इंसानों के लिए सांप से ज्यादा खतरनाक हैं मच्छर

इंसानों के लिए सांप से ज्यादा खतरनाक हैं मच्छर

मच्छर को इंसानों के लिए सबसे खतरनाक जीव कहा जाता है। यह कहना ठीक भी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, पूरी दुनिया में हर साल सांप के काटने से लगभग 1 लाख 40 हजार मौतें होती हैं, जबकि हर साल मच्छर से फैलने वाली बीमारियों से 10 लाख से अधिक लोग जान गंवा देते हैं।

इंसानों के लिए सांप से ज्यादा खतरनाक हैं मच्छर

यह बात आज भले ही छोटी लग रही हो पर उस समय विज्ञान और मेडिसिन जगत के लिए यह पता लगाना बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इसीलिए इस दिन को इतिहास में दर्ज किया गया। तब से हर साल 20 अगस्त को विश्व मच्छर दिवस (वर्ल्ड मॉस्कीटो डे) के रूप में मनाया जाता है। विश्व मच्छर दिवस के बहाने हर साल लोगों को मच्छर जनित बीमारियों से उत्पन्न खतरों से निपटने के लिए जागरूक किया जाता है।

जब हम घातक जानवरों के बारे में सोचते हैं, तो हम शार्क या साँपों के बारे में सोचते हैं। लेकिन दुनिया का सबसे घातक जानवर, हर साल कितने लोगों को मारता है, इस मामले में मच्छर सबसे घातक है। हालाँकि अनुमान अलग-अलग हैं, कुछ स्रोतों का मानना ​​है कि मच्छर हर साल1 मिलियन लोगों की मौत के लिए ज़िम्मेदार हैं , जबकि साँप लगभग 100,000 लोगों को मारते हैं और शार्क सिर्फ़ 10 लोगों को (वैसे मच्छर के बाद दूसरे नंबर पर इंसान हैं, जो हर साल 400,000 लोगों की मौत का कारण बनते हैं)।

सच है, यह छोटा सा कीट अपना काम अकेले नहीं करता। जो चीज इसे इतना खतरनाक बनाती है वह है वायरस या अन्य परजीवियों को संचारित करने की इसकी क्षमता जो विनाशकारी बीमारियों का कारण बनती है।

हर साल, अकेले मलेरिया , जो एनोफिलीज मच्छर द्वारा संचारित होता है, 600,000 लोगों (मुख्य रूप से बच्चों) को मारता है और अन्य 200 मिलियन को कई दिनों के लिए अक्षम कर देता है। अन्य मच्छर जनित बीमारियों में डेंगू शामिल है , जो दुनिया भर में प्रति वर्ष 100 से 400 मिलियन मामलों का कारण बनता है, पीला बुखार , जिसमें उच्च मृत्यु दर है, या जापानी इंसेफेलाइटिस , जो प्रति वर्ष 10,000 से अधिक मौतों का कारण बनता है, ज्यादातर एशिया में। 

जीका वायरस को भी न भूलें , जिसका हाल ही में संक्रमित माताओं से पैदा हुए बच्चों पर विनाशकारी और दीर्घकालिक न्यूरोलॉजिकल प्रभाव बताया गया है।

सबसे घातक मच्छर प्रजातियाँ 

मच्छरों की 2,500 से अधिक प्रजातियाँ हैं , और वे अंटार्कटिका को छोड़कर दुनिया के हर क्षेत्र में पाए जाते हैं। वास्तव में, मच्छर नए वातावरण और हमारे द्वारा उनके खिलाफ किए जाने वाले किसी भी हस्तक्षेप के अनुकूल होने में बहुत अच्छे हैं।

उदाहरण के लिए, एडीज एजिप्टी (पीले बुखार, जीका, डेंगू आदि का वेक्टर) ने शहरी वातावरण में अविश्वसनीय रूप से अच्छी तरह से अनुकूलन किया है: यह केवल मनुष्यों को खाता है और बाहरी और आंतरिक कंटेनरों की एक विस्तृत श्रृंखला में अंडे दे सकता है।

एनोफिलीज सहित कई मच्छर प्रजातियों ने व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले कई कीटनाशकों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित किया है और अपने भोजन की आदतों को बदल दिया है (वे अब बाहर और पहले भोजन करते हैं) ताकि मच्छरदानी और कीटनाशक-छिड़काव वाले घरों से बचें। हाल के वर्षों में, ‘ एनोफिलीज स्टेफेंसी ‘

मच्छरों से लड़ने के उपाय

मच्छरों से निपटना मुश्किल है। वे लगातार विकसित हो रहे हैं और उनसे लड़ने के लिए हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले औजारों से बचना सीख रहे हैं। लगातार खून चूसने वाले इन कीड़ों के खिलाफ चल रही इस लड़ाई में, ISGlobal में किए गए शोध से मच्छरों पर नियंत्रण की अधिक प्रभावी रणनीतियों की उम्मीद जगी है।

