सेहत : गोल्डेन एज को दवाइयों के सहारे न बितायें

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 14 जुलाई 2024 | जयपुर : उम्र के दो पड़ाव बचपन और बुढ़ापा बीमारियों का घर होते हैं। जरा सी असावधानी हुई कि बीमारी आ धमकी। असल में बच्चों की इम्यूनिटी पूरी तरह विकसित नहीं हुई होती है। जबकि वयस्क उम्र बीत जाने के बाद हमारी इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है।

सेहत : गोल्डेन एज को दवाइयों के सहारे न बितायें

गोल्डेन एज को दवाइयों के सहारे न बितायें

बचपन में तो वैक्सीनेशन हमें ज्यादातर बीमारियों से बचा लेता है, लेकिन बुढ़ापे में कई बीमारियां घेर लेती हैं और दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है। दवाइयों पर इस निर्भरता को मेडिसिन डिपेंडेंसी या ड्रग डिपेंडेंसी कहते हैं।

इस कंडीशन को ऐसे समझिए कि जब हमारा शरीर अपना बुनियादी कामकाज करने में सक्षम नहीं रहता, शरीर के ऑर्गन्स को बेसिक फंक्शनिंग के लिए दवाओं की जरूरत पड़ने लगती है तो इसे मेडिसिन डिपेंडेंसी कहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, यह हमारे स्वास्थ्य के लिए एक खतरनाक स्थिति है।

आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे मेडिसिन डिपेंडेंसी की। साथ ही जानेंगे कि-

  • हमारा शरीर कब मेडिसिन डिपेंडेंट हो जाता है?
  • मेडिसिन डिपेंडेंसी के क्या लक्षण हैं?
  • इससे उबरने के क्या उपाय हैं?

गोल्डेन एज को दवाइयों के सहारे न बिताएं

कोई शख्स बचपन से लेकर वयस्क होने तक जी-तोड़ मेहनत करता है। अच्छी नौकरी हासिल करता है, फिर मकान, गाड़ी और घर की तमाम सुख-सुविधाएं जुटाता है। इसके बाद शादी-ब्याह, बच्चे, फिर उनकी पढ़ाई-लिखाई। यही करते-करते उम्र बीत जाती है और रिटायरमेंट नजदीक आ जाता है।

इस उम्र तक अकसर लोग अपनी ज्यादातर जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके होते हैं और अब यह बेफिक्र होकर जीने का समय होता है। लेकिन इसी समय तमाम बीमारियां घेर लेती हैं और जिंदगी दवाइयों पर निर्भर हो जाती है।

50 की उम्र तक घेर लेती हैं कई बीमारियां

एसएमएस के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. गोपाल मीणा कहते हैं कि 50 से अधिक उम्र के जो ज्यादातर पेशेंट आते हैं, वे कई तरह की लाइफस्टाइल डिजीज से ग्रसित होते हैं। लाइफस्टाइल बीमारियों के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि एक बार इन्होंने घेर लिया तो दवाइयां स्किप करना काल बन सकता है। रोज नियमित रूप से दवाइयां खानी ही पड़ती हैं।

दवाओं का सेवन करते-करते हो जाता है एडिक्शन

  • जब हम कुछ दवाएं रोज खा रहे होते हैं तो हमें उनकी लत लग जाती है। इनके बगैर सबकुछ मुश्किल लगने लगता है। हमारा शरीर इन दवाइयों पर इस कदर निर्भर हो जाता है कि इनके बिना शरीर का बुनियादी कामकाज तक मुश्किल हो जाता है।
  • अगर इन दवाइयों का सेवन बंद कर दिया जाए तो कई हेल्थ इश्यूज का जोखिम हो सकता है।

मेडिसिन डिपेंडेंसी से बचने का रास्ता क्या है?

