राहुल गाँधी का अमेठी से ना लड़ना बीजेपी से ज्यादा स्मृति ईरानी के लिए बड़ी चुनौती, कांग्रेस ने एक तीर से कई निशाने लगाये, क्या राहुल गाँधी क पीए ईरानी को चुनाव हरा देंगे

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मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 04 मई 2024 | जयपुर – दिल्ली – मैसुरू : राहुल गांधी जी की रायबरेली से चुनाव लड़ने की खबर पर बहुत सारे लोगों की बहुत सारी राय हैं। बीजेपी सूत्रों की मने तो अमेठी से रिपोर्ट है कि स्मृति ईरानी हार रही है। कांग्रेस के लिए ये सीट सेफ साबित होने वाली है। इस बार राहुल गाँधी से स्मृति ईरानी हारती तो कोई बड़ी बात नहीं थी।

राहुल गाँधी का अमेठी से ना लड़ना बीजेपी से ज्यादा स्मृति ईरानी के लिए बड़ी चुनौती 

MOOKNAYAKMEDIA 25 300x195 राहुल गाँधी का अमेठी से ना लड़ना बीजेपी से ज्यादा स्मृति ईरानी के लिए बड़ी चुनौती, कांग्रेस ने एक तीर से कई निशाने लगाये, क्या राहुल गाँधी क पीए ईरानी को चुनाव हरा देंगेयह कहा जाता कि कांग्रेस का गढ़ है इसलिए हार गयी। लेकिन अब के एल शर्मा से हार होगी तो ये कहा जायेगा कि गाँधी परिवार के अलावा उनके एक कार्यकर्ता ने भी स्मृति ईरानी को हरा दिया। यह ईरानी के राजनीतिक कैरियर पर सबसे बड़ा धब्बा होगा और 2019 हार का सबसे बड़ा बदला।

कांग्रेस ने एक तीर से कई निशाने लगाये है, जिस लेवल पर लोगों कि सोच ख़त्म होती है उससे कंही आगे जा कर इनकी सोच शुरू होती है। रायबरेली से जीतने के बाद राहुल गाँधी सीट खाली करेंगे और फिर उसी सीट से प्रियंका गाँधी संसद जायेगी ! अगर अभी प्रियंका गाँधी अमेठी या रायबरेली से चुनाव लडती तो एक सीट खाली करना पड़ती राहुल गांधी वाली और ये उस जनता के साथ धोखा होता। रायबरेली को गांधी परिवार का अभेद्य दुर्ग बनाने वाले किशोरी लाल शर्मा पर अब अमेठी में भाजपा का चक्रव्यूह तोड़ने की बड़ी-भारी जिम्मेदारी है।

अमेठी के जनमानस में गहरी पैठ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नंदलाल शर्मा कहते हैं कि राहुल गाँधी  राजनीति और शतरंज के मंजे हुए खिलाड़ी हैं और सोच समझ कर दांव चलते हैं। देखते जाइए ईरानी से 2019 का बदला ऐसे लिया जायेगा कि पूरी जिन्दगी ईरानी इस हार को भुला नहीं पायेगी।

ऐसा निर्णय पार्टी के नेतृत्व ने बहुत विचार-विमर्श करके बड़ी रणनीति के तहत लिया है। इस निर्णय से बीजेपी, उनके समर्थक और चापलूस धराशायी हो गये हैं। बेचारे स्वयंभू चाणक्य जो ‘परंपरागत सीट’ की बात करते थे, उनको समझ नहीं आ रहा अब क्या करें?

नंदलाल शर्मा कहते हैं कि रायबरेली ना केवल सिर्फ़ सोनिया गाँधी की सीट रही बल्कि, ख़ुद इंदिरा गांधी और फ़िरोज़ गाँधी  की सीट रही है। यह विरासत नहीं ज़िम्मेदारी है, कर्तव्य है। रही बात गांधी परिवार के गढ़ की, तो अमेठी-रायबरेली ही नहीं, उत्तर से दक्षिण तक पूरा देश गांधी परिवार का गढ़ है। राहुल गांधी तो तीन बार उत्तरप्रदेश से और एक बार केरल से सांसद बन गये, लेकिन मोदी जी विंध्याचल से नीचे जाकर चुनाव लड़ने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाये?

जयराम रमेश ने कहा एक बात और साफ़ है कि कांग्रेस परिवार लाखों कार्यकर्ताओं की अपेक्षाओं, उनकी आकांक्षाओं का परिवार है। कांग्रेस का एक साधारण कार्यकर्ता ही बड़े-बड़ों पर भारी है। कल एक मूर्धन्य पत्रकार अमेठी के किसी कार्यकर्ता से व्यंग में कह रही थी कि “आप लोगों का नंबर कब आएगा टिकट मिलने का”? लीजिए, आ गया! कांग्रेस का एक आम कार्यकर्ता अमेठी में बीजेपी का भ्रम और दंभ दोनों तोड़ेगा।

