भारतवंशी अनीता आनंद कनाडा के प्रधानमंत्री की दौड़ में सबसे आगे

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 09 जनवरी 2025 | जयपुर : कनाडा में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद भारतीय मूल की सांसद अनीता आनंद का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रमुखता से लिया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सत्ताधारी लिबरल पार्टी इस साल होने वाले संसदीय चुनाव से पहले नया प्रधानमंत्री चुन सकती है। बुधवार यानी आज पार्टी के नेशनल कॉकस की बैठक भी होने वाली है।

भारतवंशी अनीता आनंद कनाडा के प्रधानमंत्री की दौड़ में सबसे आगे

माना जा रहा है कि पार्टी में अनीता के नाम पर सहमति बन सकती है। अगर ऐसा होता है तो वो कनाडा में प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने वाली पहली अश्वेत महिला होंगी। फिलहाल जब तक कोई नया नेता नहीं चुन लिया जाता, तब तक ट्रूडो पद पर बने रहेंगे।

भारतवंशी अनीता आनंद कनाडा के प्रधानमंत्री की दौड़ में सबसे आगे

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार (6 जनवरी, 2025) को इस्तीफ़ा देने का ऐलान कर दिया है। ट्रूडो ने कहा कि वह आगामी आम चुनावों में लिबरल पार्टी का चेहरा बनने के लिए पसंदीदा उम्मीदवार नहीं हैं। लिबरल पार्टी से प्रधानमंत्री पद के लिए नए नेता का चयन होने के बाद जस्टिन ट्रूडो अपना इस्तीफ़ा दे देंगे।

ट्रूडो के इस इस्तीफे की पटकथा बीते लगभग एक वर्ष से लिखी जा रही थी। इस खबर के बाद अब लिबरल पार्टी के नेताओं में पीएम पद की दौड़ शुरू हो गई है। इस दौड़ में एक भारतवंशी अनीता आनंद भी शामिल हैं।

अनीता आनंद लिबरल पार्टी की सीनियर मेंबर हैं। वह 2019 से कनाडाई संसद की सदस्य भी हैं। उन्होंने ट्रूडो सरकार में कई प्रमुख विभागों को संभाला है, जिसमें पब्लिक सर्विस और खरीद मिनिस्ट्री, नेशनल डिफेंस मिनिस्ट्री और ट्रेजरी बोर्ड के अध्यक्ष की जिम्मेदारी शामिल है। वह 2024 से ट्रांसपोर्ट और इंटरनल ट्रेड मिनिस्टर हैं।

पार्टी नेताओं की तरफ से लगातार बढ़ते दबाव के बाद प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 6 जनवरी को पार्टी लीडर और PM दोनों पद से इस्तीफा दे दिया था। वे सितंबर 2021 में तीसरी बार पीएम बने थे। उनकी सरकार का कार्यकाल अक्टूबर 2025 तक था।

अनीता आनंद 2019 में ओकविल से चुनाव जीतकर सांसद बनीं थीं। पब्लिक सर्विस मिनिस्टर के तौर पर उन्होंने COVID-19 महामारी के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

अनीता पीएम बनीं तो इस पद पर पहुंचने वाली देश की दूसरी महिला होंगी

  • अनीता के पिता तमिलनाडु जबकि मां पंजाब की रहने वाली थीं। हालांकि, अनीता का जन्म और पालन-पोषण कनाडा के ग्रामीण क्षेत्र नोवा स्कोटिया में हुआ था।
  • उन्होंने क्वीन्स यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में आर्ट्स ग्रेजुएशन, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से न्यायशास्त्र में आर्ट्स ग्रेजुएशन, डलहौजी यूनिवर्सिटी से लॉ ग्रेजुएशन और टोरंटो यूनिवर्सिटी से लॉ में मास्टर्स किया।
  • 57 साल की अनीता पेशे से वकील हैं। उन्होंने 2019 में कनाडा की ओकविल सीट से पहला संसदीय चुनाव जीता था। इसी साल उन्हें सार्वजनिक सेवाओं और खरीद का कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
  • अनीता कनाडा का रक्षा मंत्रालय संभालने वाली दूसरी महिला हैं। इससे पहले 1990 में किम कैंपबेल ने ये जिम्मेदारी संभाली थी।
  • अनीता टोरंटो यूनिवर्सिटी की एसोसिएट डीन भी रह चुकी हैं। उन्होंने 1995 जॉन नोल्टन से शादी की, जो एक कनाडाई वकील और बिजनेस एग्जीक्यूटिव हैं। उनके 4 बच्चे हैं।
  • अनीता आनंद लैंगिक समानता की मुखर समर्थक रही हैं। वो LGBTQIA+ अधिकारों का सपोर्ट करती हैं। उन्होंने सेक्शुअल मिसकंडक्ट से लड़ने और कनाडाई डिफेंस फोर्सेज में कल्चरल परिवर्तन लाने के लिए पहल भी की थी। ​​
  • प्रोग्रेसिव कंजर्वेटिव पार्टी की किम कैंपबेल 1993 में कनाडा की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं थीं, जिसके बाद से अब तक कोई महिला कनाडा में प्रधानमंत्री पद पर नहीं पहुंची है।

