रवीश कुमार की ‘बोलना ही है’ ज्वलंत सवालों की किताब

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 05 जुलाई 2024 | जयपुर : रवीश कुमार की किताब ‘बोलना ही है’ पर यह लंबी टिप्पणी लिखी है संजय कुमार ने। आप रवीश को ट्रोल कर सकते हैं। आप रवीश को मोदी विरोधी कह सकते हैं। आप रवीश को देशद्रोही कहे सकते हैं। आप रवीश को कांग्रेसी या विपक्षी पार्टियों का  दलाल कहे सकते हैं।

लेकिन सबसे अहम बात यह है कि रवीश के द्वारा उठाये गये सवालों से कैसे बच के निकल सकते हैं जो आज के समय में रवीश के द्वारा लगातार उठाये जा रहे हैं। एनडीटीवी चैनल के प्राइम टाइम शो के माध्यम से, और अब रवीश अपनी पुस्तक ‘बोलना ही है’ के माध्यम से ज्वलंत सवालों को उदाहरण सहित क्रमबद्ध तरीके से जनता के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।

‘बोलना ही है’ – पुस्तक समीक्षा 

किताब एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से आप अपनी बात को सही तरीके से रख सकते हैं। हिस्ट्री  के छात्र होने के कारण भी रवीश किताब लेखन की अहमियत को अच्छे समझते हैं बहुत सारी किताबों ने देश और दुनिया के इतिहास की दिशा को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

रवीश की पुस्तक भी आने वाले समय में सोशल साइंस तथा वर्तमान राजनीतिक दौर के घटनाक्रमों को समझने में महत्वपूर्ण दस्तावेज का काम करेगी। रवीश का लेखन भारत की वर्तमान लोकतांत्रिक प्रणाली, राजनीतिक व्यवस्था, राजनीतिक दलों के क्रियाकलाप और सरकारों के कार्यों पर प्रश्न चिन्ह लगाने का काम कर रहा है।

पुस्तक के माध्यम से रवीश यह सवाल भी पैदा कर रहे हैं कि क्या देश संविधान के आधार स्तंभों के आधार पर चलाया जा रहा है या नहीं, आजादी के आंदोलन के दौरान जिसको स्थापित किया गया था भारत की पत्रकारिता के उन उच्च मानकों को किस प्रकार एक एक करके तार तार किया जा रहा है।

दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों में पत्रकारिता के पेशे को आज भी लोकतंत्र का प्रहरी के तौर पर माना जाता है। लेकिन क्या अब भारत में पत्रकारिता और पत्रकार टीवी चैनल और न्यूज़ पेपर में आज जिस तरह से काम कर रहे हैं क्या इसी का नाम लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है,  मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इसी कारण से कहा जाता था कि वह सरकार और व्यवस्था की खुलकर आलोचना और उसकी कमियों को उजागर करना का काम दिन रात करता रहता है।

क्या लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का काम वर्तमान में भारतीय मीडिया कर रहा है या मात्र सरकार के प्रवक्ता या राजनीतिक दलों के आईटी सेल के दिये हुए या बनाये हुए कार्यक्रम को दिन रात प्रसारित कर रहे हैं ताकि जनता की सही आवाज और  विपक्ष की आवाज को भी खत्म किया जा सके।

एक लंबी लिस्ट सवालों की बनाने का प्रयास किताब की समीक्षा के दौरान किया जा रहा है जिसको रवीश ने अपने आवाज और लेखनी के माध्यम से उठाया है, किताब वर्तमान में भारत के राजनीतिक व्यवस्था में आई दरारों, कमियों और पत्रकारिता के गिरते स्तर को उदाहरण सहित व्याख्या करके बताने में अपनी किताब में काफी हद तक कामयाब हुए हैं।

सवाल-1 मॉब लिंचिंग पर

पुस्तक की भूमिका में ही मॉब लिंचिंग के संदर्भ में कहा गया है कि हम जिस लिंचिंग के खतरों की बात करते हैं वह कुछ लोगों के लिए सामान्य कार्य हो चुका है किसी से असहमति होने पर उसकी लिंचिंग करने का ख्याल आना अब आम बात की तरह है ।

सवाल-2 आजकल की भीड़

जो यह भीड़ है महज शब्द नहीं है इसमें बहुत से लोग हैं मरने वाले, मरते हुए देख कर चुप रहने वाले और अपने मोबाइल फ़ोन से वीडियो बनाने वाले आवारा भीड़ का निर्माण तीव्र गति से चल रहा है।

सवाल-3 मीडिया की जवाबदेही

पत्रकार और पत्रकारिता दोनों की जवाबदेही समाप्त हो चुकी है। बस शाम को टीवी पर आना है। दो वक्ताओं को बुलाकर आपस में लड़ा देना है और असली खबर को दबा देना है। अब यह कार्यक्रम विकराल और इतना व्यापक हो चुका है कि इसमें नैतिकता और अनैतिकता की बिंदु खोजने का कोई मतलब नहीं रहा है। न्यूज़ चैनलों ने भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने में जो मेहनत की है उसी का नतीजा है कि अब भारत के लोग उन चैनलों को बगैर किसी सवाल के देखते हैं।

