मनमोहन सिंह की तीनों बेटियों ने अपने लिए बनाया खास मुकाम

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 दिसंबर 2024 | दिल्ली : देश के दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परिवार में कौन कौन था। परिवार के सदस्य क्या कर रहे हैं। क्या फैमिली मेंबर्स ने कभी उनकी पोजिशन का फायदा लेने की कोशिश की। जवाब कभी नहीं।

मनमोहन सिंह की तीनों बेटियों ने अपने लिए बनाया खास मुकाम

तो ये जान लीजिए कि उनकी तीन बेटियां हैं और पत्नी। बेटियों ने पढ़ाई लिखाई के बाद अलग अलग क्षेत्र चुने और वहां उन्होंने अपनी खास जगह बनाई। वो शिक्षाविद हैं, इतिहासकार हैं, मानवतावादी हैं तो लेखक भी।

मनमोहन सिंह की तीनों बेटियां जिन्होंने अपने लिए बनाया खास मुकाम

सबसे बड़ी बेटी उपिंदर सिंह की उम्र 65 साल है। उनके पति विजय तन्खा एक शिक्षाविद और लेखक हैं। उनके दो बच्चे हैं। दमन सिंह 61 साल की हैं। उनके पति अशोक पटनायक सीनियर आईपीएस अफसर थे। उनके एक बेटा है। तीसरी बेटी अमृत सिंह 58 साल की हैं। उनके पति के बारे में जानकारी पब्लिक डोमैन पर उपलब्ध नहीं है।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तीन बेटियां थीं – उपिंदर सिंह, दमन सिंह और अमृत सिंह। उनमें से प्रत्येक ने अपने-अपने क्षेत्रों में एक सफल करियर बनाया।

उपिंदर सिंह ; पेशा: इतिहासकार और शिक्षाविद

वर्तमान भूमिका: अशोका विश्वविद्यालय में संकाय की डीन

शिक्षा: उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली और मैकगिल विश्वविद्यालय, मॉन्ट्रियल से डिग्री प्राप्त कीं।

उपिंदर दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से सेवानिवृत्त हुई है। पूर्व में वे दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की प्रमुख भी रह चुकी हैं। उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास पर महत्वपूर्ण काम किया है। उन्होंने इस पर कई किताबें लिखी हैं।

इनमें प्राचीन और प्रारंभिक मध्यकालीन भारत का इतिहास और प्राचीन भारत में राजनीतिक हिंसा शामिल हैं। भारत के प्राचीन इतिहास, पुरातत्व और राजनीतिक विचारों पर उन्होंने रिसर्च की है। उपिंदर सिंह की किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ एंसिएंट एंड अर्ली मीडीवियल इंडिया’ और ‘पॉलिटिकल वॉयलेंस इन एंसिएंट इंडिया’ को खूब तारीफ मिली है। उन्हें हार्वर्ड और कैम्ब्रिज जैसे संस्थानों से प्रतिष्ठित फ़ेलोशिप मिली हैं। उन्हें 2009 में सामाजिक विज्ञान में इन्फोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उपिंदर ने की थी संजय बारू की किताब की आलोचना

मनमोहन सिंह की इतिहासकार और प्रोफेसर बेटी उपिंदर सिंह ने संजय बारू द्वारा लिखित संस्मरण द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर की सार्वजनिक रूप से आलोचना की, जिसमें उनके पिता को नकारात्मक रूप में चित्रित किया गया।

उन्होंने संस्मरण को “विश्वास का बहुत बड़ा विश्वासघात” और “शरारती और अनैतिक” कृत्य बताया। तर्क दिया कि इसमें उनके पिता के अधिकार और उनके कार्यकाल के दौरान कांग्रेस पार्टी के भीतर की गतिशीलता को गलत तरीके से पेश किया गया।

दमन सिंह; पेशा: लेखक

दमन को उनके संस्मरण स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन और गुरशरण के लिए जाना जाता है, जो उनके पिता के प्रधानमंत्री बनने से पहले उनके पारिवारिक जीवन के बारे में जानकारी देती है।

4 सितंबर, 1963 को जन्मी दमन ने पर्यावरण मुद्दों सहित विभिन्न विषयों पर किताबें लिखी हैं। दमन की शादी आईपीएस अधिकारी अशोक पटनायक से हुई। उनका एक बेटा भी है।

