‘एलर्जी’ से विश्व में हर दूसरा इंसान है परेशान क्या हैं बचाव के उपाय

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 17 जुलाई 2024 | जयपुर : क्या आपको कभी एलर्जी हुई है? शायद हम सब को कभी-न-कभी किसी-न-किसी चीज से एलर्जी तो हुई ही होगी। हो सकता है किसी को धूल-मिट्टी से एलर्जी हो, जिससे बार-बार छीकें आती हों, किसी को फूड एलर्जी हो, जिससे स्किन में रैशेज हो जाते हों।

‘एलर्जी’ से विश्व में हर दूसरा इंसान है परेशान क्या हैं बचाव के उपाय

ऐसी ही कई सारी एलर्जी हैं, जिनके बारे में आज हम जानेंगे। यह पूरा सप्ताह वर्ल्ड एलर्जी वीक के तौर पर मनाया गया। ये 23 जून से शुरु हुआ और 29 जून यानी आज इसका समापन है। वर्ल्ड एलर्जी वीक का मुख्य उद्देश्य एलर्जी के बारे में लोगों में जागरुकता फैलाना है। आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे एलर्जी और उसके निदान के बारे में।

‘एलर्जी’ से विश्व में हर दूसरा इंसान है परेशान क्या हैं बचाव के उपाय

एलर्जी क्या है और ये कैसे होती है

आजकल एलर्जी एक आम समस्या बन गई है। जैसे ही मौसम में थोड़ा बदलाव होता है, लोगों को एलर्जी होने लगती है। इसके कई और कारण भी हो सकते हैं जैसे कमजोर इम्यूनिटी, प्रदूषण, गलत खान-पान वगैरह।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक, किसी भी फॉरेन सब्सटेंस यानी बाहरी पदार्थ के प्रति हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम का सक्रिय हो जाना एलर्जी है। मेडिसिन की भाषा में इन विदेशी पदार्थों को एलर्जेन कहते हैं। अब जानें एलर्जी कैसे होती है-

  • ऑस्ट्रेलियन सोसाइटी ऑफ क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी एंड एलर्जी (ASACIA) के मुताबिक एलर्जेन के कारण ही एलर्जी होती है।
  • ये एलर्जेन धूल के कण (डस्टमाइट), पालतू जानवर, कीड़े, फफूंद, खाद्य पदार्थ और दवाओं में हो सकते हैं।
  • कमजोर इम्यूनिटी ही हमारे शरीर की दुश्मन है। यही एलर्जी का मुख्य कारण भी है।
  • जब एटोपिक लोग (जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है) एलर्जेंस के संपर्क में आते हैं तो उन्हें एलर्जी संबंधी समस्याएं हो जाती हैं।
  • लैंसेट में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक यूरोप में 20 फीसदी लोग एलर्जी से पीड़ित हैं, लेकिन डॉक्टरों और शोधकर्ताओं के पास इस सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं है कि एलर्जी क्यों होती है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) का कहना है कि खुद से दवाएं लेने पर एलर्जी और अधिक बिगड़ सकती है। देश के कुल आबादी के लगभग 20 से 30 प्रतिशत लोगों में एलर्जी कारक राइनाइटिस रोग मौजूद हैं। आईएमए के अनुसार, प्रति दो लोगों में से लगभग एक व्यक्ति आम पर्यावरणीय कारणों से किसी न किसी प्रकार की एलर्जी से प्रभावित है।

एलर्जिक राइनाइटिस एक पुराना गंभीर श्वसन रोग है, जो दुनिया भर की आबादी के एक तिहाई हिस्से को प्रभावित करता है। लोग इसे बीमारी की श्रेणी में नहीं रखते, इसलिए यह रोग बढ़ता चला जाता है। इससे भी ज्यादा चिंताजनक यह है कि बहुत से लोग स्वयं ही दवाई लेकर इलाज शुरू कर देते हैं, जो कि ज्यादातर समय तक कोई राहत प्रदान नहीं करती है।

आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, “एलर्जिक राइनाइटिस होने पर नाक अधिक प्रभावित होती है। जब कोई व्यक्ति धूल, पशुओं की सूखी त्वचा, बाल या परागकणों के बीच सांस लेता है तब एलर्जी के लक्षण उत्पन्न होते हैं। ये लक्षण तब भी पैदा हो सकते हैं जब कोई व्यक्ति कोई ऐसा खाद्य पदार्थ खाता है, जिससे उसे एलर्जी हो।”

शरीर के अंदर एलर्जेन कैसे अटैक करते हैं

शरीर में एलर्जेन श्वास, त्वचा और खाने की नली के द्वारा प्रवेश कर सकते हैं, जिससे इसके अलग-अलग लक्षण देखने को मिलते हैं। जब एलर्जेन शरीर में प्रवेश करता है तो यह एंटीबॉडी प्रतिक्रिया को सक्रिय कर देता है। जिससे इसका असर त्वचा, आंखों और नाक-गले में नजर आने लगता है। एलर्जी एक ही समय में शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित कर सकती है। जैसे-

नाक, गला, आंखें

जब एलर्जी पैदा करने वाले तत्व सांस के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं तो नाक बहने लगती है और इसमें बलगम बनने लगता है। साथ ही वह सूज जाती है। उसमें जलन और खुजली भी होने लगती है। फिर सर्दी, खांसी, छींकें आना, आंखों से पानी आना और गले में खराश होना भी इसके कुछ लक्षण हो सकते हैं।

त्वचा

एलर्जी का सबसे ज्यादा असर त्वचा पर ही पड़ता है। एलर्जी के कारण होने वाली त्वचा संबंधी समस्याओं में एटोपिक डर्माटाइटिस (एक्जिमा) और अर्टिकेरिया (पित्ती) शामिल हैं। इसमें स्किन में रैशेज और दाने हो जाते हैं।

लंग्स और छाती

एलर्जी के कारण अस्थमा हो सकता है। कई बार लोगों को अस्थमा का पता भी नहीं चल पाता है कि उन्हें ये बीमारी है। जब कोई एलर्जेन सांस के जरिए अंदर जाता है तो श्वास नली में सूजन आ जाती है और इससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

पेट और आंत

आमतौर पर एलर्जी पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों में मूंगफली, सी फूड, डेयरी प्रोडक्ट और अंडे शामिल हैं। बच्चों में गाय के दूध से एलर्जी होने की संभावना रहती है और इससे एक्जिमा, अस्थमा, पेट दर्द हो सकता है।

कुछ लोग लैक्टोज (दूध में मौजूद शुगर) को पचा नहीं पाते हैं, जिससे पेट खराब हो जाता है। इसे लैक्टोज इंटॉलरेंस कहा जाता है और ये एलर्जी से काफी अलग है। ज्यादातर मामलों में शरीर का वह हिस्सा जिसे एलर्जेन छूता है, वहीं एलर्जी के लक्षण उभर आते हैं। अगर आपको भी ये लक्षण दिखें तो कैसे लगाएं पता कि ये एलर्जी है या नहीं। नीचे पॉइंटर्स में देखें-

  • एलर्जी टेस्ट- एलर्जी टेस्ट से यह पता लगाया जा सकता है कि लक्षण वास्तव में एलर्जी है या कोई और कारण है।
  • प्रिक टेस्ट- ये स्किन एलर्जी टेस्ट का सबसे आम तरीका है। इसमें डॉक्टर आपकी स्किन के किसी खास हिस्से (आमतौर पर बांह या पीठ का ऊपरी हिस्सा) में एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थ की थोड़ी मात्रा को नीडल के जरिए हल्का सा प्रिक करके डालते हैं।
  • यह नीडल खून में प्रवेश नहीं करती। सिर्फ स्किन के ऊपरी हिस्से में रहती है। अगर आपको एलर्जी है तो 15 मिनट के भीतर आपकी स्किन रिएक्ट करने लगेगी। रैशेज, लाल चकत्ते, सूजन जैसे लक्षण दिखाई देंगे।
  • इंट्राडर्मल टेस्ट- इसमें आपकी त्वचा के नीचे एलर्जेन की एक छोटी मात्रा को इंजेक्ट किया जाता है। फिर त्वचा पर रिएक्शन के लिए नजर रखी जाती है।
  • पैच टेस्ट- इसमें आपकी त्वचा पर संदिग्ध एलर्जेन वाला पैच लगाया जाता है। फिर रिएक्शन के लिए त्वचा पर बारीकी से नजर रखी जाती है। आमतौर इसका पता 48 से 72 घंटे बाद लगता है।