लोकतंत्र के बड़े प्रतीक मीडिया में विपक्ष को क्यों गायब किया जा रहा है। प्रेस की गुणवत्ता अब एक ही मानक है कि वह सत्ता पक्ष का गुणगान कितना अच्छा करता है। 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के इंटरव्यू गुणगान के लिए देखे जाने चाहिए गुणवत्ता के लिए नहीं, प्रेस का प्रोपेगंडा तंत्र में बदल जाना भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का  सहज हिस्सा है।

ऐसा सिर्फ सरकार की वजह से नहीं हुआ है दर्शकों और पाठकों की भी वजह से हुआ है। तभी तो चैनल या अखबार जितना दरबारी है वह रेटिंग  की होड़ में उतने ही बेहतर नंबर पर हैं।

सवाल-5  खराब शिक्षा व्यवस्था का नतीजा और प्रभाव

 NACC  की रेटिंग में 68% यूनिवर्सिटी  औसत या औसत से भी खराब है। 91% कॉलेज औसत  या औसत से भी नीचे  है, इन खराब कॉलेजों ने कितनी मेहनत से छात्र और छात्राओं की कई पीढ़ियों को औसत या औसत से नीचे तैयार किया होगा। जानने, पढ़ने, और समझने की हर बेचैनी को खत्म किया होगा।

लोकतंत्र उन आदर्श लोगों के दम पर जिंदा और मजबूत रहता है जो दुनिया को बेहतर ढंग से समझने को उत्सुक रहते हैं जो सवाल करते हैं, तो क्या हम उन छात्र-छात्राओं से लोकतांत्रिक उच्चतम आदर्शों की उम्मीदें कर सकते हैं जिनको एक औसत दर्जे की शिक्षा व्यवस्था ने शिक्षा दी है इन पर पहले अज्ञानता का भार लादा गया और अब सांप्रदायिकता का चश्मा पहना दिया गया है।

सवाल-6  खुल कर बोलना

बोलने के लिए जानना  पड़ता है तब जानने की हर कोशिश नाकाम कर दी जाए या जानकारी कम कर दी जाए तो बोलने का अभ्यास अपने आप कम हो जाता है। न्यूज़ चैनल और अखबारों में मेहनत से खोज कर लाई गयी खबरें गायब होती चली गयी।

अब तमाम मीडिया तंत्र के जरिए जो जानकारी आप तक पहुंच रही है वह आपके बोलने की क्षमता को सीमित कर रही है। मां-बाप बच्चों को ज्यादा बोलने और लिखने से मना कर रहे हैं, अध्यापक अपने विद्यार्थियों को सिर्फ पढ़ने और राजनीति दूर रहने की सलाह दे रहे हैं ,सारा समाज मिलकर भारत के महान लोकतंत्र को दब्बू बनाने में लगा है। सेंसरशिप की बात कहाँ नहीं है।

अब सवाल करने वालों पर आईटी सेल की ट्रोल आर्मी ने जोरदार हमला बोला दिया है उन्हें देश विरोधी- धर्म विरोधी से लेकर विरोधी दलों का दलाल तक कहा जाने लगा,  व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी ने कई पत्रकारों की विश्वसनीयता को संदिग्ध बनाने की कोशिश की है।

बोलने की आजादी को लेकर अपनी तरह की इस नई व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने अपना एक नया बेंच मार्क तय किया है। तब क्यों नहीं बोले और अब ही क्यों बोल रहे हो तथा हर मुद्दे पर तब कहाँ थे जब वह हुआ था।

सवाल-7  सोशल मीडिया का दुरुपयोग

2014 के बाद से सोशल मीडिया के द्वारा 10- 12 पत्रकार, लेखक और अभिनेताओं को टारगेट किया गया, इस खेल के जरिए जनता के एक बड़े वर्ग को डरा दिया गया, जनता को यह डर सताने लगा कि जब बड़े बड़े लोगों की ऐसी हालत हो सकती है तो आम आदमी की क्या बिसात, जनता के हिस्से ने भीड़ का वह डर खरीद लिया।

आईटी सेल ने अपनी आक्रामकता के सहारे ड़र बिठाने का यह काम बहुत बारीकी से किया, आईटी सेल की भाषा सरकार के मंत्री की भाषा हो गयी और सरकार के समर्थक लोग की भी। लगता है मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया ने डर की फ्रेंचाइजी ले रखी है जहाँ कोई सरकार के बारे में आलोचनात्मक  बोलता है सोशल मीडिया से हमला होने लगता है व्हाट्सएप पर। घेरकर मार दिये जाने की धमकी से लेकर फोन नंबर पब्लिक कर गाली दिलवाने की धमकी तक का ऐलान यह सब एक आदमी को डराने के लिए काफी है।

सवाल -8  अल्पसंख्यक समुदाय पर प्रभाव

मुसलमानों  को किस हद तक यह महसूस कराया जा रहा है कि राजनीतिक रूप से वह कितने अप्रासंगिक हो चुके हैं इस समझना  अब कोई  रहस्यमय  बात नहीं है। अधिकांश मुस्लिम अभी महसूस करते हैं कि अगर वह अपनी माँगों को लेकर सड़कों पर उतरेंगे तो मीडिया केवल उनकी दाढ़ी या उनकी शेरवानी दिखाएगी उनके मुद्दों की बात के बारे में बात नहीं करेगा। यह दरअसल अपने को दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में मान लेने की  विडंबना है।

