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  • MOOKNAYAK MEDIA

    At times, though, “MOOKNAYAK MEDIA’s” immense reputation gets in the way of its own themes and aims. Looking back over the last 15 years, it’s intriguing to chart how dialogue around the portal has evolved and expanded. “MOOKNAYAK MEDIA” transformed from a niche Online News Portal that most of the people are watching worldwide, it to a symbol of Dalit Adivasi OBCs Minority & Women Rights and became a symbol of fighting for downtrodden people. Most importantly, with the establishment of online web portal like Mooknayak Media, the caste-ridden nature of political discourses and public sphere became more conspicuous and explicit.

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    सुंदरता से ज्यादा महत्व अच्छे विचारों और सकारात्मक व्यक्तित्व का होता है

    मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 अगस्त 2024 | जयपुर : सुंदरता से ज्यादा महत्व सकारात्मक व्यक्ति और अच्छे विचारों का होता है। अगर कोई व्यक्ति दिखने में तो बहुत सुंदर है, लेकिन उसका व्यक्तित्व और विचार अच्छे नहीं हैं तो उसकी सुंदरता का महत्व खत्म हो जाता है। सुंदरता थोड़े समय के लिए आकर्षित कर सकती है, लेकिन जब बात लंबे समय तक रिश्ते निभाने की हो तो अच्छे विचारों को महत्व दिया जाता है।

    सुंदरता से ज्यादा महत्व अच्छे विचारों और सकारात्मक व्यक्तित्व का होता है

    ‘सकारात्मक सोच’ वह शक्तिशाली सोच है जो व्यक्ति को उसके जीवन में घटने वाली प्रत्येक घटना के प्रति, एक सकारात्मक दृष्टि कोण अपनाने के लिए प्रेरित करती है और व्यक्ति अपने ऐसे दृष्टिकोण के कारण जीवन संबंधी घटनाओं को चाहे ये चुनौतीपूर्ण हो अच्छी तरह से सामना कर सकता है । न केवल वह उसका सामना कर पाता है बल्कि सफलता का वरण भी करता है।

    सुंदरता से ज्यादा महत्व अच्छे विचारों और सकारात्मक व्यक्तित्व का होता है

    सकारात्मक सोच एवं सामाजिक प्रभाव

    विचार ही चरित्र का आधार है या यों कह सकते हैं कि विचार बीज है चरित्र उसका फल । अब व्यक्ति में सामाजिक विकास हेतु चरित्र या व्यक्तित्व का अत्यन्त प्रभाव पड़ता है यदि चरित्र सकारात्मक सोच पर आधारित है तो उसका सामाजिक प्रभाव भी अधिक पड़ेगा उदाहरण स्वरूप महात्मा गाँधी जी अपने चारित्रिक प्रभाव के कारण ही सारे विश्व में प्रसिद्ध हुई इसका कारण उनका अद्भुत सकारात्मक सोच चिंतन या विचार ही था।

    सकारात्मक सोच के अभाव में व्यक्ति अपना जीवन अत्यंत दयनीय बना लेता है क्योंकि उसकी सोच नकारात्मक होने थे वह घटनाओं के प्रति नकारात्मक परिस्थितियों को ही आकर्षित करती है। जैसा कि ‘आकर्षण का नियम’ दर्शाता है व्यक्ति जैसा विचार रखता है जैसा वह सोचता है–बाह्य परिस्थितियाँ उसी के अनुरूप निर्मित होती है उसके समक्ष उपस्थित होती है।

    इस एक उदाहरण के रूप में भी समझा जा सकता है–यदि एक व्यक्ति अपने मस्तिष्क में हमेशा यह विचार रखता है कि उसके जीवन में सब कुछ अच्छा है उसे कहीं किसी प्रकार की कमी नहीं है तो उसके जीवन में घटनाएं जो भी घटित होती है वह उसे विचलित या परेशान नहीं करती क्योंकि उसका हृदय में ‘आंतरिक विश्वास दृढ़ होता है कि जो भी हो रहा है वह अच्छा हो रहा है’ भविष्य में जो भी होगा वह अच्छा ही होगा–वास्तव में ऐसा ही होता उसकी परिस्थितियाँ उसके अनुकूल होते हुए उसके जीवन में सब कुछ अच्छा परिणाम देती हैं।

