गुलामगिरी जाति व्यवस्था की पहली कटु आलोचना

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 18 जुलाई 2024 | जयपुर :  ‘गुलामगिरी’ पुस्तक को अगर हम केवल एक पुस्तक के रुप में देख रहे हैं तो यह हमारी सबसे बड़ी भूल हो सकती है। सदियों से भारत में स्थापित सामाजिक व्यवस्था की जड़ों को किन-किन सामाजिक नियमों एवं धार्मिक कर्मकांडों, कुप्रथाओं एवं परंपराओं का सहारा लेकर मजबूती प्रदान की गई, आर्य-अनार्य के संघर्ष ने किस प्रकार उत्पादक अनार्यों को दास वर्ग और आर्यों को शासक व उपभोक्ता वर्ग के रुप में परिवर्तित कर दिया, ऐसे अनेक तथ्यों की पड़ताल कर ‘गुलामगिरी’ के माध्यम से जोतीराव फुले ने अभिव्यक्त किया है।

गुलामगिरी जाति व्यवस्था की पहली कटु आलोचना

मराठी में लिखी गई इस पुस्तक में प्रथम राष्ट्रपिता महात्मा जोतिबा फुले की 1885 में प्रकाशित गुलामगिरी (दासता) को जाति व्यवस्था के खिलाफ (Reading Of Jotiba Phule’s Gulamgiri) पहली रचनाओं में से एक माना जाता है। महात्मा फुले, जिन्हें अंबेडकर अपना गुरु मानते थे, ने  गुलामगिरी लिखी थी – जो जाति व्यवस्था की पहली आलोचनाओं में से एक थी।

गुलामगिरी-जाति व्यवस्था की पहली आलोचना

गेल ऑमवेट ने ठीक ही कहा है “हिंदू धर्म ब्राह्मण शोषण के रूप में: जोतिबा फुले” में किया है, फुले पहले से मौजूद प्रवचन को लेते हैं, और इसके नैतिक तर्क को उलट देते हैं। वह सिद्धांत की तथ्यात्मकता को स्वीकार करते हैं। वह कहते हैं, हां ब्राह्मण एक अलग जाति है। हां, उन्होंने हम पर आक्रमण किया और हमें जीत लिया। लेकिन वह इसके नैतिक तर्क को उलट देते हैं और कहते हैं कि आक्रमणकारी वास्तव में भ्रष्ट, क्रूर और भ्रष्ट थे। वे निश्चित रूप से श्रेष्ठ नहीं थे।

आज भी देश के गाँवों में ऐसा माहौल है कि एक दलित किसी उच्च जाति के लोगों के ख़िलाफ़, बिना पिटने की संभावना के कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता, न जाति आधारित सामाजिक नियमों से हटकर चलने की। आए दिन खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि एक दलित नौजवान को घोड़ी चढ़ कर गाँव में बारात नहीं निकालने दी गई।

इस पुस्तक में जहां एक ओर उन्होंने हिंदू धर्म के के मिथकों का खंडन किया है, वहीं दूसरी ओर यह भी बताया कि समाज में शूद्रों एवं अतिशूद्रों (अछूतों) का शारीरिक, आर्थिक और मानसिक दोहन किया जा रहा है। उनका उद्देश्य था कि समाज में अछूतों के पिछड़ेपन को कायम रखने के लिए ब्राह्मण वर्ग किस प्रकार का प्रपंच कर रहे हैं, इस कूटनीति से ना केवल शूद्र बल्कि अंग्रेज भी परिचित हों।

या एक होनहार दलित लड़की का उच्च परीक्षा में पार होना, गाँव के बड़े लोगों को गवारा नहीं था, तो उसके घर वालों को गाँव से निकाल दिया। दलित महिलाओं को उच्च जाति के मर्दों की ज़्यादतियों से बचे रहने के लिए चौबीस घंटे नए पैंतरे सोचते रहना पड़ता है। 