सवाल-9  क्या बोलना जोखिम भरा काम हो गया है

यह सवाल आप खुद से कीजिए क्या आपको सरकार के बारे बोलते वक्त डर लगता है? क्या आप हिसाब करने लगते हैं कि किस हद तक बोला जाए ताकि सरकार और सोशल मीडिया की नाराजगी न झेलनी पड़े, क्या आपको लगता है कि आपको टारगेट किया जाएगा। भारत में झूठे मुकदमों में फंसाना सबसे आसान काम है। यह काम सरकारे भी करती है और संगठन के लोग भी करते हैं।

एक बड़ी आबादी के भीतर धर्म के प्रति कट्टर आस्था भर दी गयी है। कैसे धर्म के आधार पर किसी गलत को सही और सही को गलत की तरह देखा जा सकता है। क्या धर्म इतना अंधा हो गया है कि भीड़ को हिंसा की इजाजत देता है? भीड़ संविधान से ही बड़ी हो गयी है?

सवाल-10  फेक न्यूज़ के प्रभाव

उदाहरण के तौर पर 9 दिसंबर 2017 को गुजरात चुनाव के समय नरेंद्र मोदी के दिये गये भाषण में फेक न्यूज़ का जिक्र इस किताब में किया गया है किस प्रकार से मणिशंकर अय्यर के घर पर हुई रात्रि भोज को एक गुप्त मीटिंग का नाम देकर पाकिस्तान का गुजरात चुनाव में हस्तक्षेप की बात अपने भाषण में मोदीजी करते हैं।

जिसका उद्देश्य गुजरात चुनाव के असली मुद्दों से ध्यान भटकना  है, जब फेक न्यूज़ की चर्चा या जानकारी किसी बड़े पद के व्यक्ति के द्वारा की जाती है तो जनता इसको इसी प्रकार से मानती है कि कुछ तो है। यही बात है जो फेक न्यूज़ के लिए  ईंधन का काम करती है, फेक न्यूज़ ने पहले खबरों और पत्रकारिता को फेंक किया और अब वह जनता को फेक रूप तैयार कर रहा है।

फेक न्यूज़ के बहाने एक नए किस्म का सेंसरशिप आ रहा है। आलोचनात्मक चिंतन को दबाया जा रहा है। फेक न्यूज़ का एक बड़ा काम है नफरत फैलाना, फेक न्यूज़ के खतरनाक खेल में बड़े अखबार और टीवी चैनल शामिल हैं, लेकिन भारत में अब कुछ वेबसाइटों ने फेक न्यूज़ से लोहा लेना शुरू कर दिया है।

लेकिन यह सब बहुत छोटे पैमाने पर हो रहा है इसकी पहुंच मुख्यधारा के मीडिया के फैलाए फेक न्यूज़ की तुलना में बहुत सीमित है। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कैबिनेट मिनिस्टर का विरोध या असहमति  दर्ज करने पर कितने ही पत्रकारों आम नागरिकों पर पुलिस केस और मानहानि केस दर्ज भारत में हो रहे हैं। इन्हीं सब तरीकों से नागरिक अधिकारों को कम करने या उनको खत्म करने की सुनियोजित तरीके से योजना सरकारों के द्वारा चल रही है।

सवाल- 11  भीड़ मत बनिए

पुस्तक में भीड़ और प्रोपेगेंडा का नतीजा बताया गया कि किस प्रकार से जर्मनी में हिटलर और उसकी नाजी पार्टी ने  भीड़ को और प्रोपेगंडा को इस प्रकार से तैयार कर दिया था। यह लोग खुद अपने आप से ही एक समय के बाद यहूदियों को मार रहे थे,  प्रोपेगंडा का एक ही काम है भीड़ का निर्माण करना ताकि खून भीड़ करें तो दाग भी उसी भीड़ के दामन पर आये। सरकार और महान नेता निर्दोष नज़र आये। भारत में सब हत्या करने वाली भीड़ को ही दोष दे रहे हैं, उस भीड़ को तैयार करने वाले प्रोपेगेंडा में किसी को दोष नजर नजर नहीं आता है।

भारत में अभी इन घटनाओं को इक्का-दुक्का रूप में ही पेश किया जा रहा है। जर्मनी में भी पहले चरण में यही हुआ जब तीसरा चरण आया तब उसका विकराल रूप नजर आया तब तक लोग छोटी-मोटी घटनाओं के प्रति सामान्य हो चुके थे, जो समाज इतिहास के जरूरी सबक भूल जाता है वह अपने भविष्य को खतरे में डालता है।

सवाल-12  मुद्दे से भटकाव के लिए नया एजेंडा

गोदी मीडिया ने मुद्दों से नागरिकों को दूर करने  के लिए एक नया नेशनल सिलेबस तैयार किया है। कभी खिचड़ी-बिरयानी, कभी ताजमहल -मंदिर, कभी नेहरू बेनाम पटेल या बोस बनाम नेहरू, कभी तीन तलाक, अकबर, औरंगजेब, शाहजहाँ, अशोक, टीपू सुल्तान रानी पद्मावती और सबसे ऊंची मूर्ति, हिंदू मुस्लिम, इन सब चीजों पर मीडिया रोज रात को चर्चा करता रहता है और चुनाव के समय इसमें दिन-रात चर्चा का केंद्र बना कर बैठ जाता है।

