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लोकेश शर्मा की बढ़ सकती हैं मुश्किलें‘गलता पीठ को टेकओवर करें राज्य सरकार महंत अवधेशाचार्य की नियुक्ति रद्द’ हाईकोर्टरिंकू शर्मा ने हर्षवर्धन के साथ मिलकर पेपर लीक से करोड़ों कमाये‘यूनिवर्सिटी और कॉलेज अब 200 पॉइंट रोस्टर प्रणाली से ही शिक्षक भर्ती करेंगे’ यूजीसीकांवड़ रूट में नेमप्लेट लगाने पर सुप्रीम कोर्ट की रोकसवाई माधोपुर खंडार बिजली व्यवस्था बदहाल पर्यटक हो रहे परेशानजो बाइडेन का अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर कमला हैरिस को समर्थनSOG द्वारा एसआई भर्ती परीक्षा पेपर लीक के इनामी रिंकू शर्मा और सुरेश कुमार गिरफ्तारकांवड़ मार्ग पर दुकानदारों के नाम लिखवाने से NDA में फूट JDU RLD नाराजयूएई को 78 रनों से हराकर सेमीफाइनल में पहुंची टीम इंडियाइमरजेंसी के लिए मेडिकल हिस्ट्री मोबाइल या वॉलेट में रखेंबाड़मेर सांसद ने समस्याओं के समाधान के लिए अधिकारियों को दिए निर्देशभारत ने विमेंस एशिया कप UAE को 202 रन का टारगेट दियाफोन पे पे-बैक मैकेनिज्म का दुरूपयोग कर 4करोड़ की ठगी दो गिरफ्तारNEET पेपरलीक मामले में CBI द्वारा भरतपुर मेडिकल कॉलेज के 2 स्टूडेंट गिरफ्तारवेट लॉस ड्रग्स को भारत में अनुमति, पर 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मूकनायक मीडिया : डॉ अंबेडकर-मिशन की बुलंद आवाज का दस्तावेज
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1920 में दलितों और वंचित समुदायों के अधिकारों की पैरवी के लिए 'मूकनायक' नामक समाचार पत्र शुरू किया। यह समाचार पत्र सामाजिक अन्याय के बारे में जागरूकता बढ़ाने और दलित सशक्तीकरण को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
'मूकनायक' के शताब्दी (स्थापना वर्ष1920) वर्ष में सामाजिक समानता की लड़ाई हेतु अंबेडकर की विरासत को जारी रखने के लिए इसके डिजिटल संस्करण को 2020 में लॉन्च किया गया है।
‘मूकनायक-मीडिया’ विश्वविद्यालयों के पूर्व प्रोफेसरों, वरिष्ठ पत्रकारों की बाबासाहब के मिशन; दबे-कुचले वर्गों के उत्थान के अपने अभियान को आगे बढ़ाने की अपनी कोशिश है क्योंकि जब मुख्यधारा का मीडिया देख-सुन ना सके, गोद में खेल रहा हो, लोभ-लालच में हो या भयातुर हो, तब संपूर्ण सत्यता के लिए ‘मूकनायक’ आपका नायक बनेगा, आपकी आवाज बनेगा, और बहुजन-न्याय का टूटा-भटका सिलसिला फिर से शुरू होगा। ताकि, आप लें सकें सही फ़ैसला क्योंकि महात्मा बुद्ध ने कहा है "सत्य को सत्य के रूप में और असत्य को असत्य के रूप में जानो !