अबकी बार प्रियंका गाँधी धुआँधार प्रचार कर रही हैं और अकेली नरेंद्र मोदी के हर झूठ का जवाब सच से देकर उनकी बोलती बंद कर रही हैं। इसीलिए यह ज़रूरी था कि उन्हें सिर्फ़ अपने चुनाव क्षेत्र तक सीमित ना रखा जाये। प्रियंका गाँधी तो कोई भी उपचुनाव लड़कर सदन पहुँच जायेंगी।

पर आज स्मृति ईरानी की सिर्फ़ यही पहचान है कि वो राहुल गांधी के ख़िलाफ़ अमेठी से चुनाव लड़ती हैं। अब स्मृति ईरानी से वो शोहरत भी छिन गई। अब बजाय व्यर्थ की बयानबाज़ी के, स्मृति ईरानी स्थानीय विकास के बारे में जवाब दें, जो बंद किए अस्पताल, स्टील प्लांट और आईआईआईटी हैं – उसपर जवाब देना होगा।

शतरंज की कुछ चालें बाक़ी हैं, थोड़ा इंतज़ार कीजिए। ‘गांधी परिवार की राजनीतिक समझ किसी भी पत्रकार के मुकाबले करोड़ों गुना ज्यादा है।’ आज अपनी ट्विटर फीड पर नजर रखिए। आज आपको मोदी के खिलाफ लड़ने वाले लोगों की पहचान करने में आसानी होगी। जो लोग राहुल गांधी को रायबरेली से चुनाव लड़ने के लिए गालियां दे रहे हैं, ताने मार रहे हैं, रणछोड़दास कह रहे हैं, वे खतरनाक लोग हैं, कांग्रेस के हितैषी तो कतई नहीं हैं।

रायबरेली सीट राहुल गांधी के लिए किसी सुरक्षा कंवच से कम नहीं

पर रायबरेली सीट राहुल गांधी के लिए किसी सुरखा कंवच से कम नहीं। सोनिया गांधी ने रायबरेली सीट छोड़ीं तो सबसे अधिक चर्चा प्रियंका गांधी की हुई। लेकिन कांग्रेस ने राहुल गांधी को रायबरेली से मैदान में उतारा। रायबरेली सीट राहुल गांधी के लिए किसी सुरक्षा कंवच से कम नहीं है।

आज जो लोग कह रहे हैं कि राहुल गांधी लड़े नहीं, दरअसल वे लोग हमेशा उत्तेजना की तलाश में रहते हैं। और राजनीति में उत्तेजना अच्छी बात नहीं होती। कल ही एक दोस्त से मैंने कहा था कि कांग्रेस और बीजेपी को एक सुर में गरियाने वालों से सावधान रहिए और इसी तरह कांग्रेस के हर फैसले पर उसके शीर्ष नेतृत्व को गरियाने वालों से भी सावधान रहिए। ये लोग कब भाजपा के पे-रोल पर आ जाएंगे। कब भगवा धारण कर लेंगे। आपको समझ नहीं आएगा। ये सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं।

अमेठी मैं भी गया हूं। राहुल गांधी ने जब न्याय यात्रा के दौरान अमेठी में रैली को संबोधित किया तब उन्होंने बिल्कुल संयत भाव से अपनी बात रखी, जैसे कि किसी अपने को जिम्मेदारी सौंप, किनारे खड़े हो गए हों। ये बात मुझे तभी समझ आ गई थी, लेकिन मुझे फेंकना नहीं आता, तो मैं चुप रहा, अंदेशा था मुझे। और आखिर में वही हुआ, राहुल गांधी अमेठी से नहीं लड़े तो इसमें नुकसान किसका है? किसी का नहीं।

दिक्कत ये है कि राजनीति कवर करने वाले पत्रकार इतने भावावेश में आ जाते हैं कि वे चाहते हैं कि सियासी बिसात पर नेता वही फैसला करे,  जो वे सोच रहे हैं। लेकिन सियासत की काली कोठरी की सच्चाई नेता को पता होती है। राहुल गांधी और गांधी परिवार ने 10 साल में जो झेला है, उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। कोई नेता नहीं कर सकता।

बीच चुनाव में मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त राजनीति का सपना देखा था, किसी और पार्टी के खात्मे का सपना नहीं देखा था। आज अगर कोई कह रहा है कि कांग्रेस को मर जाना चाहिए तो वह नरेंद्र मोदी की भाषा बोल रहा है। आप ऐसे पत्रकारों को पहचानिए। ये विपक्ष के साथी नहीं हैं। अभी कल-परसों ही तो मोदी ने कहा था कि कांग्रेस मर रही है, तो कांग्रेस को भला-बुरा कहने वालों की सोच किससे मिलती है।

कांग्रेस ने एक तीर से कई निशाने लगाये

images 5 राहुल गाँधी का अमेठी से ना लड़ना बीजेपी से ज्यादा स्मृति ईरानी के लिए बड़ी चुनौती, कांग्रेस ने एक तीर से कई निशाने लगाये, क्या राहुल गाँधी क पीए ईरानी को चुनाव हरा देंगेराहुल गांधी और गांधी परिवार की राजनीतिक समझ किसी भी पत्रकार के मुकाबले करोड़ों गुना ज्यादा है। अगर उन्हें राजनीतिक समझ नहीं होती तो 10 साल में बदले की भावना वाली सियासत, जांच एजेंसियां, संवैधानिक संस्थाओं और अंधभक्त जनता का मुकाबला नहीं कर पाते।