लेकिन इस सबके चलते हुए, देश में जगह-जगह, सदियों से चले आ रहे जातिगत शोषण को तोड़ने के लिए, समता और न्याय के सपने से प्रेरित बहुत से लोग और संगठन अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। समता और न्याय जैसे शब्द हमारे सपने में शामिल हैं और आज हमारे पास, संविधान द्वारा दिये गए अधिकार के रूप में हैं – इस बात के पीछे लगभग डेढ़ सौ साल पहले, ज्योति राव फुले द्वारा लिखी गई पुस्तक, ‘गुलामगिरी’ का बड़ा हाथ है।  

ब्राह्मणवादी जातिव्यवस्था से लड़ने का एक लंबा इतिहास है। इस संघर्ष का बीज बोने और फैलाने में, महान विचारक, समाज सेवक और क्रांतिकारी कार्यकर्ता श्री ज्योतिबा फुले और उनकी 1873 में लिखी ‘गुलामगिरी’ पुस्तक का बहुत बड़ी भूमिका है। उस समय जाति व्यवस्था के ख़िलाफ़ अपने बेबाक विचारों को पुस्तक के रूप में लिखना बहुत हिम्मत वाला काम था। 

ज्योतिबा फुले व सावित्री फुले का नाम, अधिकतर दलितों और लड़कियों की शिक्षा के संदर्भ में लिया जाता है। यह सही भी है क्योंकि 1848 में पुणे में उन्होंने अछूतों के लिए पहला स्कूल खोला। 1857 में भारत का लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला।

ऐसा करने के लिए इन दोनों को समाज से बहुत गालियां खानी पड़ीं। जान से मारने के प्रयास भी हुए। लेकिन शिक्षा का काम करने के पीछे उनकी मूल सोच, जाति के नाम पर एक बड़े तबके को गुलामी से मुक्त करवाना थी। यह एक जातिवादी षड्यंत्र का हिस्सा था। गुलामगिरी पुस्तक इस षड्यंत्र की कलाई खोलने वाली पहली पुस्तक थी।

धोंडिराव और ज्योतिराव नामक दो पात्रों के संवाद के रूप में लिखी इस पुस्तक में उन्होंने दासता के इतिहास और अपने देश में जातियों की उत्पत्ति की नई स्थापना पेश की। उनका मानना था कि उच्च वर्ण के लोगों ने, अपने श्रम कार्य करने के लिए कुछ लोगों को गुलाम बनाया और ये लोग बाद में शूद्र कहलाए। 

उन्होंने ब्राह्मणों और सामंतों के वर्चस्व को स्थापित करने वाले धार्मिक हिंदू ग्रंथों, अवतारों और देवताओं की कहानियों का तार्किक रूप से वैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए खंडन किया। साथ ही अंग्रेजों के कामकाज की भी जातिव्यवस्था के चश्मे से व्याख्या की।

इस किताब के माध्यम से उन्होंने जाति व्यवस्था के झूठ को समझाया और दलितों को आत्मसम्मान से जीने के लिए प्रेरित किया। यह करने के लिए उन्होने तर्क का सहारा लेकर बहुत रोचक और सरल तरीके से बातों को समझाया न कि कल्पना व भावनाओं के माध्यम से। 

आज के दौर में ‘गुलामगिरी’ का क्या महत्व है, स्वयं फुले ने ‘गुलामगिरी’ की भूमिका में लिखा है —‘प्रत्येक व्यक्ति को आज़ाद होना चाहिए। यही उसकी बुनियादी आवश्यकता है। जब व्यक्ति आज़ाद होता है, तब उसे अपने विचारों को दूसरों के समक्ष स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है।’

ऐसे में आवश्यकता है कि हम अपने देश की स्वाधीनता पर एक बार पुनर्विचार करें, आधुनिकता की परिभाषा को फिर से परिभाषित करें। कहने को हमने आधुनिक युग में जी रहे हैं। लेकिन समस्याएं तो आज भी उसी रुप में जीवित हैं, जिनका अंत करने के लिए जोतीराव फुले ने ‘गुलामगिरी’ की रचना की। 