ट्रूडो की पार्टी के पास बहुमत नहीं

कनाडा की संसद हाउस ऑफ कॉमन्स में लिबरल पार्टी के 153 सांसद हैं। हाउस ऑफ कॉमन्स​​​​​​ में 338 सीटें है। इसमें बहुमत का आंकड़ा 170 है। पिछले साल ट्रूडो सरकार की सहयोगी पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) ने अपने 25 सांसदों का समर्थन वापस ले लिया था। NDP खालिस्तान समर्थक कनाडाई सिख सांसद जगमीत सिंह की पार्टी है।

गठबंधन टूटने की वजह से ट्रूडो सरकार अल्पमत में आ गई थी। हालांकि 1 अक्टूबर को हुए बहुमत परीक्षण में ट्रूडो की लिबरल पार्टी को एक दूसरी पार्टी का समर्थन मिल गया था। इस वजह से ट्रूडो ने फ्लोर टेस्ट पास कर लिया था।

न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के नेता जगमीत सिंह ने PM ट्रूडो के खिलाफ फिर से अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया है। हालांकि कनाडा की संसद को 24 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया है, ऐसे में लिबरल पार्टी के पास बहुमत जुटाने और नया नेता चुनने के लिए 60 दिन से ज्यादा का वक्त है।

ट्रूडो के खिलाफ क्यों है नाराजगी

कनाडा के लोगों में लगातार बढ़ती मंहगाई के वजह से ट्रूडो के खिलाफ नाराजगी है। इसके अलावा पिछले कुछ समय से कनाडा में कट्टरपंथी ताकतों के पनपने, अप्रवासियों की बढ़ती संख्या और कोविड-19 के बाद बने हालातों के चलते ट्रूडो को राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

दूसरी तरफ उन्हें नापसंद करने वालों की संख्या 65% तक पहुंच गई है। देश में हुए कई सर्वे के मुताबिक अगर कनाडा में चुनाव होते हैं तो कंजर्वेटिव पार्टी को बहुमत मिल सकता है, क्योंकि जनता बढ़ती महंगाई से परेशान है।

पिछले साल अक्टूबर में हुए इप्सोस के एक सर्वे में सिर्फ 28% कनाडाई लोगों का कहना था कि ट्रूडो को फिर से चुनाव लड़ना चाहिए। वहीं एंगस रीड इंस्टीट्यूट के मुताबिक ट्रूडो की अप्रूवल रेटिंग गिरकर 30% पर आ गई है।

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‘अरावली प्रदेश का निर्माण’ ही है पूर्वी राजस्थान के सर्वांगीण विकास का एक मात्र समाधान

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 17 मार्च 2025 | जयपुर : सबसे बड़े भू-भाग वाला प्रदेश- राजस्थान का क्षेत्रफल 3.42 लाख वर्ग किलोमीटर है जहां 6.85 करोड़ जनसंख्या निवास करती है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत का आठवां बड़ा राज्य है व भू-भाग की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य। सात संभाग, 33 जिले, 41353 ग्राम, उत्तर से दक्षिण की लंबाई 826 वर्ग किमी व पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 869 वर्ग किमी है।

‘अरावली प्रदेश का निर्माण’ ही है पूर्वी राजस्थान के सर्वांगीण विकास का एक मात्र समाधान

भारत के अलग अलग भागों में नए राज्यों के निर्माण की मांग उठ रही है जिनमें अरावली प्रदेश सबसे प्रबल है। राष्ट्रीय एकता व अखण्डता, सामरिक, आर्थिक, राजनैतिक, कृषि, उद्योग इत्यादि की विपुल संभावनाओं के मद्देनजर अरावली प्रदेश निर्माण की दावेदारी सबसे प्रबल है।

‘अरावली प्रदेश का निर्माण’ ही है पूर्वी राजस्थान के सर्वांगीण विकास का एक मात्र समाधान

भारत का सबसे बड़ा भूभाग राजस्थान जो दुनियां के 110 देशों से भी क्षेत्रफल में बड़ा है जिसको बीचों बीच से अरावली पर्वतश्रेणी ने दो भागों में विभाजित किया है जिसका उत्तरी पश्चिमी रेगिस्तानी थार का अरावली स्थल ही अरावली प्रदेश के नाम से जाना जाता है।

अलग राज्यों की बढ़ती माँग 

राजस्थान की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक इकाईयों में असमानता,आर्थिक विकास एवं राजनैतिक विमूढ़ता का सबसे अधिक नुकसान इस अरावली प्रदेश को उठाना पड़ा है। राजस्थान के इस 61.11% भूभाग के निवासियों के साथ विकास की प्रक्रिया में कभी न्याय नहीं हो पाया। बंजर अरावली स्थल कहकर इस क्षेत्र का सदैव उपहास एवं उपेक्षा की गयी।

60 वर्षों से अधिक इतिहास में राजनीतिज्ञों की नीतियों एवं उपेक्षाओं से यहाँ के निवासियों को अपने अस्तित्व को अलग लेकर अपनी समृद्ध अरावली प्रदेश बनाने की मजबूरन राह पकड़ अरावली प्रदेश बनाने की कुव्वत दिखानी पड़ेगी।

क्यों जरुरी है राजस्थान का “मरु और अरावली प्रदेश” में विभाजन

मरुप्रदेश के 20 जिलों में देश का 27 प्रतिशत तेल, सबसे महंगी गैस, खनिज पदार्थ, कोयला, यूरेनियम, सिलिका आदि का एकाधिकार है। एशिया का सबसे बड़ा सोलर हब और पवन चक्कियों से बिजली प्रोडक्शन यहाँ हो रहा है।

