फोन टैपिंग केस में लोकेश शर्मा सरकारी गवाह बने, क्या गहलोत की मुश्किल बढ़ेगी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 16 दिसंबर 2024 | जयपुर : राजस्थान के बहुचर्चित फोन टैपिंग केस में नया मोड़ आ गया है। पूर्व सीएम अशोक गहलोत के ओएसडी रहे लोकेश शर्मा इस केस में सरकारी गवाह बन गए हैं। लोकेश शर्मा की सरकारी गवाह बनने की एप्लिकेशन को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मंजूर कर लिया है। फोन टैपिंग केस में लोकेश शर्मा दिल्ली क्राइम ब्रांच में पहले ही बयान दे चुके हैं। अब इस केस में जांच आगे बढ़ सकती है।

फोन टैपिंग केस में लोकेश शर्मा सरकारी गवाह बने, क्या गहलोत की मुश्किल बढ़ेगी

लोकेश शर्मा के सरकारी गवाह बनने के बाद अब इस केस में नया मोड़ आना तय है। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच लोकेश के बयानों के आधार पर अब पूर्व सीएम अशोक गहलोत, पूर्व एसीएस होम, तत्कालीन डीजीपी और गहलोत राज के कुछ अफसरों से पूछताछ कर सकती है। सरकारी गवाह बनने से लोकेश शर्मा को इस केस में राहत मिल गई है।

फोन टैपिंग केस में लोकेश शर्मा सरकारी गवाह बने

लोकेश शर्मा बोले- मेरे परिवार को खतरा, मुझे लगातार धमकियां मिल रही है

लोकेश शर्मा ने कहा- फोन टैपिंग केस में सरकारी गवाह बनने की मेरी याचिका को कोर्ट ने मंजूर ​कर लिया है। अब मैं कोर्ट जब भी बुलाएगा तब फोन टैपिंग की पूरी सच्चाई सबूतों के साथ बताऊंगा। पहले जांच एजेंसी को मैं सबूत सहित सब बता चुका हूं। मैंने इतनी बड़ी सच्चाई को सामने रखा है, मेरे और मेरे परिवार को जान का खतरा है, मैं परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित हूं।

लोकेश शर्मा ने कहा- मैं हर सबूत बताने को तैयार हूं। सियासी संकट के वक्त तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत रोज विधायकों के फोन टैप करवाते थे। गहलोत अपने पक्ष के और विरोधी विधायकों के फोन टैप करवाने के बाद ट्रांसक्रिप्ट तैयार करवाकर पढ़ा करते थे। मैं उस समय यह रोज देखता था।

लोकेश शर्मा को क्राइम ब्रांच ने अरेस्ट कर तुरंत छोड़ दिया था

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 21 दिन पहले ही सोमवार को लोकेश शर्मा को गिरफ्तार कर छोड़ दिया था। लोकेश शर्मा को 21 नवंबर को पटियाला हाउस कोर्ट से अग्रिम जमानत मिली हुई थी। इससे पहले, 14 नवंबर को खुद लोकेश शर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट में फोन टैपिंग केस में दायर गिरफ्तारी से राहत देने और केस राजस्थान ट्रांसफर करने की याचिका वापस ले ली थी। इसके बाद उनकी गिरफ्तारी पर लगी रोक हट गई थी।

लोकेश शर्मा ने कहा था- फोन टैपिंग में गहलोत से हो पूछताछ, मेरा रोल नहीं

लोकेश शर्मा ने क्राइम ब्रांच में दिए बयानों में केस को लेकर अशोक गहलोत के खिलाफ कई बातें बोली थीं। बयानों में कहा था- फोन टै​पिंग में मेरी कोई भूमिका नहीं है। अशोक गहलोत ने ही मुझे पेन ड्राइव में ऑडियो क्लिप देते हुए कहा था कि इसे मीडिया में भेज दो। मेरी फोन टै​पिंग में कोई भूमिका नहीं है।

अब इस मामले में जो कुछ बता सकते हैं, वह गहलोत ही बता सकते हैं। अब अशोक गहलोत से क्राइम ब्रांच पूछताछ करे। उनके नजदीकी अफसरों से भी पूछताछ हो,वे ही बता सकते हैं। सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के फोन भी सर्विलांस पर थे। फोटो 2 साल पुराना है। गहलोत और पायलट में बगावत के बाद संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल ने दोनों के बीच समझौता करवाया था।

