‘एक देश एक परीक्षा’ पर 4 साल में 58 करोड़ खर्च परिणाम शून्य

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 20 जुलाई 2024 | दिल्ली : केंद्र सरकार ने 2020 में ऐलान किया था कि युवाओं के लिए एक देश-एक परीक्षा की व्यवस्था होगी। इसके तहत वे कई परीक्षाओं में बैठने के बजाय एक कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट पास करके सरकारी नौकरी के लिए पात्र बन जाएंगे। नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी (NRA) यानी राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई।

‘एक देश एक परीक्षा’ पर 4 साल में 58 करोड़ खर्च परिणाम शून्य

सरकारी भर्ती प्रक्रिया में एक बड़े और ऐतिहासिक बदलाव की ओर कदम उठाते हुए 19 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रिया में सुधार के लिए राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA) के निर्माण को मंजूरी दे दी।

‘एक देश एक परीक्षा’ पर 4 साल में 58 करोड़ खर्च परिणाम शून्य

वर्तमान में, सरकारी नौकरियों की तलाश करने वाले उम्मीदवारों को विभिन्न पदों के लिए कई भर्ती एजेंसियों द्वारा आयोजित अलग-अलग परीक्षाओं के लिए उपस्थित होना पड़ता है, लेकिन अब NRA सभी गैर राजपत्रित पदों की केंद्र सरकार नौकरियों के लिए एक सामान्य पात्रता परीक्षा (CET) आयोजित कराएगा जिससे अभ्यार्थियों को एक ही परीक्षा में उपस्थित होना पड़ेगा जो उनके समय और खर्च दोनों को ही बचाएगा।

परिणाम की घोषणा की तारीख से उम्मीदवार का CET स्कोर तीन साल की अवधि के लिए वैध होगा।यह उम्मीदवार के साथ-साथ व्यक्तिगत भर्ती एजेंसी को भी उपलब्ध कराया जाएगा। वैध स्कोर के सर्वश्रेष्ठ को उम्मीदवार का वर्तमान स्कोर माना जाएगा। जबकि CET में उपस्थित होने के लिए उम्मीदवार द्वारा किए जाने वाले प्रयासों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा।

यह ऊपरी आयु सीमा के अधीन होगा। हालांकि, ऊपरी आयु सीमा में छूट अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछड़ा वर्ग और अन्य श्रेणियों के उम्मीदवारों को सरकार की मौजूदा नीति के अनुसार दी जाएगी।

कईयों के दिमाग में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर NRA काम कैसे करेगा? कैसे CET परीक्षा आयोजित कराई जाएगी? कैसे मिलेगा उसका लाभ मिलेगा? इन सभी सवालों का जवाब आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में देंगे;

मूकनायक मीडिया ब्यूरो ने जब इसकी पड़ताल की तो पता चला, यह एजेंसी पिछले 4 साल में करीब 58 करोड़ खर्च करने के बावजूद अभी तक एक भी परीक्षा नहीं करा पाई है। इससे उन ढाई करोड़ बेरोजगारों की उम्मीदों को झटका लगा है, जो हर साल 1.25 लाख सरकारी नौकरियों के लिए भटकते हैं।

अब तक पहली परीक्षा कराने की तारीख का ऐलान नहीं कर पाई एजेंसी

नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी की परिकल्पना एक स्वतंत्र, पेशेवर और विशेषज्ञ संगठन के तौर पर की गई थी। इसे कंप्यूटर बेस्ड ऑनलाइन कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट का जिम्मा दिया गया ताकि नॉन गजैटिड पोस्ट पर भर्ती की जा सके। इसमें रेलवे, वित्त मंत्रालय, स्टाफ सलेक्शन कमिशन यानी SSC, रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड्स यानी RRB और इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनल सेलेक्शन यानी IBPS के प्रतिनिधि शामिल करने थे।

इन एजेंसियों ने कहा कि कॉमन टेस्ट के बावजूद वे अपनी परीक्षाएं अलग से कराना जारी रखेंगे। यानी तीन परीक्षाओं को हटाकर एक परीक्षा कराने की योजना एक और नई परीक्षा जुड़ने के रूप में सामने आएगी।

