रवीश कुमार की ‘बोलना ही है’ ज्वलंत सवालों की किताब

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 05 जुलाई 2024 | जयपुर : रवीश कुमार की किताब ‘बोलना ही है’ पर यह लंबी टिप्पणी लिखी है संजय कुमार ने। आप रवीश को ट्रोल कर सकते हैं। आप रवीश को मोदी विरोधी कह सकते हैं। आप रवीश को देशद्रोही कहे सकते हैं। आप रवीश को कांग्रेसी या विपक्षी पार्टियों का  दलाल कहे सकते हैं।

लेकिन सबसे अहम बात यह है कि रवीश के द्वारा उठाये गये सवालों से कैसे बच के निकल सकते हैं जो आज के समय में रवीश के द्वारा लगातार उठाये जा रहे हैं। एनडीटीवी चैनल के प्राइम टाइम शो के माध्यम से, और अब रवीश अपनी पुस्तक ‘बोलना ही है’ के माध्यम से ज्वलंत सवालों को उदाहरण सहित क्रमबद्ध तरीके से जनता के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।

‘बोलना ही है’ – पुस्तक समीक्षा 

किताब एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से आप अपनी बात को सही तरीके से रख सकते हैं। हिस्ट्री  के छात्र होने के कारण भी रवीश किताब लेखन की अहमियत को अच्छे समझते हैं बहुत सारी किताबों ने देश और दुनिया के इतिहास की दिशा को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

रवीश की पुस्तक भी आने वाले समय में सोशल साइंस तथा वर्तमान राजनीतिक दौर के घटनाक्रमों को समझने में महत्वपूर्ण दस्तावेज का काम करेगी। रवीश का लेखन भारत की वर्तमान लोकतांत्रिक प्रणाली, राजनीतिक व्यवस्था, राजनीतिक दलों के क्रियाकलाप और सरकारों के कार्यों पर प्रश्न चिन्ह लगाने का काम कर रहा है।

पुस्तक के माध्यम से रवीश यह सवाल भी पैदा कर रहे हैं कि क्या देश संविधान के आधार स्तंभों के आधार पर चलाया जा रहा है या नहीं, आजादी के आंदोलन के दौरान जिसको स्थापित किया गया था भारत की पत्रकारिता के उन उच्च मानकों को किस प्रकार एक एक करके तार तार किया जा रहा है।

दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों में पत्रकारिता के पेशे को आज भी लोकतंत्र का प्रहरी के तौर पर माना जाता है। लेकिन क्या अब भारत में पत्रकारिता और पत्रकार टीवी चैनल और न्यूज़ पेपर में आज जिस तरह से काम कर रहे हैं क्या इसी का नाम लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है,  मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इसी कारण से कहा जाता था कि वह सरकार और व्यवस्था की खुलकर आलोचना और उसकी कमियों को उजागर करना का काम दिन रात करता रहता है।

क्या लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का काम वर्तमान में भारतीय मीडिया कर रहा है या मात्र सरकार के प्रवक्ता या राजनीतिक दलों के आईटी सेल के दिये हुए या बनाये हुए कार्यक्रम को दिन रात प्रसारित कर रहे हैं ताकि जनता की सही आवाज और  विपक्ष की आवाज को भी खत्म किया जा सके।

एक लंबी लिस्ट सवालों की बनाने का प्रयास किताब की समीक्षा के दौरान किया जा रहा है जिसको रवीश ने अपने आवाज और लेखनी के माध्यम से उठाया है, किताब वर्तमान में भारत के राजनीतिक व्यवस्था में आई दरारों, कमियों और पत्रकारिता के गिरते स्तर को उदाहरण सहित व्याख्या करके बताने में अपनी किताब में काफी हद तक कामयाब हुए हैं।

सवाल-1 मॉब लिंचिंग पर

पुस्तक की भूमिका में ही मॉब लिंचिंग के संदर्भ में कहा गया है कि हम जिस लिंचिंग के खतरों की बात करते हैं वह कुछ लोगों के लिए सामान्य कार्य हो चुका है किसी से असहमति होने पर उसकी लिंचिंग करने का ख्याल आना अब आम बात की तरह है ।

सवाल-2 आजकल की भीड़

जो यह भीड़ है महज शब्द नहीं है इसमें बहुत से लोग हैं मरने वाले, मरते हुए देख कर चुप रहने वाले और अपने मोबाइल फ़ोन से वीडियो बनाने वाले आवारा भीड़ का निर्माण तीव्र गति से चल रहा है।

सवाल-3 मीडिया की जवाबदेही

पत्रकार और पत्रकारिता दोनों की जवाबदेही समाप्त हो चुकी है। बस शाम को टीवी पर आना है। दो वक्ताओं को बुलाकर आपस में लड़ा देना है और असली खबर को दबा देना है। अब यह कार्यक्रम विकराल और इतना व्यापक हो चुका है कि इसमें नैतिकता और अनैतिकता की बिंदु खोजने का कोई मतलब नहीं रहा है। न्यूज़ चैनलों ने भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने में जो मेहनत की है उसी का नतीजा है कि अब भारत के लोग उन चैनलों को बगैर किसी सवाल के देखते हैं।

लोकतंत्र के बड़े प्रतीक मीडिया में विपक्ष को क्यों गायब किया जा रहा है। प्रेस की गुणवत्ता अब एक ही मानक है कि वह सत्ता पक्ष का गुणगान कितना अच्छा करता है। 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के इंटरव्यू गुणगान के लिए देखे जाने चाहिए गुणवत्ता के लिए नहीं, प्रेस का प्रोपेगंडा तंत्र में बदल जाना भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का  सहज हिस्सा है।