इस किताब की एक और रोचक बात यह है कि फुले ने इसे उन अमरीकी लोगों को समर्पित किया है जिन्होंने अमरीका में गुलामी को खत्म करने का संघर्ष किया। इससे स्पष्ट है कि वे पूरे विश्व में चल रहे अन्याय, शोषण के खिलाफ संघर्षों से जुड़ाव महसूस करते थे। अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष की उनकी सोच केवल हमारे देश के जातीय अन्याय तक सीमित नहीं थी। वे स्त्रियों पर होने वाले अन्याय, आर्थिक असमानता – प्रत्येक प्रकार के शोषण के विरुद्ध थे। 

ज्योतिबा फूले की गुलामगिरी किताब ने अपने समय के सामाजिक-राजनैतिक आंदोलन को बहुत प्रभावित किया और आज भी करती है। उत्तर भारत के सामाजिक कार्यकर्ताओं में इसकी जानकारी बहुत कम है। यह सभी के लिए एक बहुत ही ज़रूरी किताब है, जो जातिवाद से लड़ने का तार्किक रास्ता दिखाती है।

जाति व्यावस्था के विषय में अपने विचारों को मजबूत करने के लिए इसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए। इस किताब को आप अपने मोबाइल में डाउनलोड अवश्य करें और जब भी समय मिले – कहीं जाते-आते या बैल-भैंस चराते हुए इसे ज़रूर पढ़ें।

यह भी पढ़ें : मीणा शौर्य गाथाएँ पुस्तक ‘मीणाओं के गौरवशाली अतीत का प्रामाणिक स्मारक’

यह पुस्तक भले ही 1873 में लिखी गई हो, किन्तु जोतीराव फुले के विचार आज भी हमारे समाज के लिए प्रासंगिक हैं। दुखद पहलू यह है कि जिन संकीर्ण विचारों, रुढ़िवादिता एवं कुत्सित परंपराओं का विरोध जोतीराव फुले ने डेढ़ सौ साल पहले किया था, वे आज भी समाज एवं सत्ता में उपस्थित हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि ‘गुलामगिरी’ का सार लोगों तक उसी उद्देश्य के साथ नहीं पहुंच सका है। 

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

MOOKNAYAK MEDIA

At times, though, “MOOKNAYAK MEDIA’s” immense reputation gets in the way of its own themes and aims. Looking back over the last 15 years, it’s intriguing to chart how dialogue around the portal has evolved and expanded. “MOOKNAYAK MEDIA” transformed from a niche Online News Portal that most of the people are watching worldwide, it to a symbol of Dalit Adivasi OBCs Minority & Women Rights and became a symbol of fighting for downtrodden people. Most importantly, with the establishment of online web portal like Mooknayak Media, the caste-ridden nature of political discourses and public sphere became more conspicuous and explicit.

Related Posts | संबद्ध पोट्स

प्रसिद्ध पुस्तकें और उनके लेखक | Famous Books And Authors 

प्रसिद्ध पुस्तकें और उनके लेखक | Famous Books And Authors 

लेखक पुस्तकें
जयदेव गीत गोविंद
पाणिनि अष्टाध्याई
फिरदौसी शाहनामा
जयशंकर प्रसाद कामायनी, आँसू, लहर
बाणभट्ट कादंबरी
मैथिलीशरण गुप्त भारत-भारती
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला अनामिका, परिमल
अमर सिंह अमरकोश
सुमित्रानंदन पंत पल्लव, चिदंबरा
गुलबदन बेगम हुमायूंनामा
विशाखादत्त मुद्राराक्षस
सूरदास साहित्यलहरी, सूरसागर
कालिदास कुमारसंभवम्, रघुवंशम, अभिज्ञान शकुंतलम, मेघदूत
प्रेमचंद गोदान, गबन, कर्मभूमि, रंगभूमि
अलबरूनी किताब-उल-हिंद
हरिवंश राय बच्चन दशद्वार से सोपान तक, मधुशाला
कल्हण राज तरंगिणी
विष्णु शर्मा पंचतंत्र
वात्सायन कामसूत्र
रामधारी सिंह दिनकर कुरुक्षेत्र, उर्वशी
मलिक मोहम्मद जायसी पद्मावत
अबुल फजल अकबरनामा, आईने अकबरी
देवकीनंदन खत्री चंद्रकांता
कबीर दास बीजक, रमैनी, सबद
शुद्रक मृच्छकटिकम्
रसखान प्रेम वाटिका

