राहुल गाँधी के लिए चुनौती कैसे दूर करेंगे राज्यों में लीडरशिप का टोटा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 17 जुलाई 2024 | जयपुर : राहुल गांधी ने 1 जुलाई को संसद में बतौर नेता प्रतिपक्ष अपनी पहली स्पीच में कहा, ‘मैं गुजरात जाता रहता हूंऔर आपको गुजरात में हराएंगे इस बार। आप लिखकर ले लो। आपको INDIA गठबंधन हराने जा रहा है।’ तो सभी को हैरानी हुई। गुजरात में 29 साल से कांग्रेस की सरकार नहीं बनी, लगातार 26 साल से राज्य में BJP की सरकार है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटें मिलने के बाद से राहुल गांधी कॉन्फिडेंट दिख रहे हैं।

राहुल गाँधी के लिए चुनौती कैसे दूर करेंगे राज्यों में लीडरशिप का टोटा

लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भले कांग्रेस को कॉन्फिडेंस दिया हो, लेकिन राज्यों में पार्टी की स्थिति अब भी अच्छी नहीं है। अधिकांश सीनियर लीडर या तो बीजेपी के स्लीपर सेल के रूप में कार्य कर रहे हैं या फिर रिटायरमेंट की तरफ बढ़ रहे हैं।

राहुल गाँधी के लिए चुनौती

कभी कांग्रेस का गढ़ रहे मध्यप्रदेश में पूर्व CM कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत अपने बेटों को ही नहीं जिता पाये और वे बुरी तरह  चुनाव हार गये। हरियाणा में पार्टी गुटबाजी में फंस गई है। UP, बिहार, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में पार्टी के पास चुनाव जिताने वाले चेहरे नहीं हैं।

13 जुलाई को 7 राज्यों की 13 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आए। कांग्रेस 9 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। पार्टी ने हिमाचल और उत्तराखंड में दो-दो सीटें जीतीं।

फिलहाल राज्यों में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियाँ हैं, इनमें से कुछ प्रमुख चुनौतियाँ ये हैं;

  1. पार्टी के पास कोई लीडरशिप नहीं है।
  2. पुरानी लीडरशिप कमजोर होती दिख रही है।
  3. जहां सीनियर लीडर ज्यादा हैं, वहां गुटबाजी है और सीनियर नेता बीजेपी के स्लीपर के रूप में काम रहे हैं। 
  4. कांग्रेस ऐसे नेताओं को ना उगल पा रही या ना ही निगल पा रही है।
  5. एससी एसटी ओबीसी का वोट बैंक फिर से कांग्रेस की तरफ मुड़ा है पर उनके नेताओं को संगठन में जगह नहीं मिल रही है।
  6. कांग्रेस संगठन में ज्यादातर राज्यों में और केंद्रीय स्तर पर सेकंड-थर्ड लाइन लीडरशिप का अभाव है?
  7. कांग्रेस फिर से तभी चुनाव जीत सकती है, जब वह जनता को ये भरोसा दिला पाए कि उनके लिए यही पार्टी बेहतर है। इसके लिए कांग्रेस को नए लोगों को पार्टी से जोड़ना भी एक चुनौती ही है।
  8. कांग्रेस को छिटके वोट बैंक को फिर से अपने पाले में लाना होगा। सेकुलर सवर्ण, दलित, आदिवासी, पिछड़ा और अल्पसंख्यक कभी कांग्रेस का बेस वोटर हुआ करते थे जो अब अलग-अलग पार्टियों के साथ जा चुके हैं। कांग्रेस पुराना वोट बैंक फिर साथ ला पाती है तो उत्तर से पूर्वोत्तर तक उसके अधिक सीटों पर जीत की उम्मीदें मजबूत उम्मीदें मजबूत हो सकती हैं।

राज्यों में कांग्रेस कहां कमजोर है, संगठन मजबूत करने की उसकी स्ट्रैटजी क्या है, दैनिक भास्कर ने इस पर पार्टी लीडर्स, सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एनालिस्ट से बात की।

गहलोत रिटायरमेंट के मूड में नहीं, पायलट-डोटासरा विकल्प बने

अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अब भी सियासी तल्खी है। लोकसभा चुनाव में पार्टी 0 से 8 सीटों पर पहुंची है, लेकिन इस जीत पर प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और सचिन पायलट दावा कर रहे हैं।