लोकेश शर्मा ​फोन, पेन ड्राइव और लैपटॉप क्राइम ब्रांच को सौंप चुके

लोकेश शर्मा ने अपना फोन, पेन ड्राइव और कुछ सबूत भी दिल्ली पुलिस को दिए थे। पहले दिल्ली क्राइम ब्रांच से पूछताछ में लोकेश शर्मा ने ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया से मिलने की बात कही थी, लेकिन बाद में लोकेश ने गहलोत के खिलाफ स्टैंड लेते हुए बयान बदल दिए और अब सरकारी गवाह बन गए।

पायलट खेमे की बगावत के वक्त फोन टै​पिंग विवाद उठा था

जुलाई 2020 में सचिन पायलट खेमे की बगावत के समय लोकेश शर्मा ने मीडिया को कुछ ऑडियो क्लिप भेजे थे। इसमें सरकार गिराने की साजिश रचने के आरोप थे। उन क्लिप में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की दिवंगत कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा और तत्कालीन मंत्री विश्वेंद्र सिंह की बातचीत का दावा किया गया था, जिसमें सरकार गिराने की साजिश का आरोप था।

इस ऑडियो क्लिप के सामने आने के बाद बीजेपी ने कांग्रेस सरकार पर फोन टै​पिंग के आरोप लगाए थे। बीजेपी ने सरकार से ऑडियो के सोर्स के बारे में पूछा था। यह मामला विधानसभा और संसद में भी उठा था। सरकार ने विधानसभा में दिए जवाब में भी यह बात मानी थी कि लोकेश शर्मा ने ऑडियो सोशल मीडिया से लेकर वायरल किया था। इसके बाद मार्च 2021 में गजेंद्र सिंह शेखावत ने केस दर्ज करवाया था।

लोकेश शर्मा ने पायलट की बगावत के समय कुछ ऑडियो क्लिप मीडिया को शेयर किए थे।

लोकेश शर्मा ने पायलट की बगावत के समय कुछ ऑडियो क्लिप मीडिया को शेयर किए थे।

पायलट सहित विधायकों के फोन सर्विलांस पर थे

लोकेश शर्मा ने 2020 के फोन टै​पिंग मामले में मीडिया के सामने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि 16 जुलाई 2020 को तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत होटल फेयरमोंट आए थे।

लोकेश शर्मा ने आरोप लगाया था कि 2020 में सचिन पायलट खेमे की बगावत के समय तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत ने फोन टैपिंग करवाई थी।
लोकेश शर्मा ने आरोप लगाया था कि 2020 में सचिन पायलट खेमे की बगावत के समय तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत ने फोन टैपिंग करवाई थी

उनके होटल से निकलने के एक घंटे बाद मेरे पास गहलोत के पीएसओ रहे रामनिवास का कॉल आया था। कहा था- सीएम ने आपको बुलाया है। मैं पिंक हाउस पहुंचा तो गहलोत मेरा इंतजार कर रहे थे। गहलोत ने मुझे एक प्रिंटेड कागज और एक पेन ड्राइव दी। उसमें तीन ऑडियो क्लिप थी, जिसमें विधायकों की खरीद-फरोख्त की बात थी।

लोकेश शर्मा ने कहा था- ऑडियो को वायरल करने के बाद भी, जब तक खबर नहीं आई। गहलोत ने मुझे दो बार वॉट्सऐप कॉल कर पूछा- न्यूज में चला क्यों नहीं? जैसे ही खबर आई तो मुझे पता चला कि ऑडियो क्लिप में क्या है? मुझे सिर्फ डायरेक्शन दिए गए, जिसकी मैंने पालना की थी।

लोकेश शर्मा ने कहा था- जैसे ही अशोक गहलोत को पता चला कि पायलट कुछ विधायकों के साथ आलाकमान से मिलने जा रहे हैं, उन्होंने सारा षड्यंत्र रचा था। जो लोग उनके (सचिन पायलट) साथ गए थे, उनके फोन सर्विलांस पर थे। सभी को ट्रैक किया जा रहा था। इसमें पायलट भी शामिल थे। सभी का मूवमेंट पता किया जा रहा था।

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‘अरावली प्रदेश का निर्माण’ ही है पूर्वी राजस्थान के सर्वांगीण विकास का एक मात्र समाधान

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 17 मार्च 2025 | जयपुर : सबसे बड़े भू-भाग वाला प्रदेश- राजस्थान का क्षेत्रफल 3.42 लाख वर्ग किलोमीटर है जहां 6.85 करोड़ जनसंख्या निवास करती है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत का आठवां बड़ा राज्य है व भू-भाग की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य। सात संभाग, 33 जिले, 41353 ग्राम, उत्तर से दक्षिण की लंबाई 826 वर्ग किमी व पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 869 वर्ग किमी है।