ऐसा सिर्फ सरकार की वजह से नहीं हुआ है दर्शकों और पाठकों की भी वजह से हुआ है। तभी तो चैनल या अखबार जितना दरबारी है वह रेटिंग  की होड़ में उतने ही बेहतर नंबर पर हैं।

सवाल-5  खराब शिक्षा व्यवस्था का नतीजा और प्रभाव

 NACC  की रेटिंग में 68% यूनिवर्सिटी  औसत या औसत से भी खराब है। 91% कॉलेज औसत  या औसत से भी नीचे  है, इन खराब कॉलेजों ने कितनी मेहनत से छात्र और छात्राओं की कई पीढ़ियों को औसत या औसत से नीचे तैयार किया होगा। जानने, पढ़ने, और समझने की हर बेचैनी को खत्म किया होगा।

लोकतंत्र उन आदर्श लोगों के दम पर जिंदा और मजबूत रहता है जो दुनिया को बेहतर ढंग से समझने को उत्सुक रहते हैं जो सवाल करते हैं, तो क्या हम उन छात्र-छात्राओं से लोकतांत्रिक उच्चतम आदर्शों की उम्मीदें कर सकते हैं जिनको एक औसत दर्जे की शिक्षा व्यवस्था ने शिक्षा दी है इन पर पहले अज्ञानता का भार लादा गया और अब सांप्रदायिकता का चश्मा पहना दिया गया है।

सवाल-6  खुल कर बोलना

बोलने के लिए जानना  पड़ता है तब जानने की हर कोशिश नाकाम कर दी जाए या जानकारी कम कर दी जाए तो बोलने का अभ्यास अपने आप कम हो जाता है। न्यूज़ चैनल और अखबारों में मेहनत से खोज कर लाई गयी खबरें गायब होती चली गयी।

अब तमाम मीडिया तंत्र के जरिए जो जानकारी आप तक पहुंच रही है वह आपके बोलने की क्षमता को सीमित कर रही है। मां-बाप बच्चों को ज्यादा बोलने और लिखने से मना कर रहे हैं, अध्यापक अपने विद्यार्थियों को सिर्फ पढ़ने और राजनीति दूर रहने की सलाह दे रहे हैं ,सारा समाज मिलकर भारत के महान लोकतंत्र को दब्बू बनाने में लगा है। सेंसरशिप की बात कहाँ नहीं है।

अब सवाल करने वालों पर आईटी सेल की ट्रोल आर्मी ने जोरदार हमला बोला दिया है उन्हें देश विरोधी- धर्म विरोधी से लेकर विरोधी दलों का दलाल तक कहा जाने लगा,  व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी ने कई पत्रकारों की विश्वसनीयता को संदिग्ध बनाने की कोशिश की है।

बोलने की आजादी को लेकर अपनी तरह की इस नई व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने अपना एक नया बेंच मार्क तय किया है। तब क्यों नहीं बोले और अब ही क्यों बोल रहे हो तथा हर मुद्दे पर तब कहाँ थे जब वह हुआ था।

सवाल-7  सोशल मीडिया का दुरुपयोग

2014 के बाद से सोशल मीडिया के द्वारा 10- 12 पत्रकार, लेखक और अभिनेताओं को टारगेट किया गया, इस खेल के जरिए जनता के एक बड़े वर्ग को डरा दिया गया, जनता को यह डर सताने लगा कि जब बड़े बड़े लोगों की ऐसी हालत हो सकती है तो आम आदमी की क्या बिसात, जनता के हिस्से ने भीड़ का वह डर खरीद लिया।

आईटी सेल ने अपनी आक्रामकता के सहारे ड़र बिठाने का यह काम बहुत बारीकी से किया, आईटी सेल की भाषा सरकार के मंत्री की भाषा हो गयी और सरकार के समर्थक लोग की भी। लगता है मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया ने डर की फ्रेंचाइजी ले रखी है जहाँ कोई सरकार के बारे में आलोचनात्मक  बोलता है सोशल मीडिया से हमला होने लगता है व्हाट्सएप पर। घेरकर मार दिये जाने की धमकी से लेकर फोन नंबर पब्लिक कर गाली दिलवाने की धमकी तक का ऐलान यह सब एक आदमी को डराने के लिए काफी है।

सवाल -8  अल्पसंख्यक समुदाय पर प्रभाव

मुसलमानों  को किस हद तक यह महसूस कराया जा रहा है कि राजनीतिक रूप से वह कितने अप्रासंगिक हो चुके हैं इस समझना  अब कोई  रहस्यमय  बात नहीं है। अधिकांश मुस्लिम अभी महसूस करते हैं कि अगर वह अपनी माँगों को लेकर सड़कों पर उतरेंगे तो मीडिया केवल उनकी दाढ़ी या उनकी शेरवानी दिखाएगी उनके मुद्दों की बात के बारे में बात नहीं करेगा। यह दरअसल अपने को दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में मान लेने की  विडंबना है।

सवाल-9  क्या बोलना जोखिम भरा काम हो गया है

यह सवाल आप खुद से कीजिए क्या आपको सरकार के बारे बोलते वक्त डर लगता है? क्या आप हिसाब करने लगते हैं कि किस हद तक बोला जाए ताकि सरकार और सोशल मीडिया की नाराजगी न झेलनी पड़े, क्या आपको लगता है कि आपको टारगेट किया जाएगा। भारत में झूठे मुकदमों में फंसाना सबसे आसान काम है। यह काम सरकारे भी करती है और संगठन के लोग भी करते हैं।

एक बड़ी आबादी के भीतर धर्म के प्रति कट्टर आस्था भर दी गयी है। कैसे धर्म के आधार पर किसी गलत को सही और सही को गलत की तरह देखा जा सकता है। क्या धर्म इतना अंधा हो गया है कि भीड़ को हिंसा की इजाजत देता है? भीड़ संविधान से ही बड़ी हो गयी है?