ऐसा लगता है कि पूरा देश की इतिहास की कक्षा में बैठा हुआ है और हम पहली बार इतिहास पढ़ रहे हैं। जो न्यूज़ एंकर और ट्रोल है वह हमारे  इतिहासकार है चाणक्य के नाम से आजकल  कुछ भी चल जाता है,  यहाँ मीडिया शो देख कर आपको ऐसा लगेगा कि इतिहास से जोड़ा जा रहा है आपको, लेकिन नहीं, बहुत चालाकी से आपको इतिहास से काटा जा रहा है।

आपको इतिहासविहीन बनाया जा रहा है। सच्चे हिन्दू की दुहाई देकर हम सब में एक बदले की भावना भरी जा रही है इतिहास की ज्यादती का  बदला आज लेना है।  रवीश का पुस्तक में कहना है कि इस नेशनल टॉपिक से खुद को बचा लीजिए। इसकी थीम बहुत घातक है।

सवाल 13 अंधविश्वास और बाबाओं का धंधा

बाबाओं के पास हर समस्या का समाधान है और देशभर के न्यूज़ चैनल सिर्फ एनडीटीवी को छोड़कर इस समाधान को बहुत बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत करते रहते हैं। दिन रात, कुछ तो बाबाओं के अपने भी चैनल अब स्थापित हो चुके हैं। हिंदी बोलने वाला बाबा राशिफल कुंडली भाग्य अन्य समस्याओं का निदान करता है, जो बाबा इंग्लिश बोलने में एक्सपर्ट होते हैं वह अभी स्ट्रेस मैनेजमेंट का कोर्स करवाते हैं। बड़े-बड़े ऑफिसों, राजनीतिक रसूखदार लोगों, शासन प्रशासक लोगों में बड़ी डिमांड रहती है।

देश का राजनीतिक वर्ग अंधविश्वास का सबसे बड़ा संरक्षक है। बाबा लोग टीवी चैनलों पर हर तरह की समस्याओं पर बात कर रहे हैं, जैसे कब लड़का लड़की को प्रपोज करना चाहिए, सिजेरियन कब कराना चाहिए, ऑफिस में प्रमोशन का उचित समय क्या रहेगा, बिजनेस प्लान कब शुरू करना चाहिए, मुकदमा कब करना चाहिए- इन सब बातों को देखकर ऐसा लग रहा है कि बाबाओं और ज्योतिषी का हर दिन भारत की अलग-अलग समस्याओं के क्षेत्र में अपना विस्तार कर रहे हैं।  दिल पर मत लीजिए, यही हिंदुस्तान है। यही हम और आप है

सवाल-14  भारत में इश्क करना और उसकी चुनौतियाँ

भारत में इश्क करना अनगिनत सामाजिक धार्मिक धारणा से जंग लड़ना होता है।  मोहब्बत हमारे घरों के भीतर प्रतिबंधित विषय है। हम सबके जीवन में प्रेम की कल्पना फिल्मों से आती है। फिल्में हमारी दीवानगी की शिल्पकार है। हमारे शहरों में प्रेम की कोई जगह नहीं है।

प्रेम के दो पल के लिए रोज हजार पलों की यह लड़ाई आपको प्रेमी से ज्यादा एक्टिविस्ट बना देती है। इश्क हमें इंसान बनाता है, जिम्मेदार बनाता है। इश्क हमें थोड़ा कमजोर, थोड़ा संकोची बनाता है। एक बेहतर इंसान में यह कमजोरियाँ न हो तो वह शैतान बन जाता है।

प्रेम करने की सजा के तौर पर 2016 में दिल्ली के अंकित की हत्या धर्म के कारण और कोयंबटूर में  शंकर की हत्या दलित जाति के कारण की गयी। और इन सभी हत्या पर एक खास प्रकार की राजनीतिक मानसिकता का समर्थन मिलने से हत्या करने वाले को किसी प्रकार का पश्चाताप भी नहीं हो पा रहा है।

सवाल -15  प्राइवेसी के अधिकार और उस पर हो रहे हमले

नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अगस्त 2017 में प्राइवेसी को मौलिक अधिकार बताया,  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार नीतियों की समीक्षा उस पर सवाल करना, उससे ऐसा असहमत होना इन सभी अधिकारों को भी संरक्षण प्राप्त है।

संविधान पीठ ने कहा कि यह सब करने से लोकतंत्र में एक नागरिक सक्षम बनता है और वह अपना राजनीतिक चुनाव बेहतर तरीके से कर पाता है। अनुच्छेद 19 ओर 21 से ही प्राइवेसी के अधिकार की खुशबू आती है। कानून विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा ने कहा कि ‘मौलिक अधिकार का मतलब है जनता का सरकार पर अंकुश न कि सरकार का जनता पर अंकुश।’

रवीश की यह पुस्तक वर्तमान में देश के राजनीतिक सामाजिक आर्थिक सभी पक्षों पर सच्चाई को बयान करने  का एक साहसिक गंभीर प्रयास है, स्पष्ट तरीके से इन सब मुद्दों पर सोशल साइंटिस्ट भी वर्तमान में नहीं लिख पा रहे हैं और कुछ के द्वारा लिखा हुआ प्रयास भी वर्तमान में मात्र लाइब्रेरी या कुछ एकेडमिक लोगों के बीच में ही चर्चा का विषय बन के रह जाता है।