    इस प्रकार इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे सोच अत्यधिक शक्तिशाली एवं प्रभावशाली होते है । हमारी सोच जैसे होते हैं हमें उसी के अनुरूप परिणाम भी प्राप्त होते हैं यह कहना – बिल्कुल सही है कि सोच हमारे जीवन के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक सभी पक्षों को प्रभावित करता है।

    सोच की ताकत

    सकारात्मक सोच कि शक्ति बहुत बड़ी ताकत होती है। हम जिस विचार से अपने मन को मजबूती देते हैं उसी मजबूती से हम कार्य कर सकते हैं। मन मे अच्छे विचार से भविष्य मे अच्छे कदम उठाने मे बहुत मदद मिलती है। इससे हम किसी भी काम को आसानी से करने मे बहुत मदद मिलती है। हम इसे जिंदगी मे आशा कि किरण भी कह सकते हैं। जो अंधकार या बुरे समय मे हमको बचाये रखती है।

    सकारात्मक सोच से ही मनुष्य यह निर्धारित कर सकता है कि भविष्य मे वह कैसा व्यक्ति बनता है। जैसी हमारे सोच होती है हम आगे चलकर वैसे ही बनते हैं जिस तरह से हमारे विचार होंगे उसी तरह से हम होंगे। अब यह हमको सोचना है कि सकारात्मक विचार किस तरह हमारे जीवन को सफल बना देता है।

     

    सकारात्मक दृष्टिकोण के उदाहरण

    सकारात्मक दृष्टिकोण इस बात को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है कि हम चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से कैसे निपटते हैं, जिससे हम संभावित असफलताओं को विकास के रास्ते में बदल पाते हैं। उदाहरण के लिए, नौकरी छूटने के बाद, सकारात्मक आत्म-चर्चा पर विचार करने और अभ्यास करने में समय बिताने से अनुभव को व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के अवसर में बदलने में मदद मिल सकती है। अपने आप को सकारात्मक लोगों के साथ घेरना भी लचीलापन और आशावाद को मजबूत कर सकता है।

    कार्यस्थल पर तनावपूर्ण स्थितियों में, ध्यान का अभ्यास करना एक महत्वपूर्ण मुकाबला कौशल हो सकता है, जो शांति और ध्यान बनाए रखने में मदद करता है। नकारात्मक लोगों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए उनके निराशावाद को अवशोषित करने से रोकने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना शामिल है।

    इसी तरह, ट्रैफ़िक जाम जैसे नियमित कार्यों में आनंद प्राप्त करना, प्रेरक ऑडियो सामग्री के साथ जुड़कर थकाऊ क्षणों को समृद्ध अनुभवों में बदल सकता है। ये रणनीतियाँ बताती हैं कि कैसे एक सकारात्मक मानसिकता, मजबूत मुकाबला कौशल और सही सामाजिक वातावरण द्वारा समर्थित, एक स्वस्थ, अधिक संतोषजनक जीवन की ओर ले जा सकती है।

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    कोलकाता ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर आरोपी संजय रॉय का होगा पॉलीग्राफ टेस्ट

    मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 24 अगस्त 2024 | कोलकाता : कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर का रेप-मर्डर करने के आरोपी संजय रॉय समेत 7 लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट हो रहा है। इनमें कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और पीड़ित के साथ 8 अगस्त की रात डिनर करने वाले डॉक्टर भी शामिल हैं।

    कोलकाता ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर आरोपी संजय रॉय का होगा पॉलीग्राफ टेस्ट

    23 अगस्त को सियालदह कोर्ट के मजिस्ट्रेट ने आरोपी संजय से पूछा था कि वह टेस्ट के लिए क्यों तैयार हुआ। संजय बोला- टेस्ट से साबित होगा कि मैं निर्दोष हूं। मुझे फंसाया गया है।

    सेक्स वर्कर के यहां से क्यों RG Karवापस लौटा संजय रॉय?

