पीएम मोदी के करीबी UPSC चेयरमैन ने इस्तीफा दिया

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 20 जुलाई 2024 | दिल्ली :  UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) के अध्यक्ष मनोज सोनी ने निजी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने कहा है कि इस्तीफे के बाद सामजिक और धार्मिक कामों पर ध्यान देंगे। उन्होंने 14 दिन पहले उन्होंने अपना इस्तीफा कार्मिक विभाग (DOPT) को भेजा था, इसकी जानकारी आज सामने आई है।

पीएम मोदी के करीबी UPSC चेयरमैन ने इस्तीफा दिया

अभी इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ है। उनका कार्यकाल मई 2029 तक था। उन्होंने 16 मई 2023 को UPSC के अध्यक्ष के रूप में शपथ ली थी। इस्तीफे की जानकारी आने के बाद मनोज सोनी ने कहा है कि उनका इस्तीफा ट्रेनी IAS पूजा खेडकर से जुड़े विवादों और आरोपों से किसी भी तरह से जुड़ा नहीं है।

पीएम मोदी के करीबी UPSC चेयरमैन ने इस्तीफा दिया

गुजरात की 2 यूनिवर्सिटी में 15 साल VC के तौर पर काम किया

2017 में UPSC अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति से पहले सोनी गुजरात की दो यूनिवर्सिटीज में वाईस चांसलर के तौर पर 3 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। सोनी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है।

2005 में उन्हें 40 साल की उम्र में ​​​​​​​वडोदरा यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर के तौर पर नियुक्त किया गया था। इसके साथ ही सोनी देश के सबसे कम उम्र के वाईस चांसलर बन गए थे। इसके बाद 2015 तक गुजरात सरकार की यूनिवर्सिटी बाबासाहेब अंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी (BBOU) में वाईस चांसलर के तौर पर 5 सालों का दो कार्यकाल पूरा कर चुके हैं।

2015 के बाद सोनी गुजरात के आनंद के मोगरी जिले में स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुपम मिशन से जुड़ गए थे। 10 जनवरी 2020 को उन्होंने निष्काम कर्मयोगी की दीक्षा ली थी।

हर साल सिविल सर्विसेज की नियुक्ति के लिए एग्जाम लेता है UPSC

UPSC भारत के संविधान में अनुच्छेद 315-323 भाग XIV अध्याय II के तहत संवैधानिक बॉडी है। यह आयोग केंद्र सरकार की ओर से कई परीक्षाएं आयोजित करता है। यह हर साल सिविल सेवा परीक्षाएं आईएएस, भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और केंद्रीय सेवाओं- ग्रुप ए और ग्रुप बी में नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का आयोजन करता है। ​​​​​​​

चेयरपर्सन आयोग का अध्यक्ष होता है। इनके अलावा गवर्निंग बॉडी में ​​​​​अधिकतम 10 सदस्य हो सकते हैं। शुक्रवार तक अध्यक्ष के अलावा बॉडी में सात सदस्य थे। इनमें गुजरात लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष दिनेश दासा भी शामिल थे।

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भारत बंद का राजस्थान सहित देशभर में व्यापक असर

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 22 अगस्त 2024 |  जयपुर : दलित और आदिवासी संगठनों द्वारा हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए मजबूत प्रतिनिधित्व और सुरक्षा की मांग को लेकर 21 अगस्त को बुलाया गया भारत बंद हिंसा की कुछ छिटपुट घटनाओं के साथ काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा। हिंसा की छिटपुट घटनाओं के साथ अधिकांशतः शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कई राज्यों में परिवहन सेवाएं कुछ समय के लिए बाधित रहीं, स्कूल और बाजार बंद रहे। 

गुजरात में आदिवासी और दलित समुदायों के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में बंद का असर साफ तौर पर देखा गया, जहां शहरों और अर्ध-शहरी इलाकों में बाजार बंद रहे। झारखंड और राजस्थान में दिन भर चले भारत बंद का मिला-जुला असर देखने को मिला, जहां वाहनों की आवाजाही कुछ समय के लिए बाधित रही, कई सार्वजनिक बसें सड़कों और स्कूलों से नदारद रहीं, बाजार बंद रहे।