आईएसग्लोबल का मलेरिया अनुसंधान पर काम करने का एक लंबा इतिहास है और वर्तमान में इसमें ‘ मलेरिया इम्यूनोलॉजी ग्रुप ‘, ‘ मलेरिया एपिजेनेटिक्स लैब ‘, ‘ नैनोमलेरिया ग्रुप ‘, ‘ प्लाज्मोडियम ग्लाइकोबायोलॉजी लैब ‘, ‘ प्लाज्मोडियम विवैक्स और एक्सपोज़ोम रिसर्च ग्रुप ‘, ‘ मलेरिया फिजियोपैथोलॉजी और जीनोमिक्स ग्रुप ‘ सहित कई समूह शामिल हैं।

शोधकर्ता नई वेक्टर नियंत्रण रणनीतियों की भी खोज कर रहे हैं जो मौजूदा उपकरणों का पूरक हो सकती हैं और कीटनाशक प्रतिरोध और मलेरिया के अवशिष्ट संचरण से संबंधित चिंताजनक घटनाक्रमों पर काबू पाने में हमारी मदद कर सकती हैं।

मच्छर कुछ लोगों की ओर दूसरों की अपेक्षा अधिक आकर्षित होते हैं

क्या आपको कभी ऐसा लगा है कि मच्छरों को आपके खून से खास लगाव है? यह सच हो सकता है! मच्छर अक्सर शरीर के तापमान और साँस में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा जैसे कारकों के कारण दूसरों की तुलना में कुछ खास व्यक्तियों की ओर ज़्यादा आकर्षित होते हैं। 

गर्भवती महिलाएँ , खास तौर पर, मच्छरों का पसंदीदा लक्ष्य होती हैं, जिसके कारण गर्भावस्था में गंभीर डेंगू और मलेरिया के कई मामले सामने आते हैं। गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों दोनों के जीवन को ख़तरा पैदा करने वाली बाद की चुनौती से निपटने के लिए, ISGlobal के शोधकर्ता नए कीमोप्रिवेंशन टूल का अध्ययन कर रहे हैं और गर्भावस्था में मलेरिया को रोकने वाले टूल के कवरेज को बेहतर बनाने के सर्वोत्तम तरीकों की खोज कर रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन और मच्छर

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि मच्छरों की आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में पहले की गई भविष्यवाणियाँ अब वास्तविकता के रूप में सामने आ रही हैं। 2000 के बाद से, डेंगू के मामलों में आठ गुना वृद्धि के साथ आसमान छूती हुई वृद्धि हुई है। अब हम इसे यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका और अफ्रीका के नए हिस्सों में तेज़ी से फैलते हुए देख सकते हैं । 

जो देश में मलेरिया के बड़े पैमाने पर परीक्षण कर रहे थे, लोगों के स्वास्थ्य पर इस प्राकृतिक आपदा के तत्काल प्रभावों के गवाह थे, जिसका सबूत चक्रवात के बाद हैजा और मलेरिया के मामलों में चरम पर होना था ।

जैविक, सामाजिक-राजनीतिक और पर्यावरणीय खतरों के इस संदर्भ में , यह पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि मच्छर जनित रोगों के लिए निगरानी बढ़ाने के लिए स्थानिक देशों को सहायता प्रदान की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि इन रोगों से लड़ने के लिए नए उपकरणों के लिए अनुसंधान एवं विकास पाइपलाइन अच्छी तरह से भरी हुई है।

इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों की। साथ ही जानेंगे कि-

  • मच्छरों से फैलने वाली कौन सी बीमारी कितनी खतरनाक है?
  • कौन सा मच्छर किस बीमारी के लिए जिम्मेदार है?
  • मच्छर हर दिन इतने ताकतवर कैसे होते जा रहे हैं?

नागपुर में चिकनगुनिया और डेंगू के कारण हेल्थ इमरजेंसी

भारत के महाराष्ट्र का एक बड़ा शहर है नागपुर। यहां चिकनगुनिया और डेंगू के मामलों में तेजी से वृद्धि के कारण स्थानीय हेल्थ केयर सिस्टम गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है। मच्छर जनित बीमारियों में खतरनाक वृद्धि के कारण नगर निगम ने सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की है, जिससे इसके प्रकोप को रोकने और सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए एक त्वरित और व्यापक प्लान बनाया जा सके।

कई जानलेवा बीमारियों का कारण है मच्छर

मच्छर ऐसे जीव हैं, जो एक नहीं बल्कि कई बीमारियां फैला सकते हैं। इसमें बड़ी मुश्किल ये है कि हम इन्हें सीधे देखकर पहचान नहीं कर सकते हैं कि कौन सा मच्छर कौन सी बीमारी लेकर आया है। यही कारण है कि हर साल सबको जागरुक करने के लिए विश्व मच्छर दिवस मनाया जाता है। मच्छर कई तरह के होते हैं। ये अलग-अलग बीमारियों की वजह बन सकते हैं। 