 दमन सिंह ने पिता पर किताब लिखी

दूसरी बेटी दमन सिंह ने पिता पर किताब लिखी। उनकी किताब का टाइटल था, स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरशरण। ये किताब उनके परिवार के जीवन और राजनीतिक जीवन के दौरान आने वाली चुनौतियों पर अंतरंग नज़र डालती है। इस किताब में पिता के व्यक्तिगत किस्से हैं, जो मनमोहन सिंह के चरित्र को गहराई से रू-ब-रू कराती है। इसके अलावा दमन सिंह ने द सेक्रेड ग्रोव और नाइन बाइ नाइन भी लिखी हैं। 

अमृत सिंह; पेशा: मानवाधिकार वकील और शिक्षाविद

अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) में स्टाफ अटॉर्नी और स्टैनफोर्ड लॉ स्कूल में कानून की प्रोफेसर

अमृत ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर बनीं। फिर येल लॉ स्कूल से कानून की डिग्री हासिल की। उन्होंने महत्वपूर्ण कानूनी मामलों पर काम किया। पहले ओपन सोसाइटी इनिशिएटिव के लिए वकील के रूप में काम किया। उनके अनुभव में कई प्रतिष्ठित संस्थानों में अध्यापन शामिल है।

तीनों बेटियों ने न केवल अपने पिता की विरासत को कायम रखा बल्कि शिक्षा, साहित्य और मानवाधिकार वकालत में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। कहना चाहिए कि मनमोहन सिंह की बेटियों ने सार्वजनिक जीवन में अपनी व्यावसायिक उपलब्धियों और व्यक्तिगत दृष्टिकोणों के माध्यम से अपने तरीके से प्रभाव डाला।

अमृत ने वकालत में काम किया

तीसरी बेटी अमृत सिंह ने मानवाधिकार वकील के रूप में ईमानदारी और न्याय के मूल्यों पर काम किया। कुल मिलाकर, मनमोहन सिंह की बेटियों ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया और पिता का बचाव भी किया।

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नरेश मीणा के एनकाउंटर की साजिश का वीडियो वायरल, कब आयेंगे जेल से बाहर नरेश मीणा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 दिसंबर 2024 | दिल्ली : राजस्थान में ‘थप्पड़ कांड’ से चर्चित हुए कांग्रेस के बागी नरेश मीणा 1 महीने से टोंक जेल में बंद है। इधर, नरेश मीणा की जमानत याचिका खारिज होने के बाद एक बार फिर टोंक जिला सेशन न्यायालय में अपील की गई है।

नरेश मीणा के एनकाउंटर की साजिश का वीडियो वायरल, कब आयेंगे जेल से बाहर नरेश मीणा

इसके चलते 17 दिसंबर को एक बार फिर नरेश मीणा की जमानत को लेकर सुनवाई होगी। इधर, नरेश के समर्थकों में रिहाई की मांग को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई है। बता दें कि बीते दिनों उनियारा कोर्ट में नरेश की जमानत की एप्लीकेशन लगाई गई थी, जो खारिज हो गई थी।

नरेश मीणा के एनकाउंटर की साजिश का वीडियो वायरल

टोंक जिले के देवली-उनियारा क्षेत्र में एसडीएम थप्पड़ कांड के 5वें दिन भी समरावता गांव में दहशत का माहौल है। ग्रामीणों के आंसू थमने का नाम नही ले रहे है। जब भी कोई नेता गांव में पहुंच रहा हैं तो व्यथा सुनाते हुए ग्रामीणों की आंखों से आंसू निकल पड़ते है।

देवली-उनियारा के समरावता गाँव के लोग नये वीडियो से दहशत में है। वहीं, नरेश मीणा के पिता कल्याण सिंह मीणा भी गांव में पहुंचते ही रो पड़े। राजनेता वैसे तो नरेश मीणा की ज़मानत और उनकी रिहाई के लिए कुछ कर नहीं रहे हैं पर अपनी राजनीति चमकाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं। 

भोली-भली जनता सोच रही है कि सड़क पर आंदोलन करने या बड़ी-बड़ी सभाएँ करने से नरेश मीणा की ज़मानत हो जायेगी। पर, ऐसा कतई नहीं है क्योंकि जमनत तो सिर्फ़ वकीलों की अच्छी पैरवी से होगी जो अभी तक नहीं हुई है।

ग्रामीणों का आरोप ‘पुलिस कर देती एनकाउंटर’

इतना सुनते ही नरेश मीणा के पिता भावुक हो गए थे और उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े। लोगों ने यह भी कहा कि नरेश को हम उठाकर नहीं ले जाते तो पुलिस उसका एनकाउंटर कर देती। इस दौरान मौके पर मौजूद लोग उन्हें संभालते नजर आए। सोशल मीडिया पर भी उनका एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक व्यक्ति नरेश मीणा के एनकाउंटर की पुलिस की साजिश की बात कह रहा है।

