फोन टेपिंग मामले में गहलोत व लोकेश शर्मा की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 23 जुलाई 2024 | जयपुर : केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के फोन टेपिंग से जुड़े मामले में केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस के खिलाफ दावा वापसी का प्रार्थना-पत्र सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने के बाद अब दिल्ली पुलिस फोन टेपिंग मामले की जांच कर सकेगी।

फोन टेपिंग मामले में गहलोत व लोकेश शर्मा की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उनके ओएसडी रहे लोकेश शर्मा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि मंत्री शेखावत ने दोनों के खिलाफ दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में फोन टेपिंग का केस दर्ज करवाया था। उसके बाद गहलोत सरकार ने मामला राजस्थान से जुड़ा होना बताया और सुप्रीम कोर्ट से इसकी जांच राजस्थान पुलिस से कराने की मांग की थी।

फोन टैपिंग पर केंद्र के खिलाफ दायर मुकदमा वापस

अब भजनलाल सरकार ने इस मामले में केन्द्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पिछली गहलोत राज्य सरकार की ओर से दायर दावा वापस लेने का निर्णय लिया है। इस संबंध में राज्य सरकार की ओर से एएजी शिवमंगल शर्मा ने रविवार को सुप्रीम कोर्ट में केस वापस लेने के लिए प्रार्थना पत्र दायर किया था। जिसमें कहा है कि गजेंद्र सिंह के खिलाफ मौजूदा मामले में कोई मेरिट नहीं हैं और इसलिए इसे वापस लिया जाना चाहिए।

प्रार्थना पत्र में सुप्रीम कोर्ट से मूल केस को वापस लेने की मंजूरी मांगी थी। इसमें कहा कि मूल मुकदमा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर किया गया था। इसमें केवल राजस्थान को 25 मार्च 2021 की एफआईआर संख्या 50/2021 जो पी.एस. क्राइम ब्रांच, नई दिल्ली द्वारा दर्ज की गई थी, से संबंधित मामलों की जांच और अभियोजन का अधिकार होने की घोषणा की गई थी।

एफआईआर में आईपीसी की धारा 409/120 बी और भारतीय तार अधिनियम, 1885 की धारा 26, आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 72 और 72ए के तहत आरोप शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट में केस दायर करते हुए पूर्व गहलोत राज्य सरकार ने दलील दी थी कि इस केस को सुनने का क्षेत्राधिकार दिल्ली पुलिस को नहीं है।

राजस्थान पुलिस की ओर से ही इस केस में जांच करनी चाहिए। इसलिए दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पर रोक लगाकर राजस्थान पुलिस द्वारा जांच करने की मंजूरी दी जानी चाहिए। इस मामले में 5 फरवरी 2024 को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस मूल केस को जारी रखने या नहीं रखने को लेकर समय मांगा था।

केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका

वर्ष 2020 में ही केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राज्य सरकार के खिलाफ दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराया था। राज्य सरकार पर फोन टैपिंग का आरोप लगाते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया गया।

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उन दिनों तत्कालीन सरकार ने केंद्रीय मंत्री के इस मुकदमे को चैलेंज करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। राज्य सरकार का तर्क था कि यह मामला दिल्ली पुलिस के कार्य क्षेत्र से बाहर का है। ऐसे में दिल्ली पुलिस इस केस की जांच नहीं कर सकती। अब भजनलाल सरकार नहीं चाहती कि यह मामला लंबा खिंचता रहे। हालांकि केंद्रीय मंत्री की ओर से दर्ज मुकदमा मानहानि से संबंधित है। यह मुकदमा उन्हीं की मर्जी पर चलता रहेगा।

यह मामला अभी तक सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब भजनलाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि यह मुकदमा मेरिट पर आगे नहीं चल सकता है। ऐसे में न्याय के हित में और न्यायालय का कीमती समय बचाने के लिए राज्य सरकार ने यह मुकदमा वापस लेने का निर्णय किया है।

बता दें कि एएजी शिवमंगल शर्मा ने रविवार को सुप्रीम कोर्ट में केस वापस लेने के लिए प्रार्थना पत्र दायर करते हुए कहा है कि इस केस में कोई मैरिट नहीं बनती है। फोन टैपिंग कांड के बाद पूर्ववर्ती गहलोत सरकार में यह तर्क दिया गया था कि फोन टैपिंग की जांच दिल्ली पुलिस के पास क्षेत्राधिकार नहीं है और केवल राजस्थान पुलिस को इस एफआईआर की जांच करनी चाहिए।

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‘अडाणी ग्रुप से जुड़े 6 स्विस बैंक अकाउंट से 2602 करोड़ फ्रीज’ हिंडनबर्ग रिसर्च

