केंद्र सरकार में खाली पड़े 30 लाख पदों की कहानी, 200 पॉइंट्स रोस्टर के अनुसार पदों को भरने की दरकार समय की मांग

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मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 22 अप्रैल 2024 | जयपुर – दिल्ली – मुंबई : जब देश का संविधान बाबासाहब डॉ भीमराव अंबेडकर जी की अध्यक्षता में बन रहा था तब सामाजिक अन्याय को रोकने के लिए कई कानून बने थे। उसी कड़ी में सामाजिक अन्याय रोकने के लिये जातिगत आरक्षण अनुसूचित जाति (SC) के लिए और समाज से वंचित व जंगलो में कठिन परिस्थितियों में रहने वाली जातियों को क्षेत्र आधार पर अनुसूचित जनजातियों (ST) में रखा गया और बाबासाहब अम्बेडकर और जयपाल मुंडा ने अपने बौद्धिक-कौशल से आरक्षण का प्रावधान करवाया था।

केंद्र सरकार में खाली पड़े 30 लाख पदों की कहानी

MOOKNAYAKMEDIA Copy 37 Copy Copy 300x195 केंद्र सरकार में खाली पड़े 30 लाख पदों की कहानी, 200 पॉइंट्स रोस्टर के अनुसार पदों को भरने की दरकार समय की मांगएक तरफ बिरसा, अंबेडकर, फुले और पेरियार ई वी रामासामी जैसे सुधारवादी नेताओं की सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता और समानता की विचारधारा है, दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) तथा प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के विचार हैं। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि मोदी ‘एक राष्ट्र, एक नेता और एक भाषा’ के पक्षधर हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार में 30 लाख रिक्त सरकारी पदों को भरने और युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए एक कानून बनाने का शुक्रवार को आश्वासन दिया। तमिलनाडु में अपनी पहली चुनावी रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि अगर केंद्र में ‘इंडिया’ गठबंधन सत्ता में आता है, तो युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए बड़े कदम उठाए जायेंगे।

पर सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि 30 लाख पदों को भरने के लिए क्या 200 पॉइंट आरक्षण रोस्टर लागू किया जायेगा। अकेले रेलवे में 9 लाख से अधिक पद खाली पड़े है जबकि वहाँ 200 पॉइंट आरक्षण रोस्टर लागू नहीं है। देखिए 1950 से 1997 तक देश की केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण का प्रावधान ही नहीं था । सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 1997 से देश की शिक्षण-संस्थाओं में आरक्षण लागू हुआ था । लेकिन मनुवादी ताकतों ने शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण तोड़मरोड़ के लागू किया।

जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश संस्था को इकाई मानकर ही दिया था। लेकिन संस्थाओं में लगाया गया विभागवार आरक्षण व्यवस्था 1997 से 2004 तक शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण की धज्जियाँ उड़ाई गई और ज्यादातर जगह SC / ST के कैंडिडेट्स को एनएफएस (NFS – Not Found Suitable Candidate) कर दिया जाता था। फिर यह कहानी ओबीसी के अभ्यर्थियों के साथ भी दोहरायी जाने लगी।

प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा ने मूकनायक मीडिया से कहा कि “2012 में हमने लंबी लड़ाई लड़ी और संप्रग सरकार पर दवाब बनाकर 200 पॉइंट्स रोस्टर को सभी शिक्षण-संस्थानों को सांविधिक इकाई मानकर आरक्षण लागू करवाया। एनएफएस घोषित करने की साजिश के खिलाफ शिक्षा मंत्रालय ( मानव संसाधन विकास मंत्रालय) से नियम बनवाकर यूजीसी से लागू करवाया। जिसे मनुवादी न्याय-व्यवस्था ने इलाहबाद उच्च न्यायालय ने ख़त्म कर दिया । 2 अप्रेल 2018 को एससी एसटी के युवाओं ने अपने प्राणों का बलिदान देकर देशव्यापी आंदोलन से डरकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की। किंतु बहुजनों का सरकार पर जैसे ही दवाब कम हुआ मोदी सरकार ने आरक्षण कि व्यवस्था को कमजोर करवा दी। इसी का परिणाम है कि केंद्र सरकार में 30 लाख पद खाली है।”