    संजय रॉय के साथी सिविक वॉलेंटियर ने पूछताछ में दावा किया कि चेतला के कोठे से निकलने के बाद उस रात संजय रॉय का मूड बहुत खराब था। संजय रॉय सेक्स वर्कर के पास नहीं गया था। वह बाहर खड़ा था. उसका साथी सिविक वॉलेंटियर अंदर गया था। उसके अचानक बाहर आने के बाद संजय रॉय ने उससे कहा कि आरजी कर अस्पताल जाएंगे।

    कोलकाता ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर आरोपी संजय रॉय का होगा पॉलीग्राफ टेस्ट

    जब संजय को उसके साथी सिविक वॉलेंटियर ने रोकने की कोशिश की तो संजय रॉय ने कहा कि तुम ही करोगे ! मैं भी हूं… संजय रॉय इस तरह से आरजी कर अस्पताल वापस लौटा। सीबीआई के अधिकारी यही जानना चाहते हैं कि संजय रॉय आखिर क्यों आरजी कर अस्पताल लौटा? क्या इसके पीछे किसी की साजिश थी? क्या उसने पहले से प्लानिंग बना रखी थी? और वह अपने प्लानिंग को अंजाम देने के लिए आरजी कर अस्पताल लौटा था?

    पॉलीग्राफ टेस्ट क्या है, इससे सच कैसे सामने आ जाता है; इससे जुड़े 7 जरूरी सवालों के जवाब…

    आरजी कर मेडिकल कॉलेज में लेडी डॉक्टर की दरिंदगी के बाद हत्या के मामले में सीबीआई पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष के अलावा पांच अन्य का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की अनुमति ली है। पांच अन्य में चार डॉक्टर शामिल हैं। जिन्होंने घटना वाली रात को लेडी डॉक्टर के साथ डिनर किया था।

    इसके अलावा एक सिविक वालंटियर शामिल है। सीबीआई जघन्य घटना के मुख्य आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की अनुमति पहले ही हासिल कर चुकी है। पूरे देश को झकझोर देने वाली इस मामले में सीबीआई ने सबसे ज्यादा लंबी पूछताछ पूर्व प्रिसिंपल संदीप घोष से की है।

    पॉलीग्राफ टेस्ट में अब सीबीआई सच और झूठ का पता लगाएगी। सीबीआई ने संजय रॉय से सहयोगी और कोलकाता पुलिस के निलंबित एएसआई अनूप दत्ता से पूछताछ की थी।

    सवाल-1: कोलकाता रेप केस में पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
    जवाब:
     डॉक्टर रेप-मर्डर केस की जांच कर रही CBI के सामने कई सवाल हैं। CBI इस बात की जांच कर रही है कि इस अपराध को बिना किसी बाधा के सेमिनार हॉल में अंजाम दिया गया। उस हॉल के दरवाजे का टॉवर बोल्ट टूटा हुआ मिला। शुरुआती जांच में पता चला है कि टॉवर बोल्ट टूटने के कारण दरवाजा कुछ समय से खराब था।

    CBI यह भी पता लगाने की कोशिश में है कि क्या कोई दूसरा शख्स सेमिनार हॉल के बाहर तैनात था। अधिकारी इसकी जांच भी कर रहे हैं कि जब घटना को अंजाम दिया जा रहा था, तो सेमिनार हॉल के अंदर से कोई आवाज क्यों नहीं सुन सका।

    ये कोलकाता के आरजी कर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड की तस्वीर है। इसी बिल्डिंग के सेकेंड फ्लोर पर बने सेमिनार हॉल में ट्रेनी डॉक्टर की लाश मिली थी।

    ये कोलकाता के आरजी कर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड की तस्वीर है। इसी बिल्डिंग के सेकेंड फ्लोर पर बने सेमिनार हॉल में ट्रेनी डॉक्टर की लाश मिली थी। पीड़िता के शरीर से लिए गए डीएनए, वजाइनल स्वैब, ब्लड, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बावजूद CBI अभी किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंची है।