राजस्थान का “मरु और अरावली प्रदेश” में विभाजन

गौरतलब है कि एक तरफ जहां राजस्थान में प्रति व्यक्ति तो ज्यादा है, लेकिन पश्चिम राजस्थान के जिलों में रहने वालों का एवरेज निकाला जाये तो उनकी आय काफी कम है। राजस्थान की भौगोलिक और सांस्कृतिक इकाईयों में असमानता, आर्थिक विकास और राजनैतिक विमूढ़ता का सबसे ज्यादा नुकसान इस इलाके को उठाना पड़ा है।

राजस्थान के इस 61.11% भूभाग के निवासियों के साथ विकास की प्रक्रिया में कभी न्याय नहीं हो पाया। अरावली प्रदेश मुक्ति मोर्चा के संयोजक प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा का कहना है कि देश का विकास छोटे राज्यों से ही हो सकता है। राज्य जब तक बड़े राज्य रहे हैं, तब तक विकास से महरूम रहे हैं।

झारखंड, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड बेहतरीन उदहारण है, क्योंकि बिहार, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में रहते हुए विकास की डगर वहां तक नहीं पहुँच पायी थी। मगर जैसे ही अलग राज्य बने तो विकास की राह में ये राज्य अपने मूल राज्यों से आगे निकल गये। 

अलग अरावली प्रदेश की तार्किक माँग

अलग अरावली प्रदेश की माँग करने का तर्क है कि पूर्वी राजस्थान का ये क्षेत्र राज्य के अन्य हिस्सों के मुकाबले शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग और आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है। इन जिलों से अरबों रुपयों की रॉयल्टी सरकार कमा रही है, लेकिन इन जिलों में पीने का पानी, रोजगार, बेहतर स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा, स्पोर्ट्स और सैनिक स्कूल, खेतों को नहरों का पानी जैसी समस्यायों से आम जनता जूझ रही है। 

अलग अरावली प्रदेश की तार्किक माँग

इसका प्रमुख कारण भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति अलग है। इस हिस्से की जलवायु, कृषि, उद्योग और जनसंख्या का वितरण भी अलग है। यदि यह भू-भाग नए राज्य के रूप में सामने आयेगा तो इस क्षेत्र के विकास में तेजी आयेगी। “अरावली में बग़ावत” शीर्षक पुस्तक के लेखक प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा ने लिखा है कि अरावली भूमि का सम्पूर्ण विकास तभी होगा जब अरावली प्रदेश अलग राज्य बनेगा। अरावली के संसाधनों की लूट रुकेगी।

प्रोफ़ेसर मीणा कहते हैं, ”आज़ादी से पहले जहां अरावली का इलाक़ा विकास की दौड़ में शामिल था। वहीं आज़ादी के बाद सभी पार्टियों की सरकारों और चतुर-चालाक मारवाड़ी व्यवसाइयों ने इसके प्रति बेरुख़ी दिखायी। जबकि प्राकृतिक संसाधनों प्रचुरता से ये एरिया ख़ूब मालामाल है। खनिज के हिसाब से देखें तो इस क्षेत्र में कोयला, जिप्सम, क्ले और मार्बल निकल रहा है। वहीं, जोधपुर जैसे शहर में पीने का पानी अरावली क्षेत्र से ट्रेन से भर-भर कर ले जाकर वहाँ के लोगों की प्यास बुझायी जाती थी।

बीसलपुर बाँध का पानी पाली, अजमेर और जोधपुर के गाँवों तक पहुँचाया जा रहा है और अब जैसी ही बाड़मेर में तेल और गैस के भंडार मिले हैं, वैसे ही मरू प्रदेश की माँग जोर-शोर से उठायी जा रही है। जबकि राजस्थान के मुख्यमंत्रियों और उनकी सरकारों ने अरावली भू-भाग (पूर्वी राजस्थान) से रेवेन्यू तो भरपूर लिया है, लेकिन विकास को हमेशा अनदेखा किया है।

राजस्थान के बजट में सकल राजस्व और आमदनी

राजस्थान के बजट में सकल राजस्व और आमदनी का 70% हिस्सा अरावली प्रदेश से आता है और उसको 80% से भी अधिक पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तान में खर्च किया जाता रहा है। इसके समर्थन में आंकड़े गवाह हैं, जो बताते हैं कि कैसे जोधपुर को शिक्षा की नगरी बनाया गया। एक-आध को छोड़कर सारे-के-सारे केंद्रीय शिक्षण संस्थानों (20 से अधिक) को जोधपुर ले जाया गया।

अरावली के दक्षिणी छोर से लेकर उत्तरी छोर तक 500 किलोमीटर में एक भी केंद्रीय संस्थान नहीं है। एक तरफ, नर्मदा का पानी रेगिस्तान को हरा-भरा कर रहा है और वहीं दूसरी तरफ, अरावली प्रदेश (भू-भाग) एक-एक बूँद पानी के लिए तरस रहा है।

राजस्थान के बजट में सकल राजस्व और आमदनी

अरावली प्रदेश के भोले-भाले लोग तो यह भी नहीं जानते कि कैसे मंडरायल (करौली) में लगने वाली सीमेंट फेक्ट्री को जैतपुर (पाली) ले जाया गया जबकि मंडरायल में सब कुछ फाइनल हो चुका था। सवाई माधोपुर सीमेंट फेक्ट्री को कैसे बंद किया गया।” 