‘अरावली प्रदेश का निर्माण’ ही है पूर्वी राजस्थान के सर्वांगीण विकास का एक मात्र समाधान

भारत के अलग अलग भागों में नए राज्यों के निर्माण की मांग उठ रही है जिनमें अरावली प्रदेश सबसे प्रबल है। राष्ट्रीय एकता व अखण्डता, सामरिक, आर्थिक, राजनैतिक, कृषि, उद्योग इत्यादि की विपुल संभावनाओं के मद्देनजर अरावली प्रदेश निर्माण की दावेदारी सबसे प्रबल है।

‘अरावली प्रदेश का निर्माण’ ही है पूर्वी राजस्थान के सर्वांगीण विकास का एक मात्र समाधान

भारत का सबसे बड़ा भूभाग राजस्थान जो दुनियां के 110 देशों से भी क्षेत्रफल में बड़ा है जिसको बीचों बीच से अरावली पर्वतश्रेणी ने दो भागों में विभाजित किया है जिसका उत्तरी पश्चिमी रेगिस्तानी थार का अरावली स्थल ही अरावली प्रदेश के नाम से जाना जाता है।

अलग राज्यों की बढ़ती माँग 

राजस्थान की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक इकाईयों में असमानता,आर्थिक विकास एवं राजनैतिक विमूढ़ता का सबसे अधिक नुकसान इस अरावली प्रदेश को उठाना पड़ा है। राजस्थान के इस 61.11% भूभाग के निवासियों के साथ विकास की प्रक्रिया में कभी न्याय नहीं हो पाया। बंजर अरावली स्थल कहकर इस क्षेत्र का सदैव उपहास एवं उपेक्षा की गयी।

60 वर्षों से अधिक इतिहास में राजनीतिज्ञों की नीतियों एवं उपेक्षाओं से यहाँ के निवासियों को अपने अस्तित्व को अलग लेकर अपनी समृद्ध अरावली प्रदेश बनाने की मजबूरन राह पकड़ अरावली प्रदेश बनाने की कुव्वत दिखानी पड़ेगी।

क्यों जरुरी है राजस्थान का “मरु और अरावली प्रदेश” में विभाजन

मरुप्रदेश के 20 जिलों में देश का 27 प्रतिशत तेल, सबसे महंगी गैस, खनिज पदार्थ, कोयला, यूरेनियम, सिलिका आदि का एकाधिकार है। एशिया का सबसे बड़ा सोलर हब और पवन चक्कियों से बिजली प्रोडक्शन यहाँ हो रहा है।

राजस्थान का “मरु और अरावली प्रदेश” में विभाजन

गौरतलब है कि एक तरफ जहां राजस्थान में प्रति व्यक्ति तो ज्यादा है, लेकिन पश्चिम राजस्थान के जिलों में रहने वालों का एवरेज निकाला जाये तो उनकी आय काफी कम है। राजस्थान की भौगोलिक और सांस्कृतिक इकाईयों में असमानता, आर्थिक विकास और राजनैतिक विमूढ़ता का सबसे ज्यादा नुकसान इस इलाके को उठाना पड़ा है।

राजस्थान के इस 61.11% भूभाग के निवासियों के साथ विकास की प्रक्रिया में कभी न्याय नहीं हो पाया। अरावली प्रदेश मुक्ति मोर्चा के संयोजक प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा का कहना है कि देश का विकास छोटे राज्यों से ही हो सकता है। राज्य जब तक बड़े राज्य रहे हैं, तब तक विकास से महरूम रहे हैं।

झारखंड, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड बेहतरीन उदहारण है, क्योंकि बिहार, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में रहते हुए विकास की डगर वहां तक नहीं पहुँच पायी थी। मगर जैसे ही अलग राज्य बने तो विकास की राह में ये राज्य अपने मूल राज्यों से आगे निकल गये। 

अलग अरावली प्रदेश की तार्किक माँग

अलग अरावली प्रदेश की माँग करने का तर्क है कि पूर्वी राजस्थान का ये क्षेत्र राज्य के अन्य हिस्सों के मुकाबले शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग और आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है। इन जिलों से अरबों रुपयों की रॉयल्टी सरकार कमा रही है, लेकिन इन जिलों में पीने का पानी, रोजगार, बेहतर स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा, स्पोर्ट्स और सैनिक स्कूल, खेतों को नहरों का पानी जैसी समस्यायों से आम जनता जूझ रही है। 