प्रसिद्ध पुस्तकें एवं उनके लेखक हिंदी में

  • राजतरंगिणी ➞ कल्हण
  • आँसू ➞ जयशंकर प्रसाद
  • डिवाइन लाइफ ➞ शिवानंद
  • यामा ➞ महादेवी वर्मा
  • गीतांजली ➞ रविन्द्र नाथ टैगौर
  • महाभारत ➞ वेदव्यास
  • सूरसागर ➞ सुरदास
  • अर्थशास्त्र ➞ चाणक्य
  • लाइफ डिवाइन ➞ अरविन्द घोष
  • रघुवंशम् ➞ कालिदास
  • भारत-भारती ➞ मैथलीशरण गुप्त
  • कर्मभूमि ➞ प्रेमचन्द्र
  • हुमायूँनामा ➞ गुलबदन बेगम
  • माइ डेज ➞ आर. के. नारायण
  • चिदम्बरा ➞ सुमित्रानन्दन पंत्त
  • गीतगोविन्द ➞ जयदेव
  • मुद्राराक्षस ➞ विशाखदत्त
  • अमरकोष ➞ अमर सिहं
  • गाइड ➞ आर. के. नारायण
  • रंगभूमि ➞ प्रेमचन्द्र
  • गोदान ➞ प्रेमचन्द्र
  • गबन ➞ प्रेमचन्द्र
  • पंचतंत्र ➞ विष्णु शर्मा
  • कामयानी ➞ जयशंकर प्रसाद
  • शाहनामा ➞ फिरदौसी
  • अकबरनामा ➞ अबुल फजल
  • अनामिका ➞ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
  • गोल्डेन थेर्सहोल्ड ➞ सरोजिनी नायडू
  • अग्निवीणा ➞ काजी नजरुल इस्लाम
  • इंडियन फिलॉस्पी ➞ डॉ. एस. राधाकृष्णन
  • कामसूत्र ➞ वात्स्यायन
  • ब्रोकेन विंग्स ➞ सरोजिनी नायडू
  • परिमल ➞ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
  • भगवत् गीता ➞ वेदव्यास
  • कादम्बरी् ➞ बाणभटृ
  • इन्दिरा गाँधी रिटर्नस ➞ खुशवंत सिहं
  • बीजक ➞ कबीरदास
  • चाण्डालिका ➞ रविन्द्र नाथ टैगौर
  • लहर ➞ जयशंकर प्रसाद
  • उर्वशी ➞ रामधारी सिहं ‘दिनकर’
  • नेचर क्योर ➞ मोरारजी देसाई
  • ए वाइस ऑफ फ्रिडम ➞ नयन तारा सहगल
  • एरिया ऑफ डार्कनेस ➞ वी. एस. नायपॉल
  • चन्द्रकान्ता ➞ देवकीनन्दन खत्री
  • द डार्क रूम ➞ आर. के. नारायण
  • प्रेमवाटिका ➞ रसखान
  • इंटरनल इंडिया ➞ इंदिरा गाँधी
  • मृच्छकटिकम् ➞ शूद्रक
  • मालगुड़ी डेज ➞ आर. के. नारायण
  • फोर्टी नाइन डेज ➞ अमृता प्रीतम
  • कुरूक्षेत्र ➞ रामधारी सिहं ‘दिनकर’
  • बुध्दचरितम् ➞ अश्वघोष
  • नीति शतक ➞ भर्तृहरि
  • श्रृंगारशतक ➞ भर्तृहरि
  • अवंती सुन्दरी ➞ दण्डी
  • साहित्यलहरी ➞ सुरदास
  • रमैनी ➞ कबीरदास
  • कुमारसंभवम् ➞ कालिदास
  • अष्टाध्यायी ➞ पाणिनी
  • दिल्ली ➞ खुशवंत सिहं
  • पल्लव ➞ सुमित्रानन्दन पंत
  • चरित्रहीन ➞ शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय
  • दशकुमारचरितम् ➞ दण्डी
  • दायभाग ➞ जीमूतवाहन