इसके अलावा कुछ ब्लड टेस्ट किए जाते हैं-

  • इम्युनोग्लोबुलिन ई (IGE)- यह एलर्जी से संबंधित पदार्थों के स्तर को मापता है।
  • कम्प्लीट ब्लड काउंट (CBC)- इसमें ईसिनोफिल व्हाइट ब्लड सेल (WBC) की मात्रा का पता लगाया जाता है।
  • ऐलिमिनेशन टेस्ट- इस टेस्ट का इस्तेमाल अक्सर भोजन या दवा से एलर्जी की जांच के लिए किया जाता है।

एलर्जी के मामले में प्रतिरक्षा प्रणाली नाइट क्लब के बाउंसरों की तरह काम करती है

एलर्जी के लक्षणों को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप उन चीजों से दूर रहें, जो आपकी एलर्जी का कारण बनती हैं। एलर्जी को रोकने और उसका इलाज करने के लिए कई तरह की दवाइयां उपलब्ध हैं। 

टी-कोशिकाएँ हमारे शरीर की पुलिस अधिकारी हैं, वे लगातार घूम रही हैं और हमारे शरीर में ऐसी चीज़ें ढूँढ रही हैं जो वहाँ नहीं होनी चाहिए। इसलिए अगर कोई टी-कोशिका ओक पराग के संपर्क में आती है, तो वह कहती है, “मुझे यह पसंद नहीं है। इसे हटाना होगा।”

यह उस जानकारी को बी-कोशिकाओं नामक कोशिकाओं के एक वर्ग को देती है। उन्हें अपने शरीर में नाइट क्लब मैनेजर के रूप में सोचें, सड़क पर जहाँ टी-कोशिका गश्त कर रही है। और वह इस ओक पराग की एक तस्वीर दिखाता है और कहता है, “अरे, मुझे यह आदमी वाकई पसंद नहीं है। अगर तुम उसे देखो, तो मुझे बताओ। चलो कुछ लोगों से संपर्क करते हैं। हमें इसे बाहर निकालना होगा।”

और इसलिए ये बी-कोशिकाएँ … IgE या छोटे प्रोटीन, Y-आकार के प्रोटीन नामक कोशिकाएँ बनाती हैं, और वे बाउंसर की तरह होती हैं। लेकिन … हर IgE अपराधी के लिए अद्वितीय होता है। इसलिए नाइट क्लब के प्रवेश द्वार पर, आपके पास ओक पराग को देखने के लिए एक बाउंसर तैयार है, लेकिन आपके पास 50 बाउंसर हैं जो सभी विशिष्ट चीज़ों की तलाश में हैं।

इसलिए जब वे इसे या इसके समान कुछ देखते हैं, तो वे संकेत भेजते हैं। वे सभी अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं को सचेत करते हैं कि कुछ गड़बड़ है, आपको आना होगा और इस व्यक्ति की देखभाल करनी होगी। तो यह मूल रूप से आपके शरीर में हर समय चल रहा है।