मूकनायक मीडिया इस वीडियो की पुष्टि नहीं करता है। प्रोफ़ेसर राम लखन ने अपने एक्स (X) हैंडल पर राजस्थान पुलिस को टैग करते हुए इनकी तटस्थ जाँच की माँग की है। उनका कहना है कि राजस्थान पुलिस की छवि से जुड़े इस वीडियो की जाँच हो।

ये है पूरा मामला

बता दें कि विधानसभा क्षेत्र देवली उनियारा में विधानसभा उप चुनाव 2024 के दौरान ग्राम समरावता थाना नगरफोर्ट, जिला टोंक में ग्रामीणो द्वारा उनके गांव समरावता को उपखण्ड देवली से हटाकर उपखण्ड उनियारा मे शामिल करने की मांग को लेकर मतदान का बहिष्कार किया था।

निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने उक्त मांग को लेकर ग्रामीणो को साथ लेकर धरना शुरू किया। तभी निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने वहां मौजूद एरिया मजिस्ट्रेट अमित चौधरी आरएएस उपखण्ड अधिकारी मालपुरा के थप्पड़ मार दी। इसके बाद घटनास्थल से थोड़ी दूर धरने पर बैठ गया।

शाम को मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद पुलिस ने निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा को पकड़ा। लेकिन, ग्रामीणों ने पुलिस पर पथराव कर नरेश मीणा को छुड़ा लिया। उपद्रवियों ने दो राजकीय वाहन व 7 प्राईवेट वाहन एवं लगभग 25 मोटर साईकिलों में आग लगा दी।

हालांकि, अगले दिन पुलिस ने नरेश मीणा को गिरफ्तार कर लिया। इस पर मीना समर्थक भड़क गए और नरेश मीणा की रिहाई की मांग को लेकर कचरावता गांव के पास राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 148 डी पर जाम लगा दिया। इस पर पुलिस 60 उपद्रवियों को गिरफ्तार कर चुकी है। नरेश मीणा सहित सभी उपद्रवी अभी जेल में बंद है।

नरेश मीणा कब आयेंगे जेल बाहर?

राजस्थान में उपचुनाव के दिन 13 नवंबर को देवली उनियारा विधानसभा के निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा ने एरिया मजिस्ट्रेट को थप्पड़ जड़ दिया था। इसको लेकर समरावता गांव में जमकर बवाल हुआ, हिंसा हुई। उसके दूसरे दिन 14 नवंबर को टोंक पुलिस ने नरेश को गिरफ्तार कर लिया।

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नरेश तब से टोंक जेल में बंद है। हालांकि एक बार उनियारा कोर्ट में उनकी जमानत याचिका को खारिज हो चुकी है। नरेश मीणा के वकील ने बताया कि जिला कोर्ट में फिर से याचिका दायर की गई है जिसको लेकर अब 17 दिसंबर को सुनवाई हुई। पर जमानत अभी तक नहीं हुई है।

नरेश की रिहाई को लेकर गरमा रहा है मुद्दा

इधर, एक महीने से टोंक जेल में बंद नरेश मीणा की रिहाई का मामला गर्माता जा रहा है। नरेश मीणा के समर्थक उनकी रिहाई को लेकर लगातार एक्टिव दिखाई दे रहे हैं। बीते दिनों सवाई माधोपुर के चौथ का बरवाड़ा में सर्व समाज की महापंचायत हुई।

इधर, नरेश के समर्थक टोंक सरपंच संघ अध्यक्ष मुकेश मीणा ने भी प्रशासन को चुनौती देते हुए कहा कि आने वाले दिनों में इस तरह का आंदोलन खड़ा किया जाएगा जो प्रशासन ने सोचा भी नहीं होगा। 

नरेश मीणा की जमानत पर फिर टली सुनवाई

बता दें कि थप्पड़ कांड के बाद से निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा 14 नवंबर से टोंक जेल में बंद है। इस बीच दो बार उनकी जमानत अर्जी भी खारिज हो चुकी है। टोंक जिला न्यायालय में आज एक बार फिर नरेश मीणा की जमानत अर्जी की सुनवाई टल गई है।