अलग अरावली प्रदेश की तार्किक माँग

इसका प्रमुख कारण भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति अलग है। इस हिस्से की जलवायु, कृषि, उद्योग और जनसंख्या का वितरण भी अलग है। यदि यह भू-भाग नए राज्य के रूप में सामने आयेगा तो इस क्षेत्र के विकास में तेजी आयेगी। “अरावली में बग़ावत” शीर्षक पुस्तक के लेखक प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा ने लिखा है कि अरावली भूमि का सम्पूर्ण विकास तभी होगा जब अरावली प्रदेश अलग राज्य बनेगा। अरावली के संसाधनों की लूट रुकेगी।

प्रोफ़ेसर मीणा कहते हैं, ”आज़ादी से पहले जहां अरावली का इलाक़ा विकास की दौड़ में शामिल था। वहीं आज़ादी के बाद सभी पार्टियों की सरकारों और चतुर-चालाक मारवाड़ी व्यवसाइयों ने इसके प्रति बेरुख़ी दिखायी। जबकि प्राकृतिक संसाधनों प्रचुरता से ये एरिया ख़ूब मालामाल है। खनिज के हिसाब से देखें तो इस क्षेत्र में कोयला, जिप्सम, क्ले और मार्बल निकल रहा है। वहीं, जोधपुर जैसे शहर में पीने का पानी अरावली क्षेत्र से ट्रेन से भर-भर कर ले जाकर वहाँ के लोगों की प्यास बुझायी जाती थी।

बीसलपुर बाँध का पानी पाली, अजमेर और जोधपुर के गाँवों तक पहुँचाया जा रहा है और अब जैसी ही बाड़मेर में तेल और गैस के भंडार मिले हैं, वैसे ही मरू प्रदेश की माँग जोर-शोर से उठायी जा रही है। जबकि राजस्थान के मुख्यमंत्रियों और उनकी सरकारों ने अरावली भू-भाग (पूर्वी राजस्थान) से रेवेन्यू तो भरपूर लिया है, लेकिन विकास को हमेशा अनदेखा किया है।

राजस्थान के बजट में सकल राजस्व और आमदनी

राजस्थान के बजट में सकल राजस्व और आमदनी का 70% हिस्सा अरावली प्रदेश से आता है और उसको 80% से भी अधिक पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तान में खर्च किया जाता रहा है। इसके समर्थन में आंकड़े गवाह हैं, जो बताते हैं कि कैसे जोधपुर को शिक्षा की नगरी बनाया गया। एक-आध को छोड़कर सारे-के-सारे केंद्रीय शिक्षण संस्थानों (20 से अधिक) को जोधपुर ले जाया गया।

अरावली के दक्षिणी छोर से लेकर उत्तरी छोर तक 500 किलोमीटर में एक भी केंद्रीय संस्थान नहीं है। एक तरफ, नर्मदा का पानी रेगिस्तान को हरा-भरा कर रहा है और वहीं दूसरी तरफ, अरावली प्रदेश (भू-भाग) एक-एक बूँद पानी के लिए तरस रहा है।

राजस्थान के बजट में सकल राजस्व और आमदनी

अरावली प्रदेश के भोले-भाले लोग तो यह भी नहीं जानते कि कैसे मंडरायल (करौली) में लगने वाली सीमेंट फेक्ट्री को जैतपुर (पाली) ले जाया गया जबकि मंडरायल में सब कुछ फाइनल हो चुका था। सवाई माधोपुर सीमेंट फेक्ट्री को कैसे बंद किया गया।” 

जब वर्ष 2000-01 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 03 राज्य नए बनाये तो उस समय के पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत जी ने भी पत्र लिख कर कहा था कि पूरे राजस्थान का विकास व देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए राज्य के दो भाग किये जाये। इसके बाद भी समय समय पर अनेको क्षेत्रीय नेताओ ने इस माँग का समर्थन किया लेकिन पार्टियों की गुलामी के चलते मुखर विरोध नहीं कर सके।

चहुँओर चमकेगी उन्नति, जब बनेगा अरावली प्रदेश

अरावली पर्वत माला भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है, जिसकी गिनती विश्व की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में भी होती है। यह भूवैज्ञानिक दृष्टि से अरबों वर्षों पुरानी है और भारतीय उपमहाद्वीप के भूगोल और इतिहास का अभिन्न हिस्सा है।

राजस्थान इस पर्वतमाला का मुख्य केंद्र है। अरावली यहाँ के परिदृश्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे राज्य के पश्चिमी और पूर्वी भागों को विभाजित करने वाली प्राकृतिक दीवार भी कहा जाता है। पूर्वी राजस्थान; अरावली के पूर्व में स्थित यह क्षेत्र अपेक्षाकृत उपजाऊ है और यहाँ मैदानी भाग पाये जाते हैं।