सवाल-10  फेक न्यूज़ के प्रभाव

उदाहरण के तौर पर 9 दिसंबर 2017 को गुजरात चुनाव के समय नरेंद्र मोदी के दिये गये भाषण में फेक न्यूज़ का जिक्र इस किताब में किया गया है किस प्रकार से मणिशंकर अय्यर के घर पर हुई रात्रि भोज को एक गुप्त मीटिंग का नाम देकर पाकिस्तान का गुजरात चुनाव में हस्तक्षेप की बात अपने भाषण में मोदीजी करते हैं।

जिसका उद्देश्य गुजरात चुनाव के असली मुद्दों से ध्यान भटकना  है, जब फेक न्यूज़ की चर्चा या जानकारी किसी बड़े पद के व्यक्ति के द्वारा की जाती है तो जनता इसको इसी प्रकार से मानती है कि कुछ तो है। यही बात है जो फेक न्यूज़ के लिए  ईंधन का काम करती है, फेक न्यूज़ ने पहले खबरों और पत्रकारिता को फेंक किया और अब वह जनता को फेक रूप तैयार कर रहा है।

फेक न्यूज़ के बहाने एक नए किस्म का सेंसरशिप आ रहा है। आलोचनात्मक चिंतन को दबाया जा रहा है। फेक न्यूज़ का एक बड़ा काम है नफरत फैलाना, फेक न्यूज़ के खतरनाक खेल में बड़े अखबार और टीवी चैनल शामिल हैं, लेकिन भारत में अब कुछ वेबसाइटों ने फेक न्यूज़ से लोहा लेना शुरू कर दिया है।

लेकिन यह सब बहुत छोटे पैमाने पर हो रहा है इसकी पहुंच मुख्यधारा के मीडिया के फैलाए फेक न्यूज़ की तुलना में बहुत सीमित है। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कैबिनेट मिनिस्टर का विरोध या असहमति  दर्ज करने पर कितने ही पत्रकारों आम नागरिकों पर पुलिस केस और मानहानि केस दर्ज भारत में हो रहे हैं। इन्हीं सब तरीकों से नागरिक अधिकारों को कम करने या उनको खत्म करने की सुनियोजित तरीके से योजना सरकारों के द्वारा चल रही है।

सवाल- 11  भीड़ मत बनिए

पुस्तक में भीड़ और प्रोपेगेंडा का नतीजा बताया गया कि किस प्रकार से जर्मनी में हिटलर और उसकी नाजी पार्टी ने  भीड़ को और प्रोपेगंडा को इस प्रकार से तैयार कर दिया था। यह लोग खुद अपने आप से ही एक समय के बाद यहूदियों को मार रहे थे,  प्रोपेगंडा का एक ही काम है भीड़ का निर्माण करना ताकि खून भीड़ करें तो दाग भी उसी भीड़ के दामन पर आये। सरकार और महान नेता निर्दोष नज़र आये। भारत में सब हत्या करने वाली भीड़ को ही दोष दे रहे हैं, उस भीड़ को तैयार करने वाले प्रोपेगेंडा में किसी को दोष नजर नजर नहीं आता है।

भारत में अभी इन घटनाओं को इक्का-दुक्का रूप में ही पेश किया जा रहा है। जर्मनी में भी पहले चरण में यही हुआ जब तीसरा चरण आया तब उसका विकराल रूप नजर आया तब तक लोग छोटी-मोटी घटनाओं के प्रति सामान्य हो चुके थे, जो समाज इतिहास के जरूरी सबक भूल जाता है वह अपने भविष्य को खतरे में डालता है।

सवाल-12  मुद्दे से भटकाव के लिए नया एजेंडा

गोदी मीडिया ने मुद्दों से नागरिकों को दूर करने  के लिए एक नया नेशनल सिलेबस तैयार किया है। कभी खिचड़ी-बिरयानी, कभी ताजमहल -मंदिर, कभी नेहरू बेनाम पटेल या बोस बनाम नेहरू, कभी तीन तलाक, अकबर, औरंगजेब, शाहजहाँ, अशोक, टीपू सुल्तान रानी पद्मावती और सबसे ऊंची मूर्ति, हिंदू मुस्लिम, इन सब चीजों पर मीडिया रोज रात को चर्चा करता रहता है और चुनाव के समय इसमें दिन-रात चर्चा का केंद्र बना कर बैठ जाता है।

ऐसा लगता है कि पूरा देश की इतिहास की कक्षा में बैठा हुआ है और हम पहली बार इतिहास पढ़ रहे हैं। जो न्यूज़ एंकर और ट्रोल है वह हमारे  इतिहासकार है चाणक्य के नाम से आजकल  कुछ भी चल जाता है,  यहाँ मीडिया शो देख कर आपको ऐसा लगेगा कि इतिहास से जोड़ा जा रहा है आपको, लेकिन नहीं, बहुत चालाकी से आपको इतिहास से काटा जा रहा है।