मई, 2024 में 73 साल के हुए अशोक गहलोत रिटायरमेंट के मूड में नहीं हैं। इसलिए राजस्थान कांग्रेस में बड़े बदलाव के आसार कम हैं। 2023 में गहलोत ने साफ कर दिया था कि उनका रिटायरमेंट का प्लान नहीं है। गहलोत अब भी उसी स्टैंड पर कायम हैं।

सूत्र बताते हैं कि गहलोत की रणनीति है कि अगर उन्हें चौथी बार लीड करने का मौका नहीं दिया जाता है, तो उनकी जगह सचिन पायलट को भी मौका न मिले। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी पायलट के लिए चुनौती हैं। डोटासरा सियासी तौर पर प्रभावी जाट समुदाय से आते हैं।

पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा कहते हैं, ‘राजस्थान में कांग्रेस की पूरी राजनीति गहलोत और पायलट के बीच ही थी। अब गोविंद सिंह डोटासरा ने जगह बना ली है। कांग्रेस में साफ नजर आता है कि इनमें से कोई भी नेता बड़ी भूमिका में आ सकता है।’ साथ ही मुरारी लाल मीणा आदिवासी समुदाय के नेतृत्व के लिए तैयार है, उन्हीं बड़ी जिम्मेदारी कि दरकार है।

वहीं, कांग्रेस लीडर और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली कहते हैं, ‘हमें युवा जोश के साथ अनुभव भी चाहिए। हमारे उदयपुर डिक्लेरेशन में क्लियर है कि 50% युवाओं को मौका देंगे और बाकी सीनियर रहेंगे। सीनियर नेताओं के अनुभव के बिना पार्टी नहीं चल सकती।’

महाराष्ट्र: लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सब ठीक नहीं

महाराष्ट्र में नाना पटोले पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की परफॉर्मेंस सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में ही सुधरी है। 2014 में कांग्रेस ने यहां 2 सीटें जीती थीं, 2019 में एक सीट जीती और 2024 में 13 सीटें जीतकर नंबर वन पार्टी बन गई। फिर भी पार्टी की हालत बहुत अच्छी नहीं है।

सीनियर जर्नलिस्ट संदीप सोनवलकर बताते हैं, ‘कांग्रेस में अंदरखाने बहुत बिखराव है। पार्टी की फ्रंटलाइन लीडरशिप खत्म हो चुकी है। पुराने नेताओं में सिर्फ पृथ्वीराज चव्हाण बचे हैं, जो 2014 से साइड लाइन हैं। नाना पटोले सिर्फ विदर्भ के नेता हैं, पूरे महाराष्ट्र में वे अपने दम पर चुनाव नहीं जिता सकते। पार्टी के अंदर ही उनकी नहीं चल रही है।’

संदीप कहते हैं, ‘अभी विधान परिषद चुनाव में पार्टी के 7 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। नाना पटोले BJP से आए हैं, यही वजह है कि आज भी पार्टी के कई नेता उन्हें अपना नहीं पाए हैं।” अशोक चव्हाण और दूसरे बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने के पीछे भी नाना पटोले का ही हाथ माना जाता है। विधानसभा चुनाव से पहले हाईकमान इस ओर ध्यान नहीं देता है तो कांग्रेस में और फूट दिख सकती है।’

हरियाणा: राज्य में जीत के चांस, लेकिन गुटबाजी सबसे बड़ा चैलेंज

हरियाणा में इसी साल विधानसभा चुनाव हैं। कांग्रेस ने राज्य की जिम्मेदारी पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा को दे रखी है। हुड्डा विधायक दल के नेता हैं और प्रदेश अध्यक्ष उदयभान उनके करीबी माने जाते हैं। हरियाणा में दूसरा खेमा पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा सांसद कुमारी शैलजा का है। रणदीप सिंह सुरजेवाला भी शैलजा खेमे के नेता माने जाते हैं।