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवम् भाजपा के प्रमुख आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते और विधायक किरोड़ी लाल मीणा ने विपक्ष पर अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया और कहा कि केंद्र ने इस पर अपना रुख पहले ही स्पष्ट कर दिया है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने घोषणा की कि वे अनुसूचित जाति (SC) आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के जवाब में विभिन्न संगठनों द्वारा दिए गए भारत बंद के आह्वान को समर्थन देंगे।

भारत बंद का राजस्थान सहित देशभर में व्यापक असर

अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए आरक्षण पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ कुछ समूहों द्वारा आहूत भारत बंद का राजस्थान में मिलाजुला असर देखने को मिला, हालांकि सामान्य जनजीवन पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा।

भारत बंद का राजस्थान सहित देशभर में व्यापक असर

हालांकि आवश्यक सेवाओं को बंद से बाहर रखा गया है, लेकिन सुबह सार्वजनिक परिवहन पर कोई असर नहीं पड़ा। कुछ जिलों में दुकानें और स्कूल बंद रहे। बंद के आह्वान के कारण भरतपुर में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित हैं। कुछ इलाकों में लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ा क्योंकि रोडवेज की बसें कम उपलब्ध थीं।

कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरे राज्य में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए थे। जयपुर व्यापार महासंघ के महासचिव सुरेश सैनी ने कहा कि शहर के बाजार संघों ने विरोध प्रदर्शन के कारण दुकानदारों और ग्राहकों को किसी भी तरह की असुविधा से बचाने के लिए स्वेच्छा से दुकानें बंद रखने का फैसला किया है।

– पीटीआई

Bharat Bandh LIVE: भारत बंद का जयपुर में दिखा असर

एससी एसटी आरक्षण में उप वर्गीकरण के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में भारत बंद का असर जयपुर में भी देखने को मिला। अल्बर्ट हॉल के पास बड़ी संख्या में जमा हुए लोग चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया गेट होते हुए बड़ी चौपड़ से एमआई रोड पहुंचे। हल्की बारिश के बीच नारेबाजी करते हुए लोग फैसले के खिलाफ नारेबाजी कर रहे।

प्रदर्शन के रूट को देखते हुए व्यापारियों ने पहले ही अपनी दुकानें बंद रखी थी। प्रशासन ने एहतियात बरतते हुए बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी और आरएएफ की टुकड़ी तैनात रखी थी। बंद समर्थकों का कहना था कि यह आरक्षण समाप्त करने की साजिश है।

Bharat Bandh did not have much effect in Gorakhpur division, Sikriganj police station was surrounded

क्या खुला है और क्या बंद है?

नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन (NACDAOR) ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच द्वारा दिए गए फैसले के प्रति विपरीत दृष्टिकोण अपनाया है, जो उनके अनुसार, ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में नौ जजों की बेंच के पहले के फैसले को कमजोर करता है, जिसने भारत में आरक्षण के लिए रूपरेखा स्थापित की थी।

केंद्रीय राज्य मंत्री बीएल वर्मा ने किया भारत बंद का विरोध 

केंद्रीय राज्य मंत्री और भाजपा नेता बीएल वर्मा ने कहा कि हड़ताल में शामिल लोगों के पास स्पष्ट इरादे नहीं हैं। उन्होंने कहा, “जो लोग ऐसा कर रहे हैं, भले ही उन्हें पता न हो कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी सरकार में एससी और एसटी का सम्मान है और उन्होंने आरक्षण के बारे में भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी आरक्षण को नहीं छू सकता है, लेकिन विपक्ष लोगों को गुमराह कर रहा है।”

– एएनआई

भाजपा सांसद कुलस्ते और विधायक किरोड़ी लाल मीणा भारत बंद के खिलाफ 

पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के प्रमुख आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते ने विपक्ष पर अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र ने पहले ही इस पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।

मध्य प्रदेश की मंडला (एसटी) लोकसभा सीट से सांसद ने कहा, “न्यायाधीशों ने अपनी राय दे दी है। मैं व्यक्तिगत रूप से 60-70 सांसदों के साथ इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला था। प्रधानमंत्री ने हमें बताया कि एससी और एसटी के बीच क्रीमी लेयर प्रावधान (उप-वर्गीकरण) लागू नहीं किया जाएगा।”