पश्चिमी राजस्थान; अरावली के पश्चिम में थार मरुस्थल स्थित है, जो राज्य के लगभग 60% क्षेत्र को कवर करता है। पूर्वी राजस्थान में कृषि के लिए उपयुक्त भूमि है, जहाँ रबी और खरीफ दोनों फसलें उगाई जाती हैं। पश्चिमी राजस्थान का अधिकांश भाग मरुस्थलीय या अर्द्धमरुस्थलीय है। 

अरावली पर्वत श्रृंखला की कुल लंबाई गुजरात से दिल्ली तक 692 किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 550 किलोमीटर राजस्थान में स्थित है। अरावली पर्वत श्रृंखला का लगभग 80% विस्तार राजस्थान में 22 जिलों में पूर्ण रूप से ओर कुछ जिलों में थोड़ा सा हिस्सा फैला हुआ है।

अरावली प्रदेश के 22 जिलों में जयपुर, दौसा, करौली, धौलपुर, भरतपुर, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी, झालावाड़, बारां, अलवर, टोंक, भीलवाड़ा, सीकर, झुंझुनूं , चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, राजसमंद, उदयपुर, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर शामिल होंगे। 

अरावली प्रदेश का प्रतावित मैप

राजस्थान के मुख्यमंत्रियों पर क्षेत्रवाद हमेशा हावी रहा है और इसमें अशोक गहलोत सबसे आगे हैं। क्षेत्रवाद एक विचारधारा है जो किसी ऐसे क्षेत्र से सबंधित होती है जो धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक कारणों से अपने पृथक अस्तित्व के लिये जाग्रत हो और अपनी पृथकता को बनाए रखने का प्रयास करता रहता है।

राज्य में भी विकास-प्रक्रिया में विषमता व्यापक रूप से विद्यमान है। इसी कारण राजस्थान में  नए राज्य के गठन की मांग की चिंगारी सुलग रही है। राजस्थान में बजट आवंटन की दृष्टि से पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों का अनुपात क्रमशः लगभग 20 प्रतिशत, 70 प्रतिशत 10 फीसदी है, जो कहीं से भी तार्किकतापूर्ण नहीं है।

  • सीकर, झुंझुनू शिक्षा व आर्मी की राजधानी, अलवर स्पोर्ट्स का हब, करौली-सवाई माधोपुर कृषि आधारित उद्योगों व सब्जी-फलों का हब होगा। टोंक-केकड़ी-भीलवाड़ा-राजसमंद मार्बल-ग्रनाईट चतुर्भुज के रूप में विकसित होंगे। बारां-झालावाड़-कोटा औद्योगिक हब बनेंगे। पशुपालन, खेती में अव्वल होगा। बाड़मेर, पाली, जालौर हमारा उधोगो व निवेश जोन के रूप में विकसित होकर आर्थिक राजधानी होंगे। चित्तौड़गढ़-उदयपुर टूरिज्म-निवेश की राजधानी बनेंगे। भरतपुर-धौलपुर इजराइल तकनीक की खेती, मिनरलस, और खान पान के शिरमोर होंगे। जयपुर-दौसा आईटी हब बनेंगे। सीकर-झुंझुनू देश भर में शिक्षा में अपना परचम लहरायेंगे। विकास से महरूम डूंगरपुर-बाँसवाड़ा आदिवासियत के केंद्र के रूप में वैश्विक पहचान बनायेंगे।

शैक्षणिक विकास में असंतुलन

उदाहरण के रूप में देखिए अकेले जोधपुर जिला मुख्यालय पर आईआईटी, नेशनल लो युनिवर्सिटी, एम्स, काजरी, आफरी, आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय, पुलिस विश्वविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय और जेएनव्यास विश्वविद्यालय, एनआइएफटी, एमबीएम युनिवर्सिटी, राज्य होटल मैनेजमेंट संस्थान, राजकीय होम्योपैथिक महाविद्यालय इत्यादि स्थित हैं जबकि पूर्वी राजस्थान के दस जिलों अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, दौसा, सवाई माधोपुर, टोंक, बारां, झालावाड़ में एक भी केंद्रीय शिक्षण संस्थान नहीं है। जबकि जनसँख्या की दृष्टि से राज्य की 60-70% जनता यहाँ रहती है।