बिरसा अंबेडकर फुले फ़ातिमा मिशन से जुड़े सिपाहियों और भीम-सैनिकों एवं पाठकों से हमारी बस इतनी-ही गुजारिश है कि हमें पढ़ें, सोशल-मीडिया प्लेटफार्मों पर शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के सुझाव दें, हो सके तो अपने जज्बातों को लिखकर हम तक पहुँचावे, हम उसे भी छापेंगे।
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मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 20 जुलाई 2024 | दिल्ली : जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बना। मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना, बिहार से अलग होकर झारखंड बना, आंध्र से अलग होकर तेलंगाना बना तो इसके कई कारण थे। भौगोलिक भी, आर्थिक भी और पिछड़ापन भी। ये सभी राज्य पहले भौगोलिक दृष्टि से बहुत विस्तृत थे। बहुत बड़े थे।
भील प्रदेश की पुरजोर माँग क्यों उठी है आखिरकार
राज्य सरकारें चाहकर भी इतने बड़े प्रदेश के सभी भागों का समान रूप से विकास नहीं कर पाती थीं। यही वजह थी कि बड़े राज्यों को बाँटकर छोटा किया गया। लेकिन सवाल यह है कि क्या राज्यों को छोटा करने के बाद भी सरकारों ने उनका समान रूप से विकास किया? नहीं किया।
4 राज्यों के 43 जिलों अलग करने वाली मांग
दरअसल, 17 नवंबर 1913 को राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित पहाड़ियों में मानगढ़ नरसंहार हुआ था। ब्रिटिश सेना ने सैकड़ों भीलों को बेरहमी से मार डाला, जो एक स्वदेशी समुदाय है। इस क्रूर घटना को कभी-कभी 1919 में हुए कुख्यात जलियांवाला बाग हत्याकांड के संदर्भ में “आदिवासी जलियांवाला” के रूप में संदर्भित किया जाता है।
यह प्रस्तावित राज्य चार राज्यों, अर्थात गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से 43 जिलों को अलग करके बनाया जाएगा। भील प्रदेश में शामिल किए जाने वाले कुछ जिले दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, सलूंबर, सिरोही, पाली और प्रतापगढ़ हैं।
मध्य प्रदेश में रतलाम, झाबुआ, अलीराजपुर, धार और पेटलावद; गुजरात में पंच महाल, गोधरा, दाहोद, झालोद, और डांग; और महाराष्ट्र में नासिक और धुले क्षेत्र को शामिल किए जाने की मांग की जा रही है।
आदिवासी अब अपने क्षेत्र का विकास खुद करना चाहते हैं
क्या झारखंड के हर इलाक़े को आप आज राँची जैसा डेवलप्ड कह सकते हैं? क्या छत्तीसगढ़ का चप्पा-चप्पा आज भी रायपुर की तरह विकसित कहा जा सकता है? क्या उत्तराखंड और तेलंगाना आज भी समान रूप से सरसब्ज है?
गलती किसकी है? राजनीतिक दलों की? या ये जिस वोट की राजनीति के बूते चल रहे हैं उसकी? या उन नेताओं की, जिन्हें जीतने के लिए आदिवासियों के वोट तो चाहिए पर वे उनके विकास के लिए कुछ नहीं करना चाहते। भले ही वे नेता खुद भी आदिवासी ही क्यों न हों!
मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ ज़िलों को मिलाकर नए भील प्रदेश की माँग उठी है तो बाक़ी पार्टियाँ या सत्ताधारी दल इस माँग को यह कहकर ख़ारिज करने पर तुले हैं कि जाति के आधार पर अलग प्रदेश नहीं बनाया जा सकता।
सही है। लेकिन यह मामला केवल जाति का नहीं है। क्षेत्र का पिछड़ापन और इसके चलते शिक्षा के उजाले का वहाँ उस तरह नहीं पहुँच पाना, जिस तरह अन्य इलाक़ों में पहुँचा है, यह भी बहुत बड़ा कारण है। बल्कि कहना चाहिए कि यही सबसे बड़ा कारण है।
राजकुमार रोत जैसे युवाओं को जिताकर ये आदिवासी अब अपने क्षेत्र का विकास खुद करना चाहते हैं। अपने तरीक़े से करना चाहते हैं। वर्षों तक जन प्रतिनिधियों के अन्याय का शिकार होने और होते रहने के कारण जो ग़ुस्सा फूटता है, अलग आदिवासी प्रदेश की माँग वो ग़ुस्सा ही है।
दुर्भाग्य यह है कि हमारी राजनैतिक व्यवस्थाएँ और सत्ताएँ किसी जाति, समाज या समूह का ग़ुस्सा फूटने के इंतजार में बैठी रहती हैं। तब से पहले उस क्षेत्र या उस समूह के विकास के बारे में वे सोचते तक नहीं। ग़ुस्सा फूटना स्वाभाविक है।
सबसे पहले 1913 में उठी थी यह मांग
राजस्थान की बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र (Banswara Lok Sabha Constituency) से भारत आदिवासी पार्टी (BAP) को जीत हासिल करने के बाद एक बार फिर से 108 साल पुरानी भील प्रदेश (Bhil Pradesh) की मांग जोर पकड़ती जा रही है।
1913 से भील समुदाय अनुसूचित जनजाति विशेषाधिकारों के साथ एक अलग राज्य या प्रदेश की मांग कर रहा है। यह मांग मानगढ़ नरसंहार की दुखद घटना के बाद भील समाज सुधारक और आध्यात्मिक नेता गोविंद गुरु ने उठाई थी।