उन्होंने भोपाल में संवाददाताओं से कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी फैसला किया है कि “शीर्ष अदालत की राय” लागू नहीं की जाएगी। “सरकार की इतनी स्पष्टता और निर्णय के बावजूद, लोगों ने भारत बंद का आह्वान किया है… वे राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस ने एससी और एसटी के नाम पर राजनीति की और मायावती (बीएसपी प्रमुख) भी यही कर रही हैं,” श्री कुलस्ते ने कहा।

– पीटीआई

एससी-एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ आज देशभर के 21 संगठनों ने भारत बंद बुलाया है। इसका मिला-जुला असर नजर आ रहा। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने यह फैसला लिया है।

भारत बंद के फैसले को देखते हुए सरकार ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, बिहार की राजधानी पटना में बंद के दौरान जमकर बवाल देखने को मिला। पुलिस ने भी प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया। बिहार के कई और शहरों में बंद समर्थक सड़क पर उतरे। राजस्थान के जयपुर, अजमेर समेत कई इलाकों में भारत बंद का असर नजर आया।

बिहार में प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज के दौरान पुलिसकर्मी ने गलती से एसडीओ को मारा

पटना में समुदाय आधारित आरक्षण को लेकर भारत बंद के दौरान कानून व्यवस्था संभालने के दौरान एक उप-विभागीय अधिकारी (एसडीओ) को गलती से पुलिस कर्मियों ने मारा। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) राजीव मिश्रा ने पीटीआई को बताया कि जब पुलिस डाक बंगला चौक पर यातायात अवरुद्ध करने वाले प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज कर रही थी।

तो एक अधिकारी ने अनजाने में सदर-पटना एसडीओ को डंडा मार दिया, जो बल का नेतृत्व कर रहे थे। पटना जिला प्रशासन ने बाद में पुष्टि की कि यह घटना एक ईमानदार गलती थी और कहा कि पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।

– पीटीआई

गुजरात में आदिवासी, दलित समुदायों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में देखा गया प्रभाव

बंद का असर छोटा उदयपुर, नर्मदा, सुरेंद्रनगर, साबरकांठा और अरावली जैसे जिलों में आदिवासी और दलित समुदायों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा गया, जहां शहरों और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बाजार बंद रहे। सुरेंद्रनगर जिले के वधावन तालुका में प्रदर्शनकारियों ने एक मालगाड़ी को रोक दिया और नारे लगाए, जिसके बाद पुलिस भीड़ को तितर-बितर करने के लिए मौके पर पहुंची।

पुलिस प्रदर्शनकारियों को ट्रेन को चलने देने के लिए मनाने में कामयाब रही। अधिकारियों ने बताया, “ट्रेन करीब डेढ़ घंटे तक जबरन रुकने के बाद भावनगर की ओर रवाना हुई।” इसी तरह, साबरकांठा जिले के इदर और विजयनगर कस्बों में बंद का असर देखा गया, जहां बाजार, स्कूल और कॉलेज बंद रहे और अधिकारियों ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारी पुलिस बल तैनात करने का आदेश दिया।

– पीटीआई

गुजरात में बंद के दौरान कई जगहों पर ट्रेन रोकी

गुजरात के सुरेन्द्र नगर जिले के बढ़वान में बंद के दौरान माल गाड़ी को रोका गया। शहर के बड़सर फाटक के पास आंदोलनकारियों ने मालगाड़ी को रोका। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस आंदोलनकारियों को समझने का प्रयास कर रही है। स्थानीय नेता प्रदर्शन कर बंद करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशासन की कोशिश है कि संपत्ति को नुकसान किसी सूरत में न हो।

मध्य प्रदेश: आदिवासी इलाकों और दलित बहुल इलाकों में जोरदार असर

बहुजन समाज पार्टी (बसपा), भीम आर्मी और जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) समेत विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने ‘भारत बंद’ के समर्थन में भोपाल के अंबेडकर सर्किल पर विरोध प्रदर्शन किया। भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में बंद के आह्वान का हल्का असर देखने को मिला।

लेकिन मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों के साथ-साथ दलित बहुल इलाकों में इसका ज्यादा असर देखने को मिला। पंधुरना और मंडला जैसे आदिवासी बहुल जिलों में बाजार और प्रतिष्ठान बंद रहे, तथा मुरैना और दलित बहुल भिंड जैसे जिलों में बड़ी रैलियां आयोजित की गईं।