लेकिन रवीश की पुस्तक आमजन को आमजन की भाषा में ही समझाने का प्रयास है कि देश के सामने किस प्रकार के मुद्दे क्यों चलाये जा रहे हैं? उसके पीछे क्या रणनीति है? यह एक साजिश से सब  कुछ सुनियोजित तरीकों से किया जा रहा है और आम नागरिकों के अधिकारों पर किस प्रकार से हमला किया जा रहा है।

लोकतांत्रिक संस्थाओं को, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को किस प्रकार से कमजोर किया जा रहा है और यदि यही सब चलता रहा तो जल्दी ही भारत की राजनीतिक व्यवस्था उसी दौर में चली जाएगी जिस दौर में आम नागरिक अपनी आवाज को कभी भी बुलंद नहीं कर पायेगा।

समीक्षक : संजय कुमार, ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज(सांध्य) , दिल्ली विश्वविद्यालय

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

MOOKNAYAK MEDIA

At times, though, “MOOKNAYAK MEDIA’s” immense reputation gets in the way of its own themes and aims. Looking back over the last 15 years, it’s intriguing to chart how dialogue around the portal has evolved and expanded. “MOOKNAYAK MEDIA” transformed from a niche Online News Portal that most of the people are watching worldwide, it to a symbol of Dalit Adivasi OBCs Minority & Women Rights and became a symbol of fighting for downtrodden people. Most importantly, with the establishment of online web portal like Mooknayak Media, the caste-ridden nature of political discourses and public sphere became more conspicuous and explicit.

Related Posts | संबद्ध पोट्स

सुंदरता से ज्यादा महत्व अच्छे विचारों और सकारात्मक व्यक्तित्व का होता है

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 अगस्त 2024 | जयपुर : सुंदरता से ज्यादा महत्व सकारात्मक व्यक्ति और अच्छे विचारों का होता है। अगर कोई व्यक्ति दिखने में तो बहुत सुंदर है, लेकिन उसका व्यक्तित्व और विचार अच्छे नहीं हैं तो उसकी सुंदरता का महत्व खत्म हो जाता है। सुंदरता थोड़े समय के लिए आकर्षित कर सकती है, लेकिन जब बात लंबे समय तक रिश्ते निभाने की हो तो अच्छे विचारों को महत्व दिया जाता है।

सुंदरता से ज्यादा महत्व अच्छे विचारों और सकारात्मक व्यक्तित्व का होता है

‘सकारात्मक सोच’ वह शक्तिशाली सोच है जो व्यक्ति को उसके जीवन में घटने वाली प्रत्येक घटना के प्रति, एक सकारात्मक दृष्टि कोण अपनाने के लिए प्रेरित करती है और व्यक्ति अपने ऐसे दृष्टिकोण के कारण जीवन संबंधी घटनाओं को चाहे ये चुनौतीपूर्ण हो अच्छी तरह से सामना कर सकता है । न केवल वह उसका सामना कर पाता है बल्कि सफलता का वरण भी करता है।

सुंदरता से ज्यादा महत्व अच्छे विचारों और सकारात्मक व्यक्तित्व का होता है

सकारात्मक सोच एवं सामाजिक प्रभाव

विचार ही चरित्र का आधार है या यों कह सकते हैं कि विचार बीज है चरित्र उसका फल । अब व्यक्ति में सामाजिक विकास हेतु चरित्र या व्यक्तित्व का अत्यन्त प्रभाव पड़ता है यदि चरित्र सकारात्मक सोच पर आधारित है तो उसका सामाजिक प्रभाव भी अधिक पड़ेगा उदाहरण स्वरूप महात्मा गाँधी जी अपने चारित्रिक प्रभाव के कारण ही सारे विश्व में प्रसिद्ध हुई इसका कारण उनका अद्भुत सकारात्मक सोच चिंतन या विचार ही था।

सकारात्मक सोच के अभाव में व्यक्ति अपना जीवन अत्यंत दयनीय बना लेता है क्योंकि उसकी सोच नकारात्मक होने थे वह घटनाओं के प्रति नकारात्मक परिस्थितियों को ही आकर्षित करती है। जैसा कि ‘आकर्षण का नियम’ दर्शाता है व्यक्ति जैसा विचार रखता है जैसा वह सोचता है–बाह्य परिस्थितियाँ उसी के अनुरूप निर्मित होती है उसके समक्ष उपस्थित होती है।

इस एक उदाहरण के रूप में भी समझा जा सकता है–यदि एक व्यक्ति अपने मस्तिष्क में हमेशा यह विचार रखता है कि उसके जीवन में सब कुछ अच्छा है उसे कहीं किसी प्रकार की कमी नहीं है तो उसके जीवन में घटनाएं जो भी घटित होती है वह उसे विचलित या परेशान नहीं करती क्योंकि उसका हृदय में ‘आंतरिक विश्वास दृढ़ होता है कि जो भी हो रहा है वह अच्छा हो रहा है’ भविष्य में जो भी होगा वह अच्छा ही होगा–वास्तव में ऐसा ही होता उसकी परिस्थितियाँ उसके अनुकूल होते हुए उसके जीवन में सब कुछ अच्छा परिणाम देती हैं।