अगर वृद्धावस्था बीमारियों और दवाइयों के बगैर गुजरे तो इससे बड़ा और कोई सुख नहीं है। उम्र के इस पड़ाव तक आते-आते ज्यादातर चिंताएं खत्म हो चुकी होती हैं, सारी जिम्मेदारियों से निवृत्ति मिल चुकी होती है। ऐसे में किसी समस्या के बिना आसानी से जिंदगी गुजारी जा सकती है। डॉ. अमित समाधिया ने इसके लिए 6 तरीके बताए हैं, जिन्हें अपनाकर मेडिसिन डिपेंडेंसी से बचा जा सकता है।

वैक्सीनेशन है जरूरी

ज्यादातर लोग जानते हैं कि शिशुओं और बच्चों को वैक्सीन लगवाकर उन्हें बीमारियों से बचाया जा सकता है। इसे लेकर खूब अवेयरनेस है और लोग अपने बच्चों को वैक्सीन लगवाते भी हैं। हमें समझने की जरूरत है कि वैक्सीनेशन सिर्फ बच्चों के लिए नहीं होता है। कई वैक्सीन्स हमें किसी भी उम्र में बीमारियों से बचा सकती हैं, ये बुजुर्गों के लिए और भी काम की हो सकती हैं।

असल में जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, इम्यून सिस्टम कमजोर होता जाता है, जिससे न्यूमोकोकल डिजीज, इन्फ्लूएंजा और दाद जैसे संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है। बुढ़ापे में ये संक्रमण और गंभीर हो सकते हैं क्योंकि शरीर जल्दी रिकवर नहीं हो पाता है।

दाद का संक्रमण कई महीनों तक परेशान कर सकता है और निमोनिया हुआ तो अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ सकता है। जबकि वैक्सीनेशन इन संक्रमणों के शारीरिक, मानसिक और आर्थिक बोझ से हमें बचा सकता है।

डॉक्टर से मिलकर दाद, निमोनिया, इन्फ्लूएंजा, डिप्थीरिया और काली खांसी के वैक्सीनेशन के बारे में पूछ सकते हैं। ये वैक्सीन बुजुर्ग अवस्था की कई बीमारियों और मेडिसिन डिपेंडेंसी से बचा सकती हैं।

एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर डाइट लें

रंग-बिरंगे फल और सब्जियां, मछली, सीड्स और नट्स एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। ये डाइट स्किन डैमेज, कॉग्निटिव और मेमोरी में गिरावट जैसे एजिंग के लक्षणों को रोकने में भी मददगार हो सकती है। एंटीऑक्सीडेंट्स की पूर्ति के लिए जामुन, स्ट्रॉबेरी, बीन्स, हल्दी, लहसुन, नट्स आदि का सेवन करते रहें।

प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन D से भरपूर डाइट लें

ढलती उम्र में बोन्स और मसल्स कमजोर पड़ने लगते हैं। ऐसे में हड्डियों और मांसपेशियों की मजबूती बनाए रखने के लिए प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन D का संतुलित सेवन बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए डॉक्टर से बात कर सकते हैं कि इनके संतुलन के लिए क्या-क्या खाना चाहिए। सभी के शरीर की जरूरत अलग हो सकती है।

प्रतिदिन एक्सरसाइज जरूरी

अच्छी सेहत के लिए रोजाना एक्सरसाइज बहुत जरूरी है। ढलती उम्र में हार्ट रेट बढ़ाने के लिए एरोबिक एक्सरसाइज कर सकते हैं। हार्ट रेट बेहतर रहने से शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई अच्छी बनी रहती है। इससे सभी ऑर्गन्स की हेल्थ भी अच्छी रहती है। साइकिलिंग, डांसिंग, लॉन्ग वॉकिंग, जॉगिंग, रनिंग और स्विमिंग अच्छी एरोबिक एक्सरसाइज हैं। इस दौरान हमारे शरीर का बड़ा मसल ग्रुप एक्टिव होता है।

यह सब हार्ट हेल्थ के लिए तो अच्छा है ही, साथ ही इससे डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करने में मदद मिलती है। एरोबिक एक्सरसाइज कम-से-कम सप्ताह में दो बार करनी चाहिए। इससे हड्डियों और मांसपेशियों की ताकत बरकरार रहती है। 40 से अधिक उम्र के बाद और अगर कोई मेडिकल कंडीशन है तो एक्सरसाइज शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

रेगुलर हेल्थ चेकअप है जरूरी

हार्ट डिजीज, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, किडनी डिजीज और कैंसर जैसी क्रोनिक डिजीज से बचने के लिए रेगुलर हेल्थ चेकअप जरूरी है। अगर बीमारियों का पता शुरुआती स्टेज में ही चल जाए तो इनका इलाज इतना मुश्किल नहीं होता है।