यूपी में प्रदर्शन, मार्च आयोजित, सामान्य जनजीवन काफी हद तक अप्रभावित रहा

भारत बंद का उत्तर प्रदेश में सामान्य जनजीवन पर बहुत कम प्रभाव पड़ा, जबकि दलित समूहों और राजनीतिक दलों ने राज्य के कुछ हिस्सों में प्रदर्शन और मार्च आयोजित किए। राज्य के बड़े हिस्से में दुकानें खुली रहीं और कारोबार सामान्य रूप से चलता रहा।

अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए आरक्षण पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ कुछ दलित और आदिवासी समूहों द्वारा बुलाए गए दिन भर के बंद के मद्देनजर सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी।

– पीटीआई

Bharat Bandh did not have much effect in Gorakhpur division, Sikriganj police station was surrounded

मध्य प्रदेश: ग्वालियर में बीएसपी, भीम आर्मी द्वारा विरोध प्रदर्शन के आह्वान से पहले सुरक्षा कड़ी कर दी गई

आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ चल रहे विरोध के बीच बहुजन समाज पार्टी और भीम आर्मी द्वारा आहूत विरोध रैली से पहले मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में पुलिस के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं। जिला प्रशासन और पुलिस अलर्ट मोड पर है, पुलिसकर्मी चक्कर लगा रहे हैं, बैरिकेड्स लगाए गए हैं और जिले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए ड्रोन कैमरे सक्रिय रहे।

ग्वालियर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) धर्मवीर सिंह ने एएनआई को बताया, “विभिन्न संगठनों द्वारा ‘भारत बंद’ के आह्वान के मद्देनजर ग्वालियर पुलिस बुधवार सुबह 6 बजे से ही लगातार गश्त कर रही है। सुरक्षा के लिए 150 से अधिक बैरिकेड लगाए गए हैं और सीएसपी और एडिशनल एसपी समेत सभी पुलिस अधिकारी राउंड लिया।”

– एएनआई

केरल: भारत बंद काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा

पुलिस ने कासरगोड में साधुजन परिषद के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया। कासरगोड में, पुलिस ने अनुसूचित जाति आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध मार्च निकालने के लिए साधुजन परिषद के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया। पुलिस ने हिरासत में लिए गए नेताओं की पहचान संगठन के राज्य अध्यक्ष अनीश पय्यानूर, सचिव राघवन, कन्नूर जिला अध्यक्ष हरीश पय्यानूर और कासरगोड जिला अध्यक्ष बीनू चेमेनी के रूप में की है।

दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन द्वारा आहूत भारत बंद केरल में काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा, सिवाय कुछ गिरफ्तारियों और प्रदर्शनों के, जिससे राज्य के विभिन्न हिस्सों में यातायात बाधित हुआ। अब तक दुकानों को जबरन बंद कराने या हिंसा की कोई अन्य घटना सामने नहीं आई है।

अलाप्पुझा में, पुलिस ने वेलफेयर पार्टी के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया, जिन्होंने राष्ट्रीय लॉकडाउन के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए मार्च निकाला था। गिरफ्तार किए गए लोगों में संगठन के जिला महासचिव पी टी वसंतकुमार भी शामिल थे। पठानमथिट्टा में, दलित संगठनों ने बंद के समर्थन में मार्च निकाला।

बिहार: पटना में आंदोलनकारी प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया

बिहार के कुछ हिस्सों में वाहनों का आवागमन कुछ समय के लिए बाधित रहा, क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने समुदाय आधारित आरक्षण को लेकर कुछ समूहों द्वारा बुलाए गए भारत बंद के समर्थन में नाकेबंदी कर दी। पुलिस ने बताया कि जहानाबाद जिले में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग-83 पर यातायात की आवाजाही को रोकने की कोशिश की, जिसके बाद सुरक्षाकर्मियों के साथ उनकी झड़प हो गई।

टाउन थाने के सब-इंस्पेक्टर हुलास बैठा ने बताया, “ऊंटा चौक के पास एनएच-83 पर यातायात की आवाजाही को बाधित करने की कोशिश करने पर पांच प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया। बाद में उन्हें मौके से हटा दिया गया और सामान्य स्थिति बहाल हो गई।” राज्य सरकार ने पहले पुलिस को निर्देश दिया था कि वे उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्रों तक सुचारू रूप से पहुँचाएँ।