2019 विधानसभा चुनाव के दौरान कुमारी शैलजा प्रदेश अध्यक्ष थीं। तब हुड्डा से उनकी अदावत की वजह से पार्टी बंटी नजर आती थी। 2022 से कांग्रेस ने एक बार फिर हुड्डा पर भरोसा जताया। उनके नेतृत्व में पार्टी ने लोकसभा चुनाव में 5 सीटें जीती हैं। विधानसभा चुनाव भी पार्टी उनके ही नेतृत्व में लड़ने वाली है।

सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा ने चुनाव से पहले शहरी क्षेत्र में पदयात्रा निकालने का ऐलान किया है। इसके तुरंत बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को आगे करके रथ यात्रा का कार्यक्रम फाइनल कर दिया।

एक्सपर्ट्स मानते हैं कि हरियाणा में संगठन स्तर पर लिए जाने वाले फैसलों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ही चल रही है। कुमारी शैलजा खुलेआम इसका विरोध करती रही हैं। राज्य में जाट और दलित के पॉलिटिकल एडजस्टमेंट की परेशानियां हैं, उन्हें पार्टी हाईकमान को दूर करना पड़ेगा। हरियाणा में कांग्रेस के पास चुनाव जीतने और सत्ता में वापस आने का बड़ा मौका है। अगर हरियाणा में कांग्रेस जीत जाती है, तो इससे केंद्र की राजनीति पर असर पड़ेगा।

मध्य प्रदेश: सीनियर नेताओं के साथ युवाओं को मिलेगी जिम्मेदारी

मध्यप्रदेश में कांग्रेस पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारी है। लोकसभा चुनाव के बाद हुई मीटिंग में पार्टी ने तय किया है कि सीनियर लीडर्स के साथ युवाओं को बड़ी जिम्मेदारी दी जाए।

प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह, प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट्स से बात की। उन्होंने सीनियर लीडर्स की गुटबाजी को हार की वजह बताया।

बैठक में शामिल रहे एक नेता बताते हैं कि मीटिंग में सबसे ज्यादा फोकस इसी पर रहा कि कैसे युवाओं को आगे लाया जाए। पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस ने अलग-अलग टीमों में युवाओं को सहप्रभारी बनाकर उन्हें आगे बढ़ाने के संकेत दे दिए हैं।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के उपाध्यक्ष जेपी धनोपिया कहते हैं, ‘भंवर जितेंद्र सिंह, जीतू पटवारी, उमंग सिंघार और सभी सीनियर लीडर्स ने विधायकों से वन-टु-वन बात की है। अब नए लोगों को मौका मिलेगा, पुराने लोगों को भी जोड़ा जाएगा।’

छत्तीसगढ़: सीनियर नेता हटेंगे, नए लोगों को पद देने की तैयारी

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बड़े लेवल पर संगठन में बदलाव करने की तैयारी में है। पार्टी में कई सीनियर लीडर रिटायरमेंट की उम्र में आ चुके हैं। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट पुराने नेताओं की जगह नए चेहरों पर जोर दे रहे हैं। जिला अध्यक्ष सहित सभी पद युवा या नए चेहरों को देने का प्लान है।

अगले दो महीने में प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को हटाने की भी चर्चा है। दो नए कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि नए चेहरों और युवाओं को आगे करने पर सीनियर नेताओं का साथ नहीं मिल रहा है। कलह के डर से पार्टी कोई फैसला नहीं ले पा रही है। इसके अलावा 70 साल से ज्यादा उम्र के ज्यादातर नेताओं ने बेटों को राजनीति में लॉन्च कर दिया है।

झारखंड: चुनाव से पहले पार्टी में कलह, प्रदेश अध्यक्ष बदलने की मांग

झारखंड में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव हैं। यहां कांग्रेस के कई नेता मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर को बदलने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में जून में हुई मीटिंग में भी ये मांग उठी।

सूत्र बताते हैं कि राज्य के सीनियर नेताओं ने हाईकमान के सामने कहा कि मौजूदा अध्यक्ष ने संगठन के लिए कोई खास काम नहीं किया। उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए लोकसभा चुनाव के रिजल्ट का सहारा लिया।

रिजल्ट के मुताबिक, कांग्रेस 13 विधानसभा सीटों पर आगे रही। झारखंड मुक्ति मोर्चा को 16 और BJP को 52 सीटों पर बढ़त मिली। इस लिहाज से देखें, तो विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार तय है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में दो सीटें जीती हैं।