पूरी दुनिया में मच्छर के काटने से फैलने वाली 10 से अधिक बीमारियां हैं। हम इनमें से 5 सबसे अधिक फैलने वाली और इंसानों को नुकसान पहुंचाने वाली बीमारियों के बारे में बुनियादी बातें जान लेते हैं।

मलेरिया

  • मलेरिया एक खतरनाक बीमारी है। इससे बड़े स्तर पर नुकसान भी होता है। इस बीमारी को फैलाने के लिए मादा एनाफिलीज मच्छर जिम्मेदार है।
  • इसके कारण बुखार, सिर दर्द और ठंड लगने जैसे लक्षण सामने आते हैं। इसके लक्षण आमतौर पर संक्रमण के 10 से 15 दिन बाद शुरू होते हैं।
  • पूरी दुनिया में हर साल मलेरिया के लगभग 25 करोड़ मामले दर्ज होते है।

मलेरिया कुल 5 तरह का होता है। कुछ प्रकार के मलेरिया घातक हो सकते हैं।

1. प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम

2. प्लाज्मोडियम वीवेक्स

3. प्लाज्मोडियम ओवेल मलेरिया

4. प्लाज्मोडियम मलेरिया

5. प्लाज्मोडियम नोलेसी

मलेरिया के इलाज के लिए एंटी मलेरिया दवाएं उपलब्ध हैं। अब कुछ जगहों पर इसके इलाज लिए टीके का भी सफल प्रयोग किया जा रहा है।

वेस्ट नाइल वायरस

  • सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, यह बीमारी मच्छरों के काटने से फैलती है।
  • आमतौर पर इसमें फीवर के साथ उल्टी, दस्त, ऐंठन और सिर दर्द की शिकायत होती है।
  • वेस्ट नाइल फीवर की सबसे खतरनाक बात ये है कि इसमें 10 में से 6 मामलों में लक्षण नजर नहीं आते हैं।
  • कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग, हाल ही में किसी बीमारी या ऑपरेशन से गुजरे लोग और 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को इससे ज्यादा खतरा होता है।
  • चूंकि इस बीमारी से पीड़ित 80% लोगों में कोई लक्षण नहीं विकसित होते हैं, इसलिए इसके सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

डेंगू

  • यह वायरल संक्रमण 100 देशों में एंडेमिक (ऐसी बीमारी जो स्थानीय स्तर पर तेजी से फैल रही है) का कारण बनता है।
  • इस बीमारी को फैलाने वाले एडीज एजिप्टी मच्छर हर साल दुनिया भर में 39 करोड़ से अधिक लोगों को संक्रमित करते हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेंगू आमतौर पर हल्की बीमारी का कारण बनता है और इसके ट्रीटमेंट में लक्षणों को कम करने की कोशिश की जाती है। हालांकि गंभीर मामलों में डेंगू को कभी-कभी ‘हड्डी तोड़ बुखार’ कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह तेज सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, तेज बुखार, मतली, थकान, गंभीर पेट दर्द, उल्टी और कभी-कभी मृत्यु का भी कारण बन सकता है।
  • आमतौर पर डेंगू के संक्रमण की दर एशिया और अमेरिका के देशों में सबसे अधिक है। बीते कुछ सालों में यूरोप सहित नए क्षेत्रों में भी यह फैल रहा है।
  • डेंगू फैलाने के लिए जिम्मेदार एडीज इजिप्टी मच्छरों को तिलचट्टा भी कहा जाता है।

चिकनगुनिया

  • करीब 60 साल पहले 1963 में चिकनगुनिया का पहला मामला भारत में सामने आया। हालांकि यह पहली बार चिंता का विषय साल 2006 में बना, जब देश में इसके मामले तेजी से बढ़े।
  • इसे बैक ब्रेकिंग फीवर (Back Breaking Fever) के नाम से भी जाना जाता है।
  • चिकनगुनिया के लिए एडीज अल्बोपिक्टस मच्छर जिम्मेदार है, जिन्हें एशियन टाइगर मच्छर भी कहा जाता है। डेंगू के लिए जिम्मेदार एडीज इजिप्टी मच्छर भी इसे फैला सकते हैं।
  • इन मच्छरों ने पिछले 30 सालों में ही अपना भौगोलिक विस्तार किया है। इसका संक्रमण अब तक 110 से अधिक देशों में फैल चुका है।
  • इसके इंफेक्शन के शुरूआती दो हफ्तों में 92% मरीजों को जोड़ों में दर्द, 91% को मांसपेशियों में दर्द, 92% को सिर दर्द और 56% मरीजों को सुबह के समय शरीर में अकड़न महसूस होती है।
  • अभी तक चिकनगुनिया का कोई सटीक इलाज उपलब्ध नहीं है। इसलिए एंटीवायरल दवाओं की मदद से लक्षणों को कम करने के लिए इलाज किया जाता है। इसके टीके विकसित करने पर काम चल रहा है।