अब 4 जनवरी को जमानत पर सुनवाई होगी। बता दें कि नरेश मीणा सहित 18 आरोपियों के लिए उनियारा एसीजेएम कोर्ट मेें दो बार अर्जी खारिज हो चुकी है। इधर, 29 दिसंबर को नरेश के समर्थक उनकी रिहाई के लिए महापंचायत बुला रहे हैं। इस दौरान टोंक कलेक्ट्रेट और टोंक हाईवे पर बड़ा प्रदर्शन करने का प्रस्तावित कार्यक्रम रखा गया है।

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गोल्डन मेमोरी : प्रोफ़ेसर से कैसे प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 दिसंबर 2024 | दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन हो गया। वे अविभाजित भारत में पंजाब के गाह गांव में पैदा हुए थे। मनमोहन सिंह को भारत की अर्थव्यवस्था में उदारीकरण लाने का श्रेय दिया जाता है। 

गोल्डन मेमोरी : प्रोफ़ेसर से कैसे प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह

एक अर्थशास्त्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होकर उन्होंने देश की सेवा की थी। रिजर्व बैंक के गवर्नर जैसे पद पर रहे डॉ मनमोहन सिंह केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक संकट से जूझते देश को नई आर्थिक नीति का उपहार दिया और प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उदारवादी आर्थिक नीति को बढ़ावा दिया और देश की अर्थव्यवस्था को नई उड़ान दी।

गोल्डन मेमोरी : मनमोहन सिंह का प्रोफ़ेसर से प्रधानमंत्री का सफ़र

डॉ मनमोहन सिंह साल 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। वह पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और पीएम नरेंद्र मोदी के बाद चौथे सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहें। डॉ मनमोहन सिंह भारत के पहले सिख प्रधान मंत्री थे। वो जवाहरलाल नेहरू के बाद पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से चुने जाने वाले पहले प्रधान मंत्री भी थे।

वे पीवी नरसिम्हा राव सरकार (1991-96) में वित्त मंत्री भी रहे थे। राव ने मनमोहन से कहा था कि अगर आप सफल हुए तो इसका श्रेय हम दोनों को जाएगा। अगर आप असफल हुए तो सिर्फ आपकी जिम्मेदारी होगी।

नरसिम्हा राव के शपथ ग्रहण से एक दिन पहले मनमोहन को फोन गया…

नरसिम्हा राव 1991 में प्रधानमंत्री बने तो वे कई चीजों के एक्सपर्ट बन चुके थे। स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालय वे पहले देख चुके थे। वो विदेश मंत्री भी रह चुके थे। उनका एक ही विभाग में हाथ तंग था और वो था वित्त मंत्रालय। प्रधानमंत्री बनने से दो दिन पहले कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने उन्हें 8 पेज का एक नोट दिया था, जिसमें बताया गया था कि भारत की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है।

नरसिम्हा राव ने उस समय के अपने सबसे बड़े सलाहकार पीसी अलेक्जेंडर से पूछा कि क्या आप वित्त मंत्री के लिए ऐसे व्यक्ति का नाम सुझा सकते हैं, जिसकी इंटरनेशनल लेवल पर स्वीकार्यता हो। अलेक्जेंडर ने उन्हें रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर रह चुके और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक आईजी पटेल का नाम सुझाया।

आईजी पटेल दिल्ली नहीं आना चाहते थे, क्योंकि उनकी मां बीमार थीं और वे वडोदरा में थे। फिर अलेक्जेंडर ने ही मनमोहन सिंह का नाम लिया। अलेक्जेंडर ने शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले मनमोहन सिंह को फोन किया। उस समय वे सो रहे थे, क्योंकि कुछ घंटे पहले ही विदेश से लौटे थे। जब उन्हें उठाकर इस प्रस्ताव के बारे में बताया गया तो उन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया।

इसलिए ऐतिहासिक माना जाता है 1991 का बजट…

1991 में नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने बजट में उदारीकरण (Liberalization), निजीकरण (Privatization) और वैश्वीकरण (Globalization) से जुड़ी अहम घोषणाएं की, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार मिली। इसके चलते देश में व्यापार नीति, औद्योगिक लाइसेंसिंग, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति से जुड़े नियम-कायदों में बदलाव किए गए।

2004 में ऐसे आया मनमोहन का नाम 

2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने UPA गठबंधन बनाया और कई दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। सोनिया गांधी 1998 में राजनीति में आई थीं और 2004 में पार्टी की कमान संभाल रही थीं। लोकसभा चुनाव के ओपिनियन पोल में भाजपा को दो-तिहाई बहुमत मिलने की भविष्यवाणी की गई थी।