आपको इतिहासविहीन बनाया जा रहा है। सच्चे हिन्दू की दुहाई देकर हम सब में एक बदले की भावना भरी जा रही है इतिहास की ज्यादती का  बदला आज लेना है।  रवीश का पुस्तक में कहना है कि इस नेशनल टॉपिक से खुद को बचा लीजिए। इसकी थीम बहुत घातक है।

सवाल 13 अंधविश्वास और बाबाओं का धंधा

बाबाओं के पास हर समस्या का समाधान है और देशभर के न्यूज़ चैनल सिर्फ एनडीटीवी को छोड़कर इस समाधान को बहुत बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत करते रहते हैं। दिन रात, कुछ तो बाबाओं के अपने भी चैनल अब स्थापित हो चुके हैं। हिंदी बोलने वाला बाबा राशिफल कुंडली भाग्य अन्य समस्याओं का निदान करता है, जो बाबा इंग्लिश बोलने में एक्सपर्ट होते हैं वह अभी स्ट्रेस मैनेजमेंट का कोर्स करवाते हैं। बड़े-बड़े ऑफिसों, राजनीतिक रसूखदार लोगों, शासन प्रशासक लोगों में बड़ी डिमांड रहती है।

देश का राजनीतिक वर्ग अंधविश्वास का सबसे बड़ा संरक्षक है। बाबा लोग टीवी चैनलों पर हर तरह की समस्याओं पर बात कर रहे हैं, जैसे कब लड़का लड़की को प्रपोज करना चाहिए, सिजेरियन कब कराना चाहिए, ऑफिस में प्रमोशन का उचित समय क्या रहेगा, बिजनेस प्लान कब शुरू करना चाहिए, मुकदमा कब करना चाहिए- इन सब बातों को देखकर ऐसा लग रहा है कि बाबाओं और ज्योतिषी का हर दिन भारत की अलग-अलग समस्याओं के क्षेत्र में अपना विस्तार कर रहे हैं।  दिल पर मत लीजिए, यही हिंदुस्तान है। यही हम और आप है

सवाल-14  भारत में इश्क करना और उसकी चुनौतियाँ

भारत में इश्क करना अनगिनत सामाजिक धार्मिक धारणा से जंग लड़ना होता है।  मोहब्बत हमारे घरों के भीतर प्रतिबंधित विषय है। हम सबके जीवन में प्रेम की कल्पना फिल्मों से आती है। फिल्में हमारी दीवानगी की शिल्पकार है। हमारे शहरों में प्रेम की कोई जगह नहीं है।

प्रेम के दो पल के लिए रोज हजार पलों की यह लड़ाई आपको प्रेमी से ज्यादा एक्टिविस्ट बना देती है। इश्क हमें इंसान बनाता है, जिम्मेदार बनाता है। इश्क हमें थोड़ा कमजोर, थोड़ा संकोची बनाता है। एक बेहतर इंसान में यह कमजोरियाँ न हो तो वह शैतान बन जाता है।

प्रेम करने की सजा के तौर पर 2016 में दिल्ली के अंकित की हत्या धर्म के कारण और कोयंबटूर में  शंकर की हत्या दलित जाति के कारण की गयी। और इन सभी हत्या पर एक खास प्रकार की राजनीतिक मानसिकता का समर्थन मिलने से हत्या करने वाले को किसी प्रकार का पश्चाताप भी नहीं हो पा रहा है।

सवाल -15  प्राइवेसी के अधिकार और उस पर हो रहे हमले

नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अगस्त 2017 में प्राइवेसी को मौलिक अधिकार बताया,  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार नीतियों की समीक्षा उस पर सवाल करना, उससे ऐसा असहमत होना इन सभी अधिकारों को भी संरक्षण प्राप्त है।

संविधान पीठ ने कहा कि यह सब करने से लोकतंत्र में एक नागरिक सक्षम बनता है और वह अपना राजनीतिक चुनाव बेहतर तरीके से कर पाता है। अनुच्छेद 19 ओर 21 से ही प्राइवेसी के अधिकार की खुशबू आती है। कानून विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा ने कहा कि ‘मौलिक अधिकार का मतलब है जनता का सरकार पर अंकुश न कि सरकार का जनता पर अंकुश।’

रवीश की यह पुस्तक वर्तमान में देश के राजनीतिक सामाजिक आर्थिक सभी पक्षों पर सच्चाई को बयान करने  का एक साहसिक गंभीर प्रयास है, स्पष्ट तरीके से इन सब मुद्दों पर सोशल साइंटिस्ट भी वर्तमान में नहीं लिख पा रहे हैं और कुछ के द्वारा लिखा हुआ प्रयास भी वर्तमान में मात्र लाइब्रेरी या कुछ एकेडमिक लोगों के बीच में ही चर्चा का विषय बन के रह जाता है।

लेकिन रवीश की पुस्तक आमजन को आमजन की भाषा में ही समझाने का प्रयास है कि देश के सामने किस प्रकार के मुद्दे क्यों चलाये जा रहे हैं? उसके पीछे क्या रणनीति है? यह एक साजिश से सब  कुछ सुनियोजित तरीकों से किया जा रहा है और आम नागरिकों के अधिकारों पर किस प्रकार से हमला किया जा रहा है।

लोकतांत्रिक संस्थाओं को, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को किस प्रकार से कमजोर किया जा रहा है और यदि यही सब चलता रहा तो जल्दी ही भारत की राजनीतिक व्यवस्था उसी दौर में चली जाएगी जिस दौर में आम नागरिक अपनी आवाज को कभी भी बुलंद नहीं कर पायेगा।