इसी बीच 1990 में मंडल कमीशन के द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को भी संविधान सम्मत आरक्षण मिल गया था। जब प्रोफ़ेसर सुखदेव थोराट यूजीसी के चेयरमैन बने तो यूजीसी की आरक्षण गाइडलाइन 2006 आई । लेकिन किसी भी शिक्षण संस्थान ने इसे लागू नहीं किया । इसके बाद 2007 में OBC का आरक्षण उच्च शिक्षण संस्थाओं में लगाया गया।

200 पॉइंट्स रोस्टर के अनुसार पदों को भरने की दरकार समय की मांग

Logo357 300x300 केंद्र सरकार में खाली पड़े 30 लाख पदों की कहानी, 200 पॉइंट्स रोस्टर के अनुसार पदों को भरने की दरकार समय की मांगअब देश की  85% से ज्यादा आबादी का आक्रोश और गुस्सा सरकार से संभल नहीं रहा है। मोदी  सरकार ने 200 पॉइंट रोस्टर आरक्षण को कभी भी सख्ती से लगाने की ईमानदार कोशिश  नहीं की। बल्कि शिक्षण-संस्थान और विश्वविद्यालय प्रशासन ने उस 200 पॉइंट रोस्टर आरक्षण को जिस हिसाब से लगाया उसके परखच्चे उड़ा दिये।

2013 में आरक्षण एक तरह से नए सिरे से लगाया गया और जो लोग रिटायर्ड हो गए उनका रोस्टर में कोई उल्लेख ही नहीं रखा गया । साथ ही 200 पॉइंट रोस्टर आरक्षण में बैकलॉग का प्रोविजन था लेकिन शिक्षण-संस्थानों का प्रशासन बैकलॉग को ही खा गया ।

1997 से 2006 तक बहुत कम नियुक्तियां हुई थी और जहाँ हुई उसमें अधिकतर वंचित वर्गों के कैंडिडेट्स को NFS किया गया। 2007 के बाद जबसे OBC के आरक्षण की व्यवस्था लागू हुई हैं तब से नियुक्तिया बहुत कम हुई हैं या यह कह सकते हैं कि नियुक्तियों का अकाल सा पड़ गया हैं। इसमें कई तरह की रुकावटें डाली गई कभी सरकार के द्वारा तो कभी कोर्ट के द्वारा।

आपको बतला दूँ 1997 हो या 2007 नियुक्तियों में अड़ंगे ही लगाये गये हैं। स्टेट यूनिवर्सिटीज में तो रोस्टर की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। यहाँ तक कि आरक्षण लागू होने कि वास्तविक तारीख तक तय नहीं कि जा सकी है। यह एक कड़वी सच्चाई हैं कि मनुवादी मानसिकता और अनारक्षित वर्ग के लोग आरक्षण देना ही नहीं चाहते हैं। आरक्षण को रोकने के लिए ऐसी मानसिकता के लोग सरकारों / मंत्रालयों/ यूजीसी / विश्वविद्यालय प्रशासनों या विभिन्न संस्थाओं की ट्रेड यूनियनों में बैठे होते हैं और आरक्षण रोकने के लिए हर एक हथकंडा अपनाते हैं।

प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा का कहना है कि यही कारण हैं कि “नियुक्ति नहीं होने के कारण आज केंद्र सरकार में 30 लाख पद खाली पड़े हैं। यहाँ तक कि केंद्रीय शिक्षण-संस्थान में 50000 से अधिक एससी-एसटी के बैकलॉग ख़ाली है और उन पर शिक्षक एडहॉक पर बहुत लंबे समय से काम कर रहे है। मैंने राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में लड़ाई लड़कर 70 से अधिक आरक्षित पदों पर से सवर्णों को हटवाया । उन पदों पर दलित-आदिवासियों और बहुजनों की नियुक्तियाँ करवाई तो प्रशासन मेरे ही पीछे पड़ गया, पर मैं हार मानने वालों में से नहीं हूँ, संघर्ष जारी है।”