Books And Authors In Hindi Questions

Q.1 लाइफ़ डिवाइन के लेखक कौन हे
Ans- अरविन्द घोष

Q.2 मेघदूत के लेखक कौन हे
Ans- कालिदास

Q.3 यंग इंडिया के लेखक कौन हे
Ans- महात्मा गांधी

Q.4 मुद्राराक्षस के लेखक कौन हे
Ans- विशाखदत्त

Q.5 गीत गोविन्द के लेखक कौन हे
Ans- जयदेव

Q.6 कामसूत्र के लेखक कौन हे
Ans- वात्स्यायन

Q.7 गीता रहस्‍य” के लेखक कौन हैं?
Ans-बाल गंगाधर तिलक

Q.8 प्रसिद्ध “कवितावली” के रचयिता कौन हैं?
Ans-तुलसीदास

Q.9 यामा” नामक पुस्‍तक की रचना किसने की है?

Ans-महादेवी वर्मा

Q.10 पंचतन्‍त्र” के लेखक कौन हैं?
Ans-विष्‍णु शर्मा

Q.11”रामचरितमानस” के रचयिता कौन हैं?
Ans-तुलसीदास

Q.12 अष्टाध्यायी के लेखक कौन हे
Ans- पाणिनी

Q.13 गोदान” उपन्‍यास किसके द्वारा लि‍खा गया है?
Ans-प्रेमचन्‍द

Q.14 माई टुथ के लेखक कौन हे
Ans- इंदिरा गांधी

Q.15 इंडिका के लेखक कौन हे
Ans- मेगास्थनीज

Q.16 अकबरनामा के लेखक कौन हे
Ans- अबुल फजल

Q.17 शाहनामा के लेखक कौन हे
Ans- फिरदौसी

Q.18 डिवाइन लाईफ के लेखक कौन हे
Ans- शिवानन्द

Q.19 भारत-भारती” की रचना किसने की?
Ans-मैथिलीशरण गुप्‍ता

Q.20 बाबरनामा के लेखक कौन हे
Ans- बाबर

Q.21 अर्थशास्त्र के लेखक कौन हे
Ans- चाणक्य

Q.22 महाभारत” के रचयिता कौन हैं?
Ans-वेदव्‍यास

Q.23 राजतरंगिणी के लेखक कौन हे
Ans- कल्हण

Q.24 हुमायूँनामा के लेखक कौन हे
Ans- गुलबदन बेगम

Q.25 बुद्धचरितम् के लेखक कौन हे
Ans- अश्वघोष

Q.26 गाइड के लेखक कौन हे
Ans- आर० के० नारायण

Q.27 अनहैप्‍पी इण्डिया” के लेखक कौन हैं?
Ans-लाला लाजपत राय

Q.28 कामायनी” के लेखक का नाम क्या है?
Ans-जयशंकर प्रसाद

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

‘द गॉड ऑफ द वुड्स पहले पृष्ठ से लेकर आखिरी शब्द तक रोमांचक’ प्रोफ़ेसर मीणा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 24 जुलाई 2024 | जयपुर : लिज मूर द्वारा लिखित “द गॉड ऑफ द वुड्स” की प्रशंसा में वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि “द गॉड ऑफ द वुड्स, द सीक्रेट हिस्ट्री की तरह, पाठकों को इसकी समृद्ध, भयावह दुनिया में इतनी गहराई से ले जाता है कि, घंटों तक, बाकी सब कुछ गायब हो जाता है। . . . मूर द्वारा डाले गए जादू से मुक्त होना लगभग असंभव है।”