चुनावी राज्यों में काम शुरू, UP-गुजरात में कैडर तैयार करने पर फोकस

2024 में महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में चुनाव हैं। कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने यहां काम शुरू कर दिया है। हालांकि, कांग्रेस और राहुल गांधी के रणनीतिकार UP और गुजरात में संगठन मजबूत करने पर काम कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी 6 जुलाई को गुजरात गए थे। वहां वे जेल में बंद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के परिवार से मिले।

गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं। BJP ने 99 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। तब राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। UP में भी जातिगत जनगणना और संविधान के मुद्दे पर कांग्रेस को फायदा मिला है। एक्सपर्ट मान रहे हैं कि प्रदेश में सहयोगी पार्टी सपा को दलित और OBC वोट मिले, उसकी वजह भी कांग्रेस और राहुल गांधी हैं।

बिहार, ओडिशा, आंध्रप्रदेश में लीडरशिप का संकट
UP के अलावा बिहार, ओडिशा, आंध्रप्रदेश में भी कांग्रेस के पास लीडरशिप की कमी है। राहुल गांधी ने UPA सरकार में UP के जिन नेताओं को मंत्री बनाया था, वे पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। इनमें जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह बड़े नाम हैं।

बिहार में भी पार्टी बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है। इस बार लोकसभा चुनाव में उसे सिर्फ 3 सीटें मिली हैं। सांसदों के मामले में वो बड़ी पार्टियों में 5वें नंबर पर है। आंध्रप्रदेश में पूर्व CM जगन रेड्डी की बहन शर्मिला को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन इसका फायदा नहीं हुआ।

पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। ऐसी ही कोशिश ओडिशा में भी चल रही है। यहां 24 साल से कांग्रेस की सरकार नहीं है। उसका संगठन भी नहीं है। जम्मू-कश्मीर, UP, बिहार, ओडिशा और आंध्रप्रदेश में न तो फर्स्ट लाइन की लीडरशिप है और न सेकेंड लाइन है। वहां समीकरण के हिसाब से, सहयोगियों के हिसाब से जीत-हार होती रहती है।

हाईकमान तैयार कर रहा नई लीडरशिप

सूत्रों के मुताबिक, कमलनाथ के नेतृत्व में पार्टी मध्य प्रदेश में चुनाव हारी, तभी दिल्ली से नई लीडरशिप बनाने का आदेश हुआ। इसके बाद जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष और उमंग सिंघार को विधायक दल का नेता बनाया गया। ये राहुल गांधी का आदेश था कि सेकेंड लीडरशिप को तुरंत मौका देना चाहिए।

ऐसे ही राजस्थान में गोविंद सिंह डोटासरा को कंटीन्यू किया गया और टीकाराम जूली को विधायक दल का नेता बनाया गया। मुरारी लाल मीणा आदिवासी समुदाय के मजबूत स्तम्भ है। जहां-जहां पार्टी हार रही है, वहां-वहां राहुल गांधी अपने हिसाब से लीडरशिप डेवलप कर रहे हैं।

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मनमोहन सिंह की तीनों बेटियों ने अपने लिए बनाया खास मुकाम

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 दिसंबर 2024 | दिल्ली : देश के दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परिवार में कौन कौन था। परिवार के सदस्य क्या कर रहे हैं। क्या फैमिली मेंबर्स ने कभी उनकी पोजिशन का फायदा लेने की कोशिश की। जवाब कभी नहीं।

मनमोहन सिंह की तीनों बेटियों ने अपने लिए बनाया खास मुकाम

तो ये जान लीजिए कि उनकी तीन बेटियां हैं और पत्नी। बेटियों ने पढ़ाई लिखाई के बाद अलग अलग क्षेत्र चुने और वहां उन्होंने अपनी खास जगह बनाई। वो शिक्षाविद हैं, इतिहासकार हैं, मानवतावादी हैं तो लेखक भी।