पुलिस ने बताया कि मधेपुरा और मुजफ्फरपुर में भी प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर यातायात की आवाजाही को रोकने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षा बलों ने उन्हें तुरंत खदेड़ दिया। इस बीच, बुधवार को कई जिलों में बिहार पुलिस, बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस और अन्य इकाइयों में कांस्टेबल के पद के लिए भर्ती परीक्षा चल रही थी।

– पीटीआई

सुप्रीम कोर्ट ने कोटा लाभ के लिए एससी को उप-वर्गीकृत करने के राज्यों के अधिकार को क्यों बरकरार रखा है? सुप्रीम कोर्ट ने कोटा लाभ के लिए एससी को उप-वर्गीकृत करने के राज्यों के अधिकार को क्यों बरकरार रखा है? सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमी लेयर को छोड़कर, मात्रात्मक डेटा के आधार पर सकारात्मक कार्रवाई के लिए एससी/एसटी श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी।

भीम आर्मी आजाद समाज पार्टी और बीएसपी ने भारत बंद को समर्थन दिया

भीम आर्मी आजाद समाज पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अनुसूचित जातियों (एससी) के उप-वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के विरोध में कुछ दलित और आदिवासी समूहों द्वारा बुलाए गए दिन भर के भारत बंद को समर्थन दिया।

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सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण में वर्गीकरण, पेशवाई राज की ओर पहला कदम

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 05 अगस्त 2024 |  जयपुरमाननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए इस निर्णय से संविधान में SC/ST को दिए आरक्षण की मूल भावना का ही खात्मा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व में दिए निर्णय को ही उच्च बेंच के माध्यम से बदल दिया। आखिरी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पीछे कौन हैं?

सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण में वर्गीकरण, पेशवाई राज की ओर पहला कदम

सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को एक संविधान विरोधी दुर्भाग्यपूर्ण फैसला दिया। इसमें कहा गया कि राज्य को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण में वर्गीकरण, पेशवाई राज की ओर पहला कदम

जब आरएसएस-बीजेपी और तमाम मनुवादी ताकतें उनकी मंशा ठीक नहीं है, एससी और एसटी को दिए गए आरक्षण को खुद खत्म करने के बजाय, वे इसे कोर्ट के जरिए से खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं और अब वे इसमें अधिकांशत: सफल भी हो गये हैं। 

सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण में वर्गीकरण, पेशवाई राज की ओर पहला कदम

सुप्रीम कोर्ट ने अपने अमानवीय निर्णय से पेशवा राज की ओर पहला कदम बाधा दिया है। इसी तरह का एक क्रूर नियम पेशवाई और त्रावणकोर के ब्राह्मण शासकों द्वारा दलितों और आदिवासियों पर थोपा गया था। दलितों को सड़क पर चलते वक्त अपने पीछे एक झाडू बांध कर चलना होता था ताकि वे जिस रास्ते से गुजर रहे हों उसे साफ करते चलें। इन सभी बातों को आप बी आर अंबेडकर की किताब “एनहिलेशन ऑफ कास्ट” में पढ़ सकते हैं।

बता दें कि पेशवा के शासन में दलितों पर कई अमानवीय नियम थोपे गए थे। इस दौर में सार्वजनिक जगहों पर चलते समय दलितों को गले में हांडी लटकाकर चलना पड़ता था। उनके लिए ये नियम बनाए गए थे कि वे कहीं खुले में थूक नहीं सकते हैं और अगर उन्हे थूकना है तो वे अपने गले में लटकती हांडी में थूकें।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से भी कमोवेश वैसी ही हालात बनेंगे क्योंकि एससी-एसटी में जो लोग थोड़े सक्षम हैं। वे कमजोर लोगों के साथ खड़े नहीं हो सकेंगे और मनुवादी ताकतें कमजोर लोगों पर पेशवाई राज चलायेंगे। साथ ही सरकारी नौकरियों में न्यूनतम अर्हताएँ लागू कर कमजोर वर्गों से उनके अवसर छीन लेंगे।

आज भी अधिकांश नौकरियों में एनएफएस (NFS) किया जा रहा है। क्या सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कभी कोई संज्ञान लिया ? जैसे कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर लिया था जिसमें बिना किसी डेटा के आरक्षण को वैध ठहरा दिया गया है। 

