मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 20 अगस्त 2024 | जयपुर : मोदी सरकार ने लेटरल एंट्री के जरिए सीधे सीनियर IAS लेवल की 45 वैकेंसी निकाली है। इनमें जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर जैसे बड़े सरकारी पद शामिल हैं। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि लेटरल एंट्री के जरिए सरकार खुलेआम SC, ST और OBC समुदाय का हक छीन रही है। इससे पहले भी मोदी सरकार इस तरह की नियुक्तियाँ कर चुकी हैं।
लेटरल एंट्री के बहाने RSS के लोग सीधा IAS बनाये जा रहे हैं
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पलटवार करते हुए कहा है कि UPSC में लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट कांग्रेस सरकार का है। UPSC में लेटरल एंट्री क्या है, इसमें कौन लोग भर्ती होते हैं, क्या इनमें रिजर्वेशन लागू नहीं होता, बीजेपी या कांग्रेस कौन जिम्मेदार; ऐसे 10 जरूरी सवालों के जवाब…
सवाल 1: UPSC में लेटरल एंट्री से जुड़ा विवाद अभी क्यों शुरू हुआ?
जवाब: यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन यानी 𝐔𝐏𝐒𝐂 ने 17 अगस्त को लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती के लिए 𝟒𝟓 पोस्ट पर वैकेंसी निकाली है। पहली बार इतनी बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र के लोगों को सरकार के सीनियर पदों पर रखा जाएगा।
लेटरल एंट्री के लिए UPSC की ओर से जारी किए गए विज्ञापन में आरक्षित सीटों का जिक्र नहीं किया गया है। ये जरूर कहा गया है कि इन पदों के लिए योग्य कैंडिडेट्स का चुनाव किया जाएगा।
18 अगस्त को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पोस्ट में लिखा कि लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती में आरक्षण लागू नहीं है। ऐसे में इसके जरिए भर्ती करके खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का हक छीना जा रहा है। नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के जरिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं।
इसके बाद से ही लेटरल एंट्री को लेकर विवाद शुरू हो गया है। राहुल के अलावा विपक्षी दलों के नेता तेजस्वी यादव ने भी ट्वीट कर लेटरल एंट्री में रिजर्वेशन नहीं देने को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की है। इन बयानों पर सरकार ने भी पलटवार किया है।
सवाल 2: लेटरल एंट्री होती क्या है, जिस पर इतना हंगामा मचा है?
जवाब: UPSC में लेटरल एंट्री का मतलब प्राइवेट सेक्टर के लोगों की सरकार के बड़े पदों पर सीधी भर्ती से है। इसमें दो ऑब्जेक्टिव पूरे करने के बहाने होते हैं। पहला- प्रशासन में एक्सपर्ट्स शामिल होते हैं, दूसरा- प्रतिस्पर्धा बनी रहती है।
इस संबंध में आरक्षण रोस्टर के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा का कहते हैं “वास्तविकता यह है कि आईएएस में चयनित होने वाले अभ्यर्थी इंजीनियरिंग, मेडिकल, अर्थशास्त्र, कृषि, मैनेजमेंट इत्यादि क्षेत्रों में उच्च शिक्षा ग्रहण करके आते हैं और वेल क्वालिफाइड होते हैं।”
लेटरल एंट्री के जरिए सरकार में संयुक्त सचिव, निदेशक या उप-सचिव पदों के लिए भर्ती होती है। किसी सरकारी विभाग में सचिव और अतिरिक्त सचिव के बाद संयुक्त सचिव का पद तीसरा सबसे बड़ा और ताकतवर पद है। संयुक्त सचिव अपने विभाग में प्रशासनिक प्रमुख के रूप में काम करते हैं।
निदेशक संयुक्त सचिव से एक रैंक नीचे होता है और उप-सचिव निदेशक से एक रैंक नीचे होता है। संयुक्त सचिव वह पद है, जहां से किसी विभाग में फैसला लेने की प्रक्रिया शुरू होती है।
सवाल 3: UPSC ने 45 पदों पर लेटरल एंट्री की जो वैकेंसी निकाली, क्या उसमें आरक्षण लागू नहीं होगा?