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जीका वायरस

  • जीका वायरस संक्रमित एडीज मच्छरों से फैलने वाली बीमारी है। ये मच्छर आमतौर पर भारत और अफ्रीकी देशों की तरह थोड़े गर्म इलाकों में होते हैं।
  • इस बीमारी के साथ बड़ी मुश्किल यह है कि ज्यादातर संक्रमित लोगों को पता नहीं चलता है कि वे जीका वायरस से संक्रमित हैं। असल में जीका वायरस के लक्षण बहुत हल्के होते हैं। इसके बावजूद यह गर्भवती महिलाओं को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।
  • इससे गर्भ में पल रहे बच्चे मानसिक विकास बाधित हो सकता है और दृष्टि संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, जीका वायरस से संक्रमित केवल 5 में से 1 व्यक्ति में ही लक्षण दिखाई देते हैं। इसके लक्षण इतने कॉमन हैं कि बीमारी का अंदाजा लगा पाना मुश्किल हो जाता है।
  • जीका वायरस के इलाज के लिए कोई खास दवा नहीं है। बुखार और दर्द से जुड़ी कुछ दवाएं देकर इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है। इसका सबसे अच्छा इलाज बचाव ही है।

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एड्स इंजेक्शन HIV इन्फेक्शन रोकने में 96% तक कारगर, Kiss से हो सकता है HIV एड्स

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 11 दिसंबर 2024 | जयपुर : HIV (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) एक बेहद खतरनाक वायरस है। काफी समय से डॉक्टर और वैज्ञानिक इसका इलाज ढूंढ रहे हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने इस मामले में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने HIV इन्फेक्शन को रोकने वाला एक इंजेक्शन बनाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह इंजेक्शन HIV इन्फेक्शन रोकने में 96% तक कारगर है।

एड्स इंजेक्शन HIV इन्फेक्शन रोकने में 96% तक कारगर, Kiss से हो सकता है HIV एड्स

एंटी HIV इंजेक्शन
एड्स इंजेक्शन HIV इन्फेक्शन रोकने में 96% तक कारगर, Kiss से हो सकता है HIV एड्स

इस इंजेक्शन का नाम लेनकापाविर (Lenacapavir) है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक साल में इस वैक्सीन की दो डोज लेने से व्यक्ति HIV इन्फेक्शन के खतरे से पूरी तरह सुरक्षित रहेगा। अमेरिकन बायोफार्मास्युटिकल कंपनी गलियड (Gilead) द्वारा जारी और न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में पब्लिश डेटा के मुताबिक, लेनकापाविर टीका फेज-3 ट्रायल के दौरान HIV इन्फेक्शन को रोकने में 100% तक प्रभावी था। दक्षिण अफ्रीका और युगांडा की 5000 महिलाओं पर इस टीके का सफल परीक्षण किया गया।

इंडिया HIV एस्टिमेशन रिपोर्ट, 2023 के मुताबिक, भारत में 25 लाख से अधिक लोग HIV से पीड़ित हैं। हर साल करीब 66,400 लोग इसकी चपेट में आते हैं। पूरी दुनिया की बात करें तो वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, साल 2023 में करीब 4 करोड़ लोग HIV से पीड़ित थे। वहीं इस साल करीब 6,30,000 लोगों की इससे मौत हुई।

तो आज रिसर्च में हम HIV के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • HIV क्या है?
  • ये कैसे फैलता है?
  • इससे बचने के क्या उपाय हैं?

HIV क्या है?

HIV एक ऐसा वायरस है, जो बॉडी के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है। ये शरीर की व्हाइट ब्लड सेल्स को टारगेट करता है, जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। इसके कारण टीबी, सीवियर इन्फेक्शन और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अगर HIV का सही समय पर इलाज न किया जाए तो यह एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (AIDS) का कारण बन सकता है।

HIV और AIDS में क्या अंतर है?

HIV वायरस इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं को संक्रमित करके उसे धीरे-धीरे कमजोर करता है। इससे किसी भी तरह की बीमारी से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। वहीं एड्स एक मेडिकल कंडीशन है, जिसका प्राइमरी कारण HIV इन्फेक्शन है।

इन्फेक्शन होने पर अगर समय पर पता न चले और इलाज न मिले तो इम्यूनिटी कमजोर होती जाती है और एड्स में बदल जाती है। वहीं अगर सही समय पर HIV का इलाज शुरू कर दिया जाए तो एड्स से बचा जा सकता है। इसलिए समय रहते HIV इन्फेक्शन का पता लगाना बेहद जरूरी है।

HIV किन कारणों से फैलता है?