समीक्षक : संजय कुमार, ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज(सांध्य) , दिल्ली विश्वविद्यालय

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अरावली प्रदेश की जोर पकड़ती माँग और “अरावली प्रदेश” के लाभ

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 मार्च 2025 | जयपुर : प्रोफेसर मीना पूर्वी राजस्थान के लिए “अरावली प्रदेश” की स्थापना की वकालत करते हैं। उनकी रणनीति में क्षेत्रीय पहचान को मजबूत करना और स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर बहुजन समुदाय के आर्थिक-सामाजिक विकास को बढ़ावा देना शामिल है।

भारत की पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के लिए जीवन रेखा के रूप में काम करती रही है। हालाँकि, अवैध खनन, शहरीकरण, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारण अरावली काफ़ी हद तक क्षरण का सामना कर रही है।

इन दबावों के कारण इस पर्वत श्रृंखला के बड़े हिस्से का क्षरण हुआ है, जिससे रेगिस्तानीकरण, पानी की कमी और जैव विविधता के नुकसान जैसी पर्यावरणीय आपदाएँ हुई हैं।

अरावली प्रदेश की जोर पकड़ती माँग और “अरावली प्रदेश” के लाभ

 “छोटे राज्यों का गठन” के बारे में चर्चा आम है, जो संभवतः प्रोफेसर राम लखन मीना के “अरावली प्रदेश” प्रस्ताव के संदर्भ में या सामान्य रूप से भारत में छोटे राज्यों के निर्माण की अवधारणा से संबंधित है। इसे व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझना होगा और भारतीय संदर्भ में इसके पक्ष-विपक्ष, और प्रक्रिया पर ध्यान देना जरूरी है। यदि आप इसे “अरावली प्रदेश” तक सीमित रखना चाहते हैं।

अरावली प्रदेश की जोर पकड़ती माँग और “अरावली प्रदेश” के लाभ

छोटे राज्यों का गठन: एक अवलोकन

भारत में छोटे राज्यों का गठन एक ऐतिहासिक और राजनीतिक प्रक्रिया रही है, जो मुख्य रूप से भाषाई, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय पहचान, और प्रशासनिक दक्षता के आधार पर हुई है। स्वतंत्रता के बाद से, भारत के राज्य पुनर्गठन ने बड़े राज्यों को छोटी इकाइयों में विभाजित करने की माँग को बार-बार देखा है।

ऐतिहासिक उदाहरण

  1. 1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम:
    भाषा के आधार पर राज्यों का गठन हुआ, जैसे आंध्र प्रदेश (तेलुगु), कर्नाटक (कन्नड़), और तमिलनाडु (तमिल)। यह बड़े औपनिवेशिक प्रांतों को छोटी इकाइयों में तोड़ने की शुरुआत थी।
  2. 2000 में तीन नए राज्य:
    • छत्तीसगढ़: मध्य प्रदेश से अलग
    • उत्तराखंड: उत्तर प्रदेश से अलग
    • झारखंड: बिहार से अलग
      इनका गठन क्षेत्रीय उपेक्षा और पहचान के आधार पर हुआ।
  3. तेलंगाना (2014):
    आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना बना, जो विकास में असमानता और सांस्कृतिक पहचान की लंबी लड़ाई का परिणाम था।

छोटे राज्यों के पक्ष में तर्क

  1. प्रशासनिक दक्षता:
    छोटे राज्य सरकार को जनता के करीब लाते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में पहाड़ी क्षेत्रों की समस्याओं पर तेजी से ध्यान देना संभव हुआ।
  2. स्थानीय विकास:
    संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है। छत्तीसगढ़ ने अपने खनिज संसाधनों का लाभ उठाकर औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया।
  3. सांस्कृतिक और क्षेत्रीय पहचान:
    छोटे राज्य स्थानीय भाषा, परंपराओं और समुदायों को संरक्षित करते हैं। जैसे, तेलंगाना में तेलुगु संस्कृति को अलग पहचान मिली।
  4. राजनीतिक सशक्तिकरण:
    हाशिए पर रहे समुदायों को नेतृत्व का मौका मिलता है। झारखंड में आदिवासी समुदायों की आवाज मजबूत होगी।

छोटे राज्यों के खिलाफ तर्क

  1. आर्थिक व्यवहार्यता:
    छोटे राज्य कभी-कभी स्वतंत्र रूप से आर्थिक रूप से टिक नहीं पाते। मिसाल के तौर पर, झारखंड में विकास हुआ, लेकिन भ्रष्टाचार और संसाधन प्रबंधन की समस्याएँ बनी रहीं।
  2. प्रशासनिक लागत:
    नए राज्य का ढाँचा—जैसे विधानसभा, सचिवालय, और नौकरशाही—बनाने में भारी खर्च होता है।
  3. विखंडन का खतरा:
    बार-बार विभाजन से राष्ट्रीय एकता पर सवाल उठ सकते हैं। कुछ लोग इसे “बाल्कनीकरण” कहते हैं।
  4. अंतर-राज्य विवाद:
    जल, सीमा, और संसाधनों पर टकराव बढ़ सकता है, जैसे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच कृष्णा नदी का विवाद।

भारत में गठन की प्रक्रिया

भारत के संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत संसद को नए राज्यों के गठन का अधिकार है। प्रक्रिया इस तरह है:

  1. माँग की शुरुआत:
    स्थानीय आंदोलन, राजनीतिक दल या समुदाय माँग उठाते हैं।
  2. राज्य विधानसभा की राय:
    संबंधित राज्य विधानसभा से राय ली जाती है (हालाँकि यह बाध्यकारी नहीं है)।
  3. केंद्र सरकार का प्रस्ताव:
    गृह मंत्रालय इसका मूल्यांकन करता है और संसद में विधेयक पेश करता है।
  4. संसदीय मंजूरी:
    दोनों सदनों में साधारण बहुमत से पास होने के बाद राष्ट्रपति की सहमति से यह लागू होता है।
“अरावली प्रदेश” के संदर्भ में प्रोफेसर मीना का प्रस्ताव इस पैटर्न में फिट बैठता है। उनका तर्क है कि पूर्वी राजस्थान की उपेक्षा और बहुजन समुदायों की जरूरतें एक छोटे राज्य से पूरी हो सकती हैं। लेकिन इसके लिए व्यापक जन समर्थन, आर्थिक योजना, और राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए—जो अभी प्रारंभिक चरण में लगता है।

छोटे राज्यों का गठन भारत में सफल भी रहा है (तेलंगाना, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़) और चुनौतीपूर्ण भी (झारखंड की आर्थिक अस्थिरता)। यह इस बात पर निर्भर करता है कि नया राज्य अपनी विशिष्टता को कैसे भुनाता है और संसाधनों का प्रबंधन कैसे करता है। यदि आप किसी खास पहलू—आर्थिक प्रभाव या विशिष्ट उदाहरण—पर और जानना चाहते हैं, तो बताएँ। क्या आप “अरावली प्रदेश” पर ही केंद्रित जवाब चाहते हैं या सामान्य चर्चा ठीक है?

“अरावली प्रदेश” के लाभों पर चर्चा करने के लिए प्रोफेसर राम लखन मीना (@ProfRLMeena) के प्रस्तावित विचार को आधार बनाना होगा, जो पूर्वी राजस्थान के जिलों को एक अलग राज्य के रूप में गठित करने की वकालत करता है। यहाँ इसके संभावित लाभों को विस्तार से देखते हैं, जो सामाजिक, आर्थिक, प्रशासनिक, और पर्यावरणीय पहलुओं पर आधारित हैं:

1. प्रशासनिक दक्षता और स्थानीय फोकस

  • तेज निर्णय प्रक्रिया:
    एक छोटा राज्य होने से सरकार स्थानीय समस्याओं—like ग्रामीण सड़कें, स्कूल, और अस्पताल—पर तेजी से ध्यान दे सकती है। अभी पूर्वी राजस्थान की जरूरतें जयपुर-केंद्रित प्रशासन में दब जाती हैं।
  • जमीनी स्तर तक पहुँच:
    छोटे राज्य में नौकरशाही और जनता के बीच की दूरी कम होगी, जिससे नीतियाँ अधिक प्रभावी होंगी। उदाहरण के लिए, टोंक या दौसा जैसे जिलों की उपेक्षा कम हो सकती है।

2. आर्थिक विकास और संसाधन उपयोग

  • खनिज संपदा का लाभ:
    अरावली क्षेत्र में संगमरमर, ताँबा, जस्ता, और अन्य खनिज प्रचुर हैं। एक अलग राज्य इनका स्थानीय स्तर पर बेहतर उपयोग कर सकता है, जिससे रोजगार और राजस्व बढ़ेगा। अभी ये संसाधन बड़े कॉर्पोरेट्स या राज्य के अन्य हिस्सों की ओर चले जाते हैं।
  • कृषि और पर्यटन:
    पूर्वी राजस्थान की उपजाऊ जमीन और अरावली की पहाड़ियाँ (जैसे रणथंभौर, सरिस्का) पर्यटन और कृषि को बढ़ावा दे सकती हैं। एक समर्पित प्रशासन इन क्षेत्रों को प्राथमिकता दे सकता है।
  • आर्थिक स्वायत्तता:
    स्थानीय कर और निवेश नीतियाँ क्षेत्र की जरूरतों के हिसाब से बनाई जा सकती हैं, बजाय इसके कि पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थलीय मॉडल पर निर्भर रहें।

3. सामाजिक सशक्तिकरण

  • बहुजन समुदायों का उत्थान:
    प्रोफेसर मीना का जोर बहुजन (ओबीसी, एससी, एसटी) समुदायों पर है, जो इस क्षेत्र में बहुसंख्यक हैं। एक अलग राज्य उनकी शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा दे सकता है। जैसे, मीणा और गुर्जर समुदायों को नेतृत्व के अधिक अवसर मिल सकते हैं।
  • आरक्षण का प्रभावी कार्यान्वयन:
    छोटे राज्य में आरक्षण नीतियों को स्थानीय स्तर पर बेहतर लागू किया जा सकता है, जिससे जातिगत असमानता कम हो।

4. सांस्कृतिक पहचान और गर्व

  • स्थानीय संस्कृति का संरक्षण:
    अरावली क्षेत्र की सहरिया, भील, मीणा, गुर्जर, और अन्य जनजातीय परंपराएँ राजस्थान की राजपूत-केंद्रित पहचान में दबी रहती हैं। एक अलग राज्य इसे मुख्यधारा में ला सकता है।
  • क्षेत्रीय एकता:
    “अरावली प्रदेश” की पहचान लोगों में गर्व और एकता की भावना जगा सकती है, जैसा कि तेलंगाना या उत्तराखंड में देखा गया।

