मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 22 फरवरी 2024 | जयपुर – दिल्ली – चंडीगढ़ : गंगापुर सिटी के प्रसिद्ध खीर मोहन का स्वाद तो आपने चखा ही होगा। यहां का एक और खास जायका है देसी घी से लबालब स्पेशल सब्जी और टिक्कड़। इस जायके के बिना पूर्वी राजस्थान की चार जिलों में तो शादियों की दावत ही अधूरी मानी जाती है।
जायका : स्पेशल-टिक्कड़ की अलग ही फैन फॉलोइंग
शादी में पनीर की सब्जी नहीं हो तो चलेगा, लेकिन ‘स्पेशल’ की डिमांड अलग से की जाती है। पूर्वी राजस्थान में यह सब्जी स्पेशल के नाम से ही प्रसिद्ध है। ये सब्जी जितनी खास है उतनी ही इसकी रेसिपी है। करीब 5 घंटे तो सब्जी को बनाने में ही लग जाते है। स्पेशल के साथ खाने वाली रोटी भी बहुत अलग खास है। जिसे टिक्कड़ कहा जाता है।
दाल-बाटी की तरह से ही स्पेशल-टिक्कड़ की अलग ही फैन फॉलोइंग है। इस जायके की शुरुआत गंगापुर सिटी से हुई। इसके बाद करौली, दौसा, सवाई माधाेपुर सहित पूर्वी राजस्थान के कई जिलों में स्पेशल टिक्कड़ की डिमांड शुरू हुई। तो चलिए राजस्थानी जायका की इस कड़ी में आपको लेकर चलते हैं गंगापुर सिटी के इस लजीज जायके के सफर पर….
गंगापुर सिटी में एंटर होती है देसी घी की महक आपकी नाक तक पहुंच जाए, तो समझिए कि आप टिक्कड़ और आलू-प्याज सब्जी की मशहूर दुनिया तक पहुंच चके हैं। अकेले गंगापुर में 100 से ज्यादा दुकानों पर टिक्कड़ और स्पेशल के बोर्ड मिल जाएंगे, जहां आप इस दावत का आनंद ले सकते हैं।
हम स्पेशल डिश की कहानी और इसकी रेसिपी जानने के लिए हाडोत्या कालोनी में स्थित सीतू स्पेशल भंडार पर पहुंचे। यहां के स्पेशल टिक्कड़ काफी प्रसिद्ध हैं। इन्होंने अपनी दुकान के बाहर एक बोर्ड भी लगा रखा है।
‘स्पेशल सब्जी में तेल साबित होने पर 5100 रुपए का इनाम मिलेगा’
रानीपुरा सपोटरा निवासी हरकेश मीणा ने बताया कि टिक्कड़ गेहूं के आटे, बेसन और सूजी से बनी मोटी रोटी जैसा होता है, जो काफी सॉफ्ट होता है। वहीं जिसे हम स्पेशल कहते हैं वो मसालेदार और चटपटी आलू-प्याज की सब्जी होती है। दिखने में साधारण, लेकिन बड़े साइज में कटे आलू, पिसे प्याज की जुगलबंदी से देसी घी में इसे बहुत ही लाजवाब तरीके से बनाया जाता है।
ये पहली सब्जी है जिसमें मावे और खसखस का इस्तेमाल होता है। लोग इसे दम आलू समझते हैं लेकिन दम आलू उबालकर बनते हैं ये सब्जी पूरी तरह से देसी घी में तैयार होती है। कहा जाता है कि किसी के घर में भी स्पेशल बनती है तो उसकी महक 100वें घर तक भी जाती है। स्पेशल सब्जी में तेल साबित करने वाले को 5100 रुपए तक के इनाम का दावा।
60 साल पहले कुछ अलग बनाने से हुई शुरुआत
सीतू शर्मा के मुताबिक इस जायके की शुरुआत करीब 60 साल पहले हुई थी। इसके पीछे एक कहानी है कि गंगापुर सिटी में कुछ दोस्तों ने एक गोठ कार्यक्रम (सामूहिक भोजन) का आयोजन रखा था। इसे शानदार बनाने के लिए उन्होंने खुद ही कुछ अलग सब्जी बनाने की सोची। तेल की बजाय घी का प्रयोग किया। सब्जी के साथ ही इसकी रोटी बनाने पर भी प्रयोग किया। जब सब्जी-रोटी बन गई तो इसका नाम भी स्पेशल-टिक्कड़ बना दिया गया था।
धीरे-धीरे इस सब्जी में खड़े मसालों से लेकर कई तरह के प्रयोग हुए। फिर आयोजनों में इसका चलन बढ़ने लग गया था। आज गंगापुरसिटी में ही 100 से ज्यादा होटल-रेस्टोरेंट पर अलग से स्पेशल-टिक्कड़ बनाई जाती है। जबकि 50 से ज्यादा लोग घरों में भी इसे बनाकर सप्लाई करते हैं।
कच्चे आलू देसी घी में फ्राई
सीतू शर्मा पिछले 20 साल से स्पेशल-टिक्कड़ का ये जायका परोस रहे हैं। स्पेशल सब्जी बनाने में 5 घंटे लगते हैं। इसके लिए बड़े और पके हुए आलू लिए जाते हैं। एक आलू को केवल चार पीस में ही काटा जाता है। अब इन्हें देसी घी में धीमी आंच पर हल्के भूरे रंग के होने पर फ्राई किया जाता है। फ्राई होने के बाद इन्हें अलग से निकाल कर रख लिया जाता हैै।