इस प्रकार इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे सोच अत्यधिक शक्तिशाली एवं प्रभावशाली होते है । हमारी सोच जैसे होते हैं हमें उसी के अनुरूप परिणाम भी प्राप्त होते हैं यह कहना – बिल्कुल सही है कि सोच हमारे जीवन के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक सभी पक्षों को प्रभावित करता है।

सोच की ताकत

सकारात्मक सोच कि शक्ति बहुत बड़ी ताकत होती है। हम जिस विचार से अपने मन को मजबूती देते हैं उसी मजबूती से हम कार्य कर सकते हैं। मन मे अच्छे विचार से भविष्य मे अच्छे कदम उठाने मे बहुत मदद मिलती है। इससे हम किसी भी काम को आसानी से करने मे बहुत मदद मिलती है। हम इसे जिंदगी मे आशा कि किरण भी कह सकते हैं। जो अंधकार या बुरे समय मे हमको बचाये रखती है।

सकारात्मक सोच से ही मनुष्य यह निर्धारित कर सकता है कि भविष्य मे वह कैसा व्यक्ति बनता है। जैसी हमारे सोच होती है हम आगे चलकर वैसे ही बनते हैं जिस तरह से हमारे विचार होंगे उसी तरह से हम होंगे। अब यह हमको सोचना है कि सकारात्मक विचार किस तरह हमारे जीवन को सफल बना देता है।

 

सकारात्मक दृष्टिकोण के उदाहरण

सकारात्मक दृष्टिकोण इस बात को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है कि हम चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से कैसे निपटते हैं, जिससे हम संभावित असफलताओं को विकास के रास्ते में बदल पाते हैं। उदाहरण के लिए, नौकरी छूटने के बाद, सकारात्मक आत्म-चर्चा पर विचार करने और अभ्यास करने में समय बिताने से अनुभव को व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के अवसर में बदलने में मदद मिल सकती है। अपने आप को सकारात्मक लोगों के साथ घेरना भी लचीलापन और आशावाद को मजबूत कर सकता है।

कार्यस्थल पर तनावपूर्ण स्थितियों में, ध्यान का अभ्यास करना एक महत्वपूर्ण मुकाबला कौशल हो सकता है, जो शांति और ध्यान बनाए रखने में मदद करता है। नकारात्मक लोगों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए उनके निराशावाद को अवशोषित करने से रोकने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना शामिल है।

इसी तरह, ट्रैफ़िक जाम जैसे नियमित कार्यों में आनंद प्राप्त करना, प्रेरक ऑडियो सामग्री के साथ जुड़कर थकाऊ क्षणों को समृद्ध अनुभवों में बदल सकता है। ये रणनीतियाँ बताती हैं कि कैसे एक सकारात्मक मानसिकता, मजबूत मुकाबला कौशल और सही सामाजिक वातावरण द्वारा समर्थित, एक स्वस्थ, अधिक संतोषजनक जीवन की ओर ले जा सकती है।

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

कोलकाता ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर आरोपी संजय रॉय का होगा पॉलीग्राफ टेस्ट

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 24 अगस्त 2024 | कोलकाता : कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर का रेप-मर्डर करने के आरोपी संजय रॉय समेत 7 लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट हो रहा है। इनमें कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और पीड़ित के साथ 8 अगस्त की रात डिनर करने वाले डॉक्टर भी शामिल हैं।

कोलकाता ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर आरोपी संजय रॉय का होगा पॉलीग्राफ टेस्ट

23 अगस्त को सियालदह कोर्ट के मजिस्ट्रेट ने आरोपी संजय से पूछा था कि वह टेस्ट के लिए क्यों तैयार हुआ। संजय बोला- टेस्ट से साबित होगा कि मैं निर्दोष हूं। मुझे फंसाया गया है।

सेक्स वर्कर के यहां से क्यों RG Karवापस लौटा संजय रॉय?

संजय रॉय के साथी सिविक वॉलेंटियर ने पूछताछ में दावा किया कि चेतला के कोठे से निकलने के बाद उस रात संजय रॉय का मूड बहुत खराब था। संजय रॉय सेक्स वर्कर के पास नहीं गया था। वह बाहर खड़ा था. उसका साथी सिविक वॉलेंटियर अंदर गया था। उसके अचानक बाहर आने के बाद संजय रॉय ने उससे कहा कि आरजी कर अस्पताल जाएंगे।

कोलकाता ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर आरोपी संजय रॉय का होगा पॉलीग्राफ टेस्ट

जब संजय को उसके साथी सिविक वॉलेंटियर ने रोकने की कोशिश की तो संजय रॉय ने कहा कि तुम ही करोगे ! मैं भी हूं… संजय रॉय इस तरह से आरजी कर अस्पताल वापस लौटा। सीबीआई के अधिकारी यही जानना चाहते हैं कि संजय रॉय आखिर क्यों आरजी कर अस्पताल लौटा? क्या इसके पीछे किसी की साजिश थी? क्या उसने पहले से प्लानिंग बना रखी थी? और वह अपने प्लानिंग को अंजाम देने के लिए आरजी कर अस्पताल लौटा था?