अलग से भील प्रदेश बनाने की मांग का इतिहास 108 साल पुराना है, जिसकी शुरुआत राजस्थान से हुई और धीरे-धीरे यह मध्य प्रदेश, गुजरात, और महाराष्ट्र तक पहुंच गई है। भारत आदिवासी पार्टी द्वारा भील प्रदेश के लिए उनकी मांग में गुजरात के पूर्वोत्तर, दक्षिणी राजस्थान और मध्य प्रदेश के पश्चिमी हिस्से के जिलों को शामिल करना शामिल है, जिसमें लगभग 20 पूरे जिले और 19 अन्य के हिस्से शामिल हैं।
बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए
At times, though, “MOOKNAYAK MEDIA’s” immense reputation gets in the way of its own themes and aims. Looking back over the last 15 years, it’s intriguing to chart how dialogue around the portal has evolved and expanded. “MOOKNAYAK MEDIA” transformed from a niche Online News Portal that most of the people are watching worldwide, it to a symbol of Dalit Adivasi OBCs Minority & Women Rights and became a symbol of fighting for downtrodden people. Most importantly, with the establishment of online web portal like Mooknayak Media, the caste-ridden nature of political discourses and public sphere became more conspicuous and explicit.
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Shahu Maharaj’s 1902 historic reservation order had protested by Tilak
MOOKNAYAK MEDIA BUREAU | September 08, 2024 | Jaipur: Rajarshi Shahu Maharaj, who was the king of the princely state of Kolhapur from 1894 to 1922, was known for his democratic ideals and progressive policies.
Shahu Maharaj’s 1902 historic reservation order had protested by Tilak
Shahu Maharaj also actively supported the post-Phule Satyashodhak and non-Brahmin movement in Maharashtra. He had supported Dr B R Ambedkar monetarily when the young Ambedkar had launched his first fortnightly publication Mooknayak in 1920.
On July 26, 1902, Shahu Maharaj gave a historic order to reserve 50% government jobs for lower castes in his princely state of Kolhapur. This was one of the earliest instances of reservation for lower castes as a matter of state policy. The order reads, “His Highness orders that, of all the seats that go vacant from the date of this proclamation, 50% should be filled with the backward classes.”
Below is the complete translation of the order by Rajarshi Shahu Maharaj as published in the volume Rajarshi Shahu Gaurva Granth (p 1077) by the Maharashtra government.
Proclamation of reserved seats for Backward Castes
The Kolhapur State Gazette
Currently in the Kolhapur princely state, steps have been taken to educate the people of all varnas and to encourage them towards education. However, looking at the condition of the underprivileged, the government feels sorry that these efforts haven’t had the kind of success that was expected.
After thinking carefully about the subject, the government has reached the conclusion that there aren’t enough opportunities available after completing one’s higher education.
As a solution for this and to encourage the backward classes (varnas) of the government’s subjects to opt for higher education, His Highness has decided that a higher portion of the princely state’s employment opportunities should be kept aside for these classes.
In this regard, His Highness orders that, of all the seats that go vacant from the date of this proclamation, 50% should be filled with the backward classes. In all the offices where backward class employees number less than 50%, all the next appointments should go to the backward classes.
After the publication of this order, the chiefs of each department should send a tri-monthly report of all the appointments (in their departments) to His Highness.
Note – The backward classes should be understood as all classes except Brahmin, Prabhu, Shenvi, Parsi and other advanced classes.
On the orders of His Highness,
Nagesh Pandurang Bhide,
Personal secretary
Rajarshi Shahu Gaurva Granth (p 1077)
Below is the Marathi original.