हर व्यक्ति की अलग हेल्थ कंडीशन हो सकती है। उसके हिसाब से ही उसे बॉडी चेकअप की जरूरत होती है। इस बारे में डॉक्टर से बात कर सकते हैं कि किस तरह की जांच की जरूरत है और कितने दिनों के अंतराल में जांच की आवश्यकता है।

मेंटल हेल्थ का ख्याल रखना है जरूरी

उम्र ढलने के साथ हमारा कॉग्निटिव फंक्शन भी कमजोर पड़ने लगता है। मेमोरी पॉवर वीक होने लगती है। इसके अलावा वृद्धावस्था में भावनाओं की उथल-पुथल भी बढ़ जाती है। अकेलापन महसूस होने लगता है और चिंताएं बढ़ जाती हैं। इस सबका सीधा असर हमारी मेंटल हेल्थ पर पड़ता है। एंग्जायटी और डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है।

हमें ‘एज विद ग्रेस’ के कॉन्सेप्ट के साथ जिंदगी का आनंद लेना चाहिए। अपनी बकेट लिस्ट निकालें। जीवन में जो यात्राएं अधूरी रह गई हैं, उन्हें पूरा करें। घर में सभी सदस्यों के साथ दोस्ताना संबंध बनाएं। हेल्दी खाना खाएं। जीने का कोई-न-कोई मकसद बरकरार रखें।

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युवराज सिंह बन सकते हैं दिल्ली कैपिटल्स के कोच

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 अगस्त 2024 |  जयपुरभारत के पूर्व स्टार ऑलराउंडर युवराज सिंह की इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में 5 साल बाद वापसी हो सकती है, लेकिन उनका रोल बदलेगा। वे दिल्ली कैपिटल्स के कोच बनाए जा सकते हैं। कुछ समय पहले युवराज के गुजरात टाइटंस (GT) का कोच बनने की खबरें आई थी। हालांकि, GT में कोच की पोस्ट आशीष नेहरा के पास बरकरार रहेगी।

युवराज सिंह बन सकते हैं दिल्ली कैपिटल्स के कोच

स्पोर्ट्स स्टार ने सूत्रों के हवाले से दावा किया कि दिल्ली की फ्रेंचाइजी ने युवराज से कोच बनने के लिए संपर्क किया है। फिलहाल बातचीत जारी है। दिल्ली कैपिटल्स का कोच पद छोड़ने वाले रिकी पोंटिंग ने भी इस बात के संकेत दिए थे।

युवराज सिंह बन सकते हैं दिल्ली कैपिटल्स के कोच

उन्होंने कहा था कि फ्रेंचाइजी मुख्य कोच की भूमिका के लिए किसी पूर्व भारतीय क्रिकेटर की तलाश कर रही है। युवराज सिंह युवा ओपनर अभिषेक शर्मा के मेंटॉर हैं। अभिषेक ने IPL 2024 में 204.22 के स्ट्राइक रेट से 484 रन बनाए थे।

युवराज सिंह युवा ओपनर अभिषेक शर्मा के मेंटॉर हैं। अभिषेक ने IPL 2024 में 204.22 के स्ट्राइक रेट से 484 रन बनाए थे।

GT के कोच बनने की भी अटकलें थीं

पिछले महीने युवराज के गुजरात टाइटंस का कोच बनने की खबरें आई थी। इस मामले में ताजा जानकारी है कि नेहरा गुजरात के हेड कोच बने रह सकते हैं। गुजरात की टीम बैटिंग कोच गैरी कर्स्टन की जगह किसी भारतीय कोच तलाश रही है। कर्स्टन गुजरात की टीम को छोड़कर पाकिस्तान की नेशनल टीम के कोच बन गए हैं।

कुछ समय पहले युवराज के गुजरात टाइटंस (GT) का कोच बनने की खबरें आई थी। हालांकि, GT में कोच की पोस्ट आशीष नेहरा के पास बरकरार रहेगी।

रिकी पोंटिंग ने पिछले महीने छोड़ा था पद

पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग ने पिछले महीने दिल्ली कैपिटल्स के हेड कोच का पद छोड़ दिया था। वे पिछले 7 सीजन से दिल्ली कैपिटल्स से जुड़े थे। दिल्ली की टीम पिछले तीन सीजन से प्लेऑफ में जगह बनाने में नाकाम रही है।