जब वर्ष 2000-01 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 03 राज्य नए बनाये तो उस समय के पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत जी ने भी पत्र लिख कर कहा था कि पूरे राजस्थान का विकास व देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए राज्य के दो भाग किये जाये। इसके बाद भी समय समय पर अनेको क्षेत्रीय नेताओ ने इस माँग का समर्थन किया लेकिन पार्टियों की गुलामी के चलते मुखर विरोध नहीं कर सके।

चहुँओर चमकेगी उन्नति, जब बनेगा अरावली प्रदेश

अरावली पर्वत माला भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है, जिसकी गिनती विश्व की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में भी होती है। यह भूवैज्ञानिक दृष्टि से अरबों वर्षों पुरानी है और भारतीय उपमहाद्वीप के भूगोल और इतिहास का अभिन्न हिस्सा है।

राजस्थान इस पर्वतमाला का मुख्य केंद्र है। अरावली यहाँ के परिदृश्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे राज्य के पश्चिमी और पूर्वी भागों को विभाजित करने वाली प्राकृतिक दीवार भी कहा जाता है। पूर्वी राजस्थान; अरावली के पूर्व में स्थित यह क्षेत्र अपेक्षाकृत उपजाऊ है और यहाँ मैदानी भाग पाये जाते हैं।

पश्चिमी राजस्थान; अरावली के पश्चिम में थार मरुस्थल स्थित है, जो राज्य के लगभग 60% क्षेत्र को कवर करता है। पूर्वी राजस्थान में कृषि के लिए उपयुक्त भूमि है, जहाँ रबी और खरीफ दोनों फसलें उगाई जाती हैं। पश्चिमी राजस्थान का अधिकांश भाग मरुस्थलीय या अर्द्धमरुस्थलीय है। 

अरावली पर्वत श्रृंखला की कुल लंबाई गुजरात से दिल्ली तक 692 किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 550 किलोमीटर राजस्थान में स्थित है। अरावली पर्वत श्रृंखला का लगभग 80% विस्तार राजस्थान में 22 जिलों में पूर्ण रूप से ओर कुछ जिलों में थोड़ा सा हिस्सा फैला हुआ है।

अरावली प्रदेश के 22 जिलों में जयपुर, दौसा, करौली, धौलपुर, भरतपुर, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी, झालावाड़, बारां, अलवर, टोंक, भीलवाड़ा, सीकर, झुंझुनूं , चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, राजसमंद, उदयपुर, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर शामिल होंगे। 

अरावली प्रदेश का प्रतावित मैप

राजस्थान के मुख्यमंत्रियों पर क्षेत्रवाद हमेशा हावी रहा है और इसमें अशोक गहलोत सबसे आगे हैं। क्षेत्रवाद एक विचारधारा है जो किसी ऐसे क्षेत्र से सबंधित होती है जो धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक कारणों से अपने पृथक अस्तित्व के लिये जाग्रत हो और अपनी पृथकता को बनाए रखने का प्रयास करता रहता है।

राज्य में भी विकास-प्रक्रिया में विषमता व्यापक रूप से विद्यमान है। इसी कारण राजस्थान में  नए राज्य के गठन की मांग की चिंगारी सुलग रही है। राजस्थान में बजट आवंटन की दृष्टि से पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों का अनुपात क्रमशः लगभग 20 प्रतिशत, 70 प्रतिशत 10 फीसदी है, जो कहीं से भी तार्किकतापूर्ण नहीं है।

  • सीकर, झुंझुनू शिक्षा व आर्मी की राजधानी, अलवर स्पोर्ट्स का हब, करौली-सवाई माधोपुर कृषि आधारित उद्योगों व सब्जी-फलों का हब होगा। टोंक-केकड़ी-भीलवाड़ा-राजसमंद मार्बल-ग्रनाईट चतुर्भुज के रूप में विकसित होंगे। बारां-झालावाड़-कोटा औद्योगिक हब बनेंगे। पशुपालन, खेती में अव्वल होगा। बाड़मेर, पाली, जालौर हमारा उधोगो व निवेश जोन के रूप में विकसित होकर आर्थिक राजधानी होंगे। चित्तौड़गढ़-उदयपुर टूरिज्म-निवेश की राजधानी बनेंगे। भरतपुर-धौलपुर इजराइल तकनीक की खेती, मिनरलस, और खान पान के शिरमोर होंगे। जयपुर-दौसा आईटी हब बनेंगे। सीकर-झुंझुनू देश भर में शिक्षा में अपना परचम लहरायेंगे। विकास से महरूम डूंगरपुर-बाँसवाड़ा आदिवासियत के केंद्र के रूप में वैश्विक पहचान बनायेंगे।

शैक्षणिक विकास में असंतुलन

उदाहरण के रूप में देखिए अकेले जोधपुर जिला मुख्यालय पर आईआईटी, नेशनल लो युनिवर्सिटी, एम्स, काजरी, आफरी, आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय, पुलिस विश्वविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय और जेएनव्यास विश्वविद्यालय, एनआइएफटी, एमबीएम युनिवर्सिटी, राज्य होटल मैनेजमेंट संस्थान, राजकीय होम्योपैथिक महाविद्यालय इत्यादि स्थित हैं जबकि पूर्वी राजस्थान के दस जिलों अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, दौसा, सवाई माधोपुर, टोंक, बारां, झालावाड़ में एक भी केंद्रीय शिक्षण संस्थान नहीं है। जबकि जनसँख्या की दृष्टि से राज्य की 60-70% जनता यहाँ रहती है।