HIV आमतौर पर संक्रमित व्यक्ति के बॉडी फ्लूइड यानी ब्लड, ब्रेस्ट मिल्क और स्पर्म के संपर्क से फैलता है। ये संक्रमित प्रेग्नेंट महिलाओं के जरिए बच्चे में फैल सकता है। इसके फैलने केे कई अन्य कारण भी हैं। इसे नीचे ग्राफिक से समझिए-

HIV का पता कैसे लगाया जा सकता है?

दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीटयूट में इंटरनल मेडिसिन और इन्फेक्शियस डिजीज कंसल्टेंट डॉ. अंकित बंसल बताते हैं कि किसी को देखकर ये नहीं बताया जा सकता कि उसे HIV है या नहीं। आमतौर पर HIV इन्फेक्शन के शुरुआती दिनों में फ्लू जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

कई बार HIV से संक्रमित होने के बावजूद व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं दिखते। इसका पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट कराना ही एकमात्र तरीका है। इसलिए लंबे समय तक बीमार रहने या फ्लू के लक्षण दिखने पर भी व्यक्ति को HIV टेस्ट करवाना चाहिए।

HIV से कैसे बचें?

HIV इन्फेक्शन से बचने के कई उपाय हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है, सुरक्षित यौन संबंध बनाना और नीडल, सीरिंज या अन्य इंजेक्शन लगाने वाले उपकरण साझा न करना। इसके अलावा और कौन से उपाय हैं, इसे नीचे ग्राफिक से समझिए-

क्या HIV पूरी तरह ठीक हो सकता है?

डॉ. अंकित बंसल बताते हैं कि अभी तक HIV का कोई परफेक्ट इलाज नहीं है। हालांकि इसके कुछ ट्रीटमेंट्स हैं। इनसे HIV से शरीर को होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। HIV ट्रीटमेंट दूसरों को संक्रमित होने से बचाता है और संक्रमित व्यक्ति को भी स्वस्थ रहने में मदद करता है।

HIV पॉजिटिव होने पर एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) दी जाती है। हालांकि लेनकापाविर इंजेक्शन के सफल परीक्षण के बाद पूरी दुनिया में उम्मीद जगी है कि जल्द ही HIV का सटीक इलाज किया जा सकेगा।

क्या HIV छुआछूत से फैलता है?

डॉ. अंकित बंसल बताते हैं कि HIV कोई छुआछूत का वायरस नहीं है। इसलिए HIV संक्रमित व्यक्तियों से दूरी बनाने के बजाय उनके प्रति सहानुभूति और सपोर्ट दिखाना चाहिए। नीचे पॉइंटर्स से समझिए किन चीजों से HIV का खतरा नहीं होता है।

  • संक्रमित व्यक्ति को गले लगाने से।
  • एक साथ खाना खाने से।
  • एक ही कमरे में रहने से।
  • पब्लिक टॉयलेट या स्विमिंग पूल के इस्तेमाल से।
  • बर्तन या कपड़े शेयर करने से।
  • मच्छरों के काटने से।
  • संक्रमित व्यक्ति को ब्लड देने से।
  • आंसू या पसीने से।

क्या किस करने से HIV हो सकता है?

डॉ. अंकित बंसल बताते हैं HIV किस करने से नहीं फैलता। हालांकि अगर संक्रमित व्यक्ति के मुंह में खुले घाव हैं या मसूड़ों से खून आता है तो इन्फेक्शन हो सकता है।

क्या HIV पॉजिटिव व्यक्ति शारीरिक संबंध बना सकता है?

बहुत से लोग सोचते हैं कि HIV पॉजिटिव होने के बाद सेक्स नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह सच नहीं है। HIV पॉजिटिव व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की तरह ही शारीरिक संबंध बना सकता है। हालांकि इस दौरान इन्फेक्शन को रोकने के लिए प्रोटेक्शन का इस्तेमाल करना जरूरी है।

HIV पॉजिटिव होने पर अपनी केयर कैसे करें?

HIV पॉजिटिव होने पर घबराएं नहीं। खुद को मानसिक रूप से स्वस्थ रखें। इस बात का ध्यान रखें कि HIV पॉजिटिव होने के बावजूद खुशहाल जीवन जिया जा सकता है। इसके लिए निर्धारित समय पर अपनी दवाएं और समय-समय पर डॉक्टर की सलाह लेते रहें।

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आदिवासी इलाकों में फैली सिकल सेल एनीमिया खतरनाक बीमारी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 अगस्त 2024 | जयपुर : गंभीर आनुवांशिक बीमारी सिकल सेल एनीमिया ने राजस्थान के आदिवासी इलाकों को चपेट में ले रखा है। बांसवाड़ा जिले में इस रोग से प्रभावित (पॉजिटिव) लोगों की संख्या 692 पहुंच चुकी है। इसमें सभी उम्र के लोग शामिल है।