जवाब: इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसमें रिजर्वेशन लागू नहीं होगा। भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग ने एक RTI जवाब में कहा है कि सरकारी नौकरियों में 13 रोस्टर पॉइंट के जरिए रिजर्वेशन लागू होता है।
रोस्टर सिस्टम क्या कहता है: इस सिस्टम के मुताबिक सरकारी नौकरी में हर चौथा पद OBC, हर सातवां पद SC, हर चौदहवां पद ST और हर 10वां पद EWS के लिए रिजर्व होना चाहिए। पर इसमें 3 से कम पदों पर भर्ती के लिए रिजर्वेशन लागू नहीं होने के नियम का हवाला दिया जा रहा है, जो भ्रामक है।
इस पर प्रोफ़ेसर मीणा कहते हैं कि ऐसे में रिवर्स रिजर्वेशन का नियम लागू होना चाहिए जिसके तहत पहला पद एससी, दूसरा पद एसटी, तीसरा पद ओबीसी और चौथा पद अनारक्षित होना चाहिए। सबसे बड़ी समस्या यह है की अनारक्षित पदों को सवर्ण के लिए आरक्षित मान लिया जाता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।
इस बार UPSC ने लेटरल एंट्री के जरिए 45 पदों पर वैकेंसी निकाली है। रिजर्वेशन रोस्टर के मुताबिक 6 SC, 3 ST, 12 OBC और 4 EWS के लिए होना चाहिए। हालांकि, सरकार ने कानून के टेक्निकल वजहों का लाभ उठाते हुए अलग-अलग विभागों से 3 से कम पदों के लिए विज्ञापन जारी किए हैं।
इसमें रिजर्वेशन लागू नहीं करने का बहाना बनाया है। इस मामले पर मूकनायक मीडिया ने UPSC के संबंधित अधिकारियों से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया।
सवाल 4: क्या UPSC या भारत सरकार ने लेटरल एंट्री में रिजर्वेशन को लेकर कोई निर्देश दिए हैं?
जवाब: हां, 29 नवंबर 2018 को भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग की एडिशनल सेक्रेटरी सुजाता चतुर्वेदी ने UPSC के सेक्रेटरी राकेश गुप्ता को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में कहा गया था कि लेटरल एंट्री के लिए कैंडिडेट का चुनाव प्राइवेट कंपनियों, राज्य सरकार, स्वतंत्र निकाय, यूनिवर्सिटी से किया जाना चाहिए। जो अपने क्षेत्र में एक्सपर्ट हों। ये भर्ती कांट्रैक्ट के तौर पर 3 से 5 साल के लिए होगी। इस पत्र में इस बात का भी जिक्र था कि इन भर्तियों के लिए रिजर्वेशन को लागू करना जरूरी नहीं है।
सवाल 5: लेटरल एंट्री के जरिए पहली भर्ती कब हुई?
जवाब: फरवरी 2017 में नीति आयोग ने तीन साल के लिए एक एक्शन प्लान तैयार किया। इसके तहत केंद्रीय सचिवालय में प्राइवेट सेक्टर के अनुभवी लोगों को बहाल करने का सुझाव दिया गया।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 3 साल के लिए कांट्रैक्ट बेसिस पर लेटरल एंट्री से भर्ती हो, जिसे 2 और साल के लिए बढ़ाकर 5 साल किया जा सकता है। इसके बाद 2018 में पहली बार लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती की शुरुआत हुई। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संयुक्त सचिवों और निदेशक जैसी सीनियर पोस्ट के लिए आवेदन मांगे थे।
सवाल 6: पहली भर्ती 2018 में हुई तो BJP क्यों कह रही कि ये कांग्रेस की देन है?
जवाब: लेटरल एंट्री पर मोदी सरकार के मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पोस्ट किया कि लेटरल एंट्री का पूरा कॉन्सेप्ट ही कांग्रेस की अगुआई वाली UPA सरकार की देन है।
2005 में UPA सरकार ने सरकारी नौकरियों में रिफॉर्म के लिए एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म कमीशन यानी ARC बनाया। इसका नेतृत्व वीरप्पा मोइली कर रहे थे। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हर सरकारी विभागों में उस क्षेत्र के एक्सपर्ट्स लोगों की भर्ती होनी चाहिए।
इससे पहले 1966 में भी मोरारजी देसाई की अध्यक्षता वाले पहले प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसका आधार तैयार किया था। हालांकि आयोग ने लेटरल एंट्री की कोई वकालत नहीं की थी।
बाद में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद लेटरल एंट्री के जरिए भरा जाने लगा। नियमों के अनुसार, इसके लिए 45 साल से कम आयु होनी चाहिए और वह अनिवार्य रूप से एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री हो। इसी तर्ज पर कई अन्य विशेषज्ञों को सरकार के सचिवों के रूप में नियुक्त किया जाता है।
सवाल 7: क्या लेटरल एंट्री की शुरुआत कांग्रेस सरकार में हुई?