    CBI जानना चाहती है कि क्या मुख्य आरोपी के अलावा भी कोई इस षडयंत्र का हिस्सा था। CBI ये भी जानना चाहती है कि आरोपी जो बोल रहा है वो सच है या उसने किसी को बचाने के लिए जुर्म कबूला है।

    सवाल-2: पॉलीग्राफ टेस्ट है क्या, जिससे कोलकाता केस की सच्चाई सामने आने के दावे किए जा रहे हैं?
    जवाब: 
    फोरेंसिक साइकोलॉजी डिवीजन के डॉ. पुनीत पुरी के मुताबिक, पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए कोर्ट से मंजूरी लेने की जरूरत होती है। पॉलीग्राफ टेस्ट नार्को टेस्ट से अलग होता है। इसमें आरोपी को बेहोशी का इंजेक्शन नहीं दिया जाता है, बल्कि कार्डियो कफ जैसी मशीनें लगाई जाती हैं।

    इन मशीनों के जरिए ब्लड प्रेशर, नब्ज, सांस, पसीना, ब्लड फ्लो को मापा जाता है। इसके बाद आरोपी से सवाल पूछे जाते हैं। झूठ बोलने पर वो घबरा जाता है, जिसे मशीन पकड़ लेती है।

    इस तरह का टेस्ट पहली बार 19वीं सदी में इटली के अपराध विज्ञानी सेसारे लोम्ब्रोसो ने किया था। बाद में 1914 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम मैरस्ट्रॉन और 1921 में कैलिफोर्निया के पुलिस अधिकारी जॉन लार्सन ने भी ऐसे उपकरण बनाए।

    सवाल- 3: क्या पॉलीग्राफ टेस्ट में कही गई बातों का सबूत की तरह इस्तेमाल होता है?
    जवाब:
     2010 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पॉलीग्राफ टेस्ट में आरोपी की कही गई बातों को सबूत नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि यह सिर्फ सबूत जुटाने के लिए एक जरिया होता है। इसे ऐसे समझिए कि अगर पॉलीग्राफ टेस्ट में कोई हत्या आरोपी मर्डर में इस्तेमाल हथियारों की लोकेशन बताता है, तो उसे सबूत नहीं माना जा सकता है, लेकिन अगर आरोपी के बताए लोकेशन से हथियार बरामद हो जाता है तो फिर उसे सबूत माना जा सकता है।

    इस मामले में कोर्ट ने यह भी कहा था कि हमें यह समझना चाहिए कि इस तरह के टेस्ट के जरिए किसी व्यक्ति की मानसिक प्रक्रियाओं में जबरन घुसपैठ करना भी मानवीय गरिमा और उसके निजी स्वतंत्रता के अधिकारों के खिलाफ है। ऐसे में ज्यादा गंभीर मामलों में ही कोर्ट की इजाजत से इस तरह की जांच होनी चाहिए।

    सवाल- 4: पॉलीग्राफ मशीन कैसे धड़कनों और पसीने से सच पता कर लेती है?
    जवाब: 
    एक पॉलीग्राफ मशीन में सेंसर लगे हुए कई सारे कंपोनेंट होते हैं। इन सभी सेंसर को एक साथ मेजर करके किसी व्यक्ति के साइकोलॉजिकल रिस्पॉन्स का पता लगाया जाता है। इसे ऐसे समझिए कि किसी व्यक्ति को झूठ बोलते समय कुछ घबराहट होती है तो ये मशीन तुरंत उसे पता कर लेती है।

    सवाल-5: इस जांच में दो तरह के कौन से टेस्ट होते हैं?