‘द गॉड ऑफ द वुड्स पहले पृष्ठ से लेकर आखिरी शब्द तक रोमांचक’ प्रोफ़ेसर मीणा

कई दशकों में तेजी से बदलते दृष्टिकोणों से बताई गई, यह विशेषज्ञ गति वाली थ्रिलर एडिरोंडैक्स में एक समर कैंप से बारबरा वैन लार नाम की एक युवती के लापता होने की कहानी बताती है, जिसका मालिक उसका बेहद अमीर परिवार है।

द गॉड ऑफ द वुड्स : THE GOD OF THE WOODS

अगर हम द न्यू यॉर्कर के शब्दों में कहें तो “इस विशेषज्ञ गति वाले थ्रिलर में … एक अच्छी तरह से तैयार की गई मिनीसीरीज की गतिशीलता है।” वैन लार और उनके साथी एक संदिग्ध समूह हैं, और उपन्यास में इस समृद्ध परिवार और जिस कामकाजी वर्ग के परिवेश में वे रहते हैं, उसके बीच तनाव को कुशलता से दर्शाया गया है।

बारबरा के गायब होने की कहानी इस अफ़वाह से और भी भयावह हो जाती है कि हाल ही में भागा हुआ एक सीरियल किलर, जो “खुद के अलावा किसी भगवान में विश्वास नहीं करता है,” जंगल में घूम रहा है। एक विस्तृत कथानक से प्रेरित, मूर का उपन्यास किशोरावस्था और सामाजिक वर्ग की खोज करता है और इसमें एक अच्छी तरह से तैयार की गई लघु श्रृंखला की गतिशीलता है।

बोस्टन ग्लोब कहते हैं “बेहद संतोषजनक . . . . मूर ने बड़ी चतुराई से हमें पगडंडियों की उलझन से बाहर निकालकर एक रोमांचकारी और अप्रत्याशित निष्कर्ष तक पहुँचाया है। अतीत और वर्तमान को जोड़ते हुए, मूर ने वैन लार्स, उनके अनुयायियों और स्थानीय लोगों के सूक्ष्म चित्रों के बीच रहस्य को चरम पर बनाए रखा है, जो उन पर निर्भर भी हैं और उनसे नाराज़ भी। एक विजेता।”

बुकर पुरस्कार विजेता शुगी बैन के लेखक डगलस स्टुअर्ट लिखते हैं कि “लिज़ मूर का असाधारण नया साहित्यिक रहस्य उपन्यास मुझे डोना टार्ट की 1992 की पहली किताब, द सीक्रेट हिस्ट्री की याद दिलाता है। . . . [मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण कनेक्शन एक ऐसा पठन अनुभव था जहाँ मैं एक समृद्ध काल्पनिक दुनिया में इतनी गहराई से डूबा हुआ था, कि घंटों तक मैं मुश्किल से साँस ले पाया। . . . मूर के लेखन की सटीकता कभी कम नहीं होती. . . . अविस्मरणीय।” – मॉरीन कोरिगन, फ्रेश एयर, एनपीआर

– द न्यूयॉर्क टाइम्स

“एक लापता बच्चे की दिलचस्प कहानी जो युवावस्था, दोस्ती, पारिवारिक रहस्यों और परस्पर विरोधी सामाजिक हलकों के एक विशाल, तीखे चित्र में बदल जाती है। बुद्धिमानी से किया गया, और विस्तार से बताने के लिए एक पैनी नज़र के साथ, यह रहस्यों और झूठ से भरा एक शानदार जाल है। उसका काल्पनिक समर कैंप मुझे अपने जैसा ही जीवंत लगा।” 