आदिवासी इलाकों में फैली सिकल सेल एनीमिया खतरनाक बीमारी

बांसवाड़ा के डिप्टी सीएमएचओ डॉ. राहुल डिंडोर ने बताया – बांसवाड़ा में अब तक 9 लाख 57 हजार लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है, इनमें 692 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं। चिकित्सा विभाग उनकी लगातार मॉनिटिरिंग कर रहा है।

आदिवासी इलाकों में फैली खतरनाक बीमारी

साथ ही जागरूक किया जा रहा है कि जिन्हें यह बीमारी नहीं है, वे पॉजिटिव पार्टनर से शादी न करें। ताकि उनके बच्चों में यह बीमारी न पहुंचे। शादी करने से पहले वे पार्टनर की स्क्रीनिंग कराएं। विभाग की ओर से पॉजिटिव पाए गए मरीजों को लगातार इलाज दिया जा रहा है।

क्या है सिकल सेल एनिमिया

सिकल सेल एनिमिया (Sickle Cell Anemia) जिसे Sickle Cell Disease नाम से भी जाना जाता है, एक अनुवांशिक रोग हैं। इस रोग में शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का आकार Sickle यानि दरांती या फिर केले (अर्धचंद्राकार) के आकार के समान हो जाता हैं। सामान्य लाल रक्त कोशिकाओं का आकार गोलाकार होता है। भारत में आदिवासी समाज में यह रोग ज्यादा दिखने को मिलता हैं।

सामान्यतः Red Blood Cells या लाल रक्त कोशिका गोलाकार होने से रक्तवाहिनी में अच्छे से घूमती है और पुरे शरीर को ऑक्सीजन की पूर्ति करती हैं। लाल रक्त कोशिकाओं में हिमोग्लोबिन होता है जो की ऑक्सीजन का वहन (carrier) करता हैं। Sickle Cell में यह हीमोग्लोबिन कम रहता है जिससे शरीर को पर्याप्त प्राणवायु (Oxygen) नहीं मिल पाता हैं।

सिकल सेल रोग वाले रोगियों के लिए एसीआईपी द्वारा अनुशंसित टीकाकरण की विशिष्ट अनुसूची में हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी (एचआईबी) वैक्सीन, न्यूमोकॉकल वैक्सीन (पीसीवी7, पीसीवी13, पीपीएसवी23), और सीरोग्रुप ए, सी, डब्ल्यू, और वाई (मेनएसीडब्ल्यूवाई), और सीरोग्रुप बी (मेनबी) के लिए मेनिंगोकॉकल टीके शामिल हैं।

रेड ब्लड सेल कम हो जाते हैं, कई रोग हो जाते हैं

यह एक बीमारी रेड ब्लड डिसऑर्डर से जुड़ी है। यह खून में मौजूद हीमोग्लोबिन को बुरी तरह प्रभावित करती है। ऐसे में शरीर में रेड ब्लड सेल की कमी हो जाती है। शरीर के अंगों तक ऑक्सीजन ठीक से नहीं पहुंच पाती। तेज दर्द होने लगता है।

हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द रहना, हाथ पैरों में सूजन, थकान, कमजोरी, पीलापन, किडनी रोग, बच्चों में कुपोषण, आंखों से जुड़ी समस्याएं और इंफेक्शन जैसे लक्षण पैदा हो जाते हैं। माता-पिता में से कोई एक सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित है तो बच्चों में यह बीमारी आ सकती है।

बांसवाड़ा के सज्जनगढ़ इलाके में इस बीमारी का स्तर सबसे गंभीर है। इस रोग से पीड़ित महिला की उम्र 48 और पुरुष की 42 साल तक सीमित हो जाने का खतरा होता है।

जोधपुर की डीएमआरसी (डिजर्ट मेडिसिन रिसर्च सेंटर) ने इस इलाके में रिसर्च किया तो यह जानकारी सामने आई। इसके बाद सरकार ने सैंपलिंग कराई गई। बांसवाड़ा में अब तक की गई सैंपलिंग में सबसे ज्यादा 200 पॉजिटिव कुशलगढ़ में पाए गए। कुशलगढ़-सज्जनगढ़ आदिवासी इलाके हैं।

बीमारी का शिकार होने वालों में महिलाएं ज्यादा हैं। यहां 548 पॉजिटिव मरीजों की एक लिस्ट सामने आई, जिसमें महिलाओं की संख्या 302, जबकि पुरुषों की संख्या 246 है। सबसे ज्यादा 21 साल तक के युवा बीमारी की चपेट में आए हैं। बांसवाड़ा जिले इस रोग से प्रभावित (पॉजिटिव) लोगों की संख्या 692 है।

बांसवाड़ा जिले इस रोग से प्रभावित (पॉजिटिव) लोगों की संख्या 692 है।

मूकनायक मीडिया ब्यूरो टीम ने प्रभावित इलाकों का दौरा किया, लोगों से बात की …

केस 1- गांव में महिला हर 2-3 महीने में बीमार
बांसवाड़ शहर से 12 किमी दूर झूपेल गांव में रहने वाली एक 40 साल की महिला से बात की। महिला ने बताया कि उसे मार्च में ही पता चला कि वह कई साल से इस बीमारी से पीड़ित है। वह हर 2-3 महीने में बीमार पड़ जाती है।