नोट- कोई भी दवाई लेने से पहले आपको डॉक्टर से परामर्श लेना बहुत जरूरी है।

बाकी आप कुछ सावधानियां अपने स्तर पर भी बरत सकते हैं। नीचे दिए पॉइंटर्स से समझिए-

  • घर के रजाई-गद्दों, कंबल वगैरह को हर तीन महीने में एक बार धूप दिखाएं। खासतौर पर बारिश के मौसम से पहले और बारिश के मौसम के बाद।
  • बेडशीट, बेड कवर वगैरह को एक हफ्ते से ज्यादा इस्तेमाल न करें। पर्दों को हर 20 दिन पर धोएं।
  • कारपेट की हर महीने में सफाई करवाएं। अगर मुमकिन हो तो कारपेट को भी धूप दिखाएं।
  • अगर बहुत ज्यादा धूल है तो बेहतर होगा कि घर में झाड़ू की जगह पहले सीधे गीले पोछे से सफाई करें। आप वैक्यूम क्लीनर का भी उपयोग कर सकते हैं।
  • आप घर में एयर फिल्टर भी उपयोग कर सकते हैं। इससे डस्ट के साथ-साथ डस्ट माइट भी साफ हो जाते हैं।
  • घर में पालतू जानवरों को बेड पर न चढ़ने दें। उन्हें अलग रूम या कोई अलग जगह रखें।
  • जिन पेड़-पौधों से एलर्जी हो सकती है, उसे तुरंत हटा दें।
  • घर में वेंटीलेशन बनाए रखें। इससे आप ह्यूमिडिटी से बचे रहेगें।

चिकित्सकों का कहना है कि एलर्जी का सही समय पर उपचार कराना चाहिए। इसमें लापरवाही नुकसानदायक हो सकती है। एलर्जी कई तरह की होती है। जिसमें किसी दवा के रिएक्शन करने से, किसी खाद्य पदार्थ का सेवन करने से, किसी पदार्थ को छूने या उसके संपर्क में आने पर त्वचा पर लाल चकते बनना, मौसमी एलर्जी जिसमें आंखों से पानी आना, छींकें आना आदि परेशानी होती है।

सीएचसी के चिकित्साधीक्षक डॉ. रमेश चंद्रा का कहना है कि अस्पताल में रोजाना करीब 15 से 20 प्रतिशत एलर्जी के मरीज आते हैं, जिनमें अधिकतर त्वचा संबंधी एलर्जी खाज खुजली के केस होते हैं। एलर्जी के लिए अस्पताल में पर्याप्त दवाएं उपलब्ध हैं।

एंटीहिस्टामाइंस, डिकंजस्टेंट्स और नाक में डालने वाला कॉर्टिकोस्टेरॉइड स्प्रे जैसी कुछ दवाएं एलर्जिक राइनाइटिस के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं। हालांकि ये केवल डॉक्टर के साथ परामर्श करके ही ली जानी चाहिए।

इससे आप काफी हद तक अपने और अपने परिवार को एलर्जी और इंफेक्शंस से बचा सकते हैं।

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चीन में मानव मेटान्यूमो वायरस के प्रकोप से आपातकाल की स्थिति घोषित

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 03 जनवरी 2025 | जयपुर : कोविड-19 महामारी के पाँच साल बाद चीन में मानव मेटान्यूमोवायरस (HMPV) का प्रकोप देखा जा रहा है। रिपोर्ट और सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार, अस्पताल संक्रमित व्यक्तियों से भरे हुए हैं और शवदाहगृहों में भीड़भाड़ है।

चीन में मानव मेटान्यूमो वायरस के प्रकोप से आपातकाल की स्थिति घोषित

कुछ सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं का दावा है कि इन्फ्लूएंजा ए, HMPV, माइकोप्लाज्मा न्यूमोनिया और कोविड-19 सहित कई वायरस चीन में फैल रहे हैं। यहाँ तक कि यह दावा भी किया जा रहा है कि चीन ने आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी है, हालाँकि, इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

चीन में मानव मेटान्यूमो वायरस के प्रकोप से आपातकाल की स्थिति घोषित, श्मशान और अस्पतालों में लाशों के ढेर

HMPV फ्लू जैसे लक्षण पैदा करता है। वायरस आमतौर पर ऊपरी श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है, लेकिन कभी-कभी निचले श्वसन संक्रमण का कारण बन सकता है। HMPV सर्दियों और शुरुआती वसंत में अधिक आम है।

चीन में श्वसन संबंधी बीमारियों में उछाल देखने को मिल रहा है, जिसमें ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (HMPV) एक प्रमुख चिंता का विषय बनकर उभर रहा है। पिछले महीने, देश ने अज्ञात मूल के निमोनिया सहित सर्दियों की बीमारियों के लिए एक निगरानी प्रणाली का संचालन शुरू किया।

इसके बाद, कई सोशल मीडिया पोस्ट से पता चलता है कि HMPV बीमारी तेज़ी से फैल रही है और ज़्यादातर बच्चों और बुज़ुर्गों को प्रभावित कर रही है, जिससे अस्पताल और श्मशान घाट भर गए हैं।