जवाब: नहीं। कांग्रेस प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल का कहना है कि 2005 में नौकरियों में रिफॉर्म के लिए ARC बनाई गई थी। इस कमेटी ने अपना सुझाव भी दिया था, लेकिन UPA सरकार ने लेटरल एंट्री के जरिए एक भी भर्ती नहीं की थी।
इस कमेटी ने सरकार को सुझाव दिया था कि सरकारी विभाग में बड़े पदों पर बैठने वाले अधिकारियों को उस क्षेत्र का एक्सपर्ट होना जरूरी है। इसलिए पारंपरिक सिविल सेवाओं के जरिए भर्ती के बजाय कुछ सीनियर पदों पर उस क्षेत्र के विशेषज्ञों को भर्ती करना चाहिए। हालांकि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने इस सुझाव को लागू नहीं किया था।
2018 में पहली बार UPSC और दूसरी सरकारी संस्थाओं के जरिए वेकैंसी निकालकर लेटरल बहाली की शुरुआत हुई है। इससे पहले सलाहकार के तौर पर एक्सपर्ट्स होते थे, लेकिन लेटरल एंट्री जैसी कोई कानूनी व्यवस्था नहीं थी।
कांग्रेस के आरोपों पर कानून मंत्री अर्जून राम मेघवाल का कहना है कि 1976 में मनमोहन सिंह भी लेटरल एंट्री के जरिए ही फाइनेंस सेक्रेटरी बने थे। इतना ही नहीं सोनिया गांधी को नेशनल एडवाइजरी काउंसिल का प्रमुख बनाया गया था। 2005 में वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में ही एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म कमीशन की बैठक हुई थी।
सवाल 8: क्या लेटरल एंट्री की भर्तियों में OBC, SC-ST का हक मारा जा रहा है?
जवाब: कांग्रेस प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल का कहना है कि जिन 45 पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए वैकेंसी निकली है, उसके विज्ञापन में रिजर्वेशन शब्द का जिक्र तक नहीं है। ऐसे में ये OBC, SC-ST के लिए हकमारी नहीं तो और क्या है।
गोहिल कहते हैं कि लेटरल एंट्री के जरिए सरकार के सबसे बड़े पदों पर भर्ती होती है। इस तरह की भर्ती प्रक्रिया में रिजर्वेशन लागू नहीं होते हैं। सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन लागू करना सरकार का दायित्व है।
साफ है कि इस तरह की भर्तियां समाज के ताकतवर वर्ग के लोगों के लिए है और OBC, SC-ST के साथ ये छलावा है।
हालांकि, BJP आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय का कहना है कि कांग्रेस नेताओं का ये तर्क गलत है। सरकार सभी विभागों और मंत्रालयों में रिजर्वेशन के तहत नौकरी दे रही है। कांग्रेस सरकार के सुझावों के आधार पर ही मोदी सरकार ट्रांसपैरेंसी के साथ लेटरल एंट्री के जरिए अधिकारियों को बहाल करती है।
सवाल 9: क्या सभी सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन लागू करना जरूरी है?