मैरियन विन्निक, मिनियापोलिस स्टार ट्रिब्यून

हफ़िंगटन पोस्ट और अधिक गहराई से अपने विश्लेषण में इस कृति कि प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि “पढ़ने का एक असामान्य रूप से संतुष्टिदायक अनुभव . . . आखिरी पेज पलटने के तीन दिन बाद भी आपका सिर आधा उसमें ही डूबा रहता है। ऐसा लगता है जैसे आप चीड़ और लकड़ी के धुएं की गंध सूंघ सकते हैं। . . . मूर ने एक माहौल वाला पारिवारिक नाटक, एक सामाजिक उपन्यास और गुमशुदा लोगों की बेहतरीन कहानी लिखी है, जिसे पढ़ना और उसके बारे में सोचना मज़ेदार है।” 

प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा अपनी समीक्षा में कहते हैं कि सच मायने में द गॉड ऑफ द वुड्स मनोरंजक और रहस्योद्धाटन करने वाला . . . सुंदर और खतरनाक जंगल की सेटिंग सस्पेंस को बढ़ाती है क्योंकि कथा एक नाटकीय अंतिम अधिनियम की ओर बढ़ती है। . . . यह चकित करता है। एक अनिवार्य रूप से पठनीय उपन्यास जो रहस्य और ऐतिहासिक कथा के प्रशंसकों को समान रूप से पसंद आएगा। पहले पृष्ठ से लेकर आखिरी शब्द तक रोमांचक, द गॉड ऑफ द वुड्स उन कई तरीकों के बारे में है जिनसे हम खुद को और दूसरों को पाते और खोते हैं। यह किताब बिजली की गति से उड़ गई, लेकिन बहुत लंबे समय तक मेरे साथ रहेगी।”

प्रोफ़ेसर मीणा का मानना है कि यह एक शानदार, रोमांचक फॉक्स ट्रैप उपन्यास महाकाव्य रहस्य, एक पारिवारिक गाथा और एक उत्तरजीविता मार्गदर्शिका। लिज़ मूर हमें बताती हैं कि जंगल में खो जाना कितना आसान है, और अगर आप पाना चाहते हैं तो क्या करना चाहिए। मुझे यह किताब बहुत पसंद आई। एक दुर्लभ रत्न, एक मनोरंजक और रोमांचकारी साहित्यिक थ्रिलर: त्रासदी के बाद के प्यार के बारे में एक उपन्यास, और सबसे अच्छे और सबसे बुरे प्रकार के परिवारों के बारे में।”

पृष्ठभूमि विवरण और अद्वितीयक रहस्यों से भरपूर . . . यह हमेशा विस्तृत, जटिल, भावनात्मक रूप से आकर्षक उपन्यास कभी भी अति-कथानक नहीं लगता। हर टुकड़ा कुशलता से अपनी जगह पर आता है और हर किरदार, बड़ा और छोटा, अपनी छाप छोड़ता है।

लिज़ मूर का उपन्यास कुछ हद तक रोमांचक थ्रिलर और कुछ हद तक पारिवारिक ड्रामा है, यह इस रोमांचक उपन्यास में पक्षपात और पारिवारिक गतिशीलता की असहज सच्चाईयों को दर्शाता है, जो आपको काफी समय तक जंगल में अकेले भटकने से रोकेगा।

एक ऐसा मनोरंजक पठन अनुभव जो दर्शकों को आकर्षित करेगा। मूर की अविश्वसनीय कहानी कहने की कला के अलावा, वर्ग, अपराध और पारिवारिक गतिशीलता की इसकी खोज, लिसा ज्वेल, टाना फ्रेंच और लूसी फोले के पाठकों को पसंद आएगी। भावनात्मक रूप से आकर्षक उपन्यास कभी भी अति-कथानक नहीं लगता है। हर टुकड़ा कुशलता से अपनी जगह पर आता है और हर किरदार, बड़ा और छोटा, अपनी छाप छोड़ता है।

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Color

Secondary Color

Layout Mode