मनमोहन सिंह की तीनों बेटियां जिन्होंने अपने लिए बनाया खास मुकाम

सबसे बड़ी बेटी उपिंदर सिंह की उम्र 65 साल है। उनके पति विजय तन्खा एक शिक्षाविद और लेखक हैं। उनके दो बच्चे हैं। दमन सिंह 61 साल की हैं। उनके पति अशोक पटनायक सीनियर आईपीएस अफसर थे। उनके एक बेटा है। तीसरी बेटी अमृत सिंह 58 साल की हैं। उनके पति के बारे में जानकारी पब्लिक डोमैन पर उपलब्ध नहीं है।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तीन बेटियां थीं – उपिंदर सिंह, दमन सिंह और अमृत सिंह। उनमें से प्रत्येक ने अपने-अपने क्षेत्रों में एक सफल करियर बनाया।

उपिंदर सिंह ; पेशा: इतिहासकार और शिक्षाविद

वर्तमान भूमिका: अशोका विश्वविद्यालय में संकाय की डीन

शिक्षा: उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली और मैकगिल विश्वविद्यालय, मॉन्ट्रियल से डिग्री प्राप्त कीं।

उपिंदर दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से सेवानिवृत्त हुई है। पूर्व में वे दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की प्रमुख भी रह चुकी हैं। उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास पर महत्वपूर्ण काम किया है। उन्होंने इस पर कई किताबें लिखी हैं।

इनमें प्राचीन और प्रारंभिक मध्यकालीन भारत का इतिहास और प्राचीन भारत में राजनीतिक हिंसा शामिल हैं। भारत के प्राचीन इतिहास, पुरातत्व और राजनीतिक विचारों पर उन्होंने रिसर्च की है। उपिंदर सिंह की किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ एंसिएंट एंड अर्ली मीडीवियल इंडिया’ और ‘पॉलिटिकल वॉयलेंस इन एंसिएंट इंडिया’ को खूब तारीफ मिली है। उन्हें हार्वर्ड और कैम्ब्रिज जैसे संस्थानों से प्रतिष्ठित फ़ेलोशिप मिली हैं। उन्हें 2009 में सामाजिक विज्ञान में इन्फोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उपिंदर ने की थी संजय बारू की किताब की आलोचना

मनमोहन सिंह की इतिहासकार और प्रोफेसर बेटी उपिंदर सिंह ने संजय बारू द्वारा लिखित संस्मरण द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर की सार्वजनिक रूप से आलोचना की, जिसमें उनके पिता को नकारात्मक रूप में चित्रित किया गया।

उन्होंने संस्मरण को “विश्वास का बहुत बड़ा विश्वासघात” और “शरारती और अनैतिक” कृत्य बताया। तर्क दिया कि इसमें उनके पिता के अधिकार और उनके कार्यकाल के दौरान कांग्रेस पार्टी के भीतर की गतिशीलता को गलत तरीके से पेश किया गया।

दमन सिंह; पेशा: लेखक

दमन को उनके संस्मरण स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन और गुरशरण के लिए जाना जाता है, जो उनके पिता के प्रधानमंत्री बनने से पहले उनके पारिवारिक जीवन के बारे में जानकारी देती है।

4 सितंबर, 1963 को जन्मी दमन ने पर्यावरण मुद्दों सहित विभिन्न विषयों पर किताबें लिखी हैं। दमन की शादी आईपीएस अधिकारी अशोक पटनायक से हुई। उनका एक बेटा भी है।

 दमन सिंह ने पिता पर किताब लिखी

दूसरी बेटी दमन सिंह ने पिता पर किताब लिखी। उनकी किताब का टाइटल था, स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरशरण। ये किताब उनके परिवार के जीवन और राजनीतिक जीवन के दौरान आने वाली चुनौतियों पर अंतरंग नज़र डालती है। इस किताब में पिता के व्यक्तिगत किस्से हैं, जो मनमोहन सिंह के चरित्र को गहराई से रू-ब-रू कराती है। इसके अलावा दमन सिंह ने द सेक्रेड ग्रोव और नाइन बाइ नाइन भी लिखी हैं। 

अमृत सिंह; पेशा: मानवाधिकार वकील और शिक्षाविद

अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) में स्टाफ अटॉर्नी और स्टैनफोर्ड लॉ स्कूल में कानून की प्रोफेसर

अमृत ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर बनीं। फिर येल लॉ स्कूल से कानून की डिग्री हासिल की। उन्होंने महत्वपूर्ण कानूनी मामलों पर काम किया। पहले ओपन सोसाइटी इनिशिएटिव के लिए वकील के रूप में काम किया। उनके अनुभव में कई प्रतिष्ठित संस्थानों में अध्यापन शामिल है।