अब सुप्रीम कोर्ट के दिए इस निर्णय के बाद राज्य सरकारें SC/ST/OBC के आरक्षण की राजनीतिक लाभ के लिए धज्जियाँ उड़ायेंगे। मतलब साफ है सुप्रीम कोर्ट के संविधान की मूल भावना के खिलाफ दिए इस निर्णय से आरक्षण के खात्मे की शुरुआत है।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद राज्य सरकारें अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस निर्णय का पूरी तरह दुरुपयोग करेंगी। मुझे लगता है इसकी शुरुआत आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश से होने वाली है। जहां OBC के आरक्षण में categorisation होना तय है। यहां से शुरुआत होगी फिर देश भर मे कई राज्य सरकारों के द्वार खुल जायेंगे।

उसके बाद एक एक करके राज्य सरकारें राजनीतिक लाभ के लिए SC/ST/OBC के आरक्षण में Categorisation करने लगेंगे। तब सुप्रीम कोर्ट को भी समझ आयेगा कि बहुत गलत निर्णय हो गया है। वंचितों का आरक्षण तो संविधान में सामाजिक भेदभाव के कारण दिया गया था..ना कि शैक्षिक और गरीबी से पिछड़ेपन के कारण…फिर ये कैसा निर्णय दिया है, समझ से बिल्कुल परे हैं।

इस निर्णय के लिए कई ताकतें कई वर्षों से प्रयास कर रही थी लेकिन सफल अब हुए हैं। सबको पता है कि वो कौनसी ताकतें हैं जो यह निर्णय पूरी शिद्दत से चाहती थी। सच कहूँ तो इस निर्णय के बाद संविधान में वंचितों के लिए कुछ नहीं बचा है।

जब संविधान में आरक्षण की मूल भावना ही खत्म हो जाए तो वंचितों के लिए आरक्षण खत्म ही मानिये। वंचितों को तो हर कोई अपने मौकों के हिसाब से मारना ही चाहता है आज तो वंचितों का संविधानिक खात्मा ही कर डाला है।

यह फैसला भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया है। इसके जरिए 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया। बता दें कि 2004 के निर्णय में कहा गया था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है।

2004 में ईवी चिन्नैया मामले के प्रमुख बिंदु:

पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति वर्ग में सभी अनुसूचित जातियों का समान प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित करने के लिये कुछ को अधिमान्य उपचार देने के पक्ष का समर्थन किया है।
वर्ष 2005 ‘ई. वी. चिनैय्या बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य (E V Chinnaiah v State of Andhra Pradesh and Others) मामले में पाँच न्यायाधीशों की एक पीठ ने निर्णय दिया था कि राज्य सरकारों के पास आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जातियों की उप-श्रेणियाँ बनाने की कोई शक्ति नहीं है।

कोर्ट ने उप-वर्गीकरण को समानता के अधिकार का उल्लंघन माना। तर्क दिया कि संविधान कुछ जातियों को एक अनुसूची में वर्गीकृत करता है जिनसे अतीत में छूआ-छूत के कारण भेदभाव हुआ। इसलिए इस समूह में एक-दूसरे से अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 341 का भी हवाला दिया…जो आरक्षण के उद्देश्य से एससी समुदायों को सूचीबद्ध करने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति को देता है। पीठ ने इसी आधार पर व्यवस्था दी थी कि इस सूची में किसी तरह के हस्तक्षेप या बदलाव करने का राज्यों को कोई अधिकार नहीं है।

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प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत के फैसले के जरिये ‘‘ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार’’ मामले में शीर्ष अदालत की पांच-सदस्यीय पीठ के 2004 के फैसले को खारिज कर दिया। फैसले में कहा गया था कि अनुसूचित जातियों (एससी) के किसी उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं।

वस्तुत: इस सारे षड्यंत्र की शुरुआत 2020 से हुई जब जस्टिस अरुण मिश्रा बैंच ने कहा कि चूंकि समान शक्ति (इस मामले में पाँच न्यायाधीश) की एक पीठ पिछले निर्णय को रद्द नहीं कर सकती, अत: मामले में निर्णय लेने के लिये इसे एक बड़ी संवैधानिक पीठ को भेजा गया है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा स्थापित की गई बड़ी खंडपीठ दोनों निर्णयों (अनुसूचित जातियों की उप-श्रेणियाँ बनाने तथा इस संबंध में राज्यों को अधिकार) पर पुनर्विचार करेगी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी वाई चंद्रचूड़ से एससी एसटी उप वर्गीकरण पर कुछ सवाल:-

1. सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जाति (SC) वर्ग में उप-वर्गीकरण के लिए याचिका डाली गई थी, तो फिर अनुसूचित जनजाति (ST) में उप-वर्गीकरण का फैसला किस आधार पर दिया गया है?