अगर आप खुली आंखों से अमेठी और रायबरेली का दौरा करेंगे तो आप पाएंगे कि वहां किसी भी लोकसभा संसदीय क्षेत्र के मुकाबले कहीं ज्यादा विकास हुआ है। अमेठी का सिर्फ सवर्ण ही नहीं, दलित-पिछड़े भी गांधी परिवार की आत्मीयत को याद करते हैं। रायबरेली में तो केंद्रीय संस्थाओं का जाल बिछा है। कदम दर कदम आपको सबकुछ मिलेगा, जो आप चाहेंगे। लेकिन 2014 के बाद सियासत बदल गई है।

आज मोदी सत्ता जनता के दिमाग से खेल रही है। वह नेताओं और पत्रकारों के दिमाग से भी खेल रही है। राहुल गांधी सिर्फ अमेठी को जीतने की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, वह राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं, और जिन्हें इसकी समझ नहीं है, वे जल्दी में हैं। किसी यूट्यूबर को 10 करोड़ व्यूज मिल जाए इसके लिए राहुल गांधी राजनीति नहीं कर रहे हैं।

राहुल गांधी हाल के दिनों में कई स्वतंत्र पत्रकारों और यूट्यूबरों से मिले थे, आप उन पर भी नजर रखिए और देखिए वे कांग्रेस आलाकमान के फैसले को कैसे देख रहे हैं। अमेठी की जनता से जब आप 2019 के चुनाव पर ठहरकर बात करेंगे तो वे कहेंगे कि 2019 में राहुल गांधी को हराया गया था। प्रशासन ने हराया था।

आप ये सोचिए कि वह कौन आदमी होगा, जिसने 2019 के चुनाव में राहुल गांधी को कहा था कि सिर्फ अमेठी से ही नहीं, किसी और सीट से भी चुनाव लड़िए। कौन रहा होगा वह गांधी परिवार के भरोसे का आदमी, जिसने सियासी माहौल को सूंघ लिया होगा और राहुल गांधी को दूसरी सीट से चुनाव लड़ने की सलाह दी होगी। 2019 में तो पत्रकारों का ध्यान राष्ट्रवाद के पैग पर था, जिसके साथ बालाकोट में मारे गए कौवों की बिरयानी सर्व की गई थी।

अमेठी एक मात्र लोकसभा सीट है, जहां की जनता को पश्चाताप है कि उनसे गलती हुई। ये अमेठी के लोगों को बड़प्पन है। ये अपने नेता के प्रति ईमानदारी है। इससे ये भी पता चलता है कि राहुल गांधी और गांधी परिवार ने अमेठी और रायबरेली के साथ किस तरह का रिश्ता जोड़ा है।

राहुल गांधी 2004 से गालियों और तानों का सामना कर रहे हैं। बदले की राजनीति को झेल रहे हैं, और उन्हें पता है कि हर रोज खबरें देखकर अपनी राय बदलने वाले टिप्पणीकारों के भरोसे राजनीति नहीं होती है। गांधी परिवार ने एकदम सही फैसला लिया है। ये चुनाव संविधान और लोकतंत्र बचाने का चुनाव है। अमेठी और रायबरेली बचाने का चुनाव नहीं है। चुनाव आयोग को आजाद कराने का चुनाव है।

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2024 के चुनाव में अगर लोकतंत्र और संविधान को बचाने की लड़ाई जीत ली गई तो अमेठी और रायबरेली भी हमेशा गांधी परिवार की ही रहेगी। ये इम्तिहान तो अमेठी के लोगों का है कि वे किसे चाहते हैं, क्या वे भरत के तौर पर मर्यादा पुरुषोत्तम की चरण पादुका से राज-काज चलाएंगे या फिर आसुरी शक्तियों के साथ खड़े हो जाएंगे। अमेठी की लड़ाई यही है। अमेठी को अपना इम्तिहान देना ही होगा।

संजय राउत बोले- स्मृति ईरानी पर बहुत दया आती है, वे राहुल गांधी के PA से हारने वाली हैं। शिवसेना (UBT) नेता संजय राउत ने कहा- अमेठी से पहले और भी लोगों ने चुनाव लड़ा है जो गांधी परिवार के बहुत ही करीब रहे। भाजपा को क्या पड़ी है कि कौन कहां से चुनाव लड़े? मुझे स्मृति ईरानी पर बहुत दया आती है कि वे राहुल गांधी के PA से हारने वाली हैं। ये बहुत ही सोच समझकर लिया हुआ निर्णय है। के.एल. शर्मा बहुत ही जमीनी कार्यकर्ता हैं। कांग्रेस पार्टी का एक सामान्य कार्यकर्ता इस बार स्मृति ईरानी को परास्त करेगा।

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