजी या लापरवाही की वजह से गलत UPI ID पर पैसे ट्रांसफर कर बैठते हैं, जिसके बाद पैसे वापस पाने के लिए परेशान होने लगते हैं।

इसलिए आज जरूरत की खबर में बात करेंगे कि गलत UPI ID में पैसे ट्रांसफर हो जाएं तो क्या करें। साथ ही जानेंगे कि-

  • किन वजहों से गलत UPI ID में पैसे ट्रांसफर होते हैं?
  • गलत पैसे ट्रांसफर होने पर किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

भारत में UPI जैसे सिस्टम को नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ऑपरेट करती है।  गलत UPI ID में पैसे ट्रांसफर होने पर घबराने की नहीं, बल्कि समझदारी दिखाने की जरूरत है। इसके लिए कुछ आसान टिप्स अपना सकते हैं, जिससे आप गलत तरीके से ट्रांसफर हुए पैसे वापस आपके अकाउंट में आ जाएंगे।

सवाल- गलत UPI ID पर पैसे ट्रांसफर की क्या वजह हो सकती है?

जवाब- गलत UPI ID पर पैसे भेजने के लिए जल्दबाजी और लापरवाही एक बड़ी वजह है। लोग अक्सर जल्दबाजी में बिना जांचे UPI ID डालते हैं। जिसके कारण इस तरह की गलतियां कर बैठते हैं।

आइए, ग्राफिक में दिए इन पॉइंट्स को विस्तार से समझते हैं।

  • टाइपिंग की गलती या रिसीवर की गलतफहमी के कारण कई बार अनजाने में गलत UPI ID दर्ज कर सकते हैं।
  • UPI ID नाम या शब्दों पर आधारित होती है। ऐसे में कई बार गलती से ऐसी ID चुन सकते हैं, जो काफी मिलती-जुलती हो।
  • अगर आप डिजिटल पेमेंट के लिए QR कोड स्कैन करते हैं तो कई बार एक जगह पर लगे मल्टीपल QR से भ्रमित हो सकते हैं और गलत QR कोड में पैसे ट्रांसफर हो सकते हैं।
  • कई बार स्कैमर्स भी स्कैम के लिए जानबूझकर गलत UPI ID दे सकते हैं, जिस पर आप पेमेंट ट्रांसफर कर पैसे गवां सकते हैं।
  • UPI ऐप या सर्वर में टेक्निकल दिक्कत भी आती है, जिससे पेमेंट गलत UPI ID पर ट्रांसफर हो सकता है।

सवाल- गलत UPI ID पर पैसे ट्रांसफर हो जाएं तो क्या करना चाहिए?

जवाब- अगर आप गलती से किसी UPI ID पर पैसे भेज देते हैं तो घबराएं नहीं। पैसे को दोबारा प्राप्त करने के लिए सबसे पहले उस व्यक्ति से संपर्क करें, जिसके अकाउंट में पैसे ट्रांसफर हुए हैं। उससे पैसे वापस करने का आग्रह करें। अगर वह पैसे वापस नहीं करता है तो जिस UPI ऐप (गूगल पे, फोन पे, पेटीएम) से ट्रांसफर हुआ है, उसके कस्टमर केयर नंबर पर तुरंत संपर्क करें।

इसके अलावा NPCI के पोर्टल पर भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। या फिर अपने बैंक से भी मदद मांग सकते हैं। इसके लिए तुरंत सभी आवश्यक साक्ष्य बैंक को देने होंगे। इससे आप अपना पैसा आसानी से वापस पा सकते हैं।