वैसे ही दक्षिणी राजस्थान में केवल उदयपुर में केवल एक केंद्रीय शिक्षण संस्थान है। ऐसे ही, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, टोंक, बारां, झालावाड़, दौसा जैसे एससी-एसटी बहुल जिलों में एक भी राज्य स्तरीय शिक्षण संस्थान नहीं है, जो क्षेत्रीय टकराव को बढ़ावा देने वाला है तो इसे रोकने के प्रयास किये जाने चाहिये।

विडंबनाओं की पराकाष्ठा देखिए जोधपुर में 400 करोड़ से डिजिटल यूनिवर्सिटी खोलने की घोषणा बजट 20-21 की है जबकि आईटी हब बंगलुरू और हैदराबाद के समक्ष जयपुर के विकसित होने की प्रबलतम संभावनाएँ हैं।

संसाधनों की उपलब्धता में असंतुलन

राजस्थान को भौगोलिक एवम् प्रशासनिक की दृष्टि से तीन प्रमुख हिस्सों में बाँट सकते हैं, जिनमें  पूर्वी राजस्थान, पश्चिम राजस्थान और दक्षिणी राजस्थान प्रमुख हैं। राज्य सरकार के मुखिया के रूप में उन की अलग-अलग जवाबदेही तय करने की बात लंबे अरसे से होती चली आ रही है। सैद्धांतिक रूप से देखें तो यह जवाबदेही लगभग तय है, लेकिन व्यवहार में इसका प्रभाव वह बिलकुल नहीं दिखायी देता है, जो होना चाहिए।

ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्रियों ने ‘मुखिया मुख सो चाहिए’ की उक्ति को हमेशा नजरंदाज किया है और अपने क्षेत्र विशेष को तरजीह और प्रमुखता दी है, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। वे जवाबदेह हैं, लेकिन स्वयं और अपने ही क्षेत्रों के प्रति। सीधे जनता के प्रति उनकी जवाबदेही सभी क्षेत्रों में समान रूप से बनती  है। इससे केवल जनता ही नहीं, कई राजनेता भी दुखी हैं।

बजट आवंटन में असंतुलन

केंद्र से राज्य को मिलने वाले फंड को लेकर मुख्यमंत्रियों ने हमेशा पक्षपात किये है, और उनकी पार्टियों के आलाकमान भी इस पर ध्यान नहीं देते हैं । बुद्धिजीवियों ने इस पर अनेक बार अपना  दुख प्रकट किया है और चिंता भी जताई है ।

प्रोफ़ेसर मीणा कहते हैं कि केंद्र की ओर से राज्य को जारी होने वाले फंड को अधिकांशत: पश्चिमी राजस्थान में खर्च किया जाता रहा है जिसने स्तिथियों को और अधिक पेचीदा बना दिया है। इस कारण राज्य का संतुलित विकास नहीं हो पा रहा है और अपेक्षित लक्ष्य हासिल करने में बहुत समस्याएँ झेलनी पड़ रही हैं। दूसरी तरफ केंद्र सरकार आम तौर पर इन सवालों का कोई जवाब ही नहीं देती।

हमें यह बात भूलनी नहीं चाहिए कि राज्य का सामाजिक-आर्थिक विकास संतुलित ढंग से किया जा सके। सबको अपना वाजिब हक मिल सके और कोई भी अपने-आपको वंचित महसूस न करने पाए। आज आजादी के सात दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी राज्य का संतुलित विकास दिखाई नहीं देता है। पूर्वी और दक्षिणी राजस्थान संसाधन बहुल होने के बाद भी अपेक्षित विकास से महरूम हैं और पश्चिमी राजस्थान के विकास में संसाधनों का दुरूपयोग किया जा रहा है।