उसकी स्क्रीनिंग मार्च महीने में की गई थी। गांव की पीएचसी में आई सिकल सेल एनीमिया टीम ने उसका ब्लड टेस्ट किया तो वह पॉजिटिव पाई गई। अब मेडिकल डिपार्टमेंट समय-समय पर उसकी मॉनिटरिंग कर रहा है।

केस 2- युवती में खून की कमी
इलाके के गनाऊ गांव में युवती से बात की तो उसने बताया कि खून की कमी है। मार्च महीने में वह जांच के लिए अस्पताल गई थी, जहां उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। हालांकि उसे इससे अभी तक कोई गंभीर तकलीफ नहीं हुई है। वह घर का काम काज कर पा रही है और विभाग से मिली दवाइयां ले रही है।

केस 3- एक ही परिवार में मां सहित 6 पॉजिटिव
बांसवाड़ा शहर से 32 किमी दूर डूंगरपुर रोड पर बजाखरा गांव पहुंचे। यहां एक ही घर में 6 लोग सिकल सेल एनीमिया पॉजिटिव थे। पूछताछ की तो बताया कि दो महीने पहले गांव में आई मेडिकल टीम ने घर-घर जांच की थी। अधिकतर पॉजिटिव की उम्र 21 साल से कम है। इस रोग में कम उम्र में ही गंभीर बीमारियां हो जाती हैं और औसत उम्र कम हो जाती है।

एक परिवार में पति-पत्नी और उनके 7 बच्चों का ब्लड सैंपल लिया। इसमें मां और 5 बच्चे (4 बेटियां और 3 साल का बेटा) पॉजिटिव हैं। अस्पताल प्रबंधन से रिपोर्ट के बारे में पूछा तो बताया कि इनमें किसी के कोई लक्षण नहीं है। सब सामान्य है। खून की कमी सभी में है। 

सिकल सेल एनिमिया का क्या लक्षण हैं ? (Sickle Cell Anemia symptoms)

Sickle Cell Anemia के लक्षण इस प्रकार हैं :
1. खून की कमी : सामान्य लाल रक्त पेशी की तुलना Sickle cell की उम्र केवल 10 से 20 दिन तक ही है और उसके बाद यह पेशी टूट जाती है जिससे हीमोग्लोबिन कम हो जाता और शरीर में खून की कमी रहती हैं।
2. बदनदर्द : Sickle Cell की समस्या से पीड़ित लोगों को शरीर की किसी भी हिस्से में तीव्र दर्द की समस्या होती हैं। शरीर के जिस अंग को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलता है वह पीड़ा अधिक होती हैं। बदन दर्द इतना अधिक होता है की पीड़ित को कई बार दवाखाने में दाखिल होना पड़ता हैं।
3. पीलिया के लक्षण : खून की कमी और हीमोग्लोबिन के बहाव के कारण पीड़ित के आँख और त्वचा में पीलापन नजर आता हैं। ऐसा लगता है जैसे पीड़ित को पीलिया या jaundice हो गया हैं।
4. हाथ और पैर में सूजन : सिकल सेल के कारण नसे अवरोध होने से हाथ और पैर में सूजन आ जाती हैं।
5. संक्रमण : सिकल सेल के कारण शरीर की रोगप्रतिकार शक्ति कमजोर पड़ जाती है जिससे रोगी को बार-बार बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण हो जाता है जिससे पीड़ित बीमार पड़ जाता हैं।
6. कमजोर विकास : सिकल सेल से पीड़ित बच्चो का विकास धीरे-धीरे होता हैं।
7. कमजोर दृष्टी : सिकल सेल के कारण नजर भी कमजोर हो जाती हैं।

अधिकतर पॉजिटिव की उम्र 21 साल से कम है। इस रोग में कम उम्र में ही गंभीर बीमारियां हो जाती हैं और औसत उम्र कम हो जाती है।

चिकित्सा विभाग की अपील- पॉजिटिव मरीज आपस में शादी न करें

बांसवाड़ा में 9 लाख 56 हजार से ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग की गई है। इस रोग की हिस्ट्री वाले 3.58 लाख लोगों को कार्ड इश्यू किए गए हैं। इनमें से 2 लाख 63 हजार 430 लोगों के पास कार्ड पहुंच गया है। बाकी लोगों तक जल्द कार्ड पहुंच जाएगा। विभाग का टारगेट जिले के ‎11 लाख लोगों की स्क्रीनिंग करना है।