आइए, इन पॉइंट्स को विस्तार से समझते हैं।

  • सबसे पहले 18001201740 पर शिकायत दर्ज कराएं। इसके बाद अपने बैंक में जाकर एक एप्लिकेशन लिखें, जिसमें सभी आवश्यक जानकारी भरें। उन्हें सभी आवश्यक डिटेल्स और डॉक्यूमेंट्स दें।
  • इस वेबसाइट https://rbi.org.in/Scripts/Complaints.aspx पर जाकर भी शिकायत दर्ज की जा सकती है।
  • गलत लेन-देन की रिपोर्ट अपने UPI ऐप की कस्टमर हेल्प टीम को करें। उन्हें लेन-देन की सभी उचित जानकारी और सबूत दें। इससे रिफंड प्रक्रिया शुरू होने में आपको सहायता मिलेगी।
  • अगर आप अपने बैंक या UPI ऐप की कस्टमर सर्विस के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो आप इस मुद्दे को बैंकिंग लोकपाल के पास भेज सकते हैं। वे विवाद को सुलझाने के लिए आपके और संबंधित पक्षों के बीच मध्यस्थता कर सकते हैं।
  • इसके अलावा ऐप के कस्टमर हेल्प के द्वारा समस्या का समाधान न होने पर आप NPCI के पोर्टल पर शिकायत कर सकते हैं। उन्हें लेन-देन की डिटेल्स और सबूत उपलब्ध कराएं और वे मामले की आगे की जांच करेंगे।

सवाल- NPCI पोर्टल पर शिकायत करने के लिए क्या प्रोसेस है?

जवाब- अगर कस्टमर केयर सर्विस से कोई मदद नहीं मिल रही है तो आप NPCI पोर्टल पर शिकायत कर सकते हैं। इसके लिए नीचे दिए इन स्टेप्स को फॉलो करें।

  • सबसे पहले NPCI की आधिकारिक वेबसाइट https://www.npci.org.in/ पर जाएं।
  • इसके बाद Get in touch के ऑप्शन पर जाकर क्लिक करें।
  • इसके बाद नाम, ईमेल ID जैसी सभी जरूरी जानकारी भरें।
  • इसे सबमिट करने के बाद आगे बढ़ने पर Dispute Redressal Mechanism को सेलेक्ट करें।
  • कंप्लेंट सेक्शन के तहत ट्रांजैक्शन डिटेल्स डालें, जिसमें UPI ट्रांजैक्शन, वर्चुअल पेमेंट एड्रेस, अमाउंट ट्रांसफर्ड, डेट ऑफ ट्रांजैक्शन, ईमेल ID और मोबाइल नंबर शामिल होगा।
  • इसके अलावा कारण पूछे जाने पर “Incorrectly transferred to another account” (भूल से गलत अकाउंट में पैसे ट्रांसफर) के विकल्प को सेलेक्ट करें। इसके बाद इसे सबमिट कर दें।

सवाल- गलत अकाउंट में पैसे ट्रांसफर होने पर किन बातों का ध्यान रखें?

जवाब- रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी RBI की नई गाइडलाइन के मुताबिक अगर गलती से किसी अकाउंट में पैसे ट्रांसफर हो जाते हैं तो 48 घंटे के भीतर रुपए रिफंड हो सकते हैं। इसके लिए नेट बैंकिंग और UPI से पेमेंट करने के बाद फोन पर प्राप्त मैसेज को संभालकर रखें। उसे डिलीट न करें।

दरअसल इस मैसेज में PPBL नंबर होता है, जो रुपए रिफंड लेने के लिए जरूरी मदद कर सकता है। आप गलत लेन-देन से संबंधित स्क्रीनशॉट लेकर गूगल पे, फोन पे, पेटीएम या UPI ऐप के कस्टमर केयर सपोर्ट में फोन कर शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

अगर प्राप्तकर्ता और भुगतानकर्ता बैंक एक ही हैं तो रिफंड में कम समय लगेगा। लेकिन अगर दोनों के अकाउंट दो अलग-अलग बैंकों में हैं तो पैसे रिफंड में अधिक समय लगेगा।

सवाल- क्या गलत ट्रांजैक्शन होने पर शिकायत करने की कोई समय सीमा है?