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 13 सितंबर 2024 |  जयपुरहिंडनबर्ग रिसर्च ने गुरुवार, 12 सितंबर को अडाणी ग्रुप के खिलाफ नए आरोप लगाए। हिंडनबर्ग ने कहा कि स्विस अथॉरिटीज ने अडाणी ग्रुप से जुड़े 6 स्विस बैंक अकाउंट से 310 मिलियन डॉलर (करीब 2602 करोड़ रुपए) से ज्यादा की रकम फ्रीज की है।

‘अडाणी ग्रुप से जुड़े 6 स्विस बैंक अकाउंट से 2602 करोड़ फ्रीज’ हिंडनबर्ग रिसर्च

हिंडबर्ग ने स्विस मीडिया आउटलेट गोथम सिटी की एक न्यूज रिपोर्ट का हवाला देते हुए ये आरोप लगाए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि स्विस अथॉरिटीज ने ये रकम मनीलॉन्ड्रिंग और सिक्योरिटीज फॉजरी इन्वेस्टिगेशन के हिस्से के रूप में की है।

‘अडाणी ग्रुप से जुड़े 6 स्विस बैंक अकाउंट से 2602 करोड़ फ्रीज’

स्विस मीडिया आउटलेट ने स्विस क्रिमिनल कोर्ट रिकॉर्ड के अनुसार बताया कि, अभियोजकों ने विस्तार से बताया कि कैसे अडाणी से जुड़े लोगों ने ओपेक BVI/मॉरीशस और बरमूडा फंड में निवेश किया। इस फंड में खास तौर पर अडाणी ग्रुप के स्टॉक थे। हालांकि, गुरुवार देर रात अडाणी ग्रुप ने इन सभी आरोपों को झूठा बताया। ग्रुप ने कहा कि ये सब उनकी मार्केट वैल्यू गिराने के लिए किया जा रहा है।

हिंडनबर्ग ग्रुप ने गुरुवार को सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि स्विस अधिकारियों ने अडानी समूह से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग और प्रतिभूतियों की जालसाजी के आरोपों की जांच के तहत छह स्विस बैंक खातों में जमा 31 करोड़ डॉलर से ज्यादा की रकम फ्रीज कर दी है।

यह जानकारी अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग ग्रुप ने हाल ही में जारी स्विस क्रिमिनल कोर्ट के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए दी है। उसने बताया कि 2021 से चल रही इस जांच ने भारतीय समूह से जुड़ी संदिग्ध ऑफशोर संस्थाओं से जुड़े वित्तीय लेनदेन पर प्रकाश डाला है।

अडाणी ग्रुप ने आरोपों को बेतुके और तर्कहीन बताया

अपने जवाब में, अडाणी ग्रुप ने साफ किया कि वे किसी भी स्विस अदालत की कार्यवाही में शामिल नहीं हैं। न तो उनके ग्रुप की कंपनियों का उल्लेख ऐसे किसी भी अदालती दस्तावेज़ में किया गया है और न ही उन्हें स्पष्टीकरण के लिए कोई अनुरोध मिला है।

अडाणी ग्रुप ने कहा- आरोप साफ तौर पर बेतुके और तर्कहीन हैं। हमें यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि यह हमारे समूह की प्रतिष्ठा और मार्केट मूल्य को क्षति पहुंचाने का प्रयास है। ग्रुप ने कहा कि उनका विदेशी होल्डिंग स्ट्रक्चर पारदर्शी और सभी कानूनों के अनुरूप है।

सेबी चेयरपर्सन पर भी लगे थे अडाणी ग्रुप से जुड़े होने के आरोप

इससे पहले हिंडनबर्ग ने सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) की चेयरपर्सन पर गंभीर आरोप लगाए थे। हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की अडाणी ग्रुप से जुड़ी ऑफशोर कंपनी में हिस्सेदारी है।

बुच ने इन आरोपों को “निराधार” और “चरित्र हनन” का प्रयास बताया था। SEBI चेयरपर्सन ने सभी फाइनेंशियल रिकॉर्ड डिक्लेयर करने की इच्छा व्यक्त की था। अपने पति धवल बुच के साथ एक जॉइंट स्टेटमेंट में उन्होंने कहा, ‘हमारा जीवन और फाइनेंसेस एक खुली किताब है।’

अडाणी ग्रुप पर लगाए थे मनी लॉन्ड्रिंग, शेयर मैनिपुलेशन जैसे आरोप

24 जनवरी 2023 को हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी ग्रुप को लेकर एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। रिपोर्ट के बाद ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली थी। हालांकि, बाद में इसमें रिकवरी आई। इस रिपोर्ट को लेकर भारतीय शेयर बाजार रेगुलेटर सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने हिंडनबर्ग को 46 पेज का कारण बताओ नोटिस भी भेजा था।