वैसे ही दक्षिणी राजस्थान में केवल उदयपुर में केवल एक केंद्रीय शिक्षण संस्थान है। ऐसे ही, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, टोंक, बारां, झालावाड़, दौसा जैसे एससी-एसटी बहुल जिलों में एक भी राज्य स्तरीय शिक्षण संस्थान नहीं है, जो क्षेत्रीय टकराव को बढ़ावा देने वाला है तो इसे रोकने के प्रयास किये जाने चाहिये।

विडंबनाओं की पराकाष्ठा देखिए जोधपुर में 400 करोड़ से डिजिटल यूनिवर्सिटी खोलने की घोषणा बजट 20-21 की है जबकि आईटी हब बंगलुरू और हैदराबाद के समक्ष जयपुर के विकसित होने की प्रबलतम संभावनाएँ हैं।

संसाधनों की उपलब्धता में असंतुलन

राजस्थान को भौगोलिक एवम् प्रशासनिक की दृष्टि से तीन प्रमुख हिस्सों में बाँट सकते हैं, जिनमें  पूर्वी राजस्थान, पश्चिम राजस्थान और दक्षिणी राजस्थान प्रमुख हैं। राज्य सरकार के मुखिया के रूप में उन की अलग-अलग जवाबदेही तय करने की बात लंबे अरसे से होती चली आ रही है। सैद्धांतिक रूप से देखें तो यह जवाबदेही लगभग तय है, लेकिन व्यवहार में इसका प्रभाव वह बिलकुल नहीं दिखायी देता है, जो होना चाहिए।

ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्रियों ने ‘मुखिया मुख सो चाहिए’ की उक्ति को हमेशा नजरंदाज किया है और अपने क्षेत्र विशेष को तरजीह और प्रमुखता दी है, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। वे जवाबदेह हैं, लेकिन स्वयं और अपने ही क्षेत्रों के प्रति। सीधे जनता के प्रति उनकी जवाबदेही सभी क्षेत्रों में समान रूप से बनती  है। इससे केवल जनता ही नहीं, कई राजनेता भी दुखी हैं।

बजट आवंटन में असंतुलन

केंद्र से राज्य को मिलने वाले फंड को लेकर मुख्यमंत्रियों ने हमेशा पक्षपात किये है, और उनकी पार्टियों के आलाकमान भी इस पर ध्यान नहीं देते हैं । बुद्धिजीवियों ने इस पर अनेक बार अपना  दुख प्रकट किया है और चिंता भी जताई है ।

प्रोफ़ेसर मीणा कहते हैं कि केंद्र की ओर से राज्य को जारी होने वाले फंड को अधिकांशत: पश्चिमी राजस्थान में खर्च किया जाता रहा है जिसने स्तिथियों को और अधिक पेचीदा बना दिया है। इस कारण राज्य का संतुलित विकास नहीं हो पा रहा है और अपेक्षित लक्ष्य हासिल करने में बहुत समस्याएँ झेलनी पड़ रही हैं। दूसरी तरफ केंद्र सरकार आम तौर पर इन सवालों का कोई जवाब ही नहीं देती।

हमें यह बात भूलनी नहीं चाहिए कि राज्य का सामाजिक-आर्थिक विकास संतुलित ढंग से किया जा सके। सबको अपना वाजिब हक मिल सके और कोई भी अपने-आपको वंचित महसूस न करने पाए। आज आजादी के सात दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी राज्य का संतुलित विकास दिखाई नहीं देता है। पूर्वी और दक्षिणी राजस्थान संसाधन बहुल होने के बाद भी अपेक्षित विकास से महरूम हैं और पश्चिमी राजस्थान के विकास में संसाधनों का दुरूपयोग किया जा रहा है।