युवी का डेब्यू असाइनमेंट, 2019 में संन्यास लिया था

यदि युवराज सिंह दिल्ली के कोच बन जाते हैं तो यह उनका बतौर कोच डेब्यू असाइनमेंट होगा। युवी ने 2008 से 2019 तक IPL खेला था। 2019 के अपने आखिरी सीजन में वे मुंबई इंडियंस का हिस्सा थे। इस सीजन में MI ने CSK को हराते हुए चौथा टाइटल जीता था।

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युवी 12 साल के IPL करियर में पंजाब किंग्स, पुणे वॉरियर्स इंडिया, दिल्ली कैपिटल्स, रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु और सनराइजर्स हैदराबाद का हिस्सा रहे थे। युवराज कैंसर के इलाज के कारण 2012 के सीजन में IPL का हिस्सा नहीं थे।

भारत को 2 वर्ल्ड कप जिताए, 2011 में प्लेयर ऑफ द सीरीज रहे

युवराज सिंह ने 2007 में टी-20 और 2011 वनडे वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा रहे। वे 2011 में प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट भी बने। युवराज ने 40 टेस्ट, 304 वनडे और 58 टी-20 इंटरनेशनल मैच खेले हैं। उनके नाम 11 हजार से ज्यादा इंटरनेशनल रन हैं।

सौरव गांगुली के भी नाम की चर्चा

युवराज से पहले दिल्ली कैपिटल्स फ्रैंचाइजी के क्रिकेट निदेशक सौरव गांगुली को टीम के हेड कोच बनाए जाने की अटकलें चल रही थी। भारत के पूर्व कप्तान ने इस भूमिका को निभाने की इच्छा भी व्यक्त की थी। गांगुली दिल्ली कैपिटल्स की सहयोगी फ्रैंचाइजी ILT20 की टीम दुबई कैपिटल्स और SA-T20 लीग की टीम प्रिटोरिया कैपिटल्स की भी देखरेख करते हैं।

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आदिवासी इलाकों में फैली सिकल सेल एनीमिया खतरनाक बीमारी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 अगस्त 2024 | जयपुर : गंभीर आनुवांशिक बीमारी सिकल सेल एनीमिया ने राजस्थान के आदिवासी इलाकों को चपेट में ले रखा है। बांसवाड़ा जिले में इस रोग से प्रभावित (पॉजिटिव) लोगों की संख्या 692 पहुंच चुकी है। इसमें सभी उम्र के लोग शामिल है।

आदिवासी इलाकों में फैली सिकल सेल एनीमिया खतरनाक बीमारी

बांसवाड़ा के डिप्टी सीएमएचओ डॉ. राहुल डिंडोर ने बताया – बांसवाड़ा में अब तक 9 लाख 57 हजार लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है, इनमें 692 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं। चिकित्सा विभाग उनकी लगातार मॉनिटिरिंग कर रहा है।

आदिवासी इलाकों में फैली खतरनाक बीमारी

साथ ही जागरूक किया जा रहा है कि जिन्हें यह बीमारी नहीं है, वे पॉजिटिव पार्टनर से शादी न करें। ताकि उनके बच्चों में यह बीमारी न पहुंचे। शादी करने से पहले वे पार्टनर की स्क्रीनिंग कराएं। विभाग की ओर से पॉजिटिव पाए गए मरीजों को लगातार इलाज दिया जा रहा है।

क्या है सिकल सेल एनिमिया

सिकल सेल एनिमिया (Sickle Cell Anemia) जिसे Sickle Cell Disease नाम से भी जाना जाता है, एक अनुवांशिक रोग हैं। इस रोग में शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का आकार Sickle यानि दरांती या फिर केले (अर्धचंद्राकार) के आकार के समान हो जाता हैं। सामान्य लाल रक्त कोशिकाओं का आकार गोलाकार होता है। भारत में आदिवासी समाज में यह रोग ज्यादा दिखने को मिलता हैं।

सामान्यतः Red Blood Cells या लाल रक्त कोशिका गोलाकार होने से रक्तवाहिनी में अच्छे से घूमती है और पुरे शरीर को ऑक्सीजन की पूर्ति करती हैं। लाल रक्त कोशिकाओं में हिमोग्लोबिन होता है जो की ऑक्सीजन का वहन (carrier) करता हैं। Sickle Cell में यह हीमोग्लोबिन कम रहता है जिससे शरीर को पर्याप्त प्राणवायु (Oxygen) नहीं मिल पाता हैं।