2. अनुसूचित जनजाति (ST) में आर्थिक और सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ी जनजातियों के लिए उप-वर्गीकरण, जैसा कि अत्यंत कमजोर जनजातीय समूह (PVGT) विकास और कल्याण के लिए पहले से लागू है, जिसमें 750 में से लगभग 75 जनजातियां शामिल हैं। फिर नए उप-वर्गीकरण का क्या औचित्य है?

3. उप-वर्गीकरण के माध्यम से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के भीतर विभाजन पैदा करना इस उद्देश्य के विपरीत है। यह न केवल संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है, बल्कि समाज में समानता और न्याय की भावना को भी कमजोर करता है। क्या आप संविधान पर हमला नहीं कर रहे हैं?

4. संविधान का अनुच्छेद 341 अनुसूचित जातियों (SC) की सूचियों और अनुच्छेद 342 अनुसूचित जनजातियों (ST) की सूचियों से संबंधित है। इन सूचियों को केवल राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया जाता है और इसमें राज्यों को हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है। आप राष्ट्रपति की शक्तियों का अप्रत्यक्ष रूप से इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं?

5. एससी एसटी के लोगों के आर्थिक रूप से संपन्न हो जाने के बावजूद उनके जातीय उत्पीड़न को नहीं रोका जा सका है जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स की महत्ती भूमिकाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। एपेक्स कोर्ट इन वर्गों के लोगों को न्याय मुहैया करवाने में आज भी कन्नी काट रहे हैं।

6. आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समानता स्थापित करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। फिर आपके द्वारा उप-वर्गीकरण आर्थिक स्थिति को आधार बनाकर किया जाना गलत नहीं है?

क्रीमी लेयर की अवधारणा:

  • सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि आरक्षण का लाभ ‘सबसे कमज़ोर लोगों को’ (Weakest of the Weak) प्रदान किया जाना चाहिये। 
  • वर्ष 2018 में ‘जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले‘ में अनुसूचित जनजातियों के भीतर एक ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा के निर्णय को कायम रखा गया।
  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने ही 12 वर्ष पुराने ‘एम. नागराज बनाम भारत’ सरकार मामले में दिये गए पूर्ववर्ती निर्णय पर सहमति व्यक्त की गई थी।
    • एम. नागराज मामले में सर्वोच्च न्यायालय का मानना था कि अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST) को मिलने वाला लाभ समाज के सभी वर्गों को मिल सके इसके लिये आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा का प्रयोग करना आवश्यक है।
  • वर्ष 2018 में पहली बार अनुसूचित जातियों की पदोन्नति में क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को लागू किया गया था।
  • केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 के जरनैल सिंह मामले में निर्णय की समीक्षा की मांग की है और मामला वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।

उप-वर्गीकरण के विपक्ष में तर्क: अनुसूचित जातियाँ  एक वर्ग

  • 1976 के ‘केरल राज्य बनाम एन. एम. थॉमस मामले’ में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि ‘अनुसूचित जातियाँ (SC) कोई जाति नहीं हैं, अपितु वे वर्ग हैं।
  • इस मामले में यह तर्क दिया गया कि ‘सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन’ की शर्त को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पर लागू नहीं किया जा सकता है।
  • अस्पृश्यता के कारण सभी अनुसूचित जातियों को विशेष उपचार दिया जाना चाहिये। 

उप-वर्गीकरण के विपक्ष में तर्क: वोट बैंक की राजनीति संभव

  • आरक्षण के उप-वर्गीकरण में सरकार द्वारा लिये जाने वाले निर्णय वोट बैंक की राजनीति के आधार पर हो सकते हैं।
  • इस तरह के संभावित मनमाने बदलाव से बचने के लिये अनुच्छेद- 341 में राष्ट्रपति की सूची की परिकल्पना की गई थी। 

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