पॉलीग्राफ टेस्ट क्या है, इससे सच कैसे सामने आ जाता है; इससे जुड़े 7 जरूरी सवालों के जवाब…

आरजी कर मेडिकल कॉलेज में लेडी डॉक्टर की दरिंदगी के बाद हत्या के मामले में सीबीआई पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष के अलावा पांच अन्य का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की अनुमति ली है। पांच अन्य में चार डॉक्टर शामिल हैं। जिन्होंने घटना वाली रात को लेडी डॉक्टर के साथ डिनर किया था।

इसके अलावा एक सिविक वालंटियर शामिल है। सीबीआई जघन्य घटना के मुख्य आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की अनुमति पहले ही हासिल कर चुकी है। पूरे देश को झकझोर देने वाली इस मामले में सीबीआई ने सबसे ज्यादा लंबी पूछताछ पूर्व प्रिसिंपल संदीप घोष से की है।

पॉलीग्राफ टेस्ट में अब सीबीआई सच और झूठ का पता लगाएगी। सीबीआई ने संजय रॉय से सहयोगी और कोलकाता पुलिस के निलंबित एएसआई अनूप दत्ता से पूछताछ की थी।

सवाल-1: कोलकाता रेप केस में पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
जवाब:
 डॉक्टर रेप-मर्डर केस की जांच कर रही CBI के सामने कई सवाल हैं। CBI इस बात की जांच कर रही है कि इस अपराध को बिना किसी बाधा के सेमिनार हॉल में अंजाम दिया गया। उस हॉल के दरवाजे का टॉवर बोल्ट टूटा हुआ मिला। शुरुआती जांच में पता चला है कि टॉवर बोल्ट टूटने के कारण दरवाजा कुछ समय से खराब था।

CBI यह भी पता लगाने की कोशिश में है कि क्या कोई दूसरा शख्स सेमिनार हॉल के बाहर तैनात था। अधिकारी इसकी जांच भी कर रहे हैं कि जब घटना को अंजाम दिया जा रहा था, तो सेमिनार हॉल के अंदर से कोई आवाज क्यों नहीं सुन सका।

ये कोलकाता के आरजी कर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड की तस्वीर है। इसी बिल्डिंग के सेकेंड फ्लोर पर बने सेमिनार हॉल में ट्रेनी डॉक्टर की लाश मिली थी।

ये कोलकाता के आरजी कर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड की तस्वीर है। इसी बिल्डिंग के सेकेंड फ्लोर पर बने सेमिनार हॉल में ट्रेनी डॉक्टर की लाश मिली थी। पीड़िता के शरीर से लिए गए डीएनए, वजाइनल स्वैब, ब्लड, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बावजूद CBI अभी किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंची है।

CBI जानना चाहती है कि क्या मुख्य आरोपी के अलावा भी कोई इस षडयंत्र का हिस्सा था। CBI ये भी जानना चाहती है कि आरोपी जो बोल रहा है वो सच है या उसने किसी को बचाने के लिए जुर्म कबूला है।

सवाल-2: पॉलीग्राफ टेस्ट है क्या, जिससे कोलकाता केस की सच्चाई सामने आने के दावे किए जा रहे हैं?
जवाब: 
फोरेंसिक साइकोलॉजी डिवीजन के डॉ. पुनीत पुरी के मुताबिक, पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए कोर्ट से मंजूरी लेने की जरूरत होती है। पॉलीग्राफ टेस्ट नार्को टेस्ट से अलग होता है। इसमें आरोपी को बेहोशी का इंजेक्शन नहीं दिया जाता है, बल्कि कार्डियो कफ जैसी मशीनें लगाई जाती हैं।

इन मशीनों के जरिए ब्लड प्रेशर, नब्ज, सांस, पसीना, ब्लड फ्लो को मापा जाता है। इसके बाद आरोपी से सवाल पूछे जाते हैं। झूठ बोलने पर वो घबरा जाता है, जिसे मशीन पकड़ लेती है।

इस तरह का टेस्ट पहली बार 19वीं सदी में इटली के अपराध विज्ञानी सेसारे लोम्ब्रोसो ने किया था। बाद में 1914 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम मैरस्ट्रॉन और 1921 में कैलिफोर्निया के पुलिस अधिकारी जॉन लार्सन ने भी ऐसे उपकरण बनाए।

सवाल- 3: क्या पॉलीग्राफ टेस्ट में कही गई बातों का सबूत की तरह इस्तेमाल होता है?
जवाब:
 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पॉलीग्राफ टेस्ट में आरोपी की कही गई बातों को सबूत नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि यह सिर्फ सबूत जुटाने के लिए एक जरिया होता है। इसे ऐसे समझिए कि अगर पॉलीग्राफ टेस्ट में कोई हत्या आरोपी मर्डर में इस्तेमाल हथियारों की लोकेशन बताता है, तो उसे सबूत नहीं माना जा सकता है, लेकिन अगर आरोपी के बताए लोकेशन से हथियार बरामद हो जाता है तो फिर उसे सबूत माना जा सकता है।

इस मामले में कोर्ट ने यह भी कहा था कि हमें यह समझना चाहिए कि इस तरह के टेस्ट के जरिए किसी व्यक्ति की मानसिक प्रक्रियाओं में जबरन घुसपैठ करना भी मानवीय गरिमा और उसके निजी स्वतंत्रता के अधिकारों के खिलाफ है। ऐसे में ज्यादा गंभीर मामलों में ही कोर्ट की इजाजत से इस तरह की जांच होनी चाहिए।

सवाल- 4: पॉलीग्राफ मशीन कैसे धड़कनों और पसीने से सच पता कर लेती है?
जवाब: 
एक पॉलीग्राफ मशीन में सेंसर लगे हुए कई सारे कंपोनेंट होते हैं। इन सभी सेंसर को एक साथ मेजर करके किसी व्यक्ति के साइकोलॉजिकल रिस्पॉन्स का पता लगाया जाता है। इसे ऐसे समझिए कि किसी व्यक्ति को झूठ बोलते समय कुछ घबराहट होती है तो ये मशीन तुरंत उसे पता कर लेती है।

सवाल-5: इस जांच में दो तरह के कौन से टेस्ट होते हैं?