जवाब- अगर ट्रांजैक्शन गलत हो गया है तो तुरंत शिकायत करनी चाहिए। ट्रांजैक्शन के 48 घंटे के भीतर शिकायत करना जरूरी है।

इसके बाद शिकायत करने पर पैसा वापस आने की कोई गारंटी नहीं होती है। अगर बैंक रिवर्सल की सुविधा नहीं देता है तो आपको डिजिटल लेन-देन के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की लोकपाल योजना, 2019 के विनियमन 8 के तहत लोकपाल के पास शिकायत दर्ज करने का अधिकार है।

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कोई भी डिजिटल पेमेंट करने से पहले हमेशा उसकी अच्छे से जांच करें।प्राप्तकर्ता के संपर्क नंबर में एक भी गलत अंक दर्ज करने से राशि गलत व्यक्ति को ट्रांसफर हो सकती है। इसलिए किसी को भी ऑनलाइन पेमेंट करने से पहले सभी आवश्यक डिटेल्स की जांच करें।

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सुप्रीम कोर्ट की एससी-एसटी एक्ट कमजोर करने की एक और कोशिश

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 24 अगस्त 2024 | दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के नये फैसले ने एससी-एसटी एक्ट कानून के प्रावधानों को फिर से कमजोर किया है। इससे देश एससी एसटी समुदायों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी अनुसूचित जाति-जनजाति के व्यक्ति को उसकी जाति का नाम लिए बगैर अपमानित किया गया है, तो यह मामला SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत अपराध नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट की एससी-एसटी एक्ट कमजोर करने की एक और कोशिश

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने एक ऑनलाइन मलयालम न्यूज चैनल के एडिटर शाजन स्कारिया को अग्रिम जमानत देते हुए यह फैसला सुनाया। स्कारिया पर 1989 एक्ट की धारा 3(1)(R) और 3(1)(U) के तहत केस दर्ज हुआ था।

एससी-एसटी एक्ट कमजोर करने की एक और कोशिश

उन पर आरोप था कि उन्होंने SC समुदाय से आने वाले कुन्नाथुनाड के CPM विधायक पीवी श्रीनिजन को माफिया डॉन कहा था। इस मामले में ट्रायल कोर्ट और केरल हाईकोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार कर दिया था।

कोर्ट ने कहा- वीडियो में अपमान जैसा कुछ नहीं मिला

आरोपी स्कारिया की तरफ से एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा और गौरव अग्रवाल ने दलीलें रखीं। जिसे मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- SC/ST समुदाय के किसी सदस्य का जानबूझकर किया गया हर अपमान और उसे दी गई धमकी जाति आधारित अपमान नहीं माना जाएगा।

हमें ऐसा कुछ नहीं मिला जो साबित करे कि स्कारिया ने यूट्यूब वीडियो में SC/ST समुदाय के खिलाफ दुश्मनी या नफरत को बढ़ावा देने की कोशिश की है। वीडियो का SC या ST के सदस्यों से कोई लेना-देना नहीं है। उनका निशाना केवल शिकायतकर्ता (श्रीनिजन) ही था।

तो फिर किसे जातिगत अपमान माना जायेगा

70 पेज का फैसला लिखते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि केवल उन मामलों में जानबूझकर अपमान या धमकी दी जाती है, जो छुआछूत की प्रथा या ऊंची जातियों के निचली जातियों/अछूतों पर अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए होते हैं। इन्हें 1989 एक्ट में अपमान या धमकी कहा जा सकता है।

बेंच ने कहा कि अपमानित करने का इरादा वही है, जिसे कई विद्वानों ने हाशिए पर पड़ी जातियों के लिए बताया है। यह कोई साधारण अपमान या धमकी नहीं है जिसे अपमान माना जाए और जिसे 1989 के अधिनियम के तहत दंडनीय बनाने की मांग की गई है।

कोर्ट की सलाह- श्रीनिजन चाहे तो मानहानि का मुकदमा कर सकते हैं

माफिया डॉन के संदर्भ का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा- निंदनीय आचरण और अपमानजनक बयानों को देखते हुए, अपीलकर्ता (स्कारिया) के बारे में केवल यह कहा जा सकता है कि उसने IPC की धारा 500 के तहत मानहानि का अपराध किया है। यदि ऐसा है, तो शिकायतकर्ता (श्रीनिजन) के लिए अपीलकर्ता (स्कारिया) के खिलाफ मुकदमा चलाने के रास्ते हमेशा खुले रहेंगे।