अरावली प्रदेश की मांग मुख्य रूप से राजस्थान के दक्षिणी – पूर्वी हिस्से में रहने वाले लोगों द्वारा की जा रही है, जो इस क्षेत्र के सर्वांगीण विकास और बेहतर प्रशासन की जरूरत को लेकर उठाई जा रही है। इसके पीछे कई कारण हैं:
  1. भौगोलिक और सांस्कृतिक विशिष्टता: अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान को दो अलग-अलग हिस्सों में बांटती है – पश्चिमी रेगिस्तानी क्षेत्र और दक्षिणी – पूर्वी उपजाऊ मैदानी क्षेत्र। दक्षिणी – पूर्वी राजस्थान, जिसमें अलवरसे लेकर डूंगरपुर – बाँसवाड़ा तक के जिले शामिल हैं, की जलवायु, कृषि, और संस्कृति पश्चिमी राजस्थान से काफी भिन्न है। इस विशिष्टता के कारण लोग मानते हैं कि एक अलग राज्य उनकी जरूरतों को बेहतर ढंग से संबोधित कर सकता है।
  2. विकास में असमानता: राजस्थान के मौजूदा ढांचे में पश्चिमी और दक्षिणी – पूर्वी क्षेत्रों के बीच संसाधनों और विकास के अवसरों का असमान वितरण देखा जाता है। दक्षिणी – पूर्वी राजस्थान के लोग अक्सर शिकायत करते हैं कि राज्य सरकार का ध्यान पश्चिमी मरुस्थलीय क्षेत्रों पर अधिक रहता है, जबकि दक्षिणी – पूर्वी क्षेत्र की संभावनाएं – जैसे कृषि, पर्यटन, और उद्योग – उपेक्षित रहती हैं। एक अलग अरावली प्रदेश इस असमानता को दूर करने का दावा करता है।
  3. प्रशासनिक सुविधा: राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है क्षेत्रफल के हिसाब से, जिसके कारण प्रशासनिक दक्षता प्रभावित होती है। दक्षिणी – पूर्वी राजस्थान के दूरदराज के इलाकों तक सरकारी योजनाओं और सेवाओं का लाभ पहुंचाने में देरी या कमी रहती है। एक छोटा, केंद्रित राज्य बनाने से प्रशासन को अधिक प्रभावी और जवाबदेह बनाने की उम्मीद की जाती है।
  4. आर्थिक संभावनाएं: अरावली क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधन, जंगल, और खनिजों की प्रचुरता है। साथ ही, यह दिल्ली-एनसीआर के करीब होने के कारण औद्योगिक और पर्यटन विकास के लिए उपयुक्त है। मांग करने वाले मानते हैं कि एक अलग राज्य इन संसाधनों का बेहतर उपयोग कर आर्थिक समृद्धि ला सकता है।
  5. जन आंदोलन और राजनीतिक समर्थन: पिछले कुछ समय से इस मांग ने जन आंदोलन का रूप लिया है, जिसमें स्थानीय नेता, सामाजिक संगठन, और आम लोग शामिल हैं। सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा चर्चा में है, जहां लोग इसे पूर्वी राजस्थान के हितों की रक्षा के लिए जरूरी बता रहे हैं।

हालांकि, इस मांग का विरोध भी होता है, क्योंकि कुछ लोग मानते हैं कि इससे राजस्थान की एकता और संसाधनों का बंटवारा प्रभावित हो सकता है। फिर भी, समर्थकों का तर्क है कि यह कदम क्षेत्रीय असंतुलन को खत्म कर समग्र विकास को बढ़ावा देगा। यह मांग अभी चर्चा के शुरुआती चरण में है और इसे लागू करने के लिए संवैधानिक और राजनीतिक प्रक्रिया से गुजरना होगा।

कुल मिलाकर, अरावली प्रदेश की माँग एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है, जो विकास, संस्कृति और स्वशासन की आकांक्षाओं को दर्शाता है। इसके भविष्य का निर्धारण इस बात पर निर्भर करेगा कि यह आंदोलन कितना संगठित और प्रभावी ढंग से अपनी बात को आगे बढ़ा पाता है।

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किरोड़ी लाल मीणा को अनुशासनहीनता का नोटिस, भजन लाल सरकार पर मंडराये संकट के बादल

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 11 फरबरी 2025 | जयपुर :भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने कैबिनेट मंत्री किरोड़ीलाल मीणा को अनुशासनहीनता का नोटिस भेजा है। किरोड़ी के फोन टैपिंग के बयान को पार्टी ने अनुशासनहीनता माना है। किरोड़ी को कारण बताओ नोटिस जारी कर तीन दिन में जवाब मांगा गया है। नोटिस को लेकर किरोड़ी बोले- मैं पार्टी का अनुशासित सिपाही, नोटिस मिलते ही तय समय में जवाब भेज दूंगा।

किरोड़ी लाल मीणा को अनुशासनहीनता का नोटिस, भजन लाल सरकार पर मंडराये संकट के बादल

दरअसल, किरोड़ी लाल मीणा लगातार अपने बयानों से पार्टी के लिए परेशानी का सबब बने हुए थे। सीएमओ और पार्टी की तरफ से किरोड़ी की रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को भेजी गई थी, लेकिन दिल्ली चुनाव के चलते पार्टी ने इस पर कोई एक्शन नहीं लिया था।