वस्तुतः उच्च शिक्षण संस्थानों में 70 के दशक में लगी नौकरियों में सवर्ण लोगों ने कब्ज़ा किया हुआ है। और वे अब सेवानिवृत्त हो रहे हैं तो उच्च शिक्षण संस्थानों में उनके वर्चस्व वे बनाये रखना चाहते हैं। इसलिए वे 200 पॉइंट रोस्टर को लागू होने देने नहीं चाहते हैं क्योंकि बैकलॉग के पदों पर बहुजनों की नियुक्तियाँ होनी है।

और यदि अबकी बार सवर्ण कामयाब हो गये तो आने वाले 50 वर्षों तक आरक्षितों को ये नौकरियाँ मिलाने वाली नहीं है । 200 Vs 13 पॉइंट रोस्टर की कहानी आपके समक्ष प्रतुत कर रहा हूँ कि इस फैसले से पहले सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शिक्षक पदों पर भर्तियां पूरी यूनिवर्सिटी या कॉलजों को इकाई मानकर होती थीं। इसके लिए संस्थान 200 प्वाइंट का रोस्टर सिस्टम मानते थे। इसमें एक से 200 तक पदों पर रिज़र्वेशन कैसे और किन पदों पर होगा, इसका क्रमवार ब्यौरा होता है।

संस्थान को यूनिट मानकर 200Point रोस्टर रिज़र्वेशन लागू हो

इस सिस्टम में पूरे संस्थान को यूनिट मानकर रिज़र्वेशन लागू किया जाता है, जिसमें 49.5 परसेंट पद रिज़र्व और 59.5% पद अनरिज़र्व होते थे (अब उसमें 10% सवर्ण आरक्षण अलग से लागू होगा) । लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि रिज़र्वेशन डिपार्टमेंट के आधार पर दिया जाएगा।

इसके लिए 13 प्वाइंट का रोस्टर बनाया गया। इसके तहत चौथा पद ओबीसी को, सातवां पद एससी को, आठवां पद ओबीसी को दिया जाता था। 14वां पद अगर डिपार्टमेंट आता है, तभी वह एसटी को मिलता था। इनके अलावा सभी पद अनरिज़र्व घोषित कर दिये गये। अगर 13 प्वाइंट के रोस्टर के तहत रिज़र्वेशन को ईमानदारी से लागू कर भी दिया गया होता तब भी वास्तविक रिज़र्वेशन 30 परसेंट के आसपास ही रह जाता था, जबकि अभी केंद्र सरकार की नौकरियों में एससी-एसटी-ओबीसी के लिए 49.5% रिज़र्वेशन का प्रावधान है।

यह भी पढ़ें : आरक्षण की 50% सीमा बढ़ाना राहुल गाँधी का मास्टर स्ट्रोक से मोदी की बेचैनी बढ़ी

200Point रोस्टर वाले मसले का फिलहाल एकमात्र समाधान मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा अध्यादेश लाकर या कानून बनवाकर, देश के समस्त शैक्षणिक संस्थानों में सभी वर्गों का संवैधानिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करवाना ही था। पर मोदी सरकार में उच्च पदों पर कुंडली मार कर बैठे आरक्षण विरोधी लोग आजादी के बाद से 75 वर्षों बाद भी सामाजिक न्याय के जानी दुश्मन बने बैठे हैं। अब हम इस अन्याय को सहन नहीं कर सकते हैं। अब सामाजिक न्याय के लिए इस बार सरकार से सड़क से संसद तक संघर्ष करेंगें और साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों कि आँख में आँख डाल हासिल करेंगे।

इसीलिए हम सबकी कोशिश यही होनी चाहिए कि लोकसभा चुनाव 2024  में आरक्षण समर्थक दलों का समर्थन करें और आरक्षण – विरोधी दलों का खुलकर विरोध ताकि वंचित वर्गों के साथ 70 सालों से जो सामाजिक अन्याय हो रहा हैं उसे रोका जा सके और वंचित वर्गों को सामाजिक न्याय मिल सकें।

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