मानव मेटान्यूमोवायरस के लक्षण

HMPV के लक्षण फ्लू या सामान्य सर्दी के समान हैं। यह संक्रमित व्यक्ति से खाँसने, छींकने या व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से दूसरों में फैल सकता है। कुछ सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:

  • खांसी
  • बुखार
  • नाक बंद होना
  • गले में खराश
  • सांस लेने में तकलीफ

अनुमानित ऊष्मायन अवधि तीन से छह दिन है और अवधि संक्रमण की गंभीरता पर निर्भर करती है।

किसे ज़्यादा जोखिम है?

छोटे बच्चों, बड़े वयस्कों और कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को HMPV के कारण गंभीर बीमारी होने का ज़्यादा जोखिम है।

HMPV की जटिलताएँ क्या हैं?

कभी-कभी HMPV गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है जिसके लिए अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता हो सकती है। ब्रोंकियोलाइटिस, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया, अस्थमा या सीओपीडी भड़कना और कान का संक्रमण (ओटिटिस मीडिया) कुछ जटिलताएँ हैं।

रोकथाम के सुझाव:

आप इन उपायों से एचएमपीवी और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों के जोखिम को कम कर सकते हैं:

  • प्रसार को नियंत्रित करने के लिए कम से कम 20 सेकंड तक साबुन और पानी से हाथ धोएँ
  • खाँसते या छींकते समय अपना मुँह और नाक ढँकें
  • मास्क पहनने पर विचार करें और बीमार लोगों के संपर्क में आने से बचें
  • बिना धुले हाथों से अपनी आँखें, नाक और मुँह को छूने से बचें
  • अगर आप बीमार हैं तो खुद को अलग रखें

वर्तमान में, एचएमपीवी को रोकने के लिए कोई विशिष्ट एंटीवायरल थेरेपी या टीका उपलब्ध नहीं है। हालाँकि चीन के स्वास्थ्य अधिकारियों ने HMPV को महामारी के रूप में उल्लेख नहीं किया है, लेकिन देश ने दिसंबर 2024 में खुलासा किया कि वे अज्ञात रोगजनकों से निपटने के लिए एक प्रोटोकॉल स्थापित करने जा रहे हैं।

चीन में ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (HMPV) के तेजी से फैलने के साथ, आपको श्वसन रोग के बारे में जानने की जरूरत है।

HMPV क्या है?

ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (HMPV) एक ऐसा वायरस है जो आम सर्दी के समान लक्षण पैदा करता है। सामान्य मामलों में, यह खांसी या घरघराहट, बहती नाक या गले में खराश का कारण बनता है। छोटे बच्चों और बुजुर्गों में, HMPV गंभीर हो सकता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में यह वायरस गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है।

HMPV के लक्षण

क्लीवलैंड क्लिनिक के अनुसार, यह एक ऊपरी श्वसन संक्रमण है, लेकिन यह कभी-कभी निमोनिया, अस्थमा के प्रकोप जैसे निचले श्वसन संक्रमण का कारण बन सकता है या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) को बदतर बना सकता है।

यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के अनुसार, HMPV की खोज 2001 में हुई थी, और यह रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (RSV) के साथ न्यूमोविरिडे परिवार से संबंधित है।

बीमारी की गंभीरता के आधार पर बीमारी की अवधि अलग-अलग हो सकती है, लेकिन आमतौर पर ऊष्मायन अवधि 3 से 6 दिन होती है। सी.डी.सी. के अनुसार, एच.एम.पी.वी. संक्रमण के लक्षण ब्रोंकाइटिस या निमोनिया में बदल सकते हैं और ये ऊपरी और निचले श्वसन संक्रमण का कारण बनने वाले अन्य वायरस के समान हैं।

एच.एम.पी.वी. की रोकथाम

एच.एम.पी.वी. के प्रसार से बचने के लिए, स्वास्थ्य अधिकारी कम से कम 20 सेकंड के लिए साबुन और पानी से बार-बार हाथ धोने का सुझाव देते हैं। बिना धुले हाथों से आँख, नाक या मुँह को छूने से बचें और बीमार लोगों के साथ निकट संपर्क से बचें। जिन लोगों को सर्दी-जुकाम जैसे लक्षण हैं, उन्हें बाहर निकलते समय या छींकते या खांसते समय मास्क पहनना चाहिए। बार-बार हाथ धोना भी ज़रूरी है।