किरोड़ी लाल मीणा को अनुशासनहीनता का नोटिस, भजन लाल सरकार पर मंडराये संकट के बादल

पर यह बात तय है कि भजन लाल सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं, क्योंकि डॉ किरीदी लाल मीणा चुप बैठने वाले नहीं हैं। उनके बारे में सब जानते हैं कि वे भैरों सिंह शेखावत और वसुंधराराजे के सामने नहीं झुके, और यह तो पर्ची सरकार है। यह सरकार वसुंधरा और किरोड़ी नमक सेंडविच में फंस चुकी है और कभी भी कुछ भी हो सकता है। 

बताया जा रहा है कि प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ की राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से फोन पर बात हुई और उसके बाद किरोड़ी को नोटिस जारी करने का निर्णय लिया गया। मदन राठौड़ आज दिल्ली पहुंच चुके हैं, मंगलवार से संसद सत्र में भाग लेंगे।

माना जा रहा है कि इस दौरान वे राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाकात भी करेंगे और इस मुलाकात में किरोड़ी पर आगे क्या एक्शन लिया जाये, इस पर भी चर्चा होगी। किरोड़ी लाल मीणा की तरह ही पार्टी ने हरियाणा में भी मंत्री अनिल विज को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

पार्टी की छवि को धूमिल करने का आरोप

नोटिस में कहा गया है कि डॉ. मीणा का यह बयान भारतीय जनता पार्टी और उसकी बहुमत वाली सरकार की प्रतिष्ठा को धूमिल करता है। इस कृत्य को पार्टी संविधान के अनुशासन भंग की परिभाषा के तहत माना गया है।

अपनी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा को लेकर बीजेपी ने कड़ा एक्शन लिया है। राजस्थान बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने एक्शन लेते हुए सोमवार को किरोड़ी लाल मीणा को नोटिस भेजा है। यह नोटिस बीते दिनों भजनलाल सरकार पर एक के बाद एक कई आरोपों को लेकर जारी किया गया है।

किरोड़ी लाल मीणा का नोटिस दिए जाने के बाद राजस्थान की सियासत भी गरमा गई है। कांग्रेस ने भजनलाल सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि दाला में कुछ काला है। वहीं, मदन राठौड़ के नोटिस को लेकर किरोड़ी लाल ने कहा कि इसके बारे में जानकारी नहीं है।

मंत्री पद से इस्तीफे का भी जिक्र

मदन राठौड़ ने किरोड़ी लाल मीणा को भेजे नोटिस में कहा कि आप बीजेपी के सदस्य हैं और भाजपा के टिकिट पर सवाई माधोपुर क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए हैं। आप राजस्थान सरकार में मंत्री भी हैं। बीते दिनों मंत्री परिषद से इस्तीफे की सूचना समाचार पत्रों में प्रकाशन के लिए उपलब्ध करवाई और भाजपा सरकार पर आपके टेलीफोन टैप करने का आरोप लगाया जो असत्य है।

किरोड़ी लाल के बयानबाजी पर नोटिस

सार्वजनिक रूप से आपने बयान देकर बीजेपी सरकार की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का काम किया है। ऐसे में आपके बयान को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पार्टी के संविधान के हिसाब से अनुशासनहीनता माना है। नोटिस में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने आगे लिखा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देश के अनुसार, कारण बताओ नोटिस भेजा जा रहा है। किरोड़ी लाल मीणा को कारण बताओ नोटिस जवाब तीन दिन के अंदर देने को कहा गया है।

मुझे जानकारी नहीं

इस पत्र की पुष्टि के लिए मूकनायक मीडिया ब्यूरो की किरोड़ीलाल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि, ‘मुझे कारण बताओ नोटिस के बारे में जानकारी नहीं है। मैं पार्टी का अनुशासित सिपाही हूं, नोटिस प्राप्त होते ही तय समय अवधि में पार्टी नेतृत्व को जवाब प्रेषित किया जायेगा।’

किरोड़ीलाल मीणा ने ये कहा था 

वायरल वीडियो में मंत्री मीणा ने कहा…मैं आशा करता था कि हम राज में आयेंगे तो भ्रष्टाचारियेां पर नकेल कसेंगे। लेकिन निराश हूं। मैने पेपरलीक के मामले उठाए। 50 थानेदार गिरफ्तार हुए। मैने कहा परीक्षा रद्द करो, लेकिन सरकार नहीं मानी। उल्टा जैसा पिछली सरकार में होता था, चप्पे-चप्पे पर मेरी सीआईडी की जाती है। मेरा टेलीफोन भी रिकॉर्ड किया जाता है, लेकिन मैं कोई बुरा काम करता नहीं, इसलिए मैं डरता नहीं। वीडियो आमागढ़ मंदिर में एक सामाजिक कार्यक्रम का है।

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