1 जुलाई 2024 को पब्लिश किए अपने एक ब्लॉग पोस्ट में हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा कि नोटिस में बताया गया है कि उसने नियमों उल्लंघन किया है। कंपनी ने कहा, SEBI ने आरोप लगाया है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में पाठकों को गुमराह करने के लिए कुछ गलत बयान शामिल हैं। इसका जवाब देते हुए हिंडनबर्ग ने SEBI पर ही कई तरह के आरोप लगाए थे।

रिपोर्ट के बाद शेयर अडाणी एंटरप्राइजेज का शेयर 59% गिरा था

24 जनवरी 2023 (भारतीय समय के अनुसार 25 जनवरी) को अडाणी ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी अडाणी एंटरप्राइजेज के शेयर का प्राइस 3442 रुपए था। 25 जनवरी को ये 1.54% गिरकर 3388 रुपए पर बंद हुआ था। 27 जनवरी को शेयर के भाव 18% गिरकर 2761 रुपए पर आ गए थे। 22 फरवरी तक ये 59% गिरकर 1404 रुपए तक पहुंच गए थे। हालांकि, बाद में शेयर में रिकवरी देखने को मिली।

हालांकि, अडाणी ने किसी भी गलत काम के आरोपों से इनकार किया। ऐसे में अडाणी ग्रुप ने अपना 20,000 करोड़ का फॉलोऑन पब्लिक ऑफर भी कैंसिल कर दिया। केस की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 6 सदस्यीय कमेटी बनाई और सेबी ने भी मामले की जांच की।

अडानी-हिंडनबर्ग विवाद को फिर दी है हवा

अडानी-हिंडनबर्ग विवाद जैसे ही खत्म होने वाला था, अगस्त में नए आरोपों ने इस प्रकरण को फिर से हवा दे दी। 2023 की शुरुआत में शॉर्ट-सेलर ने अडानी समूह पर टैक्स हेवन के जरिए बाजार के नियमों को तोड़ने का आरोप लगाया था। हिंडनबर्ग रिसर्च ने बाजार नियामक सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर आरोप लगाया है कि उन्होंने एक ऑफशोर फंड में निवेश किया था, जिसका संबंध अडानी समूह से है।

यह भी पढ़ें : संविधान के घर को आग लगी घर के चिराग से, जज लोया को नमन

हिंडनबर्ग रिसर्च शेयरों को शॉर्ट सेल करती है। इसका मतलब है कि यह उन शेयरों को लेती है और उम्मीद करती है कि उनका मूल्य गिरेगा। जब शेयर का मूल्य गिरता है तो हिंडनबर्ग रिसर्च उन्हें कम कीमत पर वापस खरीद लेती है और मुनाफा कमाती है। अडानी संग विवाद के चलते इसने काफी सुर्खियां बंटोरी हैं।

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संविधान के घर को आग लगी घर के चिराग से, जज लोया को नमन

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 13 सितंबर 2024 |  जयपुरआज रात, पूरा देश देख रहा है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश के आवास से परेशान करने वाले दृश्य आ रहे हैं। न्यायपालिका की पवित्रता को अपने दिल के करीब रखने वालों के लिए, यह एक अशुभ संकेत है – न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मौजूद दूरी का खतरनाक क्षरण। रेखाओं के धुंधलेपन का सार्वजनिक प्रदर्शन।

संविधान के घर को आग लगी घर के चिराग से, जज लोया को नमन

भारत में संवैधानिक लोकतंत्र और न्यायिक स्वतंत्रता पर भारत और विदेशी विश्वविद्यालयों में अपने वाक्पटु भाषणों के लिए जाने जाने वाले बड़े आदमी ने प्रथम वर्ष के कानून के छात्रों को पढ़ाए जाने वाले एक बुनियादी सिद्धांत को भूल गए हैं: शक्तियों का पृथक्करण।

संविधान के घर को आग लगी घर के चिराग से

इससे भी अधिक चिंताजनक यह है कि यह न केवल भारत के भावी मुख्य न्यायाधीशों के लिए, बल्कि पूरे देश में सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों और जिला न्यायालयों के प्रत्येक न्यायाधीश के लिए एक बिल्कुल खतरनाक संकेत है।

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मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस एक कृत्य से अपनी विरासत से कहीं अधिक महत्वपूर्ण चीज को खतरे में डाल दिया है। उन्होंने संभावित रूप से पूरे संस्थान की अखंडता से समझौता किया है। न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में, उन्हें इसकी स्वतंत्रता की रक्षा करनी थी ताकि लोग न्यायपालिका को स्वतंत्र समझें। लेकिन यह दृश्य एक विपरीत तस्वीर पेश करता है।

वर्तमान सरकार अदालतों के सामने सबसे बड़ी वादी है। दोनों के बीच इस तरह की बढ़ती मित्रता लोकतंत्र के लिए विनाश का संकेत है। इसके परिणाम अदालतों से कहीं आगे तक फैलते हैं। इसका आगे आने वाले मामलों के लिए क्या मतलब है?