अरावली प्रदेश की मांग मुख्य रूप से राजस्थान के दक्षिणी – पूर्वी हिस्से में रहने वाले लोगों द्वारा की जा रही है, जो इस क्षेत्र के सर्वांगीण विकास और बेहतर प्रशासन की जरूरत को लेकर उठाई जा रही है। इसके पीछे कई कारण हैं:
  1. भौगोलिक और सांस्कृतिक विशिष्टता: अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान को दो अलग-अलग हिस्सों में बांटती है – पश्चिमी रेगिस्तानी क्षेत्र और दक्षिणी – पूर्वी उपजाऊ मैदानी क्षेत्र। दक्षिणी – पूर्वी राजस्थान, जिसमें अलवरसे लेकर डूंगरपुर – बाँसवाड़ा तक के जिले शामिल हैं, की जलवायु, कृषि, और संस्कृति पश्चिमी राजस्थान से काफी भिन्न है। इस विशिष्टता के कारण लोग मानते हैं कि एक अलग राज्य उनकी जरूरतों को बेहतर ढंग से संबोधित कर सकता है।
  2. विकास में असमानता: राजस्थान के मौजूदा ढांचे में पश्चिमी और दक्षिणी – पूर्वी क्षेत्रों के बीच संसाधनों और विकास के अवसरों का असमान वितरण देखा जाता है। दक्षिणी – पूर्वी राजस्थान के लोग अक्सर शिकायत करते हैं कि राज्य सरकार का ध्यान पश्चिमी मरुस्थलीय क्षेत्रों पर अधिक रहता है, जबकि दक्षिणी – पूर्वी क्षेत्र की संभावनाएं – जैसे कृषि, पर्यटन, और उद्योग – उपेक्षित रहती हैं। एक अलग अरावली प्रदेश इस असमानता को दूर करने का दावा करता है।
  3. प्रशासनिक सुविधा: राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है क्षेत्रफल के हिसाब से, जिसके कारण प्रशासनिक दक्षता प्रभावित होती है। दक्षिणी – पूर्वी राजस्थान के दूरदराज के इलाकों तक सरकारी योजनाओं और सेवाओं का लाभ पहुंचाने में देरी या कमी रहती है। एक छोटा, केंद्रित राज्य बनाने से प्रशासन को अधिक प्रभावी और जवाबदेह बनाने की उम्मीद की जाती है।
  4. आर्थिक संभावनाएं: अरावली क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधन, जंगल, और खनिजों की प्रचुरता है। साथ ही, यह दिल्ली-एनसीआर के करीब होने के कारण औद्योगिक और पर्यटन विकास के लिए उपयुक्त है। मांग करने वाले मानते हैं कि एक अलग राज्य इन संसाधनों का बेहतर उपयोग कर आर्थिक समृद्धि ला सकता है।
  5. जन आंदोलन और राजनीतिक समर्थन: पिछले कुछ समय से इस मांग ने जन आंदोलन का रूप लिया है, जिसमें स्थानीय नेता, सामाजिक संगठन, और आम लोग शामिल हैं। सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा चर्चा में है, जहां लोग इसे पूर्वी राजस्थान के हितों की रक्षा के लिए जरूरी बता रहे हैं।

हालांकि, इस मांग का विरोध भी होता है, क्योंकि कुछ लोग मानते हैं कि इससे राजस्थान की एकता और संसाधनों का बंटवारा प्रभावित हो सकता है। फिर भी, समर्थकों का तर्क है कि यह कदम क्षेत्रीय असंतुलन को खत्म कर समग्र विकास को बढ़ावा देगा। यह मांग अभी चर्चा के शुरुआती चरण में है और इसे लागू करने के लिए संवैधानिक और राजनीतिक प्रक्रिया से गुजरना होगा।

कुल मिलाकर, अरावली प्रदेश की माँग एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है, जो विकास, संस्कृति और स्वशासन की आकांक्षाओं को दर्शाता है। इसके भविष्य का निर्धारण इस बात पर निर्भर करेगा कि यह आंदोलन कितना संगठित और प्रभावी ढंग से अपनी बात को आगे बढ़ा पाता है।

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पाकिस्तान में हिंदू बोले “यहां खुश हैं, कोई भेदभाव नहीं होता”, भारतीय गोदी मीडिया की खबरें झूठी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 13 मार्च 2025 | जयपुर : भारत में गोदी मीडिया कि खबरों में आपने अक्सर सुना-देखा होगा कि बंटवारे के वक्त पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 15 फीसदी थी। वर्तमान में पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी मात्र 1% रह गयी है।

पाकिस्तान में हिंदू बोले “यहां खुश हैं, कोई भेदभाव नहीं होता”, भारतीय गोदी मीडिया की खबरें झूठी

पाकिस्तान में हिंदू बोले “यहां खुश हैं, कोई भेदभाव नहीं होता”, भारतीय गोदी मीडिया की खबरें झूठी

या फिर इस कम होती आबादी का कारण पाकिस्तान में हिंदुओं पर किये जा रहे अत्याचार हैं, जिनकी वजह से हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाया जा रहा है। या विरोध करने पर हिंदुओं के मंदिर तोड़े जा रहे हैं, हिंदुओं की बहन बेटियों की इज्ज़त लूटी जा रही है, इस कारण पाकिस्तान में हिन्दू 15% से मात्र 1% रह गये हैं।

पर यह सब गोदी मीडिया की खबरें यादृच्छिक, झूठी, बनावटी और मनगढ़ंत हैं और या तो अपनी टीआरपी बढ़ने के लिए प्रसारित होती हैं या फिर भारत में नफ़रत फ़ैलाने के लिये। 

 वास्तविकता यह है कि ‘मैं हिंदू हूं, पाकिस्तान में रहती हूं। मुझे यहां कोई परेशानी नहीं होती। हम खुलकर रहते हैं। त्योहार मनाते हैं। एंजॉय करते हैं। यहां की सरकार हमारे लिए प्रोग्राम करवाती है। हमें सिक्योरिटी देती है। हमारे आसपास काफी मुस्लिम रहते हैं, लेकिन उनकी वजह से हमें कोई दिक्कत नहीं है।’

पति धनराज और बच्चे के साथ कराची के रत्नेश्वर मंदिर आईं नीतू के इस जवाब से मुझे हैरानी हुई। मैंने उनसे पूछा था कि भारत में ऐसी खबरें आती हैं कि यहां हिंदुओं के हालात अच्छे नहीं हैं। वे पूजा नहीं कर सकते, त्योहार नहीं मना सकते। मंदिरों की स्थिति भी ठीक नहीं है।

दैनिक भास्कर के रिपोर्टर बिक्रम प्रताप सिंह का कहना है कि चैंपियंस ट्रॉफी की कवरेज के लिए मैं पाकिस्तान पहुंचा, तो मुझे भी ऐसा ही लगता था। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि वाले दिन मैं इस्लामाबाद में था। एक लोकल जर्नलिस्ट ने मुझसे कहा कि आपको आज कराची में होना चाहिए था।