जवाब: हां, सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं कि सभी सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन लागू होना संवैधानिक तौर पर जरूरी है। हालांकि रोस्टर सिस्टम के तहत कुछ नौकरियां रिजर्वेशन के दायरे से बाहर हो जाती हैं।
अक्टूबर 2023 में खुद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकारी विभागों में 45 दिन या उससे अधिक की अस्थायी नियुक्तियों में SC/ST/OBC आरक्षण दिया जाएगा। सभी मंत्रालयों और विभागों को अस्थायी पदों पर इस आरक्षण को सख्ती से लागू करने के निर्देश जारी किए गए हैं।
ऐसे में अगर किसी नौकरी के विज्ञापन में इसका जिक्र नहीं है तो ये देखना होगा कि क्या रोस्टर सिस्टम के तहत इन वैकेंसी पर कोटा लागू होगा या नहीं। जब देश के प्राइवेट सेक्टर में रिजर्वेशन देने की बात हो रही है।
स्थानीय लोगों को अलग-अलग राज्यों में रिजर्वेशन देने की बात कहती है। ऐसे वक्त में लेटरल एंट्री की नौकरी में रिजर्वेशन नहीं देना सही नहीं होगा। सरकार के बड़े पदों पर हर वर्ग के लोगों की भागीदारी तय होनी चाहिए।
सवाल 10: लेटरल एंट्री की क्या खामियां हैं और राहुल गांधी इसके जरिए RSS के लोगों की भर्ती के आरोप क्यों लगा रहे हैं?
जवाब: बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाने वाले संगठन ‘युवा हल्ला बोल’ के अध्यक्ष अनुपम के मुताबिक लेटरल एंट्री उच्च प्रशासनिक पदों पर शॉर्टकट भर्ती का तरीका है। इस हाई लेवल भर्ती प्रक्रिया में सामाजिक न्याय के संविधानिक प्रावधानों का खुलेआम तोड़ा जाता है। यह सिस्टम से देश और समाज के लिए इन 4 वजहों से खतरनाक है…
1. कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का उदाहरण बन सकता है: किसी निजी कंपनी से अगर कोई व्यक्ति सरकारी अधिकारी बनेगा तो उसे पता होगा कि तीन साल या 5 साल बाद उसे वापस उसी कंपनी में जाना है। ऐसे में सरकार के ताकतवर पदों पर रहते हुए वो अधिकारी अपने हितों में काम कर सकता है। इस तरह लेटरल एंट्री के कई मामलों में conflict of interest का उदाहरण भी बनेगा।
2. कानूनी नियमों को तोड़ेगा: सामाजिक न्याय के लिए बनाए गए कुछ संविधानिक प्रावधान का भी लेटरल एंट्री उल्लंघन करता है। कहना गलत नहीं होगा यह शॉर्टकट भर्ती आरक्षण से बचने का भी एक शॉर्टकट तरीका है।
3. युवाओं को हतोत्साहित करेगा: यह सिविल सेवा की तैयारी कर रहे करोड़ों युवाओं को हतोत्साहित करने वाली नीति है। जो IAS या IPS अभी सेवा नियमों के कारण बंधे हैं, वो अभी कुछ नहीं बोल पाएंगे, लेकिन अपने पदों को इस तरह पूंजीपति घरानों के लोगों के हाथों में जाते देख निराश होंगे। इससे नौजवान अधिकारियों और तैयारी कर रहे छात्रों का मोटिवेशन घटेगा।
4. निष्ठां की जाँच हो : 2018 में नियुक्त लोगों द्वारा किये गए कार्यों की समीक्षा अभी तक नहीं की गयी है जिससे पता चल सके कि लेटरल एंट्री में नियुक्ति लोगों की निष्ठां किसके प्रति रही; सरकार या निजी क्षेत्र। सामाजिक ऑडिट के माध्यम से यह भी परखा जाये कि 2018 में हुई नियुक्तियों में नियुक्त लोगों की पृष्ठभूमि क्या था ?
2018 में लेटरल एंट्री शुरू हुई तो पहली बार 9 विभागों में 9 लोगों की नियुक्ति हुई। इसके लिए 6 हजार आवेदन आए थे। 9 अगस्त 2024 को भारत सरकार ने बताया कि पिछले 5 साल में लेटरल एंट्री से 63 नियुक्तियां हुईं, जिसमें 57 अधिकारी अब भी काम कर रहे हैं।
दरअसल, राहुल गांधी के आरोप लगाने के पीछे एक तरह की डर ये है कि लेटरल एंट्री के जरिए सरकार समर्थक उम्मीदवारों की नियुक्ति हो जाएगी, जिसका सरकार कुछ अनुचित तरीके से फायदा उठा सकती है। इसके अलावा यह भी चिंता है कि ऐसे अफसर कारोबारी घराने के अनुकूल नीतियां बना सकते हैं या उन पर दबाव बन सकता है। हालांकि लेटरल एंट्री की भर्तियां भी एक पूरी तय प्रक्रिया के बाद होती हैं।