साबुत मसाले बढ़ाते हैं जायका
सब्जी को बनाने के लिए लौंग, बड़ी इलायची, काली मिर्च, हल्दी, देगी मिर्च, जायफल, साबुत धनिया, खीरे के बीज, जावित्री, तेजपत्ती सहित सभी खड़े मसालों का प्रयोग होता है। इन्हें अलग से मिक्सी में पीसकर अपना मसाला बनाते हैं। अदरक, लहसुन और प्याज का मिक्सी में ही पीस कर पेस्ट बना कर रख लिया जाता है। स्पेशल-टिक्कड़ की एक थाली का रेट 160 रुपए है।
देसी घी में तड़का, 5 घंटे में बनकर तैयार होती है स्पेशल
देसी घी में ही सब्जी बनाने के लिए तड़का लगता है। पहले जीरे, साबुत मसाले (काली मिर्च, लौंग व इलायची) , प्याज का तड़का लगता है। हल्का भुनने पर उसमें अदरक, लहसुन और प्याज का पेस्ट डालते है। धीमे आंच पर भूना जाता है। इसके बाद सभी पीसे हुए मसालों को डाला जाता है। इन्हें भी हल्की आंच पर भूना जाता है। धीरे-धीरे उसे चलाते रहते है ताकि मसाले जले नहीं। मसाले को पकाने में करीब एक घंटे का समय लग जाता है।
मावा, दही और खसखस का स्वाद
बहुत कम ऐसी सब्जी होती हैं जिनमे मावा का इस्तेमाल होता है। मसाला पूरी तरह से पकने के बाद दही डाला जाता है। सब्जी में टमाटर का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं होता। जब तक सब्जी में जाल नहीं पड़ जाते और घी तैरकर ऊपर नहीं आ जाता, तब तक पकाया जाता है।सूजी, आटे और बेसन से टिक्कड़ तैयार किए जाते हैं।
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अब इसमें फ्राई किए हुए आलू डाले जाते हैं। पूरी सब्जी मसाले और देसी घी में पकती है। इसमें एक बूंद भी पानी नहीं डाला जाता है। आलू पकने के बाद इसमें मावे को डाला जाता है। जिसके बाद काजू, किशमिश सहित अन्य ड्राई फ्रूट मिलाते हैं। पनीर कद्दूकस करके डालते हैं। करीब 5 घंटे में पूरी सब्जी बनकर तैयार होती है।
सूजी, आटे और बेसन से बनती है टिक्कड़ (रोटी)
स्पेशल सब्जी को साधारण रोटी के साथ नहीं बेहद खास तरीके से बने टिक्कड़ के साथ खाया जाता है। सूजी, आटा और बेसन में सौंफ, अजवाइन डालकर टिक्कड़ तैयार किया जाता है। इसे नर्म रखने के लिए रिफाइंड या देसी डाला जाता है। आटे को गूंथ कर इसके 150-200 ग्राम के लोए बनाकर बड़े-बड़े टिक्कड़ कोयले की आंच पर सेके जाते हैं। भारी भरकम दो टिक्कड़ ही एक आदमी के लिए काफी होते हैं। सीटू शर्मा गंगापुरसिटी में स्पेशल टिक्कड़ के लिए प्रसिद्ध हैं।
एक्सीडेंट हुआ तो बदला काम का ट्रेंड
सीतू शर्मा ने बताया कि वे पहले इलेक्ट्रिशियन का काम करते थे। वर्ष 2006 में उनका एक्सीडेंट में पैर खराब हो गया। इलाज के कारण कई महीनों तक बेरोजगार रहना पड़ा। कई काम शुरू किए लेकिन कोई भी काम जम नहीं सका। एक दिन कुछ रिश्तेदार घर आए। उन्हें स्पेशल सब्जी बनाकर खिलाई। तब उन्होंने कहा कि आप ये ही काम शुरू कर लीजिए। आपके हाथ में अच्छा टैलेंट है। पत्नी से बात की तो दोनों ने सलाह कर काम शुरू करने पर राजी हुए।
5 हजार उधार लेकर की शुरुआत
पति-पत्नी ने काम शुरू करने के लिए 5 हजार रुपए उधार लिए। घर के टेबल-कुर्सी से रेस्टोरेंट की शुरूआत कर दी। पहले दिन उन्होंने 100 प्लेट स्पेशल सब्जी और टिक्कड़ बनाए। शाम तक सारे ऑर्डर पूरे कर दिए। अब उनकी पहचान शुद्धता और स्वाद के चलते बन गई है। स्पेशल सब्जी में कोई रिफाइंड पकड़ ले तो उसे 31 रुपए इनाम देने को तैयार हूं।
करीब दो करोड़ का सालाना व्यापार
सीतू शर्मा बताते है कि दो टिक्कड़ के साथ सब्जी दी जाती है। जिसकी कीमत 160 रुपए है। अलग से टिक्कड़ लेने का चार्ज 20 रुपए है। पूरे गंगापुर सिटी और आसपास में ही 100 से 125 दुकानें है जिन पर स्पेशल सब्जी और टिक्कड़ बनाए जाते हैं। इसका सालाना कारोबार 2 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का है। पूर्वी राजस्थान में दौसा, करौली, सवाईमाधोपुर, कोटा, लालसोट, धौलपुर सहित करीब 10 जिलों में स्पेशल टिक्कड़ बनाई जाती है।