In 1882, political affairs in the present-day state of Maharashtra witnessed an unusual meeting of minds. Mahatma Jotiba Phule, the social reformer and trenchant critic of caste Hindu practices and the caste system, spoke up for ‘Lokmanya’ Bal Gangadhar Tilak and his associate, Gopal Ganesh Agarkar. Tilak wasn’t a fan of Phule’s critiques, as his own beliefs veered towards the orthodox. In that sense, Phule’s views were directly ranged against Tilak’s.
The occasion was the conviction of Tilak and Agarkar in a defamation case involving the Dewan of the Kolhapur princely state, Mahadev Barve. The issue at hand was the alleged mental illness of the ruler of Kolhapur, Shivaji IV. In the Maratha universe, Kolhapur was not just another princely state.
It held a special place owing to its direct connection with Chhatrapati Shivaji. (Satara was the other kingdom that had been founded by another branch of Shivaji’s descendants.)
Mahadev Barve then filed a defamation case against Tilak and Agarkar. Tilak and Agarkar’s comments were in large part motivated by their desire to take on the British. In court, however, the duo were found guilty and sentenced to four months imprisonment.
It was at this juncture that Phule now stepped in to speak up for them. He was touched by the fact that two Brahmins (Tilak and Agarkar) had stood up for a non-Brahmin ruler (the Kolhapur royals were Maratha by caste).
While Shahu was, of course, incensed, he was not alone in his attempt to contest the ruling of the Brahmins. Other Maratha royal houses backed him and soon, things snowballed into a Brahmin versus non-Brahmin fight, with the Marathas contending that the Brahmins were trying to pit one royal house against the other.
On this issue, given his orthodox views, Tilak took the side of the Brahmins, though with a caveat — he was willing to concede Vedokta rights to Shahu not because he was a Kshatriya or because the Marathas were Kshatriyas, but because he was a Chhatrapati.
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भारत बंद का राजस्थान सहित देशभर में व्यापक असर
मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 22 अगस्त 2024 | जयपुर : दलित और आदिवासी संगठनों द्वारा हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए मजबूत प्रतिनिधित्व और सुरक्षा की मांग को लेकर 21 अगस्त को बुलाया गया भारत बंद हिंसा की कुछ छिटपुट घटनाओं के साथ काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा। हिंसा की छिटपुट घटनाओं के साथ अधिकांशतः शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कई राज्यों में परिवहन सेवाएं कुछ समय के लिए बाधित रहीं, स्कूल और बाजार बंद रहे।
गुजरात में आदिवासी और दलित समुदायों के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में बंद का असर साफ तौर पर देखा गया, जहां शहरों और अर्ध-शहरी इलाकों में बाजार बंद रहे। झारखंड और राजस्थान में दिन भर चले भारत बंद का मिला-जुला असर देखने को मिला, जहां वाहनों की आवाजाही कुछ समय के लिए बाधित रही, कई सार्वजनिक बसें सड़कों और स्कूलों से नदारद रहीं, बाजार बंद रहे।
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवम् भाजपा के प्रमुख आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते और विधायक किरोड़ी लाल मीणा ने विपक्ष पर अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया और कहा कि केंद्र ने इस पर अपना रुख पहले ही स्पष्ट कर दिया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने घोषणा की कि वे अनुसूचित जाति (SC) आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के जवाब में विभिन्न संगठनों द्वारा दिए गए भारत बंद के आह्वान को समर्थन देंगे।
भारत बंद का राजस्थान सहित देशभर में व्यापक असर
अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए आरक्षण पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ कुछ समूहों द्वारा आहूत भारत बंद का राजस्थान में मिलाजुला असर देखने को मिला, हालांकि सामान्य जनजीवन पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा।
हालांकि आवश्यक सेवाओं को बंद से बाहर रखा गया है, लेकिन सुबह सार्वजनिक परिवहन पर कोई असर नहीं पड़ा। कुछ जिलों में दुकानें और स्कूल बंद रहे। बंद के आह्वान के कारण भरतपुर में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित हैं। कुछ इलाकों में लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ा क्योंकि रोडवेज की बसें कम उपलब्ध थीं।
कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरे राज्य में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए थे। जयपुर व्यापार महासंघ के महासचिव सुरेश सैनी ने कहा कि शहर के बाजार संघों ने विरोध प्रदर्शन के कारण दुकानदारों और ग्राहकों को किसी भी तरह की असुविधा से बचाने के लिए स्वेच्छा से दुकानें बंद रखने का फैसला किया है।
– पीटीआई
Bharat Bandh LIVE: भारत बंद का जयपुर में दिखा असर
एससी एसटी आरक्षण में उप वर्गीकरण के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में भारत बंद का असर जयपुर में भी देखने को मिला। अल्बर्ट हॉल के पास बड़ी संख्या में जमा हुए लोग चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया गेट होते हुए बड़ी चौपड़ से एमआई रोड पहुंचे। हल्की बारिश के बीच नारेबाजी करते हुए लोग फैसले के खिलाफ नारेबाजी कर रहे।
प्रदर्शन के रूट को देखते हुए व्यापारियों ने पहले ही अपनी दुकानें बंद रखी थी। प्रशासन ने एहतियात बरतते हुए बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी और आरएएफ की टुकड़ी तैनात रखी थी। बंद समर्थकों का कहना था कि यह आरक्षण समाप्त करने की साजिश है।
क्या खुला है और क्या बंद है?
नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन (NACDAOR) ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच द्वारा दिए गए फैसले के प्रति विपरीत दृष्टिकोण अपनाया है, जो उनके अनुसार, ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में नौ जजों की बेंच के पहले के फैसले को कमजोर करता है, जिसने भारत में आरक्षण के लिए रूपरेखा स्थापित की थी।
केंद्रीय राज्य मंत्री बीएल वर्मा ने किया भारत बंद का विरोध
केंद्रीय राज्य मंत्री और भाजपा नेता बीएल वर्मा ने कहा कि हड़ताल में शामिल लोगों के पास स्पष्ट इरादे नहीं हैं। उन्होंने कहा, “जो लोग ऐसा कर रहे हैं, भले ही उन्हें पता न हो कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी सरकार में एससी और एसटी का सम्मान है और उन्होंने आरक्षण के बारे में भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी आरक्षण को नहीं छू सकता है, लेकिन विपक्ष लोगों को गुमराह कर रहा है।”
– एएनआई
भाजपा सांसद कुलस्ते और विधायक किरोड़ी लाल मीणा भारत बंद के खिलाफ
पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के प्रमुख आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते ने विपक्ष पर अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र ने पहले ही इस पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।
मध्य प्रदेश की मंडला (एसटी) लोकसभा सीट से सांसद ने कहा, “न्यायाधीशों ने अपनी राय दे दी है। मैं व्यक्तिगत रूप से 60-70 सांसदों के साथ इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला था। प्रधानमंत्री ने हमें बताया कि एससी और एसटी के बीच क्रीमी लेयर प्रावधान (उप-वर्गीकरण) लागू नहीं किया जाएगा।”
उन्होंने भोपाल में संवाददाताओं से कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी फैसला किया है कि “शीर्ष अदालत की राय” लागू नहीं की जाएगी। “सरकार की इतनी स्पष्टता और निर्णय के बावजूद, लोगों ने भारत बंद का आह्वान किया है… वे राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस ने एससी और एसटी के नाम पर राजनीति की और मायावती (बीएसपी प्रमुख) भी यही कर रही हैं,” श्री कुलस्ते ने कहा।
– पीटीआई
एससी-एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ आज देशभर के 21 संगठनों ने भारत बंद बुलाया है। इसका मिला-जुला असर नजर आ रहा। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने यह फैसला लिया है।
भारत बंद के फैसले को देखते हुए सरकार ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, बिहार की राजधानी पटना में बंद के दौरान जमकर बवाल देखने को मिला। पुलिस ने भी प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया। बिहार के कई और शहरों में बंद समर्थक सड़क पर उतरे। राजस्थान के जयपुर, अजमेर समेत कई इलाकों में भारत बंद का असर नजर आया।
बिहार में प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज के दौरान पुलिसकर्मी ने गलती से एसडीओ को मारा
पटना में समुदाय आधारित आरक्षण को लेकर भारत बंद के दौरान कानून व्यवस्था संभालने के दौरान एक उप-विभागीय अधिकारी (एसडीओ) को गलती से पुलिस कर्मियों ने मारा। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) राजीव मिश्रा ने पीटीआई को बताया कि जब पुलिस डाक बंगला चौक पर यातायात अवरुद्ध करने वाले प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज कर रही थी।
तो एक अधिकारी ने अनजाने में सदर-पटना एसडीओ को डंडा मार दिया, जो बल का नेतृत्व कर रहे थे। पटना जिला प्रशासन ने बाद में पुष्टि की कि यह घटना एक ईमानदार गलती थी और कहा कि पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
– पीटीआई
गुजरात में आदिवासी, दलित समुदायों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में देखा गया प्रभाव