वहां एक शिव मंदिर है, जहां शिवरात्रि पर 25 हजार से ज्यादा श्रद्धालु आते हैं। मंदिर के बारे में मान्यता है कि वहां भगवान शिव की तीसरी आंख मौजूद है और वह किसी भी मुसीबत से कराची को बचाकर रखती है।

ये कराची के रत्नेश्वर महादेव मंदिर का एंट्री गेट है। ये मंदिर अपने शिवरात्रि उत्सव के लिए मशहूर है। फोटो में दिख रहीं सीढ़ियां मंदिर के अंदर ले जाती हैं।

कराची के मशहूर क्लिफ्टन बीच पर है रत्नेश्वर महादेव मंदिर

मैं इस्लामाबाद की कवरेज के बाद कराची पहुंचा। यहां शिवमंदिर के बारे में पता किया। ये मंदिर शहर की प्राइम लोकेशन में से एक क्लिफ्टन बीच के पास है। मंदिर की ओर जाते वक्त मैं यही सोच रहा था कि ये बुरी हालत में होगा। लोग डर के माहौल में वहां आते होंगे।

शाम 7 बजे मंदिर पहुंचा, तो देखा कि मेन गेट लाइट्स से जगमगा रहा था। पूरा परिसर काफी व्यवस्थित है। मैं माइक के साथ गया था, इसलिए मुझे दरवाजे पर रोक दिया गया। ये कराची के रत्नेश्वर महादेव मंदिर का एंट्री गेट है। ये मंदिर अपने शिवरात्रि उत्सव के लिए मशहूर है। फोटो में दिख रहीं सीढ़ियां मंदिर के अंदर ले जाती हैं।

ये रत्नेश्वर मंदिर का बाहरी कैंपस है। पूरा कैंपस सुंदर तरीके से सजाया गया है। हालांकि, आम दिनों में यहां कम ही भीड़ रहती है।

मैंने कहा कि मैं भारत से आया हूं। मंदिर की कवरेज करनी है। जवाब मिला- आप अंदर जाकर पूजा कर सकते हैं, मीडिया कवरेज के लिए इजाजत लेनी पड़ेगी। फिर गेट पर खड़े शख्स ने किसी को फोन किया। ये रत्नेश्वर मंदिर का बाहरी कैंपस है। पूरा कैंपस सुंदर तरीके से सजाया गया है। हालांकि, आम दिनों में यहां कम ही भीड़ रहती है।

दूसरी ओर मौजूद शख्स से मेरी बात कराई। वे पाकिस्तान हिंदू पंचायत के महासचिव रवि डडानी थे। रवि ने गेट पर खड़े शख्स से कहा कि मुझे माइक के साथ अंदर जाने दें। साथ ही बताया कि वे भी कुछ देर में पहुंच रहे हैं।

जमीन से नीचे 6 लेवल पर बना मंदिर, आखिरी लेवल पर महादेव की मूर्ति

आमतौर पर किसी मंदिर में सीढ़ियां चढ़ने के बाद भगवान के दर्शन होते हैं। रत्नेश्वर मंदिर में सीढ़ियां नीचे की ओर जाती हैं। ये मंदिर जमीन की सतह से काफी नीचे है। कुल 6 लेवल हैं, सबसे निचले लेवल पर भगवान शिव विराजमान हैं।

मंदिर के सबसे आखिरी लेवल पर शिवलिंग है। ऊपर के लेवल पर अलग-अलग देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं।

हिंदू बोले- यहां खुश हैं, कोई भेदभाव नहीं होता

परिसर के अंदर जाते हुए मुझे कई भक्त मिले। मैंने सोचा कि इससे पहले कि यहां के व्यस्थापक आएं, इन लोगों से बात कर लेता हूं। हो सकता है कि उनके आने के बाद ये खुलकर बात न करें। यहीं कराची की रहने वाली नीतू मिलीं। मैंने उनसे पूछा कि क्या हिंदू होने की वजह से आपको पाकिस्तान में कोई दिक्कत होती है। उन्होंने जवाब दिया- बिल्कुल नहीं।

मैंने पूछा- कभी इंडिया आने का मन करता है? नीतू कहती हैं, ‘दिल तो करता है कि वहां जाएं।’ तभी उनके पति धनराज बोलने लगते हैं, ‘जम्मू में वैष्णो देवी मंदिर जाने की इच्छा है। हमारा गांव भी इंडिया में है, लेकिन कभी वहां जा नहीं पाए।’ मंदिर के सबसे आखिरी लेवल पर शिवलिंग है। ऊपर के लेवल पर अलग-अलग देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं।

मंदिर में ही मिले कैलाश कुमार कहते हैं, ‘यहां हमारी अच्छी लाइफ है। अच्छे तरीके से सभी त्योहार मनाते हैं। अभी होली आने वाली है। हम इसकी तैयारी कर रहे हैं।’ कैलाश के साथ आईं लता बताती हैं, ‘पहले हमारा परिवार उमरकोट में रहता था। कराची आए 40 साल से ज्यादा हो गए। भोलेनाथ की दया से सब ठीक है।’