तीनों बेटियों ने न केवल अपने पिता की विरासत को कायम रखा बल्कि शिक्षा, साहित्य और मानवाधिकार वकालत में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। कहना चाहिए कि मनमोहन सिंह की बेटियों ने सार्वजनिक जीवन में अपनी व्यावसायिक उपलब्धियों और व्यक्तिगत दृष्टिकोणों के माध्यम से अपने तरीके से प्रभाव डाला।

अमृत ने वकालत में काम किया

तीसरी बेटी अमृत सिंह ने मानवाधिकार वकील के रूप में ईमानदारी और न्याय के मूल्यों पर काम किया। कुल मिलाकर, मनमोहन सिंह की बेटियों ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया और पिता का बचाव भी किया।

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नरेश मीणा के एनकाउंटर की साजिश का वीडियो वायरल, कब आयेंगे जेल से बाहर नरेश मीणा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 दिसंबर 2024 | दिल्ली : राजस्थान में ‘थप्पड़ कांड’ से चर्चित हुए कांग्रेस के बागी नरेश मीणा 1 महीने से टोंक जेल में बंद है। इधर, नरेश मीणा की जमानत याचिका खारिज होने के बाद एक बार फिर टोंक जिला सेशन न्यायालय में अपील की गई है।

नरेश मीणा के एनकाउंटर की साजिश का वीडियो वायरल, कब आयेंगे जेल से बाहर नरेश मीणा

इसके चलते 17 दिसंबर को एक बार फिर नरेश मीणा की जमानत को लेकर सुनवाई होगी। इधर, नरेश के समर्थकों में रिहाई की मांग को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई है। बता दें कि बीते दिनों उनियारा कोर्ट में नरेश की जमानत की एप्लीकेशन लगाई गई थी, जो खारिज हो गई थी।

नरेश मीणा के एनकाउंटर की साजिश का वीडियो वायरल

टोंक जिले के देवली-उनियारा क्षेत्र में एसडीएम थप्पड़ कांड के 5वें दिन भी समरावता गांव में दहशत का माहौल है। ग्रामीणों के आंसू थमने का नाम नही ले रहे है। जब भी कोई नेता गांव में पहुंच रहा हैं तो व्यथा सुनाते हुए ग्रामीणों की आंखों से आंसू निकल पड़ते है।

देवली-उनियारा के समरावता गाँव के लोग नये वीडियो से दहशत में है। वहीं, नरेश मीणा के पिता कल्याण सिंह मीणा भी गांव में पहुंचते ही रो पड़े। राजनेता वैसे तो नरेश मीणा की ज़मानत और उनकी रिहाई के लिए कुछ कर नहीं रहे हैं पर अपनी राजनीति चमकाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं। 

भोली-भली जनता सोच रही है कि सड़क पर आंदोलन करने या बड़ी-बड़ी सभाएँ करने से नरेश मीणा की ज़मानत हो जायेगी। पर, ऐसा कतई नहीं है क्योंकि जमनत तो सिर्फ़ वकीलों की अच्छी पैरवी से होगी जो अभी तक नहीं हुई है।

ग्रामीणों का आरोप ‘पुलिस कर देती एनकाउंटर’

इतना सुनते ही नरेश मीणा के पिता भावुक हो गए थे और उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े। लोगों ने यह भी कहा कि नरेश को हम उठाकर नहीं ले जाते तो पुलिस उसका एनकाउंटर कर देती। इस दौरान मौके पर मौजूद लोग उन्हें संभालते नजर आए। सोशल मीडिया पर भी उनका एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक व्यक्ति नरेश मीणा के एनकाउंटर की पुलिस की साजिश की बात कह रहा है।

मूकनायक मीडिया इस वीडियो की पुष्टि नहीं करता है। प्रोफ़ेसर राम लखन ने अपने एक्स (X) हैंडल पर राजस्थान पुलिस को टैग करते हुए इनकी तटस्थ जाँच की माँग की है। उनका कहना है कि राजस्थान पुलिस की छवि से जुड़े इस वीडियो की जाँच हो।