जवाब: इस जांच में इन दो तरह के टेस्ट होते हैं…

कंट्रोल क्वेश्चन टेस्ट: सबसे पहले व्यक्ति को पॉलीग्राफ मशीन से जोड़ने के बाद उससे सामान्य सवाल पूछे जाते हैं। इन सवालों के जवाब हां या ना में पूछे जाते हैं। ऐसा यह जांचने के लिए किया जाता है कि जब वह किसी सामान्य सवाल का जवाब देता है और जब उस घटना से जुड़े टफ सवाल का जवाब देता है तो उसके शरीर की प्रतिक्रिया कैसी होती है।

इस समय व्यक्ति के सांस लेने की गति यानी ब्रीदिंग रेट, व्यक्ति का पल्स, ब्लड प्रेशर और शरीर से निकल रहे पसीने से यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति सही बोल रहा है या झूठ बोल रहा है।

गिल्टी नॉलेज टेस्ट: इसमें एक सवाल के कई जवाब होते हैं। सारे सवाल आरोपी के अपराध से जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए कोई चोरी के आरोप में गिरफ्तार हुआ है तो उससे इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं… 5,000, 10,000 या 15,000 रुपए की चोरी हुई है?

इस सवाल का आरोपी सही जवाब देगा तो उसकी हार्ट बीट सामान्य होगी, लेकिन जैसे ही वह झूठ बोलने की कोशिश करता है उसकी हार्ट बीट, उसके दिमाग के सोचने के तरीके आदि से पता चल जाता है कि वह कुछ छिपा रहा है।

सवाल- 6: क्या पॉलीग्राफ टेस्ट में सच को छिपाया जा सकता है?
जवाब: 
अमेरिका की साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के मुताबिक, पूछताछ के दौरान शरीर में होने वाले बदलाव या घबराहट से यह तय नहीं किया जा सकता कि आरोपी कुछ छिपा रहा है या झूठ बोल रहा है।

हालांकि, यह सच को पता करने का एक माध्यम जरूर हो सकता है। वंडरपोलिस की एक रिसर्च से ये पता चला है कि अगर कोई व्यक्ति अपने इमोशन को कंट्रोल में रख सकता है तो इस जांच से उस पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ता है।

अगर आरोपी के दिए सही जवाब को एक्सपर्ट गलत बताकर उस पर दबाव बनाने लगते हैं तो वह नर्वस होने लगता है। आमतौर पर उसके नर्वस होने पर ही ये मान लिया जाता है कि वह झूठ बोल रहा है। हालांकि, कई मामलों में इस जांच के जरिए असली अपराधी को भी पकड़ा गया है।

सवाल- 7: पॉलीग्राफी से भी एक कदम आगे नार्को टेस्ट क्या है और इसमें सच कैसे बाहर आता है?
जवाबः
 शातिर क्रिमिनल बचने के लिए अकसर झूठी कहानियां बनाते हैं। पुलिस को गुमराह करते हैं। इनसे सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट किया जाता है।

नार्को टेस्ट में साइकोएस्टिव दवा दी जाती है, जिसे ट्रुथ ड्रग भी कहते हैं। जैसे- सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल। सोडियम पेंटोथल कम समय में तेजी से काम करने वाला एनेस्थेटिक ड्रग है। इसका इस्तेमाल सर्जरी के दौरान बेहोश करने में सबसे ज्यादा होता है।

ये केमिकल जैसे ही नसों में उतरता है, शख्स बेहोशी में चला जाता है। बेहोशी से जागने के बाद भी आरोपी आधी बेहोशी में रहता है। इस हालत में वो जानबूझकर कहानी नहीं गढ़ सकता, इसलिए सच बोलता है।

5 लोगों के साथ होगा पॉलीग्राफ टेस्ट

अदालत में जब जज ने संजय राय से यह पूछा कि वह पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए क्यों सहमत हो रहे हैं तो वह रोने लगा और कहा कि उसने लाई डिटेक्टर टेस्ट के लिए सहमति इसलिए दी क्योंकि उसका मानना है कि वह निर्दोष है। उसने कहा मुझे फंसाया जा रहा है। मैंने कोई अपराध नहीं किया।

यह भी पढ़ें : RAS का एग्जाम छोड़ पहुंची KBC की हॉट सीट पर नरेशी मीणा

शायद यह टेस्ट यह साबित कर देगा कि मैं निर्दोष हूं। इसके बाद उसने अपना पॉलीग्राफ टेस्ट करने की अनुमति दे दी। उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। अदालत ने मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और मामले से जुड़े पांच अन्य लोगों पर लाई डिटेक्टर टेस्ट करने की अनुमति दी है।

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Color

Secondary Color

Layout Mode