वादा था- पहला कॉमन टेस्ट 2021 में होगा

  • फरवरी 2020 में केंद्र ने नॉन-गजैटिड सरकारी नौकरियों के लिए देश में साझा परीक्षा का वादा किया।
  • अगस्त 2020 में राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (NRA) का गठन करने की अधिसूचना जारी की गई।
  • 10 फरवरी 21 को केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने वादा किया, पहला कॉमन टेस्ट 2021 में करवाया जाएगा।
  • 22 मई 2022 को जितेंद्र सिंह ने संसद में फिर एक वादा किया कि कॉमन टेस्ट इसी साल कराएंगे।
  • 10 अगस्त 2023 को सरकार ने संसद को सूचित किया कि सूचना टेक्नोलॉजी और अन्य ढांचा तैयार होने और विभिन्न चरणों के बारे में मानक और दिशा निर्देश तय होने पर ही कॉमन योग्यता टेस्ट हो पाएगा।

हकीकत- बार-बार फटकार, पर सुधार नहीं

  • 2020 की बजट घोषणा में कहा गया कि NRA पर तीन साल में 1,517 करोड रुपए खर्च किए जाएंगे।
  • 2021-22 में इस पर 13 करोड़ और दिसंबर 22 तक 20.50 करोड़ रुपए खर्च भी किए जा चुके थे।
  • दिसंबर 2023 में पेश संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि NRA 58.32 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी।
  • समिति ने पूछा कि NRA की परीक्षा दिन का उजाला कब देखेगी? एक्शन रिपोर्ट में सरकार ने जवाब में कहा, NRA की सूचना के अनुसार भर्ती एजेंसियों के सामने आने वाली समस्याओं का विस्तार से अध्ययन कराया जा रहा है। हम विभिन्न राज्यों और संगठनों में परीक्षा प्रथाओं की स्टडी जारी रखेंगे।

दावा था- साल में 2 बार टेस्ट कराया जाएगा

  • साल में दो बार कॉमन ​एलिजिबिलिटी टेस्ट (CET) होगा। परीक्षा देश की 12 भाषाओं में होगी।
  • देश के हर जिले में परीक्षा का सेंटर होगा। एक हजार सेंटरों पर CET कराएंगे। देश के 117 आकांक्षी जिलों के उम्मीदवारों पर विशेष फोकस रहेगा।

छात्रों का परीक्षा का खर्च, समय और पैसा बच जाता

  • अगर कॉमन एलिबिलिटी टेस्ट से सरकारी नौकरियों की पात्रता तय होती है, तो करोड़ों बेरोजगारों को सालभर अलग-अलग परीक्षाओं में नहीं बैठना पड़ेगा।
  • एक परीक्षा होने से उसकी फीस भी कम होगी। हर जिले में सेंटर रखा जाएगा, तो परीक्षाओं के लिए दूर-दराज इलाकों में उनके आने-जाने का खर्च भी बचेगा।
  • यदि अपने जिले में परीक्षा होगी, तो ज्यादा से ज्यादा महिलाएं हिस्सा ले सकेंगी।
  • आवेदकों को एक ही रजिस्ट्रेशन पोर्टल पर पंजीकरण करने की जरूरत होगी।
  • परीक्षा की तारीखें टकराने का खतरा खत्म हो जाएगा। एक ही पर फोकस रहेगा।

संस्था की करीब 600 करोड़ रु. की बचत हो जाती

  • संस्थाओं को अभ्यर्थियों का प्री/स्कैनिंग टेस्ट लेने के झंझट से मुक्त मिल जाएगी।
  • इससे भर्ती प्रक्रिया का समय अपेक्षाकृत काफी हद तक कम होने की उम्मीद है।
  • अलग-अलग भर्ती एजेंसियों का खर्च घट जाएगा। करीब 600 करोड़ रु. बचेंगे।

संसदीय समिति की फटकार, विशेषज्ञ समितियों के मैराथन विचार-विमर्श और साल-दर-साल संसदीय आश्वासनों के बावजूद यह एजेंसी पहली परीक्षा कराने के बारे में भी कोई तारीख घोषित नहीं कर पाई है। सूत्रों के मानें तो नौकरी देने वाली तीनों सरकारी एजेंसियों (SSC, RRB और IBPS) ने हाथ खड़े कर दिए हैं।

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यूनिफाइड पेंशन स्कीम को केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने सिरे से नकारा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 25 अगस्त 2024 |  जयपुरकेंद्र सरकार न्यू पेंशन स्कीम (NPS) की जगह अब केंद्रीय कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) लेकर आई है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शनिवार, 24 अगस्त को इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कैबिनेट बैठक में इसे मंजूरी दी गई। UPS एक अप्रैल 2025 से लागू होगी।

यूनिफाइड पेंशन स्कीम को केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने सिरे से नकारा