ये है पूरा मामला

बता दें कि विधानसभा क्षेत्र देवली उनियारा में विधानसभा उप चुनाव 2024 के दौरान ग्राम समरावता थाना नगरफोर्ट, जिला टोंक में ग्रामीणो द्वारा उनके गांव समरावता को उपखण्ड देवली से हटाकर उपखण्ड उनियारा मे शामिल करने की मांग को लेकर मतदान का बहिष्कार किया था।

निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने उक्त मांग को लेकर ग्रामीणो को साथ लेकर धरना शुरू किया। तभी निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने वहां मौजूद एरिया मजिस्ट्रेट अमित चौधरी आरएएस उपखण्ड अधिकारी मालपुरा के थप्पड़ मार दी। इसके बाद घटनास्थल से थोड़ी दूर धरने पर बैठ गया।

शाम को मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद पुलिस ने निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा को पकड़ा। लेकिन, ग्रामीणों ने पुलिस पर पथराव कर नरेश मीणा को छुड़ा लिया। उपद्रवियों ने दो राजकीय वाहन व 7 प्राईवेट वाहन एवं लगभग 25 मोटर साईकिलों में आग लगा दी।

हालांकि, अगले दिन पुलिस ने नरेश मीणा को गिरफ्तार कर लिया। इस पर मीना समर्थक भड़क गए और नरेश मीणा की रिहाई की मांग को लेकर कचरावता गांव के पास राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 148 डी पर जाम लगा दिया। इस पर पुलिस 60 उपद्रवियों को गिरफ्तार कर चुकी है। नरेश मीणा सहित सभी उपद्रवी अभी जेल में बंद है।

नरेश मीणा कब आयेंगे जेल बाहर?

राजस्थान में उपचुनाव के दिन 13 नवंबर को देवली उनियारा विधानसभा के निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा ने एरिया मजिस्ट्रेट को थप्पड़ जड़ दिया था। इसको लेकर समरावता गांव में जमकर बवाल हुआ, हिंसा हुई। उसके दूसरे दिन 14 नवंबर को टोंक पुलिस ने नरेश को गिरफ्तार कर लिया।

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नरेश तब से टोंक जेल में बंद है। हालांकि एक बार उनियारा कोर्ट में उनकी जमानत याचिका को खारिज हो चुकी है। नरेश मीणा के वकील ने बताया कि जिला कोर्ट में फिर से याचिका दायर की गई है जिसको लेकर अब 17 दिसंबर को सुनवाई हुई। पर जमानत अभी तक नहीं हुई है।

नरेश की रिहाई को लेकर गरमा रहा है मुद्दा

इधर, एक महीने से टोंक जेल में बंद नरेश मीणा की रिहाई का मामला गर्माता जा रहा है। नरेश मीणा के समर्थक उनकी रिहाई को लेकर लगातार एक्टिव दिखाई दे रहे हैं। बीते दिनों सवाई माधोपुर के चौथ का बरवाड़ा में सर्व समाज की महापंचायत हुई।

इधर, नरेश के समर्थक टोंक सरपंच संघ अध्यक्ष मुकेश मीणा ने भी प्रशासन को चुनौती देते हुए कहा कि आने वाले दिनों में इस तरह का आंदोलन खड़ा किया जाएगा जो प्रशासन ने सोचा भी नहीं होगा। 

नरेश मीणा की जमानत पर फिर टली सुनवाई

बता दें कि थप्पड़ कांड के बाद से निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा 14 नवंबर से टोंक जेल में बंद है। इस बीच दो बार उनकी जमानत अर्जी भी खारिज हो चुकी है। टोंक जिला न्यायालय में आज एक बार फिर नरेश मीणा की जमानत अर्जी की सुनवाई टल गई है।

अब 4 जनवरी को जमानत पर सुनवाई होगी। बता दें कि नरेश मीणा सहित 18 आरोपियों के लिए उनियारा एसीजेएम कोर्ट मेें दो बार अर्जी खारिज हो चुकी है। इधर, 29 दिसंबर को नरेश के समर्थक उनकी रिहाई के लिए महापंचायत बुला रहे हैं। इस दौरान टोंक कलेक्ट्रेट और टोंक हाईवे पर बड़ा प्रदर्शन करने का प्रस्तावित कार्यक्रम रखा गया है।

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