5. पर्यावरण संरक्षण

  • अरावली पर्वतों की रक्षा:
    अवैध खनन और वन कटाई से अरावली क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ है। एक समर्पित राज्य सरकार पर्यावरण नीतियों को सख्ती से लागू कर सकती है, जिससे जैव-विविधता और जल संसाधन बचे रहें।
  • सतत विकास:
    पर्यटन और खनन के बीच संतुलन बनाया जा सकता है, जो अभी बड़े राज्य के ढाँचे में मुश्किल है।

6. शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार

  • शिक्षा पर ध्यान:
    प्रोफेसर मीना शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ हैं। एक छोटा राज्य सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को मजबूत करने पर केंद्रित नीतियाँ बना सकता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
  • स्वास्थ्य सेवाएँ:
    स्थानीय स्तर पर अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ाई जा सकती है, जो अभी दूर-दराज के इलाकों में कम हैं।

तुलनात्मक उदाहरण

  • छत्तीसगढ़:
    मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद खनिज-आधारित अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ, हालाँकि भ्रष्टाचार एक चुनौती रहा। अरावली प्रदेश भी खनिजों से लाभ उठा सकता है।
  • उत्तराखंड:
    पहाड़ी क्षेत्रों की जरूरतों पर फोकस से बुनियादी ढाँचा बेहतर हुआ। अरावली के पहाड़ी जिलों को भी ऐसा लाभ मिल सकता है।

संभावित प्रभाव

“अरावली प्रदेश” बहुजन समुदायों के लिए एक प्रयोगशाला बन सकता है, जहाँ सामाजिक न्याय और आर्थिक विकास को संतुलित करने की कोशिश हो। यह क्षेत्र की उपेक्षा को दूर कर सकता है और एक मॉडल राज्य बन सकता है, बशर्ते इसे सही योजना और नेतृत्व मिले।

यदि आप किसी खास लाभ आर्थिक या पर्यावरणीय—पर और गहराई से जानना चाहते हैं, तो बताएँ। क्या आप इसके पक्ष में उनके तर्कों को और विस्तार से पढ़ना-सुनना चाहते हैं?

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सरिस्का के 2 टाइगर्स की दौसा जयपुर में मूवमेंट, बांदीकुई महुखुर्द गांव में 03 लोगों पर टाइगर हमला

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 02 जनवरी 2025 | जयपुर : राजस्थान के दौसा जिले में टाइगर ने एक महिला सहित तीन लोगों पर हमला कर दिया। तीनों की हालत गंभीर है और उन्हें जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) हॉस्पिटल रेफर किया गया है। वहीं, ट्रैंकुलाइज करने पहुंची वन विभाग की टीम पर भी टाइगर ने हमला बोल दिया और गाड़ी के कांच फोड़ दिए।

सरिस्का के 2 टाइगर्स की दौसा जयपुर में मूवमेंट, बांदीकुई महुखुर्द गांव में 03 लोगों पर टाइगर हमला

सरिस्का के 2 टाइगर्स की दौसा जयपुर में मूवमेंट, बांदीकुई महुखुर्द गांव में 03 लोगों पर टाइगर हमला

घटना जिले के बांदीकुई के महुखुर्द गांव में सुबह 7.30 बजे की है। टाइगर के हमले की सूचना के बाद वन विभाग की टीम भी पहुंच गई है। बताया जा रहा है टाइगर सरिस्का सेंचुरी से आया है। रेंजर दीपक शर्मा ने बताया- टाइगर की उम्र करीब 4 साल है। तीन बार इसे ट्रैंकुलाइज करने का प्रयास किया, लेकिन निशाना सही नहीं लग सका।

बुधवार सुबह 11 बजे सरिस्का से वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। टाइगर पलासन नदी की ओर भाग गया, जिसकी लगातार तलाश की जा रही है।

बुधवार सुबह 11 बजे सरिस्का से वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। टाइगर पलासन नदी की ओर भाग गया, जिसकी लगातार तलाश की जा रही है। बीते करीब 20 दिन से सेंचुरी के दो टाइगर गायब हैं और इनकी लोकेशन जयपुर और दौसा के आसपास बताई जा रही है।

हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि हमला करने वाला टाइगर इन्हीं में से एक है। उधर, सरिस्का से वन विभाग की टीम गांव पहुंच गई है। टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश की जा रही है। टीम को देखकर वह गली से निकलकर पलासन नदी की ओर भाग गया।

टाइगर के हमले में घायल तीनों लोगों को पहले बांदीकुई के उपजिला हॉस्पिटल ले जाया गया था।

खेत में किया हमला, घर के पास भी दिखा

टाइगर के हमले में घायल तीनों लोगों को पहले बांदीकुई के उपजिला हॉस्पिटल ले जाया गया था। महुखुर्द गांव के सरपंच पुष्पेंद्र शर्मा ने बताया कि मुहखुर्द गांव स्थित कोली मोहल्ले के पास एक गली में झाड़ियों के पास टाइगर बैठा हुआ था।

सुबह सात-साढ़े सात बजे आवाज सुनकर सबसे पहले उगा महावर (45) झाड़ियों की तरफ गईं। वह कुछ समझ पातीं, इससे पहले ही टाइगर उनकी पीठ पर हमला कर दिया। इसके बाद शोर-शराबा हुआ।