UPS से 23 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को फायदा होगा। कर्मचारियों के पास UPS या NPS में से कोई भी पेंशन स्कीम चुनने का ऑप्शन रहेगा। राज्य सरकार चाहें तो वे भी इसे अपना सकती हैं। अगर राज्य के कर्मचारी शामिल होते हैं, तो करीब 90 लाख कर्मचारियों को इससे फायदा होगा।

यूनिफाइड पेंशन स्कीम को केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने सिरे से नकारा

न्यू पेंशन स्कीम से कैसे अलग है UPS

इस योजना के न्यू पेंशन स्कीम और ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) से किस तरह अलग होने के सवाल पर केंद्रीय सचिवालय में OSD टीवी सोमनाथन ने जवाब दिया कि UPS पूरी तरह कॉन्ट्रिब्यूटरी फंडेड स्कीम है। (मतलब इसमें भी कर्मचारियों को NPS की तरह बेसिक सैलरी+DA का 10% कॉन्ट्रिब्यूट करना पड़ेगा।)

जबकि ओल्ड पेंशन स्कीम अनफंडेड कॉन्ट्रिब्यूश्नरी स्कीम थी। (इसमें कर्मचारियों को किसी भी तरह का कॉन्ट्रीब्यूशन नहीं करना होता था।) लेकिन NPS की तरह हमने इसे बाजार के भरोसे न छोड़कर फिक्स पेंशन की एश्योरटी दी है। UPS में OPS और NPS दोनों के लाभ शामिल हैं।

NPS में कर्मचारी को अपनी बेसिक सैलरी+DA का 10% हिस्सा कॉन्ट्रिब्यूट करना होता है और सरकार 14% देती है। सरकार अब इसे बढ़ाकर 18.5 % कॉन्ट्रिब्यूट करेगी। कर्मचारी के 10% हिस्से में कोई बदलाव नहीं होगा।

सोमनाथन ने बताया कि NPS के तहत 2004 से अब तक रिटायर हो चुके और अब से मार्च, 2025 तक रिटायर होने वाले कर्मचारियों को भी इसका लाभ मिलेगा। जो पैसा उन्हें पहले मिल चुका है या वे फंड से निकाल चुके हैं, उससे एडजस्ट करने के बाद भुगतान किया जाएगा। सरकार की तरफ से कॉन्ट्रिब्यूशन 14% से 18.5% बढ़ाए जाने पर पहले साल 6250 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च आएगा। ये खर्च साल दर साल बढ़ता रहेगा।

न्यूनतम 10 हजार रुपए पेंशन, NPS चुनने वाले UPS में आ सकेंगे, DA नहीं DR मिलेगा

न्यूनतम 10 हजार रुपए पेंशन, NPS चुनने वाले UPS में आ सकेंगे, DA नहीं DR मिलेगा

नई स्कीम किस तरह फायदेमंद? बेसिक सैलरी की 50% राशि पेंशन के रूप में मिलेगी। सरकार ने इसकी गारंटी दी है।
गणना का फॉर्मूला क्या होगा? जिस दिन रिटायर होंगे, उससे पहले के 12 महीने की बेसिक सैलरी का ऐवरेज निकाला जाएगा। उसकी 50% राशि पेंशन के रूप में मिलेगी।
50% राशि किस शर्त पर मिलेगी? नौकरी को कम से कम 25 साल होने चाहिए।
मेरी नौकरी कम साल की है? कम से कम 10 साल की नौकरी के बाद रिटायर हुए तो 10 हजार रुपए पेंशन मिलेगी।
इसका बोझ कर्मचारी पर पड़ेगा? कर्मचारियों का योगदान 10% बना रहेगा। सरकार अपना योगदान 14% से बढ़ाकर 18.5% करेगी। हर 3 साल में समीक्षा होगी कि क्या इसे बढ़ाया जाए।
फैमिली पेंशन की सुविधा क्या है? कर्मचारी की मौत पर फैमिली पेंशन मिलेगी। कर्मचारी की मौत के समय उसकी जो पेंशन बन रही होगी, (मौत के बजाय यदि वह रिटायर हुआ होता।) उस पेंशन का 60% फैमिली पेंशन मिलेगी।
क्या रेट्रोस्पेक्टिव लागू होगी? UPS का फायदा वे भी ले सकेंगे, जो 2004 के बाद NPS के तहत रिटायर हुए हैं। सरकार ब्याज के साथ एरियर देगी। ब्याज PPF दर के बराबर मिलेगा।
NPS वाले UPS चुन सकेंगे? हां, वे भी UPS चुन सकते हैं।
UPS का और कोई फायदा? महंगाई सूचकांक को भी शामिल किया गया है। जिस हिसाब से महंगाई बढ़ेगी, महंगाई राहत (DR) भी बढ़ती रहेगी।
एकमुश्त लाभ क्या है? ग्रेच्युटी के अलावा कर्मचारी को हर 6 महीने की नौकरी पूरी करने पर, इन महीनों की उसकी सैलरी और DA मिलाकर उसका 10% पैसा, रिटायरमेंट के बाद लम-सम अमाउंट के तौर पर मिलेगा।
क्या राज्य सरकारें लागू करेंगी? राज्य सरकारें चाहे तो अपने कर्मचारियों के लिए UPS लागू कर सकती हैं। स्पष्ट है कि राज्य कर्मचारी राज्य सरकारों पर दबाव बनाएंगे कि वे भी इसे लागू करें।