बंद का असर छोटा उदयपुर, नर्मदा, सुरेंद्रनगर, साबरकांठा और अरावली जैसे जिलों में आदिवासी और दलित समुदायों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा गया, जहां शहरों और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बाजार बंद रहे। सुरेंद्रनगर जिले के वधावन तालुका में प्रदर्शनकारियों ने एक मालगाड़ी को रोक दिया और नारे लगाए, जिसके बाद पुलिस भीड़ को तितर-बितर करने के लिए मौके पर पहुंची।
पुलिस प्रदर्शनकारियों को ट्रेन को चलने देने के लिए मनाने में कामयाब रही। अधिकारियों ने बताया, “ट्रेन करीब डेढ़ घंटे तक जबरन रुकने के बाद भावनगर की ओर रवाना हुई।” इसी तरह, साबरकांठा जिले के इदर और विजयनगर कस्बों में बंद का असर देखा गया, जहां बाजार, स्कूल और कॉलेज बंद रहे और अधिकारियों ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारी पुलिस बल तैनात करने का आदेश दिया।
– पीटीआई
गुजरात में बंद के दौरान कई जगहों पर ट्रेन रोकी
गुजरात के सुरेन्द्र नगर जिले के बढ़वान में बंद के दौरान माल गाड़ी को रोका गया। शहर के बड़सर फाटक के पास आंदोलनकारियों ने मालगाड़ी को रोका। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस आंदोलनकारियों को समझने का प्रयास कर रही है। स्थानीय नेता प्रदर्शन कर बंद करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशासन की कोशिश है कि संपत्ति को नुकसान किसी सूरत में न हो।
मध्य प्रदेश: आदिवासी इलाकों और दलित बहुल इलाकों में जोरदार असर
बहुजन समाज पार्टी (बसपा), भीम आर्मी और जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) समेत विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने ‘भारत बंद’ के समर्थन में भोपाल के अंबेडकर सर्किल पर विरोध प्रदर्शन किया। भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में बंद के आह्वान का हल्का असर देखने को मिला।
लेकिन मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों के साथ-साथ दलित बहुल इलाकों में इसका ज्यादा असर देखने को मिला। पंधुरना और मंडला जैसे आदिवासी बहुल जिलों में बाजार और प्रतिष्ठान बंद रहे, तथा मुरैना और दलित बहुल भिंड जैसे जिलों में बड़ी रैलियां आयोजित की गईं।
यूपी में प्रदर्शन, मार्च आयोजित, सामान्य जनजीवन काफी हद तक अप्रभावित रहा
भारत बंद का उत्तर प्रदेश में सामान्य जनजीवन पर बहुत कम प्रभाव पड़ा, जबकि दलित समूहों और राजनीतिक दलों ने राज्य के कुछ हिस्सों में प्रदर्शन और मार्च आयोजित किए। राज्य के बड़े हिस्से में दुकानें खुली रहीं और कारोबार सामान्य रूप से चलता रहा।
अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए आरक्षण पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ कुछ दलित और आदिवासी समूहों द्वारा बुलाए गए दिन भर के बंद के मद्देनजर सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी।
– पीटीआई
मध्य प्रदेश: ग्वालियर में बीएसपी, भीम आर्मी द्वारा विरोध प्रदर्शन के आह्वान से पहले सुरक्षा कड़ी कर दी गई
आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ चल रहे विरोध के बीच बहुजन समाज पार्टी और भीम आर्मी द्वारा आहूत विरोध रैली से पहले मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में पुलिस के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं। जिला प्रशासन और पुलिस अलर्ट मोड पर है, पुलिसकर्मी चक्कर लगा रहे हैं, बैरिकेड्स लगाए गए हैं और जिले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए ड्रोन कैमरे सक्रिय रहे।
ग्वालियर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) धर्मवीर सिंह ने एएनआई को बताया, “विभिन्न संगठनों द्वारा ‘भारत बंद’ के आह्वान के मद्देनजर ग्वालियर पुलिस बुधवार सुबह 6 बजे से ही लगातार गश्त कर रही है। सुरक्षा के लिए 150 से अधिक बैरिकेड लगाए गए हैं और सीएसपी और एडिशनल एसपी समेत सभी पुलिस अधिकारी राउंड लिया।”