महिला को बचाने के लिए सुबह करीब 8 बजे विनोद मीणा (42) एवं बाबूलाल मीणा (48) हाथों में डंडा लेकर टाइगर के नजदीक पहुंचे। टाइगर ने इन पर भी हमला कर दिया। तीनों गंभीर रूप से घायल हो गये।

दौसा जिले के बांदीकुई क्षेत्र में टाइगर के हमले के बाद दहशत का माहौल है।

सरिस्का क्षेत्र का टाइगर दौसा पहुंचा

दौसा जिले के बांदीकुई क्षेत्र में टाइगर के हमले के बाद दहशत का माहौल है। सुबह करीब 9 बजे बैजूपाड़ा थाना पुलिस मौके पर पहुंची और ग्रामीणों को वहां से दूर हटाया। सुबह 9:30 बजे बांदीकुई वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और वीडियो देखकर टाइगर होने की पुष्टि की।

बांदीकुई वन रेंजर दीपक शर्मा ने बताया कि इसकी सूचना सरिस्का वन क्षेत्र को दी है। संभावना है कि यह टाइगर सरिस्का क्षेत्र से यहां पहुंचा है और अब हम इसकी जांच कर रहे हैं। टाइगर को ट्रैंकुलाइज कर सुरक्षित स्थान पर भेजा जाएगा।

उन्होंने बताया- टाइगर को रेस्क्यू करने के लिए वन विभाग की टीमें जुटी है। शाम 3:45 बजे टाइगर सरसों के खेत से निकलकर पलासन नदी की ओर भाग गया। इस दौरान दो गाड़ियों में वन विभाग की टीमों ने उसका पीछा किया, लेकिन उसे ट्रैंकुलाइज नहीं किया जा सका।

2 महीने पहले भी आ चुका है बांदीकुई क्षेत्र में टाइगर

बांदीकुई क्षेत्र में 2 महीने पहले भी एक टाइगर सरिस्का से भटक कर मुही गांव के पास आ गया था। वह दो-तीन दिन तक यहां रहा और फिर सरिस्का लौट गया। वन अधिकारियों के अनुसार, मुही गांव सरिस्का जंगल के पास होने के कारण यहां कई बार टाइगर आ जाते हैं। तीन साल पहले भी ऐसा ही हुआ था।

एक टाइगर गुडा कटला और मुही के पास आया था। एक सप्ताह बाद वापस चला गया था। बुधवार सुबह लगभग 11:45 बजे सरिस्का से वन विभाग की टीम बांदीकुई (दौसा) के महुखुर्द गांव पहुंची। टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश की जा रही है।

सरिस्का से 30 किमी दूर निकला

अलवर DFO राजेंद्र हुड्डा ने बताया- अलवर के सरिस्का के जंगल से निकलकर टाइगर 30 किलोमीटर दूर रैणी के पास देवती का बास प्रधानों का गवाड़ा गांव में मंगलवार रात को ही घुस गया था। टाइगर को देखने के बाद कुत्ते भौंकने लगे। इसके बाद गांव में भी दहशत का माहौल हो गया।

ग्रामीणों ने छत पर चढ़कर टाइगर का वीडियो बनाया था। उस समय टाइगर गुस्से में दहाड़ा भी। इसके बाद टाइगर पास की पहाड़ी से होता हुआ आगे निकला। बुधवार सुबह दौसा के महुखुर्द गांव में टाइगर ने 3 लोगों पर हमला कर दिया।

वन विभाग की टीमें टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश कर रही है। इसी बीच टाइगर एक खेत से निकलकर दूसरे खेत में जा छुपा।

ट्रैंकुलाइज करने के लिए तीन टीमें एक्टिव हुईं

वन विभाग की टीमें टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश कर रही है। इसी बीच टाइगर एक खेत से निकलकर दूसरे खेत में जा छुपा। रेंजर शंकर सिंह ने बताया- वन विभाग की तीन टीमें टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश कर रही हैं।

महुखुर्द गांव के पास एक सरसों के खेत में टाइगर के देखे जाने के बाद खेत को घेर लिया गया है। टाइगर ST 2402 को रेस्क्यू कर सरिस्का ले जाया जायेगा।

रणथंभौर से भी टीम मौके पर पहुंची, कल शुरू होगा रेस्क्यू

रेंजर दीपक शर्मा ने बताया- बुधवार को देर शाम तक टाइगर का रेस्क्यू करने का प्रयास किया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली। अंधेरा हो जाने के कारण अब रेस्क्यू को रोक दिया गया है। रणथंभौर से भी एक टीम आ गई है।

गुरुवार सुबह सरिस्का और रणथंभौर की टीम मिलकर टाइगर को रेस्क्यू करने का प्रयास करेगी। टीम बुधवार रातभर गांव में ही रहेगी। लोगों को घर में रहने की हिदायत दी गई है। टाइगर की लास्ट लोकेशन एक सरसों के खेत में थी।

दोपहर 1:30 सरसों के खेत में ट्रेंकुलाइज करने के दौरान टाइगर ने वनकर्मियों की पिकअप गाड़ी पर हमला कर दिया। जिससे ड्राइवर साइड वाली सीट का कांच टूट गया। इस दौरान गाड़ी में बैठी टीम बाल-बाल बच गई।

दोपहर 1:30 सरसों के खेत में ट्रेंकुलाइज करने के दौरान टाइगर ने वनकर्मियों की पिकअप गाड़ी पर हमला कर दिया। जिससे ड्राइवर साइड वाली सीट का कांच टूट गया। इस दौरान गाड़ी में बैठी टीम बाल-बाल बच गई।

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