​​​​​ 25 साल की सेवा और 50 हजार रुपए के मूल वेतन पर गणना 

OPS

पेंशन: मूल वेतन का 50% यानी 25,000 रुपए+DAफैमिली पेंशन: बेसिक सैलरी का 30% यानी 15,000 रुपए+DAन्यूनतम पेंशन: 9,000 रुपए+DA

UPS

पेंशन: बेसिक सैलरी का 50% यानी 25,000 रुपए +DRफैमिली पेंशन: पेंशन का 60% यानी 15,000 रु.+DR
न्यूनतम पेंशन: 10,000 रुपए+DR

UPS में ग्रैच्युटी में नुकसान 25 साल की नौकरी और 50 हजार रुपए की बेसिक सैलरी पर पुरानी पेंशन स्कीम में ग्रैच्युटी 12,37,500 रुपए बनेगी, जबकि UPS में यह 9,37,500 रुपए होगी।
UPS बेहतर पेंशन योजना का खाका तैयार करने वाली कमेटी के चेयरमैन, केंद्रीय सचिवालय में OSD टीवी सोमनाथन का कहना है कि NPS की तुलना में UPS 99% तक बेहतर है। इसमें निश्चित पेंशन का विकल्प है

 

बैठक में पीएम भी शामिल हुए

कैबिनेट की मीटिंग से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय कर्मचारियों के नेताओं के साथ अपने आवास पर बैठक की। कार्मिक मंत्रालय ने इसके संबंध में 21 अगस्त को एक नोटिस जारी किया गया था। ये घोषणा ऐसे समय पर हुई है, जब 2 राज्यों जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं।

पिछले 10 साल में यह पहली बैठक रही, जिसमें प्रधानमंत्री और केंद्रीय कर्मचारियों की नेशनल काउंसिल यानी जॉइंट कंसल्टेटिव मशीनरी (JCM) के सदस्य शामिल हुए। बैठक में ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS), न्यू पेंशन स्कीम (NPS) और 8वें वेतन आयोग को लेकर चर्चा हुई।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बजट पेश करते हुए NPS में सुधार की बात कही थी। वहीं, संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने जवाब दिया था कि सरकार OPS बहाली पर कोई विचार नहीं कर रही है।

AIDEF ने किया बैठक का बहिष्कार

रेलवे के बाद केंद्रीय कर्मचारियों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया डिफेंस एम्प्लॉई फेडरेशन (AIDEF) ने प्रधानमंत्री की बैठक का बहिष्कार किया। AIDEF के महासचिव सी श्रीकुमार ने कहा था कि संगठन PM मोदी के साथ होने वाली बैठक में हिस्सा नहीं लेगा।

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इसकी वजह ये है कि बैठक में OPS बहाली नहीं बल्कि NPS में सुधार को लेकर चर्चा होगी। संगठन पहले ही कह चुके हैं कि कर्मचारियों को OPS ही चाहिए। बता दें कि AIDEF ने 15 जुलाई को वित्त मंत्रालय की बैठक का भी बहिष्कार किया था।

1 मई को अनिश्चितकालीन हड़ताल की थी योजना

कर्मचारी संगठनों ने OPS बहाली को लेकर 29 फरवरी 2024 को प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा था। पत्र में मांग की गई थी कि सरकार NPS बंद करे और गारंटीकृत ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करे। मांग पूरी होने पर संगठनों ने 1 मई 2024 से अनिश्चितकालीन हड़ताल की बात कही थी। बाद में सरकार की ओर से चर्चा का आश्वासन मिलने के बाद हड़ताल टाल दी गई थी।