जांच के लिए ‎जिले को 9 लाख 56 हजार‎ 275 टेस्ट किट मिले थे। स्क्रीनिंग में 692 ‎पॉजिटिव और 2452 कैरियर मिले। कैरियर वे लोग हैं, जिनके माता या पिता में से एक या दोनों पॉजिटिव रहे हैं। ऐसे लोगों में बीमारी होने का खतरा है।

पॉजिटिव का आंकड़ा 692 तक पहुंचना खतरनाक संकेत है। हेल्थ डिपार्टमेंट ने तय किया है कि पॉजिटिव रोगियों को पाबंद किया जाएगा कि पीड़ित लोग आपस में शादी न करें।

राज्य सरकार शादी नहीं करने का सुझाव देकर इतिश्री कर रही है जबकि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि रोगनिरोधी हस्तक्षेप सिकल सेल रोग वाले रोगियों में संक्रमण और मृत्यु दर के जोखिम को कम करते हैं, जो अनुशंसित टीकाकरण कार्यक्रम का पालन करने के महत्व को प्रमाणित करता है।

उपलब्ध साक्ष्यों के बावजूद, इन हस्तक्षेपों के पालन की दरें कम हैं, और इन रोगियों के बीच खराब परिणामों को रोकने के लिए संभावित बाधाओं की पहचान की जानी चाहिए और उनका समाधान किया जाना चाहिए।

इस अध्ययन का प्राथमिक उद्देश्य हमारे संस्थान में सिकल सेल रोग वाले बच्चों के लिए टीकाकरण पालन का आकलन करना है। दूसरा उद्देश्य प्रदाताओं द्वारा केंटकी टीकाकरण रजिस्ट्री (KYIR) के उपयोग का निर्धारण करना है।

रक्त विकार क्लिनिक, अस्पताल प्रणाली, KYIR से इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड की समीक्षा करके और प्रत्येक रोगी के प्राथमिक देखभाल चिकित्सक से रिकॉर्ड का अनुरोध करके टीकाकरण रिकॉर्ड प्राप्त किये जावे।

बांसवाड़ा में 9 लाख 56 हजार से ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग की गई है।

बांसवाड़ा में 9 लाख 56 हजार से ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग की गई है। शादी करने ‎वाले दोनों पॉजिटिव से पैदा होने वाला बच्चा भी 100‎ फीसदी पॉजिटिव ही होगा। दोनों में से एक पॉजिटिव हुआ तो बच्चे के पॉजिटिव होने के आसार 50 फीसदी होंगे।

वैक्सीन की कमी से सरकार बेखबर, फ्री सप्लाई में केवल दो वैक्सीन हुई मंजूर

डिप्टी सीएमएचओ डॉ. राहुल डिंडोर ने बताया- सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने फ्री दवा सप्लाई में दो वैक्सीन मंजूर कर ली है। ये वैक्सीन ‎रिस्क फैक्टर 50% तक कम कर देती है। ये वैक्सीन न्यूमोकोल और ‎मैनिंगोकोल है।

बाजार में इनकी कीमत 10 से 12‎ हजार रुपए है। दोनों वैक्सीन पॉजिटिव मरीजों को फ्री लगाई जाएगी। बांसवाड़ा जिले से अभी 20 हजार वैक्सीन‎ की डिमांड है। जल्द ही केंद्र‎ सरकार राजस्थान को वैक्सीन सप्लाई करेगा।

सिकल सेल रोग वाले रोगियों के लिए टीकाकरण सिफारिशों के विशेषज्ञ और सामान्य चिकित्सक के ज्ञान में भी अंतर हो सकता है, खासकर ग्रामीण समुदायों में जहां विशेषज्ञ सेवाओं की कमी है।

सिकल सेल रोग से पीड़ित बच्चों में इनकैप्सुलेटेड जीवों के कारण संक्रमण और मृत्यु दर का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए, यह आवश्यक है कि रोगियों की यह विशेष आबादी कार्यात्मक एस्प्लेनिया के लिए ACIP-अनुशंसित टीकाकरण कार्यक्रम का राज्य सरकार पालन करें।

टीकाकरण कार्यक्रम के बारे में जानकारी की कमी, क्लीनिकों में सभी टीकों को बनाए रखने की तार्किक सीमाएँ, प्राथमिक देखभाल चिकित्सक के कार्यालय से रिकॉर्ड प्राप्त करने में कठिनाई, और टीकाकरण रजिस्ट्री में सुसंगत दस्तावेज़ीकरण की कमी, अनुपालन दर कम रहती है, जिससे इस अध्ययन आबादी में संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है।

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इस राष्ट्रीय मुद्दे को संबोधित करने के लिए, संस्थानों को मौजूदा बाधाओं की पहचान करनी चाहिए ताकि सिकल सेल रोग वाले रोगियों के लिए टीकाकरण अनुपालन और समग्र परिणामों को बेहतर बनाने के लिए गुणवत्ता सुधार उपायों को विकसित और कार्यान्वित किया जा सके।

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