हालांकि, शिकायतकर्ता (श्रीनिजन) केवल इस आधार पर 1989 एक्ट के तहत केस दर्ज करने की अपील नहीं कर सकता, क्योंकि वह अनुसूचित जाति से है और वीडियो की कॉपी में भी यह साबित नहीं हुआ कि स्कारिया का श्रीनिजन का अपमान करना उसकी जाति से प्रेरित था।

पहले भी हुई थी साजिश 

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी-एसटी एक्ट के कुछ प्रावधानों में बदलाव किया था। इसके विरोध में 3 मार्च को भारत बंद बुलाया गया था। प्रदर्शन के दौरान 10 से ज्यादा राज्यों में हिंसा हुई थी और 15 लोगों की मौत हो गई थी। 

कोर्ट के फैसले से देश में गुस्सा और असहजता

सरकार ने लिखित जवाब दायर कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद संवेदनशील मुद्दे पर जो फैसला दिया, उससे देशभर में लोगों के बीच हलचल, गुस्सा और असहजता बढ़ी है। इसके अलावा कोर्ट के आदेश से जो भ्रम की स्थिति पैदा हुई है, उसे ठीक करने के लिए फैसले पर पुनर्विचार जरूरी है।   

कोर्ट को लिखित जवाब में केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों को न्यायिक कानून से संशोधित किया है, जबकि कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के अपने अधिकार हैं और उनका उल्लंघन नही किया जा सकता। 

एससी-एसटी एक्ट: टाइमलाइन

12 अप्रैल: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अपने फैसले पर पुनर्विचार करें, क्योंकि इस फैसले ने एक्ट के कानूनी प्रावधानों को कमजोर किया है।

4 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की। करीब एक घंटे तक चली सुनवाई में बेंच ने कहा कि कोर्ट के आदेश ने एससी-एसटी एक्ट को कमजोर नहीं किया। कोर्ट ने फैसले पुनर्विचार याचिका पर 10 दिन में सुनवाई करने की बात कही।

3 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया। प्रदर्शन हिंसा में बदला 10 राज्यों में 14 लोगों की मौत हुई।   

– केंद्र ने भी इसी दिन सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने इस पर फौरन सुनवाई से इनकार कर दिया था। 

20 मार्च: सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर फैसले के साथ आदेश दिया कि एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न की जाए। इस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत मिले। पुलिस को 7 दिन में जांच करनी चाहिए। सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। 

एससी/एसटी एक्ट के मामले में वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं:

1) एससी/एसटी कानून में कहां पुलिस से शिकायत हुई थी
– महाराष्ट्र में शिक्षा विभाग के स्टोर कीपर ने राज्य के तकनीकी शिक्षा निदेशक सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। स्टोर कीपर ने शिकायत में आरोप लगाया था कि महाजन ने अपने अधीनस्थ उन दो अिधकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी है, जिन्होंने उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में जातिसूचक टिप्पणी की थी।

2) पुलिस से शिकायत होने के बाद कैसे आगे बढ़ा मामला
– पुलिस ने जब दोनों आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी महाजन से इजाजत मांगी, तो वह नहीं दी गई। इस पर पुलिस ने महाजन पर भी केस दर्ज कर लिया। महाजन का तर्क था कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इससे काम करना मुश्किल जो जाएगा।

3) एफआईआर के बाद हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में केस कब से
– 5 मई 2017 को काशीनाथ महाजन ने एफआईआर खारिज कराने हाईकोर्ट पहुंचे। पर हाईकोर्ट ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया। एफआईआर खारिज नहीं हुई तो महाजन ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर शीर्ष अदालत ने 20 मार्च को उन पर एफआईआर हटाने का आदेश दिया।

4) सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को फैसले में क्या कहा था
– सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के साथ आदेश दिया कि एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न की जाए। इस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत मिले। पुलिस को 7 दिन में जांच करनी चाहिए। सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती।

5) क्यों फैसले का विरोध शुरू हुआ, सरकार ने क्या किया
– इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। दलित संगठनों और विपक्ष ने केंद्र से रुख स्पष्ट करने को कहा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की।

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6) आखिर इस फैसले के विरोध क्यों हो रहा है
– दलित संगठनों का तर्क है कि 1989 का एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम कमजोर पड़ जाएगा। इस एक्ट के सेक्शन 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है।

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