NPS में सुधार​ के लिए बनी थी​​​​​​ सोमनाथन कमेटी

टीवी सोमनाथन को हाल ही में कैबिनेट सचिव नियुक्त किया गया है। अप्रैल 2024 में सरकार ने उस समय के वित्त सचिव टीवी सोमनाथन (हाल ही में कैबिनेट सचिव नियुक्त हुए हैं) की अध्यक्षता में NPS में सुधार के लिए एक कमेटी बनाई थी।

कमेटी ने सुधार के लिए दुनियाभर के देशों की पेंशन स्कीमों सहित आंध्र प्रदेश सरकार की तरफ से किए गए सुधारों की भी स्टडी की है। कमेटी की सिफारिशों के आधार पर ही सरकार यूनिफाइड पेंशन स्कीम लेकर आई है।

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कोटे में कोटा के वोट हासिल करने के लिए, राजनीतिक पार्टियाँ एससी एसटी में वैमनस्यता बढ़ायेंगी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 02 अगस्त 2024 | जयपुर : संविधान के अनुच्छेद 341 और अनुच्छेद 342 के तहत, किसी समुदाय विशेष को अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) घोषित करना संसद में निहित शक्ति है। आरक्षण और योग्यता के बीच संतुलन रखनाः समुदायों को आरक्षण देते समय प्रशासन की दक्षता को ध्यान में रखना भी आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (1 अगस्त) को अनुसूचित जाती (SC) के आरक्षण को छोटी-छोटी जाति समूहों में बांटने और एससी में क्रीमीलेयर की पहचान करने का आरक्षण विरोधी गैर जरूरी फैसला सुनाया है। बड़ा असर यह होगा कि राज्यों में अनुसूचित जातियों और जन  जातियों  के उपसमूहों का वोट हासिल करने के लिए राजनीतिक पार्टियाँ उनमें वैमनस्यता बढ़ायेंगी।

कोटे में कोटा के वोट हासिल करने के लिए राजनीतिक पार्टियाँ एससी एसटी में वैमनस्यता बढ़ायेंगी

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या दलितों और आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त हो गया है? ऐसे में आरक्षण का बंटवारा कितना उचित है? फैसले के बाद जातीय राजनीति की धार तेज होगी। अब सियासत जातीय राजनीति की धुरी पर घूमने लगेगी। अनुसूचित जाति को उसमें शामिल जातियों के आधार पर बांटना संविधान के अनुच्छेद-341 और अनुच्छेद-342 के खिलाफ  है।

कोटे में कोटा के वोट हासिल करने के लिए राजनीतिक पार्टियाँ एससी एसटी में वैमनस्यता बढ़ायेंगी

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति एक समरूप समूह है और आर्थिक या सामाजिक उन्नति के आधार पर उनके पुन: समूहन के लिये कोई कार्रवाई करना उचित नहीं होगा। एससी/एसटी की सूची में समुदायों को शामिल करने के लिये कठोर रूपरेखा निर्धारित की गई है।

अनुच्छेद 341, भारतीय संविधान 1950

(1) राष्ट्रपति, किसी राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामर्श के पश्चात, लोक अधिसूचना द्वारा, उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों अथवा जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भागों या समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जो इस संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य के संबंध में अनुसूचित जातियां समझी जाएंगी।

(2) संसद विधि द्वारा , खंड (1) के अधीन जारी की गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अनुसूचित जातियों की सूची में किसी जाति, मूलवंश या जनजाति को अथवा किसी जाति, मूलवंश या जनजाति के भाग या समूह को सम्मिलित कर सकेगी, किन्तु पूर्वोक्त के सिवाय, उक्त खंड के अधीन जारी की गई अधिसूचना में किसी पश्चातवर्ती अधिसूचना द्वारा परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