    जवाब: इस जांच में इन दो तरह के टेस्ट होते हैं…

    कंट्रोल क्वेश्चन टेस्ट: सबसे पहले व्यक्ति को पॉलीग्राफ मशीन से जोड़ने के बाद उससे सामान्य सवाल पूछे जाते हैं। इन सवालों के जवाब हां या ना में पूछे जाते हैं। ऐसा यह जांचने के लिए किया जाता है कि जब वह किसी सामान्य सवाल का जवाब देता है और जब उस घटना से जुड़े टफ सवाल का जवाब देता है तो उसके शरीर की प्रतिक्रिया कैसी होती है।

    इस समय व्यक्ति के सांस लेने की गति यानी ब्रीदिंग रेट, व्यक्ति का पल्स, ब्लड प्रेशर और शरीर से निकल रहे पसीने से यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति सही बोल रहा है या झूठ बोल रहा है।

    गिल्टी नॉलेज टेस्ट: इसमें एक सवाल के कई जवाब होते हैं। सारे सवाल आरोपी के अपराध से जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए कोई चोरी के आरोप में गिरफ्तार हुआ है तो उससे इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं… 5,000, 10,000 या 15,000 रुपए की चोरी हुई है?

    इस सवाल का आरोपी सही जवाब देगा तो उसकी हार्ट बीट सामान्य होगी, लेकिन जैसे ही वह झूठ बोलने की कोशिश करता है उसकी हार्ट बीट, उसके दिमाग के सोचने के तरीके आदि से पता चल जाता है कि वह कुछ छिपा रहा है।

    सवाल- 6: क्या पॉलीग्राफ टेस्ट में सच को छिपाया जा सकता है?
    जवाब: 
    अमेरिका की साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के मुताबिक, पूछताछ के दौरान शरीर में होने वाले बदलाव या घबराहट से यह तय नहीं किया जा सकता कि आरोपी कुछ छिपा रहा है या झूठ बोल रहा है।

    हालांकि, यह सच को पता करने का एक माध्यम जरूर हो सकता है। वंडरपोलिस की एक रिसर्च से ये पता चला है कि अगर कोई व्यक्ति अपने इमोशन को कंट्रोल में रख सकता है तो इस जांच से उस पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ता है।

    अगर आरोपी के दिए सही जवाब को एक्सपर्ट गलत बताकर उस पर दबाव बनाने लगते हैं तो वह नर्वस होने लगता है। आमतौर पर उसके नर्वस होने पर ही ये मान लिया जाता है कि वह झूठ बोल रहा है। हालांकि, कई मामलों में इस जांच के जरिए असली अपराधी को भी पकड़ा गया है।

    सवाल- 7: पॉलीग्राफी से भी एक कदम आगे नार्को टेस्ट क्या है और इसमें सच कैसे बाहर आता है?
    जवाबः
     शातिर क्रिमिनल बचने के लिए अकसर झूठी कहानियां बनाते हैं। पुलिस को गुमराह करते हैं। इनसे सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट किया जाता है।

    नार्को टेस्ट में साइकोएस्टिव दवा दी जाती है, जिसे ट्रुथ ड्रग भी कहते हैं। जैसे- सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल। सोडियम पेंटोथल कम समय में तेजी से काम करने वाला एनेस्थेटिक ड्रग है। इसका इस्तेमाल सर्जरी के दौरान बेहोश करने में सबसे ज्यादा होता है।

    ये केमिकल जैसे ही नसों में उतरता है, शख्स बेहोशी में चला जाता है। बेहोशी से जागने के बाद भी आरोपी आधी बेहोशी में रहता है। इस हालत में वो जानबूझकर कहानी नहीं गढ़ सकता, इसलिए सच बोलता है।

    5 लोगों के साथ होगा पॉलीग्राफ टेस्ट

    अदालत में जब जज ने संजय राय से यह पूछा कि वह पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए क्यों सहमत हो रहे हैं तो वह रोने लगा और कहा कि उसने लाई डिटेक्टर टेस्ट के लिए सहमति इसलिए दी क्योंकि उसका मानना है कि वह निर्दोष है। उसने कहा मुझे फंसाया जा रहा है। मैंने कोई अपराध नहीं किया।

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    शायद यह टेस्ट यह साबित कर देगा कि मैं निर्दोष हूं। इसके बाद उसने अपना पॉलीग्राफ टेस्ट करने की अनुमति दे दी। उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। अदालत ने मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और मामले से जुड़े पांच अन्य लोगों पर लाई डिटेक्टर टेस्ट करने की अनुमति दी है।

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