– एएनआई
केरल: भारत बंद काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा
पुलिस ने कासरगोड में साधुजन परिषद के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया। कासरगोड में, पुलिस ने अनुसूचित जाति आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध मार्च निकालने के लिए साधुजन परिषद के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया। पुलिस ने हिरासत में लिए गए नेताओं की पहचान संगठन के राज्य अध्यक्ष अनीश पय्यानूर, सचिव राघवन, कन्नूर जिला अध्यक्ष हरीश पय्यानूर और कासरगोड जिला अध्यक्ष बीनू चेमेनी के रूप में की है।
दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन द्वारा आहूत भारत बंद केरल में काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा, सिवाय कुछ गिरफ्तारियों और प्रदर्शनों के, जिससे राज्य के विभिन्न हिस्सों में यातायात बाधित हुआ। अब तक दुकानों को जबरन बंद कराने या हिंसा की कोई अन्य घटना सामने नहीं आई है।
अलाप्पुझा में, पुलिस ने वेलफेयर पार्टी के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया, जिन्होंने राष्ट्रीय लॉकडाउन के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए मार्च निकाला था। गिरफ्तार किए गए लोगों में संगठन के जिला महासचिव पी टी वसंतकुमार भी शामिल थे। पठानमथिट्टा में, दलित संगठनों ने बंद के समर्थन में मार्च निकाला।
बिहार: पटना में आंदोलनकारी प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया
बिहार के कुछ हिस्सों में वाहनों का आवागमन कुछ समय के लिए बाधित रहा, क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने समुदाय आधारित आरक्षण को लेकर कुछ समूहों द्वारा बुलाए गए भारत बंद के समर्थन में नाकेबंदी कर दी। पुलिस ने बताया कि जहानाबाद जिले में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग-83 पर यातायात की आवाजाही को रोकने की कोशिश की, जिसके बाद सुरक्षाकर्मियों के साथ उनकी झड़प हो गई।
टाउन थाने के सब-इंस्पेक्टर हुलास बैठा ने बताया, “ऊंटा चौक के पास एनएच-83 पर यातायात की आवाजाही को बाधित करने की कोशिश करने पर पांच प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया। बाद में उन्हें मौके से हटा दिया गया और सामान्य स्थिति बहाल हो गई।” राज्य सरकार ने पहले पुलिस को निर्देश दिया था कि वे उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्रों तक सुचारू रूप से पहुँचाएँ।
पुलिस ने बताया कि मधेपुरा और मुजफ्फरपुर में भी प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर यातायात की आवाजाही को रोकने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षा बलों ने उन्हें तुरंत खदेड़ दिया। इस बीच, बुधवार को कई जिलों में बिहार पुलिस, बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस और अन्य इकाइयों में कांस्टेबल के पद के लिए भर्ती परीक्षा चल रही थी।
– पीटीआई
सुप्रीम कोर्ट ने कोटा लाभ के लिए एससी को उप-वर्गीकृत करने के राज्यों के अधिकार को क्यों बरकरार रखा है? सुप्रीम कोर्ट ने कोटा लाभ के लिए एससी को उप-वर्गीकृत करने के राज्यों के अधिकार को क्यों बरकरार रखा है? सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमी लेयर को छोड़कर, मात्रात्मक डेटा के आधार पर सकारात्मक कार्रवाई के लिए एससी/एसटी श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी।
भीम आर्मी आजाद समाज पार्टी और बीएसपी ने भारत बंद को समर्थन दिया
भीम आर्मी आजाद समाज पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अनुसूचित जातियों (एससी) के उप-वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के विरोध में कुछ दलित और आदिवासी समूहों द्वारा बुलाए गए दिन भर के भारत बंद को समर्थन दिया।