सिर्फ महिला जज असहमत

  • जस्टिस बेला एम त्रिवेदी इस फैसले में असहमति जताने वाली इकलौती जज रहीं। उन्होंने कहा कि यह देखा गया कि आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में स्टेटवाइज रिजर्वेशन के कानूनों को हाईकोर्ट्स ने असंवैधानिक बताया है। आर्टिकल 341 को लेकर यह कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि राष्ट्रपति की अधिसूचना अंतिम मानी जाती है। केवल संसद ही कानून बनाकर सूची के भीतर किसी वर्ग को शामिल या बाहर करती है।
  • अनुसूचित जाति कोई साधारण जाति नहीं है, यह केवल आर्टिकल 341 की अधिसूचना के जरिए अस्तित्व में आई है। अनुसूचित जाति वर्गों, जनजातियों का एक मिश्रण है और एक बार अधिसूचित होने के बाद एक समरूप समूह बन जाती है। राज्यों का सब-क्लासिफिकेशन आर्टिकल 341(2) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के साथ छेड़छाड़ करने जैसा होगा।
  • इंदिरा साहनी ने पिछड़े वर्गों को अनुसूचित जातियों के नजरिए से नहीं देखा है। आर्टिकल 142 का इस्तेमाल एक नया बिल्डिंग बनाने के लिए नहीं किया जा सकता है जो संविधान में पहले से मौजूद नहीं थी। कभी-कभी सकारात्मक कार्रवाई की नीतियों और संविधान में कई तरह से मतभेद होते हैं।
  • इन नीतियों को समानता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। मेरा मानना ​​है कि ईवी चिन्नैया मामले में निर्धारित कानून सही है और इसकी पुष्टि होनी चाहिए।

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 341 अनुसूचित जाति

राष्ट्रपति किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, और जहां वह राज्य है वहां उसके राज्यपाल से परामर्श के पश्चात्, लोक अधिसूचना द्वारा, उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों अथवा जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भागों या उनमें के समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा जो इस संविधान के प्रयोजनों के लिए, यथास्थिति, उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जातियां समझी जाएंगी।

संसद विधि द्वारा, खंड (1) के अधीन जारी की गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अनुसूचित जातियों की सूची में किसी जाति, मूलवंश या जनजाति अथवा किसी जाति, मूलवंश या जनजाति के भाग या समूह को सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से निकाल सकेगी, किन्तु जैसा पूर्वोक्त है उसके सिवाय, उक्त खंड के अधीन जारी की गई अधिसूचना में किसी पश्चातवर्ती अधिसूचना द्वारा परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

मसौदा अनुच्छेद 300A (भारत के संविधान 1950 का अनुच्छेद 341) मसौदा संविधान 1948 में अनुपस्थित था। मसौदा समिति के अध्यक्ष ने 17 सितंबर 1949 को इस प्रावधान को पेश किया  मसौदा अनुच्छेद ने राष्ट्रपति को उन जातियों, नस्लों या जनजातियों को निर्दिष्ट करने की शक्ति दी जिन्हें संविधान के तहत ‘अनुसूचित जातियों’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा।

राष्ट्रपति को सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से किसी राज्य के राज्यपाल के परामर्श के बाद इस शक्ति का उपयोग करने की अनुमति है। मसौदा अनुच्छेद ने संसद को कानून के माध्यम से राष्ट्रपति की अधिसूचना से किसी भी जाति, नस्ल या जनजाति को शामिल करने या बाहर करने की शक्ति भी दी। 

प्रारूप समिति के अध्यक्ष ने यह अनुच्छेद इसलिए प्रस्तावित किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संविधान पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की लंबी सूची का बोझ न पड़े।  

एक सदस्य ने संशोधन पेश किया जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति की पहली अधिसूचना – ‘अनुसूचित जाति’ समुदायों को सूचीबद्ध करना – 10 साल की अवधि के लिए अपरिवर्तित रहना चाहिए। इससे समुदायों के अधिकारों को कार्यपालिका, विधायिका या राष्ट्रपति द्वारा छीने जाने से   बचाया जा सकेगा। उसी दिन बिना किसी संशोधन के संविधान में अनुच्छेद 300A का मसौदा जोड़ दिया गया।

सामाजिक विषयों के एक्सपर्ट प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा फैसले पर आश्चर्यपूर्वक कहते है कि क्या इस निर्णय की कोई वास्तविक आवश्यकता है। यदि ऐसा है भी, तो मुझे नहीं पता कि यह कितना सही होगा यदि आप इसे इस तरह से रखते हैं “जैसा कि यह भारत के सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने वाले अधिनियम की व्याख्या के लिए लागू होता है”। क्योंकि, इसके बाद जब निर्णय  लागू हो जाएगा, तो ऐसा कोई कानून नहीं होगा जो भारत के के वंचित वर्गों; एससी एसटी को सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने वाले संरक्षित कानूनों को बदने का रास्ता बनाया गया हो। तब भारत में सामाजिक न्याय कि अवधारणा ही समाप्त हो जायेगा और भारत के डोमिनियन के भीतर लागू एससीएसटी विरोधी अधिनियम स्वचालित रूप से संघ के अधिनियम बन जाएंगे।

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