भाजपा जीत के भरोसे में थी। नतीजे आए तो बीजेपी 182 सीटों से लुढ़ककर 138 सीटों पर आ गई थी। कांग्रेस 114 से बढ़कर 145 सीटों पर पहुंच गई। हालांकि, PM कौन बनेगा, इस बात को लेकर अनिश्चितता थी।

UPA सरकार में विदेश मंत्री रहे नटवर सिंह अपनी किताब ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ में लिखते हैं, ‘उस समय गांधी परिवार पसोपेश में था। राहुल ने अपनी मां से कहा कि वो PM नहीं बनेंगी। राहुल अपनी मां को रोकने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। दोनों मां-बेटे के बीच ऊंची आवाज में बातें हो रही थीं। राहुल को डर था कि मां PM बनीं तो उन्हें भी दादी और पिता की तरह मार दिया जाएगा।’

नटवर लिखते हैं, ‘राहुल बेहद गुस्से में थे। उस वक्त मैं, मनमोहन सिंह और प्रियंका वहीं थे। बात तब बढ़ गई, जब राहुल ने कहा कि मां मैं आपको 24 घंटे का टाइम दे रहा हूं। आप तय कर लीजिए क्या करना है? आंसुओं से भरी मां (सोनिया) के लिए यह असंभव था कि राहुल की बात को वे दरकिनार कर दें।’

2004 में राहुल अड़ गए थे कि वे मां सोनिया गांधी को PM नहीं बनने देंगे।

2004 में राहुल अड़ गए थे कि वे मां सोनिया गांधी को PM नहीं बनने देंगे। 18 मई 2004 की सुबह सोनिया गांधी सुबह जल्दी उठीं। राहुल और प्रियंका के साथ चुपचाप घर से बाहर निकल गईं। सोनिया की कार राजीव गांधी की समाधि पहुंची। तीनों थोड़ी देर तक समाधि के सामने बैठे रहे।

उसी दिन शाम 7 बजे संसद के सेंट्रल हॉल में कांग्रेस सांसदों की बैठक हुई। सोनिया गांधी ने राहुल और प्रियंका की तरफ देखकर कहा- मेरा लक्ष्य कभी भी प्रधानमंत्री बनना नहीं रहा है। मैं हमेशा सोचती थी कि अगर कभी उस स्थिति में आई, तो अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनूंगी। आज वह आवाज कहती है कि मैं पूरी विनम्रता के साथ ये पद स्वीकार न करूं।

इसके बाद दो घंटे तक कांग्रेस के सांसद सोनिया को PM बनने के लिए मनाते रहे, लेकिन नाकामी हाथ लगी। इसी दौरान UP के एक सांसद ने कहा, ‘मैडम आपने वो मिसाल कायम की है, जैसा पहले महात्मा गांधी ने की है। आजादी के बाद जब देश में पहली बार सरकार बनी तो गांधी जी ने भी सरकार में शामिल होने से मना कर दिया था। तब गांधी जी के पास नेहरू थे। अब कोई नेहरू कहां है।’

सोनिया जानती थीं कि उनके पास एक तुरुप का पत्ता था और वो थे मनमोहन सिंह। कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह के नाम का ऐलान कर दिया गया। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने किताब ‘टर्निंग पॉइंट्सः ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज’ में लिखा कि UPA की जीत के बाद राष्ट्रपति भवन ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने से संबंधित चिट्ठी भी तैयार कर ली थी, लेकिन जब सोनिया गांधी उनसे मिलीं और डॉ. मनमोहन सिंह का नाम आगे किया तो वह चकित रह गए थे। बाद में दोबारा चिट्ठी तैयार करनी पड़ी थी। मनमोहन सिंह ने 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक प्रधानमंत्री पद संभाला।

2009 में राहुल ने कहा था- मैं PM नहीं बनना चाहता

2009 लोकसभा चुनाव में यूपीए को 262 सीटें मिलीं। एक बार फिर प्रधानमंत्री के नाम को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया। सियासी गलियारों में राहुल गांधी का नाम उछाला गया। सीनियर जर्नलिस्ट वीर सांघवी अपनी बुक ए रूड लाइफ: द मेमॉयर में लिखते हैं- मनमोहन सिंह दूसरी बार PM बनने को तैयार नहीं थे। उन्होंने सोनिया के सामने शर्त रखी थी कि बतौर प्रधानमंत्री जब कार्यकाल पूरा करने का मौका मिलेगा, तभी दोबारा पद संभालेंगे।

इसके बाद राहुल ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की कोई इच्छा नहीं है। इसके बाद मनमोहन ने दोबारा (22 मई 2009- 26 मई 2014) प्रधानमंत्री पद संभाला।

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