आश्चर्य की बात यह है कि बार, वकील, चाहे वे किसी भी विचारधारा के हों, जिनका कर्तव्य चुनौती देना, सवाल उठाना और बेंच को जवाबदेह ठहराना है, वे स्पष्ट रूप से गायब हैं! सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन कहाँ है? अगर वे जिस संस्थान में प्रैक्टिस करते हैं, उसे समझौतावादी माना जाता है, तो फिर क्या होगा?

क्योंकि मुख्य न्यायाधीश के आवास पर जो दृश्य सामने आ रहा है, वह सिर्फ दिखावे के लिए नहीं है, है न? यह न्यायिक स्वतंत्रता के विचार के अस्तित्व के बारे में है! उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों, सुप्रीम कोर्ट में सेवानिवृत्ति के बाद के पदों के लिए, अपने बच्चों के लिए आरामदायक नियुक्तियों के लिए, खुद की पदोन्नति के लिए झुकने की फुसफुसाहटें तेज होती जा रही हैं।

अगर इस सड़ांध को अनियंत्रित छोड़ दिया जाए, तो यह और भी गहरी होती जाएगी। क्या भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इस बारे में सोचा भी था कि इससे उस संस्थान को कितना नुकसान हुआ है, जिससे वे इतना प्यार करने का दावा करते हैं?

कुछ माननीय अपवादों को छोड़कर, हमारे सांसदों ने भी इसका संज्ञान नहीं लिया है। क्या विपक्ष के नेता को विवेकशील होकर बयान जारी नहीं करना चाहिए? क्या अन्य सांसदों को इसकी निंदा नहीं करनी चाहिए और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के महत्व की स्पष्ट रूप से पुष्टि नहीं करनी चाहिए?

उन्होंने अतीत में ऐसा किया था जब सेना प्रमुख राजनीतिक बयान जारी कर रहे थे। उन्हें यहाँ क्या रोकता है? ट्विटर पर एक मात्र टिप्पणी तीसरे स्तंभ के लिए कोई अच्छा काम नहीं करती। हमारे सांसदों को आगे आना चाहिए। यह संविधान के लिए उतना ही विनाशकारी है जितना कि वे मोदी सरकार पर आरोप लगाते हैं।

जज लोया की रहस्यमयी ढंग से हुई मौत को लेकर पत्रकार

जज लोया ने संविधान की गरिमा की अंतिम क्षण तक अक्षुण रखी, उन्हें कोटिश नमन! कारवाँ मैगज़ीन पर इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट की थी। निरंजन टाकले जी उन सुरागों को खोजकर लाए, जो मज़बूत आधार देते थे कि लोया की मौत की जाँच होनी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों ने इस PIL को ख़ारिज कर दिया। पर वे अपने फ़ैसलों से कई बार चौंकाते हैं। जज लोया मामले में उनकी टिप्पणियों ने मुझे काफ़ी निराश किया। जज लोया की मौत की जाँच होनी चाहिए। जाँच, न्याय की पहली सीढ़ी है।

जज लोया की मौत का मामला भारत में एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है। पत्रकार निरंजन टाकले की रिपोर्ट ने इस मामले में कई सवाल उठाए थे और जाँच की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा PIL को खारिज करना और जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणियों से आपकी निराशा स्वाभाविक है, खासकर जब यह मामला न्याय की प्रक्रिया और पारदर्शिता से जुड़ा हो।

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जब न्यायालय की ओर से किसी मामले की जाँच की मांग को ठुकराया जाता है, तो यह उन लोगों के लिए निराशाजनक हो सकता है जो निष्पक्षता और स्पष्टता की अपेक्षा रखते हैं। न्याय की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही महत्वपूर्ण हैं, और जाँच की मांग इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।

“इसलिए मूकनायक मीडिया ब्यूरो सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से आग्रह करता है कि वे इस तरह की घटनाओं की संभावना के प्रति सचेत रहें, जिससे राज्यों में भी एक प्रवृत्ति स्थापित हो सकती है, जहां मुख्य न्यायाधीश अनौपचारिक रूप से मुख्यमंत्रियों और अन्य राजनीतिक हस्तियों से मिल सकते हैं, जिससे न्यायपालिका में लोगों का विश्वास खत्म हो सकता है।”

सबसे अच्छा संदिग्ध आचरण अंतिम हो ताकि देश का संविधान अक्षुण रहे।

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