सिकल सेल रोग वाले रोगियों के लिए एसीआईपी द्वारा अनुशंसित टीकाकरण की विशिष्ट अनुसूची में हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी (एचआईबी) वैक्सीन, न्यूमोकॉकल वैक्सीन (पीसीवी7, पीसीवी13, पीपीएसवी23), और सीरोग्रुप ए, सी, डब्ल्यू, और वाई (मेनएसीडब्ल्यूवाई), और सीरोग्रुप बी (मेनबी) के लिए मेनिंगोकॉकल टीके शामिल हैं।

रेड ब्लड सेल कम हो जाते हैं, कई रोग हो जाते हैं

यह एक बीमारी रेड ब्लड डिसऑर्डर से जुड़ी है। यह खून में मौजूद हीमोग्लोबिन को बुरी तरह प्रभावित करती है। ऐसे में शरीर में रेड ब्लड सेल की कमी हो जाती है। शरीर के अंगों तक ऑक्सीजन ठीक से नहीं पहुंच पाती। तेज दर्द होने लगता है।

हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द रहना, हाथ पैरों में सूजन, थकान, कमजोरी, पीलापन, किडनी रोग, बच्चों में कुपोषण, आंखों से जुड़ी समस्याएं और इंफेक्शन जैसे लक्षण पैदा हो जाते हैं। माता-पिता में से कोई एक सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित है तो बच्चों में यह बीमारी आ सकती है।

बांसवाड़ा के सज्जनगढ़ इलाके में इस बीमारी का स्तर सबसे गंभीर है। इस रोग से पीड़ित महिला की उम्र 48 और पुरुष की 42 साल तक सीमित हो जाने का खतरा होता है।

जोधपुर की डीएमआरसी (डिजर्ट मेडिसिन रिसर्च सेंटर) ने इस इलाके में रिसर्च किया तो यह जानकारी सामने आई। इसके बाद सरकार ने सैंपलिंग कराई गई। बांसवाड़ा में अब तक की गई सैंपलिंग में सबसे ज्यादा 200 पॉजिटिव कुशलगढ़ में पाए गए। कुशलगढ़-सज्जनगढ़ आदिवासी इलाके हैं।

बीमारी का शिकार होने वालों में महिलाएं ज्यादा हैं। यहां 548 पॉजिटिव मरीजों की एक लिस्ट सामने आई, जिसमें महिलाओं की संख्या 302, जबकि पुरुषों की संख्या 246 है। सबसे ज्यादा 21 साल तक के युवा बीमारी की चपेट में आए हैं। बांसवाड़ा जिले इस रोग से प्रभावित (पॉजिटिव) लोगों की संख्या 692 है।

बांसवाड़ा जिले इस रोग से प्रभावित (पॉजिटिव) लोगों की संख्या 692 है।

मूकनायक मीडिया ब्यूरो टीम ने प्रभावित इलाकों का दौरा किया, लोगों से बात की …

केस 1- गांव में महिला हर 2-3 महीने में बीमार
बांसवाड़ शहर से 12 किमी दूर झूपेल गांव में रहने वाली एक 40 साल की महिला से बात की। महिला ने बताया कि उसे मार्च में ही पता चला कि वह कई साल से इस बीमारी से पीड़ित है। वह हर 2-3 महीने में बीमार पड़ जाती है।

उसकी स्क्रीनिंग मार्च महीने में की गई थी। गांव की पीएचसी में आई सिकल सेल एनीमिया टीम ने उसका ब्लड टेस्ट किया तो वह पॉजिटिव पाई गई। अब मेडिकल डिपार्टमेंट समय-समय पर उसकी मॉनिटरिंग कर रहा है।

केस 2- युवती में खून की कमी
इलाके के गनाऊ गांव में युवती से बात की तो उसने बताया कि खून की कमी है। मार्च महीने में वह जांच के लिए अस्पताल गई थी, जहां उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। हालांकि उसे इससे अभी तक कोई गंभीर तकलीफ नहीं हुई है। वह घर का काम काज कर पा रही है और विभाग से मिली दवाइयां ले रही है।

केस 3- एक ही परिवार में मां सहित 6 पॉजिटिव
बांसवाड़ा शहर से 32 किमी दूर डूंगरपुर रोड पर बजाखरा गांव पहुंचे। यहां एक ही घर में 6 लोग सिकल सेल एनीमिया पॉजिटिव थे। पूछताछ की तो बताया कि दो महीने पहले गांव में आई मेडिकल टीम ने घर-घर जांच की थी। अधिकतर पॉजिटिव की उम्र 21 साल से कम है। इस रोग में कम उम्र में ही गंभीर बीमारियां हो जाती हैं और औसत उम्र कम हो जाती है।

एक परिवार में पति-पत्नी और उनके 7 बच्चों का ब्लड सैंपल लिया। इसमें मां और 5 बच्चे (4 बेटियां और 3 साल का बेटा) पॉजिटिव हैं। अस्पताल प्रबंधन से रिपोर्ट के बारे में पूछा तो बताया कि इनमें किसी के कोई लक्षण नहीं है। सब सामान्य है। खून की कमी सभी में है। 

सिकल सेल एनिमिया का क्या लक्षण हैं ? (Sickle Cell Anemia symptoms)

Sickle Cell Anemia के लक्षण इस प्रकार हैं :
1. खून की कमी : सामान्य लाल रक्त पेशी की तुलना Sickle cell की उम्र केवल 10 से 20 दिन तक ही है और उसके बाद यह पेशी टूट जाती है जिससे हीमोग्लोबिन कम हो जाता और शरीर में खून की कमी रहती हैं।
2. बदनदर्द : Sickle Cell की समस्या से पीड़ित लोगों को शरीर की किसी भी हिस्से में तीव्र दर्द की समस्या होती हैं। शरीर के जिस अंग को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलता है वह पीड़ा अधिक होती हैं। बदन दर्द इतना अधिक होता है की पीड़ित को कई बार दवाखाने में दाखिल होना पड़ता हैं।
3. पीलिया के लक्षण : खून की कमी और हीमोग्लोबिन के बहाव के कारण पीड़ित के आँख और त्वचा में पीलापन नजर आता हैं। ऐसा लगता है जैसे पीड़ित को पीलिया या jaundice हो गया हैं।
4. हाथ और पैर में सूजन : सिकल सेल के कारण नसे अवरोध होने से हाथ और पैर में सूजन आ जाती हैं।
5. संक्रमण : सिकल सेल के कारण शरीर की रोगप्रतिकार शक्ति कमजोर पड़ जाती है जिससे रोगी को बार-बार बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण हो जाता है जिससे पीड़ित बीमार पड़ जाता हैं।
6. कमजोर विकास : सिकल सेल से पीड़ित बच्चो का विकास धीरे-धीरे होता हैं।
7. कमजोर दृष्टी : सिकल सेल के कारण नजर भी कमजोर हो जाती हैं।

अधिकतर पॉजिटिव की उम्र 21 साल से कम है। इस रोग में कम उम्र में ही गंभीर बीमारियां हो जाती हैं और औसत उम्र कम हो जाती है।

चिकित्सा विभाग की अपील- पॉजिटिव मरीज आपस में शादी न करें

बांसवाड़ा में 9 लाख 56 हजार से ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग की गई है। इस रोग की हिस्ट्री वाले 3.58 लाख लोगों को कार्ड इश्यू किए गए हैं। इनमें से 2 लाख 63 हजार 430 लोगों के पास कार्ड पहुंच गया है। बाकी लोगों तक जल्द कार्ड पहुंच जाएगा। विभाग का टारगेट जिले के ‎11 लाख लोगों की स्क्रीनिंग करना है।

जांच के लिए ‎जिले को 9 लाख 56 हजार‎ 275 टेस्ट किट मिले थे। स्क्रीनिंग में 692 ‎पॉजिटिव और 2452 कैरियर मिले। कैरियर वे लोग हैं, जिनके माता या पिता में से एक या दोनों पॉजिटिव रहे हैं। ऐसे लोगों में बीमारी होने का खतरा है।

पॉजिटिव का आंकड़ा 692 तक पहुंचना खतरनाक संकेत है। हेल्थ डिपार्टमेंट ने तय किया है कि पॉजिटिव रोगियों को पाबंद किया जाएगा कि पीड़ित लोग आपस में शादी न करें।

राज्य सरकार शादी नहीं करने का सुझाव देकर इतिश्री कर रही है जबकि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि रोगनिरोधी हस्तक्षेप सिकल सेल रोग वाले रोगियों में संक्रमण और मृत्यु दर के जोखिम को कम करते हैं, जो अनुशंसित टीकाकरण कार्यक्रम का पालन करने के महत्व को प्रमाणित करता है।

उपलब्ध साक्ष्यों के बावजूद, इन हस्तक्षेपों के पालन की दरें कम हैं, और इन रोगियों के बीच खराब परिणामों को रोकने के लिए संभावित बाधाओं की पहचान की जानी चाहिए और उनका समाधान किया जाना चाहिए।

इस अध्ययन का प्राथमिक उद्देश्य हमारे संस्थान में सिकल सेल रोग वाले बच्चों के लिए टीकाकरण पालन का आकलन करना है। दूसरा उद्देश्य प्रदाताओं द्वारा केंटकी टीकाकरण रजिस्ट्री (KYIR) के उपयोग का निर्धारण करना है।

रक्त विकार क्लिनिक, अस्पताल प्रणाली, KYIR से इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड की समीक्षा करके और प्रत्येक रोगी के प्राथमिक देखभाल चिकित्सक से रिकॉर्ड का अनुरोध करके टीकाकरण रिकॉर्ड प्राप्त किये जावे।

बांसवाड़ा में 9 लाख 56 हजार से ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग की गई है।

बांसवाड़ा में 9 लाख 56 हजार से ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग की गई है। शादी करने ‎वाले दोनों पॉजिटिव से पैदा होने वाला बच्चा भी 100‎ फीसदी पॉजिटिव ही होगा। दोनों में से एक पॉजिटिव हुआ तो बच्चे के पॉजिटिव होने के आसार 50 फीसदी होंगे।

वैक्सीन की कमी से सरकार बेखबर, फ्री सप्लाई में केवल दो वैक्सीन हुई मंजूर

डिप्टी सीएमएचओ डॉ. राहुल डिंडोर ने बताया- सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने फ्री दवा सप्लाई में दो वैक्सीन मंजूर कर ली है। ये वैक्सीन ‎रिस्क फैक्टर 50% तक कम कर देती है। ये वैक्सीन न्यूमोकोल और ‎मैनिंगोकोल है।

बाजार में इनकी कीमत 10 से 12‎ हजार रुपए है। दोनों वैक्सीन पॉजिटिव मरीजों को फ्री लगाई जाएगी। बांसवाड़ा जिले से अभी 20 हजार वैक्सीन‎ की डिमांड है। जल्द ही केंद्र‎ सरकार राजस्थान को वैक्सीन सप्लाई करेगा।

सिकल सेल रोग वाले रोगियों के लिए टीकाकरण सिफारिशों के विशेषज्ञ और सामान्य चिकित्सक के ज्ञान में भी अंतर हो सकता है, खासकर ग्रामीण समुदायों में जहां विशेषज्ञ सेवाओं की कमी है।

सिकल सेल रोग से पीड़ित बच्चों में इनकैप्सुलेटेड जीवों के कारण संक्रमण और मृत्यु दर का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए, यह आवश्यक है कि रोगियों की यह विशेष आबादी कार्यात्मक एस्प्लेनिया के लिए ACIP-अनुशंसित टीकाकरण कार्यक्रम का राज्य सरकार पालन करें।

टीकाकरण कार्यक्रम के बारे में जानकारी की कमी, क्लीनिकों में सभी टीकों को बनाए रखने की तार्किक सीमाएँ, प्राथमिक देखभाल चिकित्सक के कार्यालय से रिकॉर्ड प्राप्त करने में कठिनाई, और टीकाकरण रजिस्ट्री में सुसंगत दस्तावेज़ीकरण की कमी, अनुपालन दर कम रहती है, जिससे इस अध्ययन आबादी में संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है।

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इस राष्ट्रीय मुद्दे को संबोधित करने के लिए, संस्थानों को मौजूदा बाधाओं की पहचान करनी चाहिए ताकि सिकल सेल रोग वाले रोगियों के लिए टीकाकरण अनुपालन और समग्र परिणामों को बेहतर बनाने के लिए गुणवत्ता सुधार उपायों को विकसित और कार्यान्वित किया जा सके।

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