भारत में किस मंदिर में दर्शन करने जाना चाहती हैं, लता जवाब देती हैं- ‘हरिद्वार। अगर गए तो सभी मंदिरों में जाएंगे।’ बगल में लक्ष्य खड़े थे। उम्र करीब 20 साल होगी। मैंने पूछा- ‘आप कभी मार्केट जाते हैं और खुद को हिंदू बताते हैं, आपके साथ कोई भेदभाव होता है?’ लक्ष्य बताते हैं, ‘नहीं। यहां सभी हमें भाई समझते हैं। हमारे साथ कभी भेदभाव नहीं होता।’

मंदिर का मेंटेनेंस हिंदू संगठन के पास, सरकार से मदद नहीं लेते

कुछ देर में पाकिस्तान हिंदू पंचायत के महासचिव रवि डडानी आ गए। उनके साथ पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों के रखरखाव के लिए बने विभाग के प्रमुख कृष्ण शर्मा भी थे। रवि बताते हैं, ‘2014 में यहां पास में एक फ्लाईओवर बनना शुरू हुआ था।

कंस्ट्रक्शन की वजह से मंदिर में दरारें आने लगीं। पाकिस्तान हिंदू पंचायत ने कंस्ट्रक्शन रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर को पाकिस्तान की धरोहर बताते हुए फ्लाईओवर का काम रुकवा दिया।’

कराची में 50 से ज्यादा मंदिर, पाकिस्तान में 4 हजार मंदिरों में होती है पूजा

रवि डडानी के साथ मौजूद कृष्ण शर्मा मंदिरों के रखरखाव का काम देखने वाले सरकारी डिपार्टमेंट के प्रमुख हैं। वे बताते हैं, ‘कराची में अभी करीब 50 मंदिर फंक्शनल हैं यानी उनमें नियमित पूजा होती है। बड़ी तादाद में श्रद्धालु आते हैं।’

‘पूरे पाकिस्तान में करीब 4 हजार छोटे-बड़े हिंदू मंदिर हैं। ये सच है कि इनमें से कई मंदिरों की स्थिति अच्छी नहीं है। अब पाकिस्तान सरकार सभी मंदिरों को रिस्टोर करने और देश-विदेश के हिंदुओं को इनका एक्सेस देने पर काम कर रही है।’

‘पाकिस्तान में हिंदुओं से भेदभाव की खबरें सच नहीं’

कृष्ण शर्मा आगे बताते हैं, ‘पाकिस्तान के बाहर ऐसा नैरेटिव फैला हुआ है कि यहां हिंदुओं के साथ बहुत भेदभाव होता है। ये सच नहीं है।’ हमने उनसे पूछा- ‘पाकिस्तान में हिंदू लड़कियों को अगवा करने, जबरन उनकी शादी करवाने और धर्म बदलवाने की खबरें आती हैं, ये कितनी सच हैं?’

कृष्ण शर्मा जवाब देते हैं, ‘ऐसे वाकये होते हैं, जिनमें हिंदू लड़कियां मुसलमान लड़कों से शादी करती हैं। शादी से पहले उनका धर्म भी बदलवाया जाता है। हालांकि, ज्यादातर मामलों में लड़कियां मर्जी से शादी के लिए मुसलमान लड़के को चुनती है।’

‘अगर लड़की की उम्र 18 साल से कम होती है तो प्रशासन सख्त कदम उठाता है। भारत में भी कोई बालिग लड़की गैर धर्म के लड़के से अपनी मर्जी से शादी करे, तो कानून कुछ नहीं कर सकता। ऐसा ही यहां भी है। फिर भी सरकार की कोशिश है कि इस तरह के मामले कम से कम हों।’

‘हिंदू मंदिर में कभी धमाके नहीं होते’

कृष्ण शर्मा कहते हैं, ‘आप अक्सर पाकिस्तान की मस्जिदों में धमाके की खबरें सुनते होंगे। यहां हिंदू मंदिरों में कभी कोई आतंकी घटना नहीं हुई है। कुछ सोशल मसले हैं, लेकिन ये तो हर जगह होते हैं। हां, जब भारत से खबरें आती हैं कि वहां मुसलमानों के साथ अच्छा सलूक नहीं हो रहा है, तो इसका असर पाकिस्तान पर भी पड़ता है।’

‘पाकिस्तान में करीब 80 लाख हिंदू, सबसे ज्यादा सिंध में’

कृष्ण शर्मा आगे बताते हैं, ‘सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान में 52 लाख हिंदू रहते हैं। हालांकि, हमारा डेटा बताता है कि ये आंकड़ा करीब 80 लाख है। पूरे पाकिस्तान में हिंदुओं की सबसे बड़ी आबादी सिंध प्रांत में है। बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वाह में भी हैं। कराची हिंदुओं की सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है। यहां 1.50 लाख से ज्यादा हिंदू रहते हैं।’

पॉलिटिकल लीडर बोले- सरकार अल्पसंख्यकों के लिए काम कर रही

सिंध में अभी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार है। पार्टी के सीनियर लीडर मखदूम मंसूर हाशमी से हमने हिंदुओं की स्थिति पर बात की। उन्होंने माना कि यहां हिंदू लड़कियों की शादी कर धर्म परिवर्तन कराने के मामले होते हैं।

इसकी वजह बताते हुए मखदूम कहते हैं, ‘यहां पढ़े-लिखे लोग कम हैं। जिस दिन यहां साक्षरता दर 80-90% को पार करेगी, ये समस्या दूर हो जाएगी। सिंध सरकार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए काम कर रही है।’

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