एच.एम.पी.वी. के लिए उपचार या टीका

फ़िलहाल, एच.एम.पी.वी. के लिए कोई विशिष्ट एंटीवायरल उपचार नहीं है। कोई टीका भी विकसित नहीं किया गया है। लक्षणों को दूर करने के लिए सामान्य सहायक देखभाल दी जाती है।

क्या एच.एम.पी.वी. कोविड-19 के समान है?

एचएमपीवी और कोविड-19 के लक्षण बहुत हद तक एक जैसे हैं। दोनों वायरस खांसी, बुखार, घरघराहट, गले में खराश और सांस लेने में तकलीफ जैसी श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बनते हैं। अप्रैल 2024 में वायरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 के बाद, चीन के हेनान में एचएमपीवी के मामले बढ़ गए।

अध्ययन से पता चला है कि 29 अप्रैल से 5 जून, 2023 के बीच लगभग हर दिन एचएमपीवी संक्रमण का पता चला और अस्पताल में भर्ती कराया गया। क्या एचएमपीवी नई महामारी बनने जा रही है?

जबकि कई सोशल मीडिया पोस्ट और रिपोर्ट दावा करती हैं कि चीन एक और महामारी से जूझ रहा है, स्वास्थ्य अधिकारियों के पास संभावित आपातकाल के बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं है। एचएमपीवी के लिए कोई विशिष्ट उपचार या टीका उपलब्ध नहीं होने के कारण, वायरस के बारे में जागरूकता सावधानी और रोकथाम को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।

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बांदीकुई टाइगर के हमले में विनोद मीणा के दोनों पैरों में 28 टांके टखने की हड्‌डी

ये कहना है दौसा के मऊखुर्द गांव के 45 साल के विनोद कुमार मीणा का। विनोद खेती करते हैं। साथ ही ड्राइवर का काम भी करते हैं। गांव के दो अन्य लोगों की तरह विनोद भी टाइगर के हमले का शिकार हो गए। उनके दोनों पैरों में 28 टांके आए हैं। फिलहाल जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल के ट्रोमा वार्ड में भर्ती हैं।

बांदीकुई टाइगर के हमले में विनोद मीणा के दोनों पैरों में 28 टांके टखने की हड्‌डी

बांदीकुई टाइगर के हमले में विनोद मीणा के दोनों पैरों में 28 टांके टखने की हड्‌डी

आभास तक नहीं था कि बाघ 30 फीट छलांग लगाकर सीधे हमला कर देगा। घबराहट में मैं गिर पड़ा। मेरे गिरते ही उसने मेरा पांव अपने जबड़े में दबोच लिया। मुझे 4-5 फीट तक घसीटकर ले गया। बाघ ने मुझ पर तीन बार हमला किया। मौत को सामने देख मैं कांप गया।

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अचानक टाइगर ने 30 फीट की छलांग लगाई। मैं संभल पाता, इससे पहले टाइगर ने जबड़े में मेरा पैर दबोच लिया। मैंने हिम्मत करके मुक्के मारे तो छोड़ा।

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टाइगर के हमले में विनोद के दोनों पैरों में 28 टांके आए हैं। टखने की हड्‌डी भी टूट गई।

टाइगर के हमले में मांस तक बाहर निकला

मूकनायक मीडिया टीम ट्रोमा सेंटर में पहुंची तो विनोद इमरजेंसी में स्ट्रेचर पर लहूलुहान पड़े थे। उनकी बायीं जांघ, टखने और पिंडली खून से लथपथ थे। टाइगर के नुकीले दांतों के गहरे जख्म से मांस बाहर आ गया। जख्म वाली जगह 15 टांके लगाने पड़े।

बायें पैर के घुटने के नीचे की हड्डी टाइगर के जबड़ों में काफी देर फंसी रही। इसके चलते टखने की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया। यहां भी 4 टांके आए हैं। निचले पंजे के पास भी दो टांके लगाने पड़े। वहीं, दायीं जांघ पर भी 7 नुकीले दांत और पंजों के कारण हुए गहरे जख्म हो गए।

7 टांके आए। डॉक्टर्स ने ऑपरेशन करने की बात भी कही है। विनोद और गांव से उनके साथ आए लोगों का कहना है कि सुबह टाइगर के मूवमेंट और नजर आने की सूचना समय से देने के बावजूद वन विभाग की रेस्क्यू टीम 11 बजे तक भी गांव में नहीं पहुंची थी।

बुधवार सुबह 11 बजे सरिस्का से वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। टाइगर पलासन नदी की ओर भाग गया, जिसकी लगातार तलाश की जा रही है।

बुधवार सुबह 11 बजे सरिस्का से वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। टाइगर पलासन नदी की ओर भाग गया, जिसकी लगातार तलाश की जा रही है।

30 फीट छलांग लगाकर दबोचा पैर

विनोद ने बताया कि टाइगर की सूचना पर वो सुबह करीब 9 बजे गांव के नजदीक खेतों में गया था। टाइगर थोड़ी दूर छुपा था। मैं भी सभी गांव वालों के साथ उसे देख रहा था। अचानक टाइगर वहां खड़े लोगों की तरफ दौड़ा। टाइगर को अपनी ओर आता देख सभी लोग इधर-उधर भागने लगे। मैं जूतियां पहने था, जिस वजह से ज्यादा तेज नहीं भाग सका। संभलने का मौका मिलता, तब तक बाघ काफी करीब आ गया था।

फिर किसी तरह हिम्मत कर उसके मुंह पर मुक्के मारे। इससे एक बार उसने मुझे छोड़ दिया, लेकिन फिर दोबारा पकड़ लिया। मैंने फिर उसके जबड़े से खुद को बचाने के लिए उसके मुंह पर मारा। इसके बाद वह मुझे छोड़कर दूर खेतों में भाग गया। मैंने मौत को इतना करीब से पहले कभी नहीं देखा था। बचने की आस ही छोड़ दी थी।

वन विभाग की टीमें टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश कर रही थीं। इसी बीच टाइगर एक खेत से निकलकर दूसरे खेत की ओर भाग गया।

वन विभाग की टीमें टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश कर रही थीं। इसी बीच टाइगर एक खेत से निकलकर दूसरे खेत की ओर भाग गया।

ग्रामीणों का दावा- यहां पहली बार टाइगर आया

गांव के अनिल कुमार बैरवा ने बताया कि हमले में गांव के बाबूलाल मीणा और एक महिला उगा महावर भी घायल हुए हैं। हालांकि उनकी हल्की चोटें थीं, ऐसे में उन्हें स्थानीय अस्पताल में ही भर्ती कराया गया है। एक अन्य व्यक्ति मोइनुद्दीन खान ने बताया कि सरिस्का के जंगलों से निकलकर यह टाइगर गांव में आ गया।

काफी देर तक गांव की गलियों में घूमने के बाद यह खेतों की और चला गया। इस बीच लोग छतों पर चढ़कर बाघ देखने के लिए इकठ्ठे हुए थे। विनोद भी उसी भीड़ में शामिल था। अचानक बाघ ने हमला कर दिया और किसी को संभलने का मौका नहीं मिला।

सवाल : किस बाघ ने किया हमला

बीते एक डेढ़ महीने से सरिस्का के जंगलों से दो बाघ निकलकर जयपुर से 15-20 किमी की दूरी पर जंगलों में घूम रहे हैं। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है की मऊ खुर्द गांव में ग्रामीणों पर हमला करने वाला बाघ इनमें से कोई है या अन्य कोई?

सबसे पहले टाइगर को बांदीकुई के बैजुपाड़ा इलाके में देखा गया था। टाइगर के हमले में तीन ग्रामीणों के घायल होने की खबर ने आस-पास के गांव-ढाणियों में दहशत फैला दी है। सरिस्का अभ्यारण्य से एक बाघ के लापता होने की जानकारी भी मिली है। अनुमान लगाया जा रहा है कि हमला करने